गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

समय की एजेंसी-26

परिणाम ही नहीं, प्रक्रिया में भी आनंद लें


हमें सदैव डेनिस वेटली के कथन को स्मरण रखना होगा, सिर्फ परिणाम का ही नहीं, प्रक्रिया का भी आनन्द लें।’ केवल साध्य ही नहीं, साधन अर्थात् प्रक्रिया भी महत्त्वपूर्ण है। परिणाम का तो पता नहीं कब? क्या आयेगा। हाँ! यह निर्धारित है कि जब तक हम परिणाम की अपेक्षा प्रक्रिया पर जोर नहीं देंगे, हम प्रति पल आनंद नहीं मना पायेंगे। हमारा जीवन तनावों से निकलकर आनन्दपूर्ण हो सके, इसके लिए प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित कर आनन्द के वातावरण में अपनी जीवन यात्रा संपन्न करनी होगी। 
             परिणाम तो दीर्घकालीन प्रक्रिया के पूर्ण हो जाने के बाद प्राप्त होता है। परिणामों के कुछ समय पश्चात् ही पुनः नवीन प्रक्रिया को लागू करना होता है। अतः आनंद केवल परिणाम तक सीमित रहेगा तो जीवन में परिणाम का आनंद कम और प्रक्रिया का तनाव ज्यादा रहेगा। इसके उलट यदि प्रक्रिया का ही आनंद लेने लगें तो प्रति पल आनंद की अनुभूति होगी। प्रक्रिया के दौरान आनंदित रहेंगे। प्रक्रिया की सफलता के बाद परिणाम तो आनंद देने वाले होंगे ही। हमें समझने की आवश्यकता है कि सिर्फ परिणाम ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, प्रक्रिया भी महत्त्वपूर्ण हैं। बल्कि प्रक्रिया ही महत्त्वपूर्ण हैं, यदि प्रक्रिया सही तरीके से पूर्ण होगी तो परिणाम तो सफलता प्रदान करेंगे ही।   
            शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा ही विरोधाभास देखने में आता है। शैक्षणिक संस्थानों का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास बताया जाता है। वास्तव में सर्वांगीण विकास की बात तो दूर शिक्षा से भी हट कर परीक्षा को प्रमुखता मिल जाती है। अधिकांश शैक्षणिक संस्थान, अध्यापक, अभिभावक व विद्यार्थी परीक्षाओं में अंक या ग्रेड लाने की बात करते हैं। शिक्षा पीछे रह जाती है। सीखने-सिखाने के स्थान पर परीक्षा पास करने के गुर सिखाये जाते हैं। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के स्थान पर परीक्षा हावी हो जाने का परिणाम है कि संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था में तनाव देखने को मिलता है। 
               आवश्यकता इस बात की है कि हम समझें विद्यार्थी को सिखाना महत्त्वपूर्ण है। परीक्षा तो एक मापन मात्र है। परीक्षा को प्रमुख मान लेने के कारण ही तो अनुचित साधनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। अतः परीक्षा के परिणाम तक आनन्द की प्रतीक्षा न कर, शैक्षणिक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की सफलता पर आनंद लेकर शैक्षणिक प्रक्रिया को सहज, सरल, सुबोध व आनंदपूर्ण बनाने की आवश्यकता है।
             इस संदर्भ में मेरे साथी श्री दिलबहादुर मीणा, तत्कालीन पीजीटी बायो., जो वर्तमान में केन्द्रीय विद्यालय में प्राचार्य हैं के कथन का उल्लेख करना चाहूँगा। एक बार हम आपस में अनौपचारिक चर्चा कर रहे थे। उसी अनौपचारिक वार्ता में बात चल पड़ी कि विद्यार्थी जीवन में तो भविष्य की तैयारी के नाम पर नींद खराब होती ही है, उसके बाद भी जाॅब प्राप्त करने के लिए तैयारी और उसके बाद प्रोन्नति के लिए तैयारी। श्री मीणा जी का कहना था, ‘जीवन भर बिस्तर ही लगाते रहेंगे तो सोयेंगे कब?’ मीणाजी द्वारा मजाक में कहा हुआ वाक्य एक बहुत बड़े सच को कह गया। 
                हम आजीवन उज्ज्वल भविष्य की तैयारी ही करते रहते हैं किंतु हम कभी उस उज्ज्वल भविष्य का आनंद नहीं उठा पाते। इस बात का सीधा सा रास्ता है। गंतव्य के आनन्द की प्रतीक्षा की अपेक्षा यात्रा के आनन्द का उत्सव मनाते चला जाय। साधक साध्य में ही क्यों? साधना में भी संतुष्टि प्राप्त करे, आनन्द की अनुभूति करे। हमें साध्य का ही नहीं, साधना का भी आनन्द लेने की आदत का विकास करना होगा। यही तो स्वयं का प्रबंधन है। हम कैसे और कब आनन्द प्राप्त करें। आनन्द प्राप्त करने के लिए किसी बड़ी सफलता का इंतजार क्यों करें? छोटी-छोटी उपलब्धियों का आनन्द उठा कर जीवन को आनन्दपूर्ण बनाने में संकोच क्यों करें?
             प्रबंधन करने की युक्तियाँ केवल नौकरी-पेशा या व्यवसायी वर्ग  के लिए ही नहीं, वरन् प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, भले ही वह व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो। समय प्रबंधन नहीं वास्तव में जीवन प्रबंधन है क्योंकि समय ही जीवन है। कार्य प्रबंधन के द्वारा न केवल समय की प्रत्येक इकाई का सदुपयोग सुनिश्चित होता है वरन् उपलब्ध सभी संसाधनों की उत्पादकता भी बढ़ती है। यही नहीं स्वयं के प्रबंधन पर ध्यान देकर हम परिवार, समाज, उद्योग व सरकारों का भी कुशल प्रबंधन कर सकने में सक्षम हो जाते हैं। हमें हर स्तर पर संगठित व व्यवस्थित रहने की सुविधा मिलती है। प्रबंधन भी एक प्रक्रिया है, जब हम प्रक्रिया को समझकर उसका आनंद उठाने के लिए हर पल काम करते हैं तो प्रबंधन सफलता की ओर बढ़ता है। यही स्वयं का भी प्रबंधन है। 


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