भ्रष्टाचार वर्तमान समय की अनिवार्य बुराई बन चुकी है. सभी देश इससे परेशान हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां इस पर घड़ियाली आंसू बहाती हैं किन्तु इस मुद्दे पर दूसरे दलों की आलोचना करके स्वयं भ्रष्टाचार रूपी गंगा में अवगाहन करती हैं. इस पर नियंत्रण के लिये प्रशासन और व्यवसाय को अलग-अलग करने की आवश्यकता है. सरकार को व्यवसायिक गतिविधियों से दूर रहकर केवल उनका नियमन करना चाहिये. किसी भी प्रकार की सब्सिडी वस्तुओं पर नहीं वरन जीवन स्तर को देखते हुए नकद धन के रूप में व्यक्ति को देनी चाहिये. व्यवसाय व उद्यागों को अधिकतम लाभ की नीति न अपनाकर उचित लाभ के द्वारा उपभोक्ता की सेवा की नीति अपनानी चाहिये तथा व्यवसायिक नैतिकता का पालन करना चाहिये. ये सब कार्य कुशल व सेवाभावी प्रबंधन द्वारा ही किये जा सकते हैं.
सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
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