गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

"अध्यापक बनें-जग गढ़े"-13

आजीविका की अनिवार्यता



जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है और जो जीना चाहता है, उसे जीवनयापन के लिए कुछ न कुछ अवश्य ही करना होता है। जीवनयापन के लिए जो क्रियाएं की जाती हैं; वही आजीविका है। जन्म लेना व्यक्ति के लिये चयन का विषय नहीं होता। हाँ! जन्म देने या ना देने के निर्णय करना और लागू करना, वर्तमान विकसित चिकित्सा विज्ञान ने संभव बना दिया है। किंतु हमें जन्म लेना है या नहीं लेना है, इसका निर्णय करने का अधिकार हमें नहीं मिलता। हमें अपने माता-पिता के चयन का अधिकार भी नहीं मिलता। 
जीना प्रत्येक जन्म लेने वाले प्राणी की मजबूरी होती है, जब तक वह मृत्यु का वरण नहीं कर लेता। कई बार तो व्यक्ति को जिन्दगी भार लगने लगती है तो भी मजबूरी में ही सही जीना ही पड़ता है। कई बार व्यक्ति कहने लगता है कि मैं जीना नहीं चाहता किंतु क्या करूँ, आत्महत्या भी नहीं कर सकता। जिस प्रकार से जीना मजबूरी है, उसी प्रकार से जीने के लिए कोई न कोई आजीविका अपनाना भी आवश्यक होता है। मजबूरी भी कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 
प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी न किसी आजीविका का चुनाव करना आवश्यक होता है। कई बार हमें लगता है कि अमुक व्यक्ति कुछ नहीं करता। हमें कुछ व्यक्ति ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे कुछ नहीं कर रहे हों, किंतु लम्बे समय तक कोई भी व्यक्ति बिना आजीविका या रोजगार के नहीं रह सकता। 
कई बार हम सोचते हैं कि बिना कुछ किए कराये कुछ लोग कितने सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं। हमारा विचार किसी आजीविका के प्रति नकारात्मक या सकारात्मक हो सकता है किंतु प्रत्येक व्यक्ति की कोई न कोई आजीविका अवश्य होती है। राजनीति भी आजीविका का साधन हो सकती है, तो भीख माँगना भी किसी व्यक्ति विशेष के लिए आजीविका का साधन हो सकती है। कोई व्यक्ति किसी वस्तु का निर्माण करके अपनी आजीविका कमाता है तो कोई व्यक्ति क्रय-विक्रय करके ही अपनी आजीविका चलाता है। कोई व्यक्ति अपनी सेवाएँ प्रदान करके भी अपनी आजीविका कमाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी न किसी आजीविका को अपनाना आवश्यक होता है।