बुधवार, 1 अप्रैल 2020

कैरियर के आधार-


इच्छा या सक्षमता और निष्ठा?

स्नातक अध्ययन के क्रम में अर्थशास्त्र की पुस्तक में माँग के नियम को पढ़ते समय पढ़ा था कि सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति फिएट कार चाहता है, किन्तु लोगों के चाहने मात्र में फिएट कार की माँग नहीं बढ़ जाती। यह तथ्य एक दम सच है। 
हमारी इच्छा मात्र से जीवन में हमें कुछ भी नहीं मिलता। इच्छा को पूरी करने के लिए हमें इच्छा के साथ शक्ति को भी जोड़ना होगा, तभी तो इच्छाशक्ति शब्द का निर्माण होता है। आपको किसी भी वस्तु, व्यक्ति या विचार को पाने और अपनाने के लिए उसको प्राप्त करने के संसाधन जिसमें योग्यता शामिल है जुटाने होंगे। 
केवल प्राप्त करने के संसाधन जुटा लेना ही पर्याप्त नहीं है। उन संसाधनों को बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से वांछित वस्तु, व्यक्ति या विचार को प्राप्त करने और अपनाने पर खर्च करना होगा। किसी वस्तु, व्यक्ति या विचार को प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त तो नहीं है ना। उसको अपने पास बनाये रखना, केवल बनाये रखना ही नहीं उपयोग करते हुए उसे भविष्य के लिए उपयोगी बनाये रखना भी आवश्यक है। यही सातत्य विकास(Sustainable Development) का आधार भी है। 
कैरियर भी सातत्य विकास की अवधारणा पर आगे बढ़ता है। एक बार नौकरी या अन्य कोई भी व्यवसाय प्राप्त करके उससे संतुष्ट हो जाने वाले व्यक्ति के लिए कैरियर नहीं होता। उसके लिए केवल नौकरी होती है। वह पेशेवर या व्यवसायी नहीं हो सकता। कैरियर के लिए तो व्यक्ति को आजीवन आगे और आगे और आगे ही बढ़ना होता है। इसी अवधारणा के आधार पर वर्तमान समय में आजीवन शिक्षा की अवधारणा अपना स्थान बना रही है। कैरियर का मतलब ही अपने निर्धारित चुने हुए क्षेत्र में सतत आगे बढ़ते रहना है और यह इच्छा मात्र से नहीं, इच्छाशक्ति, सक्षमता, निष्ठा और निरंतरता के आधार पर ही संभव है। अतः कैरियर के आधारों के रूप में इच्छा और शक्ति, योग्यता और सक्षमता, निष्ठा और निरंतरता का विशेष महत्व है। 

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