शुक्रवार, 7 जून 2019

समय की एजेंसी-18

समय का नहीं, स्वयं का प्रबंधन


हम यह भली प्रकार समझ चुके हैं कि समय का प्रबंधन संभव नहीं है। समय को रोकना, उसका भण्डारण करना या उसका क्रय-विक्रय संभव न होने के कारण उसका प्रबंधन भी संभव नहीं है। हाँ! हम स्वयं का प्रबंधन कर सकते हैं अर्थात् अपनी क्रियाओं और गतिविधियों का प्रबंधन संभव है। इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि हम समय का प्रबंधन नहीं कर सकते किंतु समय के सन्दर्भ में अपना प्रबंधन कर सकते हैं; अपने कार्यो का प्रबंधन कर सकते हैं।

            आनन्दपूर्ण जीवन जीने के लिए ध्येय, उद्देश्य व लक्ष्यों का निर्धारण करना स्वयं के प्रबंधन के लिए आवश्यक व पहला कदम है। उन्हें प्राप्त करने के लिए योजना बनाना उससे अगला कदम है, क्योंकि प्रबंधन का आरंभ ही योजना से होता है। योजना को याद रखना और स्थायित्व देने के लिए उसे अपनी डायरी में दर्ज करना स्वयं प्रबंधन का तीसरा कदम कहा जा सकता है। विचारपूर्वक बनाई गयी दिनचर्या को अपनी दिनचर्या का अंग बनाकर आत्मसात करना सफलता का आधार बनता है। योजना के अनुसार परिणामों को प्राप्त करना और परिणामों को स्वीकार करते हुए उसका पुनरावलोकन करना स्वयं प्रबंधन के नियंत्रण और आगामी नियोजन दोनों का भाग बनता है। सफलता का श्रेय सहयोगियों को समर्पित कर देना और कमियों के लिए उत्तरदायित्व का निर्धारण करते हुए सुधार करना स्वयं के प्रबंधन के लिए आवश्यक कदम हैं। हम विभिन्न व्यक्तियों और वस्तुओं के प्रबंधन की बात करते हैं किंतु स्वयं के प्रबंधन को नजर अंदाज कर देते हैं। हमारे पास सबके लिए समय होता है किंतु अपने लिए समय नहीं होता। सामान्यतः व्यक्ति स्वयं ही अपनी उपेक्षा करता है।

प्रबंधन विकास का आधार


प्रबंधन संसार के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषयों में से एक है। प्रबंधन ही विकास का आधार है। प्रबंधन ही है जिसकी सहायता से व्यक्ति विकास के झण्डे गाड़ता है। प्रबंधन की सहायता से ही व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता के शिखर की यात्रा संपन्न करते हैं। प्रबंधन ही वह शक्ति है, जो न्यूतनम संसाधनों से अधिकतम् परिणामों की प्राप्ति सुनिश्चित करती है। प्रबंधन ही समस्त संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने वाला तत्व है। यह तथ्य निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुका है। अतः हमें समय को या प्रबंधन को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है। परिभाषाएँ देना या सिद्धांत गढ़ना इस पुस्तक का क्षेत्राधिकार भी नहीं है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक किसी प्रकार की विद्वता प्रमाणित नहीं करना चाहता, क्योंकि जो उसके पास नहीं है; उसको प्रमाणित करने का प्रयत्न, एक झूठ के सिवा कुछ नहीं होगा। लेखक तो जन सामान्य के पास समय की कमी को देखते हुए उसे समय की एजेंसी के बारे में जानकारी देकर लाभान्वित करना चाहता है।
इस संसार में कदम-कदम पर ज्ञान बिखरा हुआ है। ज्ञान भी असीम है। उसका अंश मात्र भी लेखक प्राप्त कर पाया है, ऐसा लेखक को प्रतीत नहीं होता। श्री हरिवंशराय की कविता की भाषा में-

कर यत्न मिटे सब सत्य किसी ने जाना?
नादान वही है, हाय जहाँ पर दाना।
फिर मूढ़ न क्या जग जो उस पर भी सीखे,
मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना।

अर्थात् युगों-युगों से लोग प्रयत्न करते आ रहे हैं। एक-एक कर सभी नष्ट होते जा रहे हैं। विभिन्न प्रकार के ज्ञान गढ़े जाते रहे हैं किंतु शाश्वत सत्य को आज तक परिभाषित नहीं किया जा सका है। हम जिसे ज्ञान समझते हैं, वही अन्य किसी विद्वान द्वारा असत्य सिद्ध करके अज्ञान सिद्ध कर दिया जाता है। अतः वास्तविक ज्ञान क्या है? इसका निर्णय ही नहीं हो पाया है। 
         वर्तमान में शिक्षाशास्त्री भी मानने लगे हैं कि कोई ऐसा ज्ञान अर्थात् शिक्षा नहीं है, जिसे बच्चे को बाहर से दिया जाय। शैक्षिक मनोविज्ञान की रचनावाद, निर्मितवाद या निर्माणवाद (ब्वदेजतनबजपअपेउ) विचारधारा के अनुसार ज्ञान बाहर से नहीं दिया जा सकता। ज्ञान का निर्माण सीखने वाले के मस्तिष्क में होता  है। यह निर्माण प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जिसे वातावरण अभिप्रेरित करता है। निष्कर्षतः ज्ञान का कोई रूप अन्तिम नहीं होता, ज्ञान सदैव निर्मित होता रहता है। अतः समय जैसे अनिर्वचनीय तत्व के बारे में परिभाषा देना भी मेरे जैसे व्यक्ति के लिए असंभव जैसा है। हाँ! जन प्रचलित अर्थ को लेते हुए उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई के प्रयोग के द्वारा अपने जीवन को प्रभावपूर्ण बनाना ही इस पुस्तक का उद्देश्य है।


समय अगोचर तत्व के रूप में

जिस प्रकार ज्ञान का कोई अन्तिम रूप नहीं होता, उसी प्रकार समय का भी अन्तिम ज्ञान उपलब्ध नहीं है। ज्ञान की तरह इसे भी परिभाषित करना संभव नहीं है। समय को परिभाषित करना संभव नहीं है, इसकी अवधारणा के बारे में कोई सहमति नहीं बनी है और न ही बन सकती है। समय अगोचर तत्व है, जिसको महाकाल अर्थात्् ईश्वर भी कहा जाता रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम कार्य प्रबंधन नहीं कर सकते। समय के सन्दर्भ में स्वयं का अर्थात्् अपनी गतिविधियों का प्रबंधन कर सकते हैं। समय के सन्दर्भ में अपनी गतिविधियों का प्रबंधन करने का आशय अपनी समयचर्या को पूर्व नियोजित करके उसके अनुसार प्रत्येक पल का उपयोग करने से है। 

गुरुवार, 6 जून 2019

समय की एजेंसी-17

कार्य प्रबंधन, सफलता का आधार


दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति व प्रत्येक संस्था सफलता की बात करती है। सभी सफलता के अभिलाषी हैं। कई बार तो लोग सफलता के पीछे इस तरह पड़ जाते हैं कि वे तथाकथित सफलता को किसी भी कीमत पर पा लेना चाहते हैं। यहाँ पर तथाकथित सफलता का प्रयोग जानबूझकर किया है क्योंकि जब हम सफलता के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं, तभी सफलता के मार्ग से भटक चुके होते हैं। जब हम सफलता के लिए अनुचित व असामाजिक मार्ग पर चलते हैं, हम तभी असफल हो चुके होते हैं क्योंकि सफलता किसी विशेष पद को पाना नहीं है और न ही सफलता संपत्ति का अंबार खड़ा करना है। 
               सफलता तो अपनी योजना के अनुरूप अपने ईमानदार प्रयासों के परिणाम प्राप्त करना है। महान् विचारक कन्फ्यूशियस का कहना था, ‘जहाँ भी जाएँ, पूरे दिल के साथ जाएँ। जितनी अधिक अंदरूनी खुशी, उतना ही हम सफलता के लिए प्रेरित होंगे।’ यथार्थ में यह अंदरूनी खुशी ही तो सफलता है। यदि बेईमानी, धोखेबाजी और षड्यंत्रों से कुछ उपलब्धि हासिल भी हो जाय तो भी वह सफलता नहीं, असफलता ही है। हम असफल उसी क्षण हो जाते हैं, जब हम उल्टे-सीधे रास्ते पर चल पड़ते हैं।
              जब भी जीवन की सफलता की बात की जाती है, वह समय के सदुपयोग पर ही आकर टिकती है। फील्ड के अनुसार, ‘सफलता और असफलता के बीच की सबसे बड़ी विभाजक रेखा को इन पाँच शब्दों में बताया जा सकता है, ‘मेरे पास समय नहीं है।’
       वास्तविक बात यह है कि सभी के वर्ष, माह, दिन या घण्टे में बराबर समय होता है। समय की इकाई कम से कम इस संसार में एक ही है। हाँ! अन्य ग्रहों पर अलग हो तो अलग बात है। प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में 12 माह या 365 दिन, एक दिन में 24 घण्टे, 1 घण्टे में 60 मिनट, 1 मिनट में 60 सेकण्ड ही मिलती हैं। हाँ! किसी के जीवन के बारे में निश्चित रूप से कुछ स्थिर रूप से नहीं कहा जा सकता कि उसे कितने वर्ष का जीवन मिला है? 
               सामान्यतः विभिन्न परिस्थितियों के अधीन प्रकृति समय आवंटन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करती, ऐसी मान्यता है। इसके बाबजूद एक व्यक्ति बड़े ही सामान्य ढंग से केवल कार्य से बचने के लिए ही कह देता है कि मेरे पास समय नहीं है, जबकि दूसरा व्यक्ति कितना भी व्यस्त रहते हुए सभी महत्त्वपूर्ण कार्यो के लिए समय निकाल ही लेता है। इसी प्रकार समय बचाकर कार्य करने की प्रवृत्ति के कारण एक व्यक्ति से मिलने के लिए लोगों की कतार लगी रहती है, जबकि दूसरे व्यक्ति को कोई पूछने वाला नहीं होता। यह प्रबंधन कला का ही कमाल है कि उसी समय के उपयोग से एक व्यक्ति सफलता के शिखरों को चूमता है, जबकि दूसरा उसी समय की बर्बादी के कारण समय की कमी का रोना रोता हुआ मारा-मारा फिरता है।
       समय के महत्त्व को बेंजैमिन फैंक्लिन के कथन, ‘समय ही पैसा है’ के द्वारा भी समझा जा सकता है। यह एक यर्थाथ है कि समय के प्रयोग के द्वारा ही पैसा कमाया जाता है, जो व्यक्ति अपने समय का सही प्रयोग करना जानता है। उसका एक-एक क्षण उसको धन कमाकर देता है। सफलता कार्य प्रबंधन का ही कमाल है। फ्रैंक्लिन आगे कहते हैं, ‘सामान्य व्यक्ति समय को काटने के बारे में सोचता है, जबकि महान् व्यक्ति सोचते है इसके उपयोग के बारे में।’ अर्थात् जो व्यक्ति समय को काटते हैं, वे जन सामान्य हैं और जो व्यक्ति अपने उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई का योजनाबद्ध ढंग से उपयोग करते हैं वही महान् व्यक्तियों की सूची में नाम लिखवाते हैं।
      सोवियत रूस के महान् चिंतक ने संसार के सामने नया चिंतन रखा। कार्ल मार्क्स ने श्रम को लेकर महान् कार्य किया, वे श्रम प्रबंधन के हामी थे। श्रम प्रबंधन भी कार्य प्रबंधन का ही एक रूप है। कार्ल माक्र्स ने स्पष्ट रूप से लिखा, ‘किसी के गुणों की प्रशंसा करने में अपना समय व्यर्थ मत करो, उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करो।’
               वास्तविक रूप में किसी के गुणों की प्रशंसा करने से कोई उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती। उपलब्धि हासिल होती है, गुणों को अपनाने से। गुणों की प्रशंसा करने से कोई लाभ नहीं मिलने वाला। प्रशंसा करना भी अच्छे व्यवहार की पहचान माना जाता है। इसे अभिप्रेरित करने वाला व्यवहार कहा जा सकता है किंतु प्रंशसा करने से हमें कोई लाभ नहीं होता, लाभ होता है, उन गुणों को अपनाने से। गुणों की प्रशंसा करना अपने स्थान पर अच्छे आचरण का अंग हो सकता है किंतु आचरण की श्रेष्ठता तो गुणों को अपने आचरण में ढालकर वास्तविक प्रशंसा करने से ही प्राप्त होगी। मूर्ति पूजा का अवगुण भी प्रशंसा करने की प्रवृत्ति का ही द्योतक है। मूर्ति पूजा ने मानव विकास की गति को धीमा ही किया है। मूर्ति पूजा के अन्तर्गत व्यक्ति गुणों की अपेक्षा भौतिक रूप पर ध्यान केंद्रित करता है। वह उसके गुणों के लिए नहीं, केवल स्वार्थ पूर्ति के उद्देश्य से पूजा करता है। 
      भारत में तो मूर्ति पूजा ने बहुत हानि पहुँचाई है। हमारी प्रवृत्ति गुणों को अपनाने, महापुरूषों के बताये रास्ते पर चलने की अपेक्षा उनके चित्र पर माला चढ़ाने और उनकी पूजा करने की बन गई है, जबकि मूर्ति पर माला चढ़ाने और पूजा करने से किसी को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। यह तो समय की बर्बादी मात्र है। वास्तविक पूजा तो तब होगी, जब हम उन गुणों और कर्मों को जिनके कारण हम उस व्यक्ति को महान् समझ रहे हैं, अपने आप में विकसित करें। वर्तमान सन्दर्भ में उनके द्वारा बताये गये और चले गये मार्ग पर चलकर व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को विकास के मार्ग पर ले जाने का कार्य करें। जब हम किसी महापुरूष या महान् विदुषी के आदर्शो पर चलने की अपेक्षा उसकी पूजा का पाखण्ड करने लगते हैं, तब हमारा आचरण असत्य की ओर चल पड़ता है। जिन लोगों को भी हम महान् व्यक्तियों की सूची में सम्मिलित करते हैं, वे अपने समय के पल पल का सदुपयोग करते हुए ही उस स्थान पर पहुँचे हैं।
                सफलता की दौड़ को जीतने के लिए हम अपने आप में अनेक योग्यताओं का अर्जन करने की कोशिश करते हैं। हम अनेक कौशल सीखना चाहते हैं। निःसन्देह व्यक्ति को सक्षम, योग्य व कुशल होना ही चाहिए। सक्षमता, कुशलता और योग्यताएं ही तो व्यक्ति की सफलता के मार्ग पर सहायक के रूप में कार्य करती हैं। इससे भी अलग हटकर विचार करें तो केवल स्वयं की योग्यता और कुशलता ही नहीं, दूसरे लोगों से सहयोग लेने की हमारी कुशलता भी हमें सफलता के निकट ले जाने में सहायता करती है। अल्बर्ट हब्बार्ड के विचार में, ‘अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है, लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है।’ 
कहने की आवश्यकता नहीं है कि सामाजिक जीवन में ही नहीं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमें नेतृत्व के गुण की भी आवश्यकता पड़ती है। सफलता के लिए हम जिस प्रबंधन की आवश्यकता महसूस करते हैं। प्रबंधन के लिए भी नेतृत्व क्षमता अनिवार्य आवश्यकता है। किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए समय के प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती ही है। कार्य प्रबंधन के द्वारा ही समय की कमी की समस्या से निपटा जा सकता है। समय की कमी के भूत से केवल कार्य प्रबंधन ही बचा सकता है। कार्य प्रबंधन ही हमें समय की एजेंसी दिलवाता है।
               अमेरिका के भूतपूर्व न्यायाधीश चाल्र्स इवान्स हम्स के अनुसार, ’लोग अधिक काम से कभी नहीं मरते, वे अपने समय के अपव्यय और चिंता के कारण मरते हैं।’ श्री चाल्र्स का कहने का आशय यह है कि समय को व्यर्थ की चिंताओं में नष्ट करके पल पल मृत्यु के निकट जाने से अच्छा है कि पल पल को कार्य में लगाकर जीवंत बने और जीवन के प्रत्येक पल को आनन्द पूर्वक जिया जाय। जब हम जानते हैं कि चिंता चिता से भी अधिक बढ़कर है। चिता तो हमारे मृत शरीर को जलाती है किंतु चिंता तो हमें जीवित ही जला डालती है, फिर हम जानबूझ कर अपने आपको चिंता में डालकर अपने जीवन को नष्ट क्यों करें। करना ही है तो काम करें और सभी चिंताओं से मुक्त हो जाएँ। 
                कार्य ही जीवन का प्रतीक है। सक्रियता ही जीवन है और काम करना ही सक्रियता है। जब हम काम करते हैं तो वे सृजनात्मक व समाज के हित में हों यही मानवता है। हम जितना समय काम करते हैं, वास्तव में वही जीवन है। अपने समय के पल पल का उपयोग करना ही समय की एजेंसी की मूल शर्त है। कार्य प्रबंधन ही जीवन का आधार है। हमें कार्य की चिंता से ध्यान हटाकर केवल अपने कार्य पर फोकस करना चाहिए। हमें लोगों की अच्छे और बुरे होने की टिप्पणियों के जंजाल से निकल कर अपने कार्य पर फोकस करना चाहिए। प्रसिद्ध अमेरिकी अभिनेत्री का चर्चित कथन है, ‘जब मैं अच्छी होती हूँ, अच्छा काम करती हूँ, लेकिन जब मैं बुरी होती हूँ तो और भी अच्छा परफाॅर्म करती हूँ।’ इस कथन का आशय है कि हमें अच्छे बुरे के विचार में समय व शक्ति नष्ट करने की अपेक्षा अपने कार्य पर केन्द्रित होकर अपने समय के पल पल का उपयोग करना चाहिए। 

                  प्रसिद्ध चिंतक बर्नाड शाॅ ने भी अनुपयोगी समय को ही दुख का मूल कारण माना है। श्री बर्नाड के अनुसार, ‘अपने सुख-दुःख के विषय में चिंता करने का समय मिलना ही, आपके दुःख का कारण होता है।’ वास्तव में चिंता करने से किसी भी समस्या का हल नहीं निकलता केवल समय की बर्बादी होती है और मनोबल गिरता है। सोच-विचारकर योजना बनाकर ही सभी समस्याओं का समाधान व पल-पल का उपयोग करते हुए सफलता की ओर यात्रा की जा सकती है। अतः अतीत या भविष्य की चिंता करने की आदत से छुटकारा पाकर कार्य करने की आदत का विकास करने की आवश्यकता है। 
                   कार्यरत रहना ही दुःखों की समाप्ति का एकमात्र मार्ग है। सदैव वर्तमान में जीना है। वर्तमान ही भविष्य का आधार है। वर्तमान में समय के पल-पल का उपयोग करने से ही भविष्य बनता है। अतीत से सीख ली जा सकती है, किंतु बदला नहीं जा सकता। अतः अतीत पर चिंता करके समय नष्ट करने का कोई मतलब नहीं है। भविष्य का आधार वर्तमान में हमारे समय के सदुपयोग से ही बनता है। वास्तविकता यही है कि वर्तमान के पल-पल का उपयोग करते हुए उपलब्धियाँ प्राप्त करते हुए हमें थकान भी नहीं होगी या कम होगी। हमें अधिकांशतः थकान उस कार्य को सोचने से होती है, जो वास्तव में हमने किया ही नहीं है।

                    किसी अज्ञात चिंतक का कथन है, ‘मानसिक यानि दिमागी कार्य की अपेक्षा मनुष्य उस कार्य से अधिक थकता है, जिसे वह करता ही नहीं है।’ अतः हमें बिना कार्य के होने वाली थकान से बाहर निकलना होगा और इसका एकमात्र रास्ता अपने पल-पल का उपयोग करते हुए कार्य करना है। अधिकांश व्यक्ति कार्य करने की अपेक्षा कार्य न करने के बहाने खोजने में अधिक समय और ऊर्जा लगाते हैं। अतः समय के महत्त्व को समझें। समय का सदुपयोग केवल और केवल कर्म करने में ही है। 
                  चौधरी मित्रसेन आर्य के अनुसार, ‘सच्चे मन से पुरूषार्थ करना ही सफलता का मूल मंत्र है।’ पुरूषार्थ समय को विस्तार देता है। सफलता के पथिक को उपलब्ध समय के पल पल का उपयोग करते हुए समय का विस्तार करने का भी प्रयत्न करना होगा। यही तो समय की एजेंसी है, जिससे अतिरिक्त समय की प्राप्ति की जा सकती है। सफलता के पथिक को समय के विस्तार के साथ-साथ पल पल का उपयोग करना होगा, क्योंकि समय का संरक्षण नहीं किया जा सकता। कार्य का समय के साथ तालमेल ही कार्य प्रबंधन की कुंजी है। अनावश्यक गतिविधियों में नष्ट हो रहे समय को खोजकर उपयोगी और अधिक उपयोगी गतिविधियों में निवेश करना ही समय की एजेंसी का एकमात्र लक्ष्य है।

मंगलवार, 4 जून 2019

समय की एजेंसी-16

समय अच्छा या बुरा नहीं होता



आमतौर पर अधिकांश लोग समय के महत्त्व के बारे में चर्चा करते हुए देखे जा सकते हैं। समय ही शक्तिशाली है, इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। समय पर अच्छे और बुरे होने का ठप्पा लगा देते हैं। यह सब समय से मित्रता न करने के कारण होता है। हम समय के साथ चलेंगे तो समय हमारा बन जायेगा। समय का विश्लेषण कर समय का पोस्टमार्टम करने का प्रयत्न करेंगे तो समय हमारा पोस्टमार्टम कर देगा। हम समय को नष्ट करेंगे तो समय नहीं, हमारा जीवन नष्ट हो जायेगा। हमें सदैव स्मरण रखना होगा, समय कभी भी किसी के लिए भी रूकता नहीं और न ही किसी पर कोप या दयालुता दिखाता है। यह तो हमारे ऊपर निर्भर है कि हम समय का उपयोग किस प्रकार करते हैं और उससे दयालुता या निर्दयता क्या प्राप्त करना चाहते हैं? 
             समय चक्र में से हमें क्या मिलेगा? यह तो हमारे चलने पर निर्भर है कि हम समय चक्र के साथ कितना तालमेल बिठाकर चल सकते हैं? समय हमारे साथ तालमेल नहीं करेगा। हमें समय के साथ तालमेल करना होगा। समय का काम तो केवल चलना होता है; तालमेल, समन्वय या सहयोग करने जैसे कार्य समय के नहीं व्यक्ति के होते हैं। अतः समय के साथ तालमेल हमें ही करना होगा।

                संपूर्ण ब्रह्माण्ड में समय से अधिक शक्तिशाली और अमूल्य और कोई तत्व नहीं है। हमेशा बदलता हुआ, चक्रित समय प्रकृति की अनूठी प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। समय चक्र से ही हमें सीख मिलती है कि, ‘परिवर्तन प्रकृति का नियम है।’ इस संसार में सब कुछ चलता है, सब कुछ बदलता है, जो स्थिर रहने का प्रयत्न करता है,  वह ही मरता है। सब कुछ समय के साथ चलता है, समय के साथ बदलता है। समय चक्र में सभी बँधे हुए हैं। समय से कोई स्वतंत्र नहीं। समय का रोकना, समय का संचय करना, समय का विश्लेषण व प्रबंधन करना संभव नहीं। समय का निवेश करना, समय का उपयोग करना और समय को जीकर जिंदगी मेँ  परिवर्तित करना संभव है और यह व्यक्ति के हाथ में है, ईश्वर के नहीं। यह समय की एजेंसी की सहायता से किया जा सकता है।
                अतः आओ हम समय की बचत करके निवेश करते हुए अपने लिए समय की एजेंसी प्राप्त करें। हम समय के हर पल का उपयोग करते हुए न केवल स्वयं के लिए समय प्राप्त करें वरन् दूसरों को भी समय की एजेंसी का राज़ बताकर उनको समय का लाभकारी उपयोग करने का तरीका सिखायें। जी हाँ! ज्ञान बांटने से बढ़ता है, कम नहीं होता। अतः समय की एजेंसी के राज को अपने तक सीमित मत रखिए; दूसरों को भी समय की एजेंसी से लाभ प्राप्त करने दीजिए। सफलता और विकास के पथिक को समय के चरैवेति-चरैवेति के मंत्र अर्थात् सदैव चलते रहो, सदैव चलते रहो पर चलना होगा। अपने साथियों और सहयोगियों को भी इसी मंत्र में दीक्षित करना होगा। प्रगति-पथ पर समय के साथ चलने के लिए प्रेरित करते हुए हम अपने साथियों को भी जीवन रस का आनन्द लेने की कला सिखला सकते हैं। प्रगति-पथ पर समय के साथ-साथ चलें और समय की बचत कर निवेश कर समय से रिटर्न अर्थात् अमूल्य लाभ प्राप्त करें। यही समय की एजेंसी का मूलमंत्र है।

रविवार, 2 जून 2019

समय की एजेंसी-15

समय का संचय नहीं, निवेश


        आप समय को बचाकर भविष्य के लिए संरक्षित नहीं कर सकते; हाँ! समय का श्रेष्ठतम उपयोग करते हुए वर्तमान में ही समय का निवेश कर वर्तमान को परिणामोत्पादक बनाते हुए भविष्य को सुरक्षित व मजबूत आधार प्रदान कर सकते हैं। समय का संचय नहीं किया जा सकता, केवल निवेश किया जा सकता है। समय का कुशलता के साथ उपयोग करना ही निवेश है। समय को कोई भी कीमत देकर प्राप्त नहीं किया जा सकता, इसीलिए इसे अमूल्य कहा गया है। अतः हमारी समझदारी इसी में है कि हम समय के किसी भी पल को व्यर्थ नहीं जाने दें और समय के प्रत्येक पल का पूरा पूरा लुफ़्त उठाते हुए उसका पूरा-पूरा उपयोग करें। 
              यदि हम समय के महत्त्व और संकेत को समझने में भूल या देर करते हैं तो जीवन के स्वर्णावसर को खो देंगे। यह जीवन का ध्रुव सत्य है कि जो पल गया, वह गया। हमें अपने जीवन के स्वर्णावसर को कभी भी जाने नहीं देना चाहिए; वरन्् सकारात्मक, लाभकारी, सुविचारित योजना के अनुसार उसका प्रयोग करना चाहिए। समय के प्रयोग करने के अवसर का उपयोग करने वाला प्रबंधक ही सफलता का सच्चा पथिक होता है। समय रूपी दुर्लभ संसाधन को व्यर्थ ही गवाँ देने वाला व्यक्ति ही दुर्भाग्य का रोना रोता रहता है। वही ईश्वर को दोष देता है, तभी तो कहा गया है, ‘दैव दैव आलसी पुकारा।’
                  समय का अपने लक्ष्य और अपनी योजनानुसार प्रयोग करना ही तो समय का निवेश है। स्मरण रखिये निवेश सदैव रिटर्न देता है। निवेश भविष्य में लाभ कमाने के लिए ही किया जाता है। जब हम समय रूपी संसाधन का योजनानुसार सुविचारित रूप से निवेश करते हैं तो उसका रिटर्न केवल हमें ही नहीं, हमारे परिवार, समाज, देश और संपूर्ण सृष्टि को प्राप्त होता है। हमारे इसी निवेश की मात्रा और कुशलता पर हमारी सामाजिक मान्यता निर्भर करती है। समय के कुशलतम निवेश के द्वारा ही व्यक्ति महापुरूष, यहाँ तक कि देवत्व तक पहुँच जाता है। लोग उसे ईश्वर मानकर पूजा करने लगते हैं। यह सब समय के कुशल निवेश के कारण ही संभव होता है।

गिव एण्ड टेक


        मित्रो! संसार लेन-देन से चलता है। आंग्ल भाषा में इसे ‘गिव और टेक’ का सिद्धांत भी कहते हैं। मेरे कहने का आशय यह है कि हम समय को जितना महत्त्व देते हैं, समय भी हमें उतना ही महत्त्वपूर्ण व्यक्ति बना देता है। यदि व्यक्ति समय की अहमियत को नहीं समझता तो समय को भी क्या दरकार कि वह व्यक्ति की अहमियत को समझे या उस व्यक्ति को अहमियत दे। जो समय को बर्बाद करेगा, समय उसके जीवन को ही बर्बाद कर देगा। 
               यह कहावत शत-प्रतिशत सत्य है कि ‘समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता’ यहाँ ध्यान देना होगा कि जब समय हमारी प्रतीक्षा नहीं करता तो गिव एण्ड टेक के सिद्धांत के अनुसार हमें भी समय की प्रतीक्षा नहीं करनी है और बिना प्रतीक्षा किए प्रत्येक पल का उपयोग करना है। प्रतीक्षा में समय बिताकर उस अवसर को अपने हाथ से जाने देना, बुद्धिमत्ता नहीं। हम एक पल का निवेश एक ही कार्य में कर सकते हैं अर्थात् समय हमें एक ही मौका देता है, यदि हम उस मौके को एकबार खो देते हैं तो सदैव के लिए खो देते हैं। उसे पुनः प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि समय चक्र कभी विपरीत नहीं घूमता।

चलते रहो

    समय चक्र एक अप्रतिम व आश्चर्यजनक उपकरण है, समय का न आदि है और न कोई अन्त। यह ईश्वर की तरह सर्वव्यापी है, अगोचर है। यह बहुत ही शक्तिशाली है। समय ही है जिसके साथ जैविक व अजैविक वस्तु और प्राणी जन्मते हैं, बढ़ते हैं, घटते हैं और फिर समय चक्र में मिट जाते हैं। हिंदु धर्म की आस्था के अनुसार इसके देवता महाकाल अर्थात् शिव हैं। शिव संहारकर्ता भी माने जाते हैं अर्थात् जो समय की चिंता नहीं करता, समय उसके जीवन का ही संहार कर देता है। समय असीमित है, इसकी कोई सीमा नहीं है। यह सदैव चलता रहता है। ऐतरेय ब्राह्मण का चरैवेति का मंत्र समय चक्र की गति का सार स्पष्ट करता है।

चरन् वै मधु विन्दति चरनस्वादुमुदुबरम्।

सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरंष्चरैवैति।।

अर्थात् इतस्ततः भ्रमण करते हुए मनुष्य को मधु प्राप्त होता है, उसे उदुम्बर (गूलर) सरीखे सुस्वादु फल मिलते हैं। सूर्य की श्रेष्ठता को तो देखो जो विचरणरत रहते हुए आलस्य नहीं करता। उसी प्रकार तुम भी चलते रहो। 
चरैवेति का यह मंत्र समय चक्र का ही सार है। समय चक्र कभी रूकता नहीं। वास्तव में चलते रहना ही जीवन है, चलते रहने में ही आनन्द है। बिना रुके, बिना थके, बिना आलस्य सदैव चलते रहना यही जीवन की सफलता का सार है और यही समय का सदुपयोग करने और समय प्राप्त करने की एजेंसी है। समय चक्र सदैव चलता रहता है। अतः समय के साथ चलने के लिए हमें भी चलना होगा। सदैव चलते रहना होगा। चलना ही जीवन यात्रा का सार है। चलते रहने से ही समय बन जाता हमारा यार है। चलते रहना ही जीवन है और थम जाना तो मृत्यु है। अतः मित्रांे! मृत्यु को गले मत लगाओ, चरैवेति का मंत्र अपनाकर समय चक्र के साथी बनकर जीवन का आनन्द मनाओ। अपने निर्धारित पथ पर बिना सुख-दुख की परवाह किए आगे बढ़ते रहो। पथ में मिलने वाले साथियों को गले लगाओ किंतु उनके साथ थमना नहीं है। उनकी राह नहीं, अपनी राह पर निरंतर चलते रहना है। यही जीवन है।
समय की कोई सीमा नहीं है, इसकी गति का कोई निर्धारक नहीं है, यह तो अपनी ही गति से चलता रहता है। स्व प्रेरित है। अतः इसको किसी बाहरी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं है। समय चक्र सदैव चलता रहता है। इसको कोई रोक नहीं सकता। इसकी गति को प्रभावित नहीं कर सकता। ये सृष्टि का शासक है, इस पर कोई अन्य शासन नहीं कर सकता। हाँ! इसके साथ चलकर इससे मित्रता कर सकता है। कुछ समय तक इसके आगे चलने का प्रयत्न कर इसका अधिकतम् उपयोग कर सकता है।
जीवन के किसी भी स्तर पर हम समय पर नियंत्रण नहीं कर सकते। हम समय पर चर्चा कर सकते हैं, इस का विश्लेषण करने का असंभव प्रयास कर सकते हैं, किंतु कोई परिणाम नहीं निकलेगा। समय पर चर्चा करने की अपेक्षा समय को साथी बनाकर, इसके साथ सदैव गतिमान रहकर, समय का योजनाबद्ध सदुपयोग करते हुए, हम अपने जीवन अर्थात् समय को उपयोगी बनाकर जीवन का लुफ्त उठा सकते हैं। गति ही जीवन है और गति में ही आनंद है। थम जाना तो जड़ होने की निशानी है। 

मंगलवार, 28 मई 2019

समय की एजेंसी-14

समय की बचत

बचत करने की आदत, मितव्ययिता की आदत, निवेश करने की आदत हमें बचपन से ही सिखाई जाती हैं या यूं कह सकते हैं कि सिखाई जानी चाहिए। हम बचपन से ही देखते आये हैं कि जब घर में घर के मुखिया, सामान्यतः हमारे पिता के पास धन नहीं रहता और वह असहाय अनुभव करता है, तब घर की लक्ष्मी अर्थात हमारी माँ का छिपा हुआ खजाना सामने आता और घर के सभी सदस्यों के चेहरे मुस्कान से खिल उठते। हमारी माँ अलग से कोई व्यवसाय या रोजगार नहीं कर रही होती थी, उसके बावजूद उनके पास एक साथ इतने रुपये देखकर हम आश्चर्यचकित रह जाते थे, वास्तव में यही तो उनकी बचत करने की आदत थी, जो मुसीबत के समय काम आती थी।

व्यक्ति प्रकृति की अनुपम रचनाः

जब हम समय की बात करते हैं तो उपरोक्त अनुच्छेद में दिये गये उदाहरण के अर्थ में समय की बचत संभव नहीं है कि एक-एक पल को बचाते जाएँ और जब किसी व्यक्ति का अन्तिम क्षण हो अर्थात् मृत्यु का गंतव्य उसकी प्रतीक्षा कर रहा हो, तब हम अपनी माँ की तरह उस छिपे हुए खजाने को खोलकर उसे दो-चार दिन देकर जीवन दान दे सकें। ऐसा संभव नहीं है। धन की बचत, संचय और निवेश संभव है किंतु समय की बचत और निवेश ही किया जा सकता है, संचय नहीं। धन और समय समान नहीं हैं। दुनिया में कोई भी दो वस्तु समान नहीं हैं। जब निर्जीव वस्तु समान नहीं हैं, तो सजीव व्यक्ति के समान होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। प्रकृति ने संसार में किन्हीं दो व्यक्तियों को समान नहीं बनाया। प्रकृति ने प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति को अनुपम बनाया है। 
                प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति की अनुपम रचना है। जब हम समानता की बात करते हैं, तब दुनिया का सबसे बड़ा झूठ बोल रहे होते हैं। हाँ! हम समान नहीं होते किंतु प्रकृति हमारे स्वभाव  व प्रयासों के अनुरूप विकास के समान अवसर प्रदान करती है। हम समान नहीं होते किंतु हमें प्रकृति में जीने के समान अवसर मिलते हैं। हम अपनी प्रकृति, प्रयास और समयनिष्ठता से जो पाने का प्रयास करते हैं पा सकते हैं, प्रकृति बाधाएँ केवल हमारी गति को बढ़ाने के लिए खड़ी करती है; हमें रोकने के लिए नहीं। हाँ! जो व्यक्ति बाधाओं को देखकर डरकर एक स्थान पर रूक जाते हैं, वे विकास यात्रा को प्रारंभ करने के अवसर को ही गवाँ देते हैं। जब हम विकास की यात्रा के लिए प्रस्थान ही नहीं करेंगे तो सफलता रूपी गंतव्य पर पहुँचने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। जब हम यात्रा के कष्टों से ही डर जायेंगे तो पथ में बिखरे आनंद रूपी रत्नों को कहाँ से पायेंगे। हर पल पथ की सुंदरता को निहारने से तो वंचित रह ही जायेंगे ना? हमें जीने के लिए जितना समय मिला है उस समय के प्रयोग पर हमारा अधिकार है। किंतु हम अपने उस समय को दूसरे को नहीं सौंप सकते, हाँ! दूसरे के अनुसार प्रयोग कर सकते हैं। इसी को समर्पण, नौकरी या पेशा कहते हैं; अवसर के अनुरूप जैसी स्थिति हो। हम धन का संचय कर किसी को सौंप सकते हैं, समय का संचय कर किसी को सौंपना संभव नहीं है। 

समय को बचाना संभव नहीं

जी हाँ! इस बात को स्पष्ट रूप से समझने, स्मरण रखने की आवश्यकता है कि समय एक ऐसा संसाधन है कि उसको बचाकर नहीं रखा जा सकता। समय बचाने की धारणा निराधार व भ्रामक है। हम समय को बचा सकते हैं, इस धारणा से बाहर निकलने की आवश्यकता है। इस धारणा से बाहर निकले बिना हम अपने आप और अपनी योजनाओं के साथ न्याय नहीं कर पाएँगे। समय बचाना संभव ही नहीं है। हम समय बचा सकते हैं, इस तरह की गलतफहमी हमारी योजनाओं को असफल कर सकती है। अतः हमें इस गलतफहमी से बाहर निकलना होगा कि हम समय बचा सकते हैं। चार्ल्स ब्रक्सटन के अनुसार, ‘आप किसी चीज के लिए कभी समय नहीं खोज पाएँगे। अगर आप समय चाहते हैं, तो आपको निकालना पड़ेगा।’ अर्थात् समय होता नहीं है, अन्य अनावश्यक गतिविधियों या कम महत्त्वपूर्ण गतिविधियों से निकालकर महत्त्वपूर्ण गतिविधि में लगाना होता है।
             हम समय नहीं बचा सकते किंतु समय का उपयोग एक गतिविधि से हटाकर दूसरी गतिविधि में कर सकते हैं। इस प्रकार समय की उपयोगिता में वृद्धि या कमी कर सकते हैं। अर्थशास्त्र की भाषा में उपयोगिता में वृद्धि को ही उत्पादन कहते हैं। हम समय को बचा नहीं सकते। कम महत्त्वपूर्ण गतिविधि से अधिक महत्त्वपूर्ण गतिविधि में लगाकर समय की उपयोगिता में वृद्धि कर सकते हैं।
               हाँ! समय की बर्बादी को रोककर समय का विस्तार कर सकते हैं। हम समय का उपयोग कर सकते हैं या बर्बाद कर सकते हैं, किंतु बचा नहीं सकते। समय का उपयोग करने के लिए योजना बनाकर, सोच-विचार कर कार्य करने की आवश्यकता होती है, जबकि आप समय का कुछ भी उपयोग न करके समय को बर्बाद कर सकते हैं। समय की बर्बादी ही जीवन की बर्बादी है। अतः जीवन को बर्बाद करने के लिए आपको कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। सही भी है शिखर पर चढ़ने के लिए आपको परिश्रम करना पड़ता है, किंतु नीचे गिरने के लिए परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती। एक बार पैर फिसला और आप नीचे। उन्नति के लिए अविरल प्रयासों की आवश्यकता होती है; अवनति तो स्वयं ही आपकी गोदी में आने के लिए तैयार खड़ी रहती है।

कैसे निकालें समय?


यह सच है कि समय को बचाना संभव नहीं है, इसे निकाल कर महत्त्वपूर्ण गतिविधियों में निवेश करना होगा। अब प्रश्न यह है कि हम समय कैसे निकालें? समय निकालने का सबसे आधारभूत उपकरण योजना है। योजना बनाकर कार्य करना अत्यंत आवश्यक है। योजना के बिना आपके कार्य छूट जायेंगे और आपका समय बर्बाद हो चुका होगा। समय के संपूर्ण दोहन के लिए अपने पल-पल का हिसाब रखें। समय की छोटी से छोटी इकाई का उपयोग करने के लिए कार्यक्रम बनाने और उसे आदत में बदलने का सुविचारित निर्णय लें और उसके प्रति समर्पित होकर कार्य करें। आखिर समय ही जीवन है और जीवन से महत्त्वपूर्ण आपके लिए क्या हो सकता है? निश्चित रूप से समय को बचाकर नहीं रखा जा सकता किंतु आप एक गतिविधि से समय निकालकर उससे आवश्यक गतिविधि में उसको लगा सकते हैं। समय को कम मूल्य की गतिविधि से अधिक मूल्य की गतिविधि में लगाया जा सकता है और आपको यही करना है। इस तरीके से आप अपने समय को अधिक मूल्यवान बना सकेंगे।
             हम अपने समय का उपयोग एक गतिविधि से हटाकर दूसरी में कर सकते हैं। इस प्रकार समय निकालने की प्रक्रिया से हम अपने समय की उपयोगिता में वृद्धि या कमी कर सकते हैं, किंतु समय को बचाकर नहीं रख सकते। हाँ! किसी गतिविधि में हो रही समय की बर्बादी को रोककर हम अपने समय का विस्तार कर सकते हैं। हम समय का उपयोग कर सकते हैं, दुरूपयोग कर सकते हैं, समय को बर्बाद कर सकते हैं किंतु बचा नहीं सकते। यदि हम अपने उपलब्ध समय में कुछ भी न करें तो समय अपने आप ही नष्ट हो जायेगा।

सोमवार, 20 मई 2019

समय की एजेंसी-13

समय की बचत और निवेश


हम समय को प्राप्त नहीं कर सकते, वरन् प्राप्त समय का सदुपयोग कर सकते हैं। प्राप्त समय का उपयोग किस प्रकार करना है? यह हमारे ऊपर ही निर्भर है और इसी पर सफलता और असफलता की नींव भी टिकी है। समय को प्राप्त करना संभव नहीं है, ठीक उसी प्रकार समय की बचत करना भी संभव नहीं है। यहाँ पर बचत करने से मेरा आशय समय को बचाकर सुरक्षित रखने से है। समय को बचाकर नहीं रखा जा सकता। जिस प्रकार हम अन्य संसाधनों को बचाकर भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकते हैं, उस प्रकार समय के साथ संभव नहीं हैं क्योंकि समय चक्र को रोकना किसी के वश की बात नहीं। सफल वही हो सकता है, जो समय चक्र को रोकने के व्यर्थ प्रयास करने के फेर में न पड़कर समय के साथ-साथ दौड़ लगाकर उसका सदुपयोग करने की क्षमता व विवेक रखता है और समय के सन्दर्भ में सही चयन कर सही गतिविधियों में समय का निवेश करता है।
             जी हाँ, समय को प्राप्त नहीं किया जा सकता, ठीक उसी प्रकार समय को बचाकर नहीं रखा जा सकता। हाँ! हम समय को एक कार्य से बचाकर दूसरे में लगा सकते हैं। यही चयन की समस्या या चयन करने का अधिकार है। समय एक ऐसा संसाधन है जिसका निवेश करने के लिए उसे बचाकर रखने की आवश्यकता नहीं होती, समय का तो सीधा निवेश किया जाता है। जो व्यक्ति सीधा निवेश करना जानता है, वही समय का सही प्रयोग करके सफलता के झण्डे गाड़ता है।

              समय के उपयोग के लिए यह समझना आवश्यक है कि हम किसी विशिष्ट कार्य से समय बचा सकते हैं किंतु उस समय को संरक्षित नहीं कर सकते। समय को सुरक्षित रखने का कोई भण्डारगृह आज तक नहीं बना है और इस प्रकार का भण्डारगृह बन सकने की भविष्य में भी कोई उम्मीद नहीं है। हाँ, एक गतिविधि से समय की बचत करके उसे दूसरी गतिविधि में प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार एक गतिविधि से दूसरी गतिविधि में समय का निवेश करना ही व्यक्ति के प्रबंध कौशल का परिचायक है। जो व्यक्ति समय के सन्दर्भ में अपनी गतिविधियों को जितनी कुशलता के साथ प्रबंधन करना जानता है, वह व्यक्ति सफलता का उतना ही अधिक अधिकारी है।
पाठको! एडस् के बारे कहा जाता है कि बचाव ही उपचार है। इसी प्रकार समय के सन्दर्भ में समझना होगा कि प्रयोग ही निवेश है। हमारे जीवन का हर पल हमारे जीवन में नवीन अवसर लेकर आता है, किंतु सदैव स्मरण रखें, ‘मृत्यु और अवसर कभी प्रतीक्षा नहीं करते।’ समय के जिस पल का उपयोग हमने नहीं किया, उस पल को हमने खो दिया अर्थात् बर्बाद कर दिया। कहने की आवश्यकता नहीं कि समय का मतलब जीवन है अर्थात् समय बर्बाद करने का मतलब जीवन को बर्बाद करने से है क्योंकि अर्थपूर्ण उपयोगी समय ही तो जीवन है।
   अतः हमें इस बात को गांठ बांध लेना चाहिए कि हमारे जीवन का हर पल हमारे लिए अवसरों का भण्डार है, हमारे लिए प्रगति के अनेक रास्ते खोलता है किंतु प्रगति के उन रास्तों में से किसी एक का चुनाव हमें करना है। केवल चुनाव ही नहीं करना, चुनाव करने के बाद हमें अविरल आनन्द लेते हुए उस प्रगति पथ पर चलकर पूर्व-निर्धारित गंतव्य पर पहुँचना है। 
            मित्रों! हमें स्मरण रखना होगा कि इस गंतव्य का चुनाव हमने स्वयं ही किया है, उस गंतव्य पर पहुँचने का मतलब आपके चुनाव व प्रयासों की सफलता है। गंतव्य पर पहुँचने के बाद आपको पुनः नये रास्तों का विकल्प मिलेगा, जहाँ पुनः चुनाव का अवसर मिलेगा और फिर नये गंतव्य की ओर चलना है। यही तो जीवन यात्रा है और जीवन यात्रा के प्रत्येक पल और प्रत्येक कदम का आनन्द लेते हुए आगे बढ़ना है। आनन्द गंतव्य की प्राप्ति पर निर्भर नहीं, आनन्द गंतव्य की यात्रा में लगने वाले समय का सदुपयोग करने पर निर्भर है। किसी निर्धारित स्थल पर पहुँचने पर आनंदित होने का मतलब है कि केवल कुछ क्षणों का आनंद क्योंकि वहाँ से फिर एक नवीन यात्रा के लिए निकल जाना है। अतः जीवन का आनंद किसी विशेष स्थल पर नहीं, सदैव पथ पर पथिक बनकर चलते रहने में है। पथिक को गंतव्य की ओर चलना अवश्य है किंतु उसे यात्रा का आनंद लेना है; पथ में पर्यटन का आनंद लेते हुए चलना है क्योंकि हम जीवन भर चलने वाले पथिक हैं। पथिक का आनंद गंतव्य पर नहीं रखा है, वरन्् पथ में बिखरा पड़ा है जिसे प्रति पल अपने नयनों से निहारते चलना है। इसके लिए हमें केवल कार्य की सफलता पर ही नहीं, प्रक्रिया की सफलता पर भी आनंद लेने की प्रवृत्ति का विकास करना होगा। 

रविवार, 19 मई 2019

समय की एजेंसी - 12

गलती करके नहीं, दूसरों की गलतियों से सीखें


कोई भी व्यक्ति समय को खरीद या बेच नहीं सकता। समय का उपयोग किया जा सकता है या उसे बर्बाद किया जा सकता है। हम समय का उपयोग, समाजोपयोगी गतिविधियों में कर सकते हैं या असामाजिक गतिविधियों में कर सकते हैं। हम कर्मरत रहते हुए अपने जीवन को आनन्ददायक बना सकते हैं या आलस्य में रहकर जीवन के महत्त्वपूर्ण भाग को बर्बाद भी कर सकते हैं। बहुत से लोग अपने जीवन को अर्थहीन तरीके से आलस, तंद्रा, टीवी देखने, इंटरनेट पर चैटिंग करने, अपने तथाकथित दोस्तों के साथ गप्पें लगाने या खेल के नाम पर अनुपयोगी क्रियाओं में घण्टों बर्बाद करते हुए जीवन के बहुत बड़े भाग को बर्बाद कर देते हैं। उसके बाद अपने जीवन का उपयोग कर सफल हुए व्यक्तित्वों से तुलना करते हुए व्यवस्था को गालियाँ देते हैं कि इस प्रकार का भेदभाव क्यों है? अधिकांश व्यक्ति अपनी असफलताओं की जिम्मेदारी भी स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार वे कभी गलती करते ही नहीं हैं। उनकी असफलता की जिम्मेदारी सदैव किसी न किसी अन्य की ही होती है। उनको अपने नाकारापन के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए कोई और नहीं मिले तो दुर्भाग्य और भगवान तो सदैव दोषारोपण के लिए तैयार हैं ही। वे बेचारे अपने बचाव में तर्क देने भी नहीं आ सकते।

               सामान्य व्यक्ति यह नहीं सोचते कि उनके जीवन को कोई अन्य व्यक्ति या व्यवस्था नहीं, वे स्वयं बर्बाद कर रहे हैं। वे यह विचार नहीं करते कि वे क्या कर रहे हैं? और किस ढंग से कर रहे हैं? यहाँ तक कि उनमें इतनी समझ भी नहीं होती कि अपने अमूल्य जीवन को स्वयं ही बर्बाद करने पर पश्चाताप भी कर सकें अर्थात  दूसरों की आलोचनाएं करने या व्यवस्था को कोसने में और भी अधिक समय को बर्बाद करते रहते हैं और अपने द्वारा स्वयं ही अपना जीवन बर्बाद करने पर अफसोस भी नहीं करते। इस प्रकार वे अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा खो देते हैं, जिसे वे कभी वापस नहीं पा सकते। 
                जीवन के बड़े भाग को बर्बाद करने के बाद, कई बार कहने लगते हैं, ‘गलती हो गयी।’ बचाव में तर्क भी तैयार होता है, मानव गलतियों को पुतला है; गलती करके ही सीखा जाता है। निःसन्देह गलतियाँ सीख दे जाती हैं किंतु यह आवश्यक नहीं कि हम गलती करके ही सीखें। हम दूसरों की गलतियों को और उनके परिणामों को देखकर भी सीख सकते हैं। वास्तव में चतुर व्यक्ति वह है जो स्वयं गलती न करके दूसरों की गलतियों से सीख ले। हमें दूसरों की सफलता से ईष्र्या न करके उससे प्रेरणा ग्रहण कर आगे बढ़ना चाहिए। दूसरों की गलतियों को उनकी आलोचना का आधार बनाने की अपेक्षा हमें उनकी गलतियों से सीख लेकर अपने समय को उस प्रकार की गलतियों से बचाकर उपयोगी कार्याे में लगाकर सफलता की राह पर बढ़ते रहना चाहिए।

समय का प्रयोग करने वाला ही शक्तिशाली


पारंपरिक रूप से समय को सबसे शक्तिशाली कहा जाता रहा है। कहा जाता है कि समय-समय की बात है, समय-समय का खेल। सफलता के गिरि चढ़े, अगले क्षण हो फेल। समय को भाग्य का पर्यायवाची भी माना जाता रहा है। समय को शक्तिशाली कहने वाले लोग समय को ही सब कुछ मानकर मनुष्य को कमजोर मान बैठते हैं। उनका कहना होता है कि समय ही सबसे शक्तिशाली है, मनुष्य को इसके सामने घुटने टेकने ही पड़ते हैं। मनुष्य इसकी क्षमता को मापने में सक्षम नहीं है। समय को ही ऐसे मनुष्य जीत हार का कारण मान लेते हैं। समय के साथ अच्छा और बुरा होने का विशेषण लगा कर अपनी अकर्मण्यता की जिम्मेदारी समय के गले मढ़ देते हैं। इस प्रकार वे आत्मसंतुष्टि भले ही प्राप्त कर लें। अपनी असफलताओं से सीख लेने से भी वंचित रह जाते हैं। 
            भाग्यवादियों का मानना होता है कि समय के फेर से कोई व्यक्ति एक ही पल रंक से राजा और एक ही पल में राजा से रंक हो सकता है। उनका मानना होता है कि सफलता या जीत के लिए एक ही पल काफी होता है। कोई व्यक्ति एक ही पल में अमीर और एक ही पल में गरीब हो सकता है। व्यक्ति के जीवन और मृत्यु के बीच में भी एक ही पल का अन्तर होता है। 
            निःसन्देह एक ही पल में व्यक्ति राजा से रंक और रंक से राजा हो सकता है। ऐसे स्वर्णावसर आते हैं किंतु इसका श्रेय समय को देना उचित नहीं समय तो सम है। सदैव एक जैसा रहता है। समय अच्छा या बुरा नहीं होता। अच्छा या बुरा होता है, समय का उपयोग। निःसन्देह प्रतिपल हमें नवीन अवसर प्राप्त होते हैं किंतु अवसरों को उपयोग तो हमारे अपने कर्मों के ऊपर निर्भर करता है। ऐसे अवसर ही हमारी निर्णय क्षमता और प्रत्युत्पन्न मति की परीक्षा होते हैं। निर्णय लेने के क्षण हमारे लिए चुनौती के रूप में सामने आते हैं। कई बार हमारा एक निर्णय हमारे भविष्य का आधार बन जाता है। ऐसे अवसर भी कर्मशील व समयनिष्ठ व्यक्तियों को ही प्राप्त होते हैं। ऐसे अवसरों का उपयोग अपनी जागरूकता के ऊपर निर्भर करता है। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और तुरंत निर्णय करने की शक्ति पर निर्भर करता है। 
              समय रूपी अवसर प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध हैं, यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर है कि वह समयनिष्ठ होकर उपलब्ध समय का योजनाबद्ध व विवेकपूर्ण उपयोग करके समय पर अच्छा होने का ठप्पा लगा दे या आलस्य, अकर्मण्यता का शिकार होकर अवसाद में जाकर आत्महत्या कर समय के रूप में प्रकृति-प्रदत्त जीवन रूपी अमूल्य भेंट को बर्बाद कर दे। समय निःसन्देह सर्वाधिक अमूल्य भेंट है, क्योंकि समय ही जीवन है और जीवन से अधिक महत्त्वपूर्ण इस भौतिक संसार में कुछ भी नहीं होता। हम जितनी भी गतिविधियों में भाग लेते हैं। जो भी लम्बी चैड़ी योजनाएँ बनाते हैं। सभी जीवन को केंद्र में रखकर ही तैयार की जाती हैं। इस तथ्य से पाठक भी सहमत होंगे।

समय रूपी संसाधन की प्राप्ति


यह स्पष्ट हो चुका है कि समय एक अमूल्य व दुर्लभ संसाधन है। पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि संसाधन सीमित होते हैं, संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग किया जा सकता है। विभिन्न विकल्पों में से किस विकल्प पर और कितना किसी संसाधन को प्रयोग किया जाय? अर्थशास्त्र में इसे चयन की समस्या कहकर संबोधित किया गया है। किस विकल्प का चयन करके संसाधन को उस विकल्प के लिए आबंटित करना है? इसका निर्णय व्यक्ति को करना होता है और फिर उस निर्णय को लागू करना होता है क्योंकि केवल निर्णय करना पर्याप्त नहीं होता। 
            सुविचारित निर्णय लेना और सुविचारित योजना बनाकर उस निर्णय को लागू करना ही सफलता का मूलमंत्र है। यह सभी संसाधनों के सन्दर्भ में सही है। समय भी एक संसाधन है। अतः समय के भी वैकल्पिक प्रयोग हैं। समय का उपयोग करते समय भी चयन की समस्या सामने आती है। अपने उपलब्ध समय को किस गतिविधि में लगाना है? इसका चयन करना ही हमारे लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है। हम अपने सीमित समय को किन गतिविधियों में लगा रहे हैं, यह हमारी प्राथमिकताएँ ही इसका आधार बनती हैं। हम अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर ही तय करते हैं कि हमें अपने अमूल्य समय का निवेश कहाँ करना है।
     समय के सन्दर्भ में सर्वप्रथम यह स्मरण रखना आवश्यक है कि अन्य संसाधनों की तरह हमें यह नहीं मालूम कि हमारे पास कितना समय है? अन्य संसाधनों को मापन के विभिन्न तरीके हैं, विभिन्न मापन पैमाने हैं किंतु समय के सन्दर्भ में यह लागू नहीं होता। किसी को भी नहीं मालूम कि उसे कितना जीवन प्राप्त है। जीवन अर्थात् ‘समय’ जो प्रकृति-प्रदत्त है। प्रकृति ने ही हमें जीवन जीने का अवसर दिया है किंतु यह अवसर कब तक है, इसे कोई भी नहीं जानता और न ही आज तक ऐसा कोई तरीका विकसित हुआ है कि हम जान सकें कि हमारे पास कितना समय है? समय की प्राप्ति प्रकृति जिसे हम ईश्वर भी कह सकते हैं, पर ही निर्भर है। समय प्रदान करना तो प्रकृति, ईश्वर या अन्य किसी अदृश्य शक्ति पर निर्भर है, यह माना जा सकता है किंतु उस समय को स्वीकार करके उसका उपयोग करना तो हमारे और केवल हमारे ऊपर ही निर्भर है। 

             हम अपने प्रयासों से एक भी अतिरिक्त पल प्राप्त नहीं कर सकते। विशेषकर कार्यकारी उपयोगी पल, जिसे उपयोगी जीवन कहा जा सकता है; हमारे पास बहुत कम होते हैं। जब हम यह जानते हैं कि अतिरिक्त समय की प्राप्ति संभव नहीं है तो आओ हम समय के दूसरे पहलू पर विचार करते हैं। दूसरा पहलू यह है कि निःसन्देह गुजरे हुए समय को प्राप्त नहीं किया जा सकता किंतु अपने सहयोगियों के समय को प्राप्त करके अपने कार्य में सहयोग लिया जा सकता है। हम कर्मचारियों को काम पर रखते हैं, वे हमारी योजना के अनुसार काम करते हैं, तब वास्तव में हम उनसे समय ही प्राप्त करते हैं। समय को प्राप्त करना, समय को बचाना और समय का निवेश करना बड़े ही भ्रम पैदा करने वाले शब्द हैं। क्या समय को बचाया जा सकता है? इस प्रश्न पर अगले अध्याय में चर्चा करेंगे।

गुरुवार, 16 मई 2019

समय की एजेंसी-११

मितव्ययिता के साथ सदुपयोगः


जिस प्रकार लेखाकार (Accountant) एक-एक पैसे का हिसाब रखता है, ठीक उसी प्रकार हमें समय की छोटी से छोटी इकाई का ख्याल रखना होगा। समय की छोटी से छोटी इकाई का लेखा-जोखा रखना होगा। जिस प्रकार आर्थिक प्रबंधन में मितव्ययिता आवश्यक गुण है, उसी प्रकार समय का उपयोग करते समय भी एक-एक पल को बचाकर उसका उपयोगी कार्यों में मितव्ययिता के साथ सदुपयोग करना ही समय की आराधना है। समय भी एक आर्थिक संसाधन है। समय का प्रयोग करके ही तो हम पैसा कमाते हैं। समय को ही पैसा कहा जाता है। समय का संसाधन होना ही हमें इसके मितव्ययितापूर्ण उपयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है। 
            समय का मितव्ययितापूर्ण प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए हमें सही समय पर जागना होगा। सही समय पर अपने नैत्यिक कार्यो अर्थात् उषापान अर्थात् सुबह सुबह उठकर कम से कम दो गिलास जल का सेवन, शौचादि से निवृत्ति, स्नान आदि क्रियाओं के बाद योग, व्यायाम आदि सभी क्रियाओं को नियत समय पर ही करना होगा। अपनी सभी आवश्यक नैत्यिक क्रियाओं के संपादन के पश्चात् नियत समय पर अपने पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों के निर्वहन के लिए तैयार हो जाना समयनिष्ठता के अन्तर्गत ही आता है। 
               समयनिष्ठ हुए बिना मानव संसाधन का सदुपयोग करना संभव नहीं है। वर्तमान गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में जरा सा आलस आपको पीछे ढकेल देगा और फिर पछताने में समय बर्बाद करने से कुछ हासिल नहीं होगा। अतः समय को जीना ही जीवन को जीना है। हमें जीवन में कुछ अच्छा करना है, कुछ उपलब्धियाँ हासिल करनी हैं तो इसके लिए समय के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता, लगन और कर्मरत रहने की श्रेष्ठ आदत का विकास करना होगा।

समय पृथ्वी पर उपलब्ध अमूल्य संसाधनः



समय पृथ्वी पर उपलब्ध सबसे कीमती संसाधन है। इस संसाधन को कीमती कहना भी शायद उचित नहीं होगा, इसके लिए तो अमूल्य शब्द ही उचित प्रतीत हो रहा है। समय की तुलना अन्य किसी संसाधन से नहीं की जा सकती। मानव के समय का आशय मानव जीवन से है और अनादि काल से मानव जीवन को दुर्लभ कहा जाता रहा है। अन्य समस्त संसाधनों पर किसी न किसी सीमा तक मानव का नियंत्रण हो गया है किंतु मानव जीवन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं हो पाया है। अंत समय पर बड़े से बड़े डाक्टर भी ‘ईश्वर ही कुछ कर सकता है,’ कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। एक बार जीवन चला जाय तो वह वापस नहीं आता। यह अलग बात है कि पुनर्जीवन में विश्वास करने वाले व्यक्ति पुनः जन्म लेने की बात करते हैं किंतु ऐसा होने पर भी नया जीवन होगा; किंतु जो समय बीत गया है, उसे पुनः पाना संभव नहीं होता। 
           समय चक्र सदैव गतिमान रहता है। हम समय चक्र को रोक नहीं सकते और न ही इसकी गति को धीमी कर सकते हैं। हाँ! हम समय चक्र के साथ-साथ अपनी गतिविधियों का नियोजन करके समय चक्र के साथ-साथ चलकर अपने जीवन को उपयोगी बनाकर संसार में एक छाप छोड़ सकते हैं। समय सदैव अग्रगामी होता है। यह पीछे नहीं चलता। इस संसार में सब कुछ समय पर निर्भर करता है, समय से पहले कुछ नहीं हासिल होता ऐसा माना जाता है। निःसन्देह समय से पहले कुछ हासिल नहीं होता, किंतु समय के साथ चलकर ही कुछ हासिल किया जा सकता है। समय की बर्बादी हमारे जीवन को ही बर्बाद कर देती है। वर्तमान समय के सदुपयोग पर ही हमारे भावी जीवन की नींव रखी जाती है। हम यदि वर्तमान समय को बर्बाद कर रहे हैं, तो वर्तमान को ही बर्बाद नहीं कर रहे भविष्य को भी बर्बाद करने की तैयारी कर रहे हैं। 

धन नहीं, समय आनन्द प्रदाता


देखने में आता है कि सामान्य व्यक्ति समय से अधिक धन को महत्त्व देते हैं। वे धन को ही सब कुछ मानते हैं। वे समय के महत्त्व को नहीं समझते। समय के महत्त्व को न समझने के कारण वे धन भी नहीं कमा पाते धन कमा भी लें तो समय व धन दोनों का ही आनन्द नहीं ले पाते। हमें इस बात को समझना होगा कि व्यक्ति धन के लिए नहीं, धन व्यक्ति के लिए होता है। यही बात समय के सन्दर्भ में नहीं है। समय के सन्दर्भ में तो समय ही मानव जीवन है। अतः हम यह भी कह सकते हैं कि समय ही व्यक्ति है। 
            धन अन्य वस्तुओं को प्राप्त करने का साधन मात्र होता है। सामान्य व्यक्ति को प्रतीत होता है कि धन, समृद्धि और आनन्द प्रदान करता है, किंतु यह सत्य नहीं है। धन का संयम व विवेकपूर्ण उपयोग न किया जाय तो यह कष्ट का कारण भी बन जाता है। कई बार तो धन के कारण अपने पराये हो जाते हैं, यहाँ तक कि निकटस्थ संबन्धी ही प्राणों का हरण कर लेते हैं। वास्तव में धन अपने आप में कुछ भी नहीं है। धन प्राप्त करने का आधार समय है और धन से अन्य भौतिक वस्तुओं को खरीदा जा सकता है किंतु धन से न तो जीवन को खरीदा जा सकता और न ही आनन्द को खरीदा जा सकता है। वास्तविक रूप से समय ही हमें धन, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और आनन्द प्रदान करता है।

बुधवार, 15 मई 2019

समय की एजेंसी-10

चयन का सिद्धांत

जब संसाधनों की बात आती है, तब अर्थशास्त्र याद आता है। अर्थशास्त्र के कुछ आधारभूत नियम हैं, जिनमें से एक यह है कि संसाधन सीमित हैं और संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग संभव है। कहने का अर्थ यह है कि कोई भी संसाधन असीमित नहीं है। प्रत्येक संसाधन सीमित है। संसाधनों का प्रयोग करने के लिए अनेक क्षेत्र या विकल्प होते हैं। अतः मनुष्य को संसाधनों का प्रयोग करते समय चयन करना पड़ता है। 
समय भी एक संसाधन है। अतः अर्थशास्त्र के ये नियम समय पर भी लागू होते हैं। हम धन खर्च करके वस्तुओं और व्यक्तियों के समय को खरीद तो सकते हैं किंतु अपने जीवन अर्थात् अपने पास उपलब्ध समय में वृद्धि नहीं कर सकते अर्थात् हम केवल अपने वर्तमान समय का प्रयोग अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर कर सकते हैं। कहने का आशय यह है कि हम यह चयन कर सकते हैं कि हम अपने समय को किस प्रकार प्रयोग करें। हमें किसी गतिविधि के लिए अधिक समय की आवश्यकता है तो किसी अन्य गतिविधि में से समय की बचत करनी होगी। क्योंकि समय की बचत ही समय की प्राप्ति है।
हमें प्रगति पथ पर चलना है तो समयनिष्ठ बनना होगा। समयनिष्ठ का आशय समय के महत्त्व को समझकर समय का पूर्व-योजनानुसार सदुपयोग करना होगा। हमें अपने सभी कार्यो के लिए प्राथमिकताओं के आधार पर समय का आवंटन करना होगा।
मोटे तौर पर हम विचार करें तो हमारे कुछ मौलिक कत्र्तव्य होते हैं, जो स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति हो सकते हैं। हमें गुणवत्तापूर्ण मानव जीवन जीने के लिए अपने समय का सदुपयोग अपने सभी कत्र्तव्यों में संतुलन बनाकर करना होगा। यह संतुलन मानवीय समय को संसाधन स्वीकार कर, उसकी सीमितता को स्वीकार कर, उसके वैकल्पिक प्रयोगों को स्वीकार कर चयन प्रणाली को लागू करके ही स्थापित किया जा सकता है। चयन प्रणाली का आशय अपनी प्राथमिकताओं के निर्धारण से है। उपलब्ध संसाधन का विभिन्न विकल्पों में अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर आवंटन ही चयन करना है। विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का चयन प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। यह चयन करना ही निर्णयन कहलाता है। प्रबंधक व प्रशासक का मुख्य कार्य निर्णय लेना और उसे लागू करवाना ही है।

मानव संसाधन का सदुपयोग

मानव संसाधन के सदुपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सर्वप्रथम हमें यह स्वीकार करना होगा कि मानव का मतलब उसे उपलब्ध समय से है। मानव अपने आप में संसाधन नहीं है, उसको प्राप्त कार्यकारी समय ही संसाधन है। अतः मानव संसाधन के सदुपयोग का अर्थ मानव के पास उपलब्ध समय के सदुपयोग से है।
मानव संसाधन के उचित प्रयोग के लिए हमें समयनिष्ठ होना होगा। हमें समझना होगा। समय ईश्वर प्रदत्त है। समय का पर्यायवाची काल भी है, ईश्वर को महाकाल भी कहा जाता है। कुछ चिंतक समय और ईश्वर को एक ही रूप में देखते हैं। इस प्रकार ईश्वरनिष्ठ और समयनिष्ठ होना एक ही बात है। समयनिष्ठ होना ही वास्तव में ईश्वरनिष्ठ होना है। समय की आराधना ही ईश्वर की आराधना है। नियत समय पर नियत कर्म का अनासक्त भाव से संपादन करना ही समय की आराधना है। इस प्रकार समयनिष्ठ होने का आशय समय की प्रत्येक इकाई का सम्मान करना है। समय को महाकाल भी कहा जाता है। महाकाल को शिव के रूप में पूजा जाता है। इस प्रकार समय ही ईश्वर है। समय की आराधना ईश्वर की आराधना है।

सोमवार, 13 मई 2019

समय की एजेंसी-9

मानव संसाधन का जीवन

प्रत्येक संसाधन का एक उपयोगी जीवन काल होता है। हम प्रत्येक संसाधन की परिभाषा ही उसकी उपयोगिता के आधार पर कर रहे हैं। अतः प्रत्येक संसाधन के उपयोगी जीवन काल पर ध्यान देना होगा। यदि कोई वस्तु या व्यक्ति मानव समुदाय के लिए उपयोगी नहीं रहता तो वह संसाधन भी नहीं रहता। अतः मानव को संसाधन के रूप में देखते समय उसके उपयोगी जीवन काल पर विचार करना होगा। कहने का आशय यह है कि मनुष्य का उपयोगी जीवन काल ही संसाधन के रूप में माना जा सकता है अर्थात् मनुष्य को जो कार्य करने के लिए समय मिलता है; वह समय ही मानव के लिए संसाधन है। यदि किसी कारणवश मानव का समय समाज के लिए उपयोगी नहीं रह जाता तो वह संसाधन भी नहीं रह जाता। मानव संसाधन के संदर्भ में इसलिए कहा गया है कि समय ही जीवन है। जो व्यक्ति समय बर्बाद करता है वह  जीवन बर्बाद करता है। इसे इस प्रकार भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति टाइम पास करता है, वास्तव में टाइम उसके जीवन को पास कर देता है।
मानव अपने आप में एक संसाधन है, जो अन्य संसाधनों का उपयोग करता है। मानव संसाधन का अर्थ मानव के गुणवत्तापूर्ण समय के उपयोगी जीवन काल से है। मानव संसाधन की उपयोगिता उसकी सक्षमता, योग्यता व कौशल से निर्धारित होती है। जो व्यक्ति जितना अधिक सक्षम, योग्य व कुशल होगा उसका समाज में उतना ही महत्त्व होगा। ऐसे व्यक्तियों का एक-एक क्षण कीमती होता है। वास्तविक बात यह है कि समय ही सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है। यदि हम धन को प्रगति का आधार मानते हैं तो समय ही है जो धन कमाने का आधारभूत संसाधन है। अतः वास्तव में समय ही सबसे बड़ा धन है। हम समय लगाकर धन कमा सकते हैं किंतु धन खर्च करके अपने समय में वृद्धि नहीं कर सकते। हाँ! धन के माध्यम से अन्य व्यक्तियों का समय खरीद सकते हैं। दूसरे व्यक्तियों के समय को खरीद कर उसका प्रयोग करना ही तो रोजगार या नौकरी देना कहलाता है।

रविवार, 12 मई 2019

समय की एजेंसी-8

समय एक संसाधन


जब हम विकास की बात करते हैं, तब उद्यमिता और उद्यमी की बात चलती है। उद्यमी का सबसे महत्त्वपूर्ण आधार उद्यम होता है, किंतु उद्यम मात्र से विकास की सीढ़िया नहीं चढ़ी जा सकती। उद्यमी को उद्यम लगाने के लिए विभिन्न संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। व्यवसाय व उद्योग के क्षेत्र में विभिन्न संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। उद्यमियों के संदर्भ में बात करें तो उनके लिए पूँजी प्रथम संसाधन होता है। पूँजी, सामग्री, श्रम, तकनीक व प्रबंधन को संसाधनों के रूप में माना जा सकता है। उद्यमी पूँजी के द्वारा ही अन्य संसाधनों को प्राप्त करते हैं। इस तरह के सभी संसाधनों में श्रम और प्रबंधन मानवीय संसाधन हैं जो अन्य अमानवीय संसाधनों का प्रयोग करते हैं। अतः मानवीय संसाधन अधिक महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। संसाधनों की आवश्यकता व्यवसाय व उद्योगों के क्षेत्र में ही नहीं, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पड़ती है। संसाधनों की आवश्यकता केवल उद्यमी को ही नहीं, संसार के प्रत्येक व्यक्ति को पड़ती है। 
     विकिपीडिया के अनुसार, ‘प्रकृति का कोई भी तत्त्व तभी संसाधन बनता है, जब वह मानवीय सेवा करता है। इस सन्दर्भ में 1933 में जिम्मरमैन का कथन था, ‘न तो पर्यावरण उसी रूप में और न ही उसके अंग संसाधन हैं, जब तक वह मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में सक्षम न हो।’ संसाधन को और भी अधिक स्पष्ट करना चाहें तो किसी वस्तु का संसाधन होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसका इस्तेमाल मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता है या नहीं? इस प्रकार हमारे आसपास उपलब्ध हर वस्तु संसाधन कहलाती है जिसका इस्तेमाल हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं, जिसे बनाने या जिसकी उपयोगिता में वृ़िद्ध करने के लिए हमारे पास प्रौद्योगिकी है और जिसका इस्तेमाल सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से मान्य है। कहने का आशय यह है कि वह प्रत्येक वस्तु या पदार्थ संसाधन है जो मानवीय जीवन को सुगम बनाता है, या अन्य संसाधनों पर प्रक्रिया करके उन्हें अधिक उपयोगी बनाकर मानव समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। 

संसाधनों के प्रकार


संसाधनों की गिनती करवाने में विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं। संसाधनों की उपयोगितावादी दृष्टिकोण के अनुसार प्रकृति प्रदत्त व मानव निर्मित सभी वस्तुएं संसाधनों के अन्तर्गत आ जाती हैं। सभी वस्तुएँ किसी न किसी रूप में, किसी न किसी प्रकार से मनुष्य के काम आती ही हैं और उसके जीवन को सुविधाजनक बनाती हैं। व्यापक अर्थ में व्यापक दृष्टिकोण से देखेंगे तो दुनिया में शायद ही ऐसी कोई वस्तु मिले, जो मानव के उपयोग में न आती हो, मानव के जीवन को आरामदायक या सुविधाजनक न बनाती हो। अतः हम सभी संसाधनों के नामों का उल्लेख यहाँ नहीं कर सकते। हमें सभी संसाधनों की चर्चा करने व समझने की यहाँ आवश्यकता भी नहीं है। हमारे लिए संसाधनों के वर्गीकरण की चर्चा करना पर्याप्त है। उत्पत्ति के आधार पर संसाधन सामान्यतः दो वर्गो में रखे जाते हैं-
1. जैविक संसाधन
2. अजैविक संसाधन
जैविक संसाधन वे संसाधन कहे जाते हैं जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है और इनमें जीवन व्याप्त होता है या जीवन रहा होता है। जबकि अजैविक संसाधन वे संसाधन होते हैं जिनमें जीवन नहीं होता अर्थात्् निर्जीव वस्तुएं अजैविक संसाधन के अन्तर्गत आती हैं।
                  संसाधन की परिभाषा की कसौटी पर कसने पर स्पष्ट होता है कि मानव स्वयं में एक संसाधन है। मानव, मानव के इस्तेमाल में आता है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में मानवीय सहयोग की आवश्यकता पड़ती ही है। इसी आवश्यकता के कारण तो समाज में विभिन्न रिश्तों का जन्म हुआ है। मानव की तो उपयोगिता है ही; मानव विभिन्न प्रक्रियाओं के द्वारा अन्य सभी संसाधनों की उपयोगिता में वृद्धि भी करता है। उपयोगिता में वृद्धि करना अपने आपमें उत्पादन कहलाता है। इस प्रकार मानव स्वयं संसाधन होते हुए अन्य संसाधनों को अधिक उत्पादक बनाकर मानव समुदाय के जीवन को सुगम बनाता है। इस प्रकार मानव के संसाधन होने में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं हो सकता। यही नहीं अन्य समस्त संसाधनों का प्रयोग भी मानव ही करता है। अतः मानव को संसाधनों का संसाधन कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

गुरुवार, 9 मई 2019

समय की एजेंसी-7

समय अबंधनीय है



जी हाँ! समय अबंधनीय है। इसे बांधा नहीं जा सकता। मूर्धन्य विचारक चाणक्य ने भी लिखा है, ‘जीवन में सबसे कीमती है आपका वर्तमान, जो एक बार चला जाता है तो दुनिया का सारा धन लगा दो, तो भी दुबारा नहीं पा सकते हो।’ समय के इस अबंधनीय स्वरूप के संदर्भ में महाभारत की एक कथा का सन्दर्भ देना उपयोगी रहेगा। 
                एक बार चक्रवर्ती महाराज धर्मराज युधिष्ठर अपने चारों भाइयों सहित अपने दरबार में विराजे थे। संध्याकाल हो चुका था। दरबार से उठने का समय हो चुका था। उसी समय एक गरीब ब्राह्मण सहायतार्थ दरबार में हाजिर हुआ। धर्मराज युधिष्ठर उस दिन का अपना कार्य समाप्त कर चुके थे और अपने आवास के लिए प्रस्थान करने वाले थे। अतः उन्होंने ब्राह्मण को अगले दिन आने का निर्देश दिया। ब्राह्मण अगले दिन की आशा में निश्चिंत होकर वापस चला गया क्योंकि धर्मराज युधिष्ठिर सत्य बोलते थे। यदि उन्होंने कह दिया है कि कल सहायता प्राप्त हो जायेगी तो हो जायेगी। इसमें किसी को कोई सन्देह ही नहीं था।
         यह क्या? धर्मराज जब अपने आवास के लिए निकले तो ढोल-नगाड़ों की आवाज के साथ किसी उत्सव की तरह वाद्ययंत्रों की आवाज उनके कानों में पड़ी। वे आश्चर्यचकित रह गये क्योंकि राज्य में किसी राज्योत्सव की कोई सूचना राज्य के किसी विभाग से उन्हें नहीं मिली थी। उन्होंने जिज्ञासा को शांत करने के लिए तुरंत कारण जानने का प्रयास किया तो सूचना मिली कि युवराज भीम के आदेश से प्रसन्नतासूचक वाद्ययंत्र बजाये जा रहे हैं। धर्मराज ने तुरंत भीम को बुलाया और पूछा तो भीम ने उत्तर दिया कि आज बड़े ही आनंद का विषय है क्योंकि संसार में जो उपलब्धि आज तक कोई व्यक्ति हासिल नहीं कर पाया, वह आपने हासिल कर ली है। आपने समय को जीत लिया है। युधिष्ठर के कुछ समझ नहीं आया। उन्होंने भीम से पूछा, ‘यह किसने कहा कि मैंने समय को जीत लिया है? समय को जीतना तो संभव ही नहीं है।’
            अब भीम की बारी थी। उसने कहा, ‘महाराज! अभी-अभी कुछ समय पूर्व ही आपने दरबार में एक ब्राह्मण को कल आने के लिए कहा है। इसका आशय है कि आप अवश्य ही कल तक उसको सहायता देने के लिए जीवित रहेंगे और यही नहीं वह ब्राह्मण भी आपसे सहायता लेने के लिए कल तक अवश्य जीवित रहेगा। आप कभी असत्य भाषण नहीं करते, अतः आपकी किसी बात पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। आपने कल आने के लिए कहा है तो निःसन्देह आपने समय पर विजय प्राप्त कर ली है, जो संसार में आज तक कोई नहीं कर पाया है। अतः निःसन्देह हम सभी लोगों के लिए प्रसन्नता व उत्सव का विषय है। बताया यह जाता है कि धर्मराज युधिष्ठर को अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने तुरंत दूत भेजकर ब्राह्मण देवता को तुरंत बुलाकर सहायता प्रदान की।
                       यह पौराणिक उदाहरण देने का यहाँ केवल यही आशय है कि समय को बांधना किसी के लिए भी संभव नहीं है। अतः किसी भी काम को कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। काम को कल पर छोड़ने का आशय यह है कि आज के दिन को जीवन के हाथों से जाने दिया गया। कल क्या होगा? इसे कोई नहीं जानता। अतः आज का मतलब आज, आज और अभी जो पल सामने है, उसे जिंदादिली के साथ जीना है। जीवन का एक पल भी बर्बाद नहीं करना है।
            हम सभी मनुष्य जीवन की दुर्लभता की बात करते हैं। हिंदु धर्म में मान्यता है कि 84 लाख योनियों में से गुजरते हुए मनुष्य योनि में जन्म होता है। मनुष्य योनि में जन्म लेकर श्रेष्ठ कार्य करते हुए हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य आध्यात्म पर चर्चा करना नहीं है। मोक्ष के मार्ग को दिखाना नहीं है। हमारा उद्देश्य जीवन की दुर्लभता पर चर्चा करना है। जीवन दुर्लभ है और अनिश्चित है। कोई नहीं जानता कि उसकी मृत्यु कब आ जाय? आज से कल का पता नहीं। 

                    जब हम जानते हैं कि मृत्यु कभी भी आ सकती है, तो उस पर विश्वास क्यों नहीं करते? हम युधिष्ठिर की तरह आज का काम कल पर टालने की कोशिश क्यों करते हैं? जीवन दुर्लभ है और समय ही जीवन है। हमें नहीं मालूमकि हमारे पास कितना समय है। अतः हमें जीवन के प्रत्येक पल का उपयोग पूर्णता व प्रभावशीलता के साथ करना है। समाज उन्हीं की अमरता के नारे लगाता है, जो उपलब्ध समय में समाज के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य कर जाते हैं। समय ही जीवन है तो फिर हम समय की एजेंसी का प्रयोग करने में लापरवाही  करके अपने जीवन को छोटा कर लेते हैं? क्यों हम अपने समय को जीकर जीवन का आनंद नहीं लेते? 


बुधवार, 8 मई 2019

समय की एजेंसी-6

दीर्घ जीवन नहीं, प्रभावी जीवन

       निःसन्देह समय ही जीवन है अैेर उपलब्ध समय का सदुपयोग करना ही जिंदगी हैं अन्यथा यही कहा जाता है कि यह जिंदगी भी कोई जिंदगी है? जो व्यक्ति अपने जीवन में मिले समय का समाज हित में सकारात्मक प्रयोग करते हैं, उन्हें समाज में विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है। महाभारत के उद्योग पर्व 131ः13 में लिखा है-
‘मुहूर्तमपि ज्वलितं श्रेयो न तु धूमायितं चिरम्’
 अर्थात् ‘चिरकाल तक धूमायित रहने की अपेक्षा क्षणभर के लिए जल उठना कहीं अधिक श्रेयस्कर है।’ स्वामी विवेकानन्द 39 वर्ष 7 माह तथा शंकराचार्य केवल 32 वर्ष का उपयोगी जीवन जीकर अमर हो गये।
      समय प्राकृतिक देन है। समय को कहीं से खरीदा नहीं जा सकता। समय कीमती ही नहीं दुर्लभतम व अमूल्य संसाधन है, जिसे संरक्षित नहीं किया जा सकता। हाँ! जिन गतिविधियों में अनावश्यक समय की बर्बादी हो रही है, वहाँ से बचाकर उपयोगी गतिविधियों में लगाया जा सकता है। इसलिए सफल जीवन के लिए आवश्यक है कि हमें न तो अपना और न ही दूसरों का समय कभी बर्बाद करना चाहिए। 

सफलता का रहस्यः

सफलता का सबसे बड़ा रहस्य है कि पहले अपने आपको बेहतर बनाना होगा। आप कुछ भी बन सकते हैं, जो आप सचमुच बनना चाहते हैं। आप कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकते हैं जो आपने निर्धारित किया हो, और जिसे पाने के लिए आप सचमुच अपने समय का उपयोग करते हैं। इसके लिए आपको स्वयं का प्रबंधन करना होगा, अपने कार्यो का समय के संदर्भ में प्रबंधन करना होगा और लगातार करते रहना होगा।
          सामान्यतः लोग समय की उपयोगिता का निर्धारण पैसे से भी करते हैं। फ्रैंक्लिन के अनुसार, ‘समय ही पैसा है।’ निःसन्देह हम अपने समय का सदुपयोग करके ही सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं, पैसा भी उन्हीं में से एक है। हमें ध्यान रखना होगा कि समय का प्रयोग करके हम पैसा कमा सकते हैं किंतु पैसा खर्च करके हम अपने लिए समय प्राप्त नहीं कर सकते। 
                     जीवन के जिस भाग को अर्थात्् समय को आपने नष्ट कर दिया, उसे आप कितना भी पैसा खर्च करके पुनः प्राप्त नहीं कर सकते। अतः हमें हर क्षण यह स्मरण रखना होगा कि समय ही जीवन है और जीवन से अधिक कीमती कोई भी वस्तु इस संसार में नहीं है। कितनी भी विपत्तियाँ आयें, कुछ भी नष्ट हो जायें किंतु समय को नष्ट नहीं होने देना हैं। संसार के सभी संसाधन पुनः प्राप्त किए जा सकते हैं किंतु समय नहीं; अतः समय के पल-पल का उपयोग करके ही हम अपने जीवन को जी सकते हैं।

समय प्रतीक्षा नहीं करता

समय करता नहीं प्रतीक्षा,
यह है मेरी उससे शिक्षा।
श्रम करने से जो कतराते,
वही माँगते हैं बस भिक्षा।

उपरोक्त काव्य पंक्तियाँ मेरी किसी कविता का भाग हैं। इनमें भी काव्य के रूप में मेरे द्वारा यही संदेश दिया गया है कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता और जो अपने पास उपलब्ध समय में श्रम नहीं करते; केवल वही भिक्षा माँगने की स्थिति में पहुँच जाते हैं। समय ही जीवन है, और वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इस तथ्य को हम एक कहावत से भी समझ सकते हैं, ‘समय और ज्वार-भाटा कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करते।’ 

समय के मूल्य को समझना

यह धरती पर जीवन के अस्तित्व की तरह सत्य है। समय बिना किसी रूकावट के निरंतर चलता रहता है और वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। यह तथ्य हमें ही नहीं अपनी भावी पीढ़ियों अर्थात्् अपने बच्चों को भी समझाना होगा। ताकि वे समय की महत्ता को समझ सकें और अनावश्यक गतिविधियों में अपना समय नष्ट करने की अपेक्षा समय का सकारात्मक ढंग से प्रयोग करने हेतु जागृत हो सकेें। हमें जीवन में वास्तविक सफलता प्राप्त करने के लिए समय के हर क्षण का उपयोग करना सीखना होगा। यदि हम समय को बर्बाद करेंगे तो हमारा जीवन बर्बाद हो जायेगा क्योंकि समय ही तो जीवन है और जीवन से महत्त्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। अतः समय के मूल्य को समझना जीवन के मूल्य को समझना है। 
                    प्रसिद्ध विचारक फील्ड के अनुसार,  ‘सफलता और असफलता के बीच की सबसे बड़ी विभाजक रेखा को इन पाँच शब्दों में बताया जा सकता है, ‘मेरे पास समय नहीं है।’ निःसन्देह हम सभी के पास समय है। हमारी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है कि हम उपलब्ध समय का निवेश कहाँ करते हैं। हमें सदैव ध्यान रखना होगा कि हम अपने कार्यों के लिए समय का आवंटन इस प्रकार करें कि हमें कभी यह न कहना पड़े कि मेरे पास समय नहीं है। कभी भी हमारे सामने ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए कि हमारे महत्त्वपूर्ण कार्यो के लिए समय न हो; क्योंकि यदि हमारे पास समय नहीं है तो जीवन भी नहीं है।

जिंदगी हर पल मिलती है

           कई बार लोग कहते मिलेंगे कि जिंदगी एक बार मिलती है। वास्तव में यह सही नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि जिंदगी तो बार-बार मिलती है। हाँ! मौत एक बार मिलती हैै। जिंदगी तो हर दिन मिलती है, हर घण्टे मिलती है, हर पल मिलती है। आपको जीना आना चाहिए। आप समय का सदुपयोग करके प्रति पल जिंदगी को जीकर यादगार बना सकते हैं। समय को जीना अर्थात उपयोग करना ही तो वास्तव में जिंदगी है और यह जिंदगी हर पल हमारे सामने खड़ी है।

केवल वर्तमान में ही जीना है

यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम अपने समय का उपयोग करके जिंदगी जीना चाहते हैं या टाइम पास करके मृत्यु की प्रतीक्षा करते हुए प्रतिपल मरना चाहते हैं? अगर हमें जिंदगी चाहिए तो ध्यान रखना पड़ेगा कि समय ही जीवन है। समय को संरक्षित नहीं किया जा सकता। अतः हमारे लिए भूत और भविष्य के स्थान पर वर्तमान ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। हमें केवल वर्तमान में ही जीना है। कल निकल चुका, वापस जाकर नहीं जी सकते। कल क्या होगा? किसी को नहीं मालूमकल हमें मिलेगा भी या नहीं? अतः बीते हुए या भावी समय के बारे में चिंता करके वर्तमान को खराब न करें। 
                      वर्तमान समय के पल-पल को पूर्ण उत्साह और आनन्द के साथ जीकर ही हम जिंदा होने का प्रमाण दे सकते हैं अन्यथा बिना कुछ किए समय बर्बाद करने और अचेत मूर्छावस्था में पड़े हुए व्यक्ति या मृत व्यक्ति में तो कोई विशेष अन्तर नहीं रह जाता है। समय को पास करने के लिए हमें कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती। टाइमपास बड़ा ही सामान्य शब्द है, जो सामान्य जन के लिए है। सफलता के पथिक के लिए तो समय के सन्दर्भ में कार्यो का नियोजन करना ही उसकी आदत बन चुकी होती है। उसके पास कभी समय की कमी नहीं होती। समय की कमी कहाँ से होगी? उसके पास तो समय की एजेंसी होती है।
                    समय सभी के लिए अनमोल है; प्रकृति ने यह सभी को निःशुल्क उपहार स्वरूप दिया है। हम प्राप्त समय का न तो संरक्षण कर सकते हैं और न ही इसका क्रय या विक्रय कर सकते हैं। कहा भी जाता है कि जो समय को बर्बाद करता है, समय ही उसे बर्बाद कर देता है। जो व्यक्ति समय को खो देता है, वह उसे कभी वापस प्राप्त नहीं कर सकता। एक फेसबुक पोस्ट के अनुसार, ‘सही समय का इंतजार करते-करते जिंदगी निकल जाएगी, अच्छा होगा कि समय को ही सही करने की कोशिश की जाए।’ समय को सही समय के पूर्ण सदुपयोग से ही किया जा सकता है। यदि हम समय पर भोजन नहीं करेंगे, समय पर विश्राम नहीं करेंगे या समय पर शरीर की देखभाल नहीं करेंगे, समय पर अपनी दवायें नहीं लेंगे तो समय हमारे स्वास्थ्य को नष्ट कर देगा, नहीं, हम स्वयं अपने स्वास्थ्य को नष्ट कर देंगे; क्योंकि समय तो तटस्थ यात्री है, जो सदैव चलता रहता है। समय कुछ करता नहीं, हमको ही समय के साथ चलते हुए करना होता है।
                सामान्यतः हमें ध्येयनिष्ठ, सत्यनिष्ठ रहने की सीख दी जाती है किंतु इस सबके साथ आवश्यक यह भी है कि हम समयनिष्ठ भी रहें क्योंकि यदि हम समयनिष्ठ नहीं रहेंगे, तो जीवननिष्ठ भी नहीं रहेंगे। यदि जीवन ही नहीं होगा तो ध्येयनिष्ठ और सत्यनिष्ठ रहने का तो कोई मतलब ही नहीं रह जायेगा। समयनिष्ठ रहने से हमारा आशय हमें प्राप्त समय की प्रत्येक इकाई का सदुपयोग करने से है। हम समय की प्रत्येक इकाई को जिंदगी में परिवर्तित कर लें अर्थात् समय के प्रत्येक पल को सच्चाई के साथ अपने ध्येय की पूर्ति में लगायें। यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हमें प्राप्त समय को शानदार और यादगार जिंदगी में परिवर्तित करते हैं या मृत्यु में? क्योंकि जिंदगी का विपरीतार्थक मृत्यु ही है। यदि आप जिंदगी नहीं जीते हैं तो निःसन्देह मृत्यु की ओर प्रस्थान कर रहे होते हैं। क्योंकि समय अबंधनीय है अर्थात् समय को बांधना संभव नहीं है। समय सीमा रहित है, समय की सीमा का निर्धारण करना हमारे लिए संभव नहीं है। हाँ! समय अवश्य ही हमारे लिए सीमारेखा होता है। हमारा जीवन समय की कठपुतली है। समय को हराना संभव नहीं है। समय संसार का सबसे शक्तिशाली उपादान है। समय अपने आप में निष्क्रिय संसाधन है। इसका प्रयोग हम अपनी सक्रियता से ही कर सकते हैं।

सोमवार, 6 मई 2019

समय की एजेंसी-5

समय ही जीवन


समय ही जीवन है?


समय = जिंदगी


एलन लेकीन का कथन है, ‘‘समय=जिंदगी’ इसलिए जब हम समय बर्बाद करते हैं, तब हम अपनी जिंदगी बर्बाद करते हैं। दूसरी ओर जब आप अपने समय के स्वामी होते हैं, तब आप अपनी जिंदगी के भी स्वामी होते हैं।’’ कहा यह भी जाता है कि ‘जिसने स्वयं को जीत लिया, उसने जग को जीत लिया।’ अपने पास उपलब्ध समय का स्वामी होना अर्थात्् अपने समय का अपनी इच्छानुसार योजना बनाकर प्रयोग करके आनंदपूर्ण जीवन जीना ही तो स्वयं को जीतना है। इस प्रयास में ही युगों-युगों से साधक साधना करते आए हैं। जिंदगी को अपने योजना के अनुसार जीना ही कार्य प्रबंधन अर्थात् समय के संदर्भ में अपनी गतिविधियों का प्रबंधन करना कहा जाता है।
             अब हम विचार करते हैं कि जिंदगी अर्थात् जीवन क्या है? इस पर बहुत गहन व दार्शनिक चिंतन की आवश्यकता पड़ सकती है किंतु लेखक न तो विद्वान है और न ही दार्शनिक। लेखक एक अध्येता है, जो कुछ सीखना चाहता है और जो कुछ अच्छा लगे उसे अपनों के साथ शेयर करना चाहता है। अतः इस विषय पर किसी प्रकार का दार्शनिक व विद्वतापूर्ण निष्पादन यहाँ संभव न हो सकेगा और न ही इस प्रकार की अपेक्षा इस पुस्तक से पाठकों को करनी चाहिए। सामान्य व इस व्यावहारिक चर्चा के माध्यम से यहाँ पर जीवन व समय का संबंध स्थापित करने का प्रयत्न किया जा रहा है। 
               आध्यात्म या धार्मिक व्यक्तियों की बातों का संदर्भ लें तो सामान्तः हमें सुनने को मिलता है कि जन्म और मृत्यु मानव के हाथ में नहीं है। ऊपर वाला पहले से ही निर्धारित करके भेजता है कि किस प्राणी को कितने दिन तक इस लोक में रहना है। हिंदु धर्म में तो यमराज, धर्मराज और चित्रगुप्त की कल्पना भी की गई है। 
                 चित्रगुप्त का तो काम ही यह है कि वह प्राणी के जन्म-मरण और कर्मो का लेखा-जोखा रखे और जब जिसकी आयु पूर्ण हो जाय, उसके प्राणों को यमदूतों के माध्यम से यम लोक बुला ले। कहने का आशय यह है कि यह अवधारणा बताती है कि किस प्राणी को कितना समय मिला है? यह पूर्व निर्धारित है अर्थात् उसको मिला हुआ समय ही प्राणी का जीवन काल कहलाता है। यह एक धारणा है, जो आस्था का विषय है किंतु इस बात में कोई संदेह नहीं कि हम नहीं जानते कि हमारा जीवन काल कितना है? अतः हमारे लिए तो हमारा जीवन काल अनिश्चित ही है। अगले क्षण ही समाप्त होना संभव है। अतः हमारा जीवन क्षणभंगुर है।

जीवन क्या है? 

यह प्रश्न अनादिकाल से मनुष्य के सामने अटल खड़ा रहा है। विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषाएं दी हैं। यहाँ तक कि जटिल सैद्धान्तिक परिभाषाओं को समझना मेरे जैसे सामान्य जन के लिए तो टेढ़ी खीर होता है। अतः मैं यहाँ जीवन की गूढ़ परिभाषाओं के बारे में चर्चा करके पाठकों का दिमाग गरम नहीं करूंगा। मैं तो सामान्य जन के साथ अपने विचारों को बांटना चाहता हूँ कि हम प्रबंधन की सहायता से अपने जीवन का विस्तार कैसे कर सकते हैं? सामान्य चर्चा के समय कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति बड़ा ही सफल जीवन जीया। अमुक व्यक्ति का जीवन निरर्थक ही रहा। अमुक व्यक्ति का जीवन भी कोई जीवन है? अच्छा होता ईश्वर उसे उठा ही लेता। इन सभी चर्चाओं में एक ही बात निकल कर आती है कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन का अर्थात् प्राप्त समय का प्रभावी प्रयोग किया, उसे सफल कहा जाता है। जो व्यक्ति कुछ नहीं करता या कुछ नहीं कर सकता, उसके लिए तो ईश्वर से उठा लेने की प्रार्थना की जाती है।
                संसार में प्रत्येक व्यक्ति उसे मिले हुए समय का ही उपभोग करता है। किस व्यक्ति का जन्म कब हुआ और मृत्यु कब हुई? इसी से उसका जीवन काल निर्धारित होता है। कुछ विचारक मानव को मिले हुए जीवन को उसके द्वारा ली जाने वाली श्वासों से जोड़ते हैं। उनका मानना होता है कि हम जितने धीमे-धीमे श्वास-प्रश्वास लेंगे हमारा जीवन उतना ही अधिक दीर्घ होगा। योग के क्षेत्र में प्राणायाम के द्वारा अपनी आयु बढ़ाने की बहुत कथायें मिल जाती हैं। मेरे विचार का विषय उन विभिन्न विचारों की प्रामाणिकता पर विचार करना नहीं है। मेरा मन्तव्य केवल यह स्पष्ट करना है कि जीवन और कुछ नहीं किसी प्राणी को जीवित रहने के लिए मिला हुआ समय ही उसका जीवन है।

आदतों को बदला जा सकता है

मानव की प्रत्येक गतिविधि में कम या अधिक समय का उपयोग होता है। समय के साथ-साथ व्यक्ति विभिन्न क्रियाओं को संपन्न ही नहीं करता, अपने जीवन को भी कम करता जाता है अर्थात्् समय की प्रत्येक इकाई के साथ हमें मिला हुआ समय कम होता जाता है। कुछ क्रियाओं को बार-बार करने से व्यक्ति की आदतों का विकास होता है। मानव समय के साथ-साथ ही आदतों का विकास करता है। एक बार जब किसी आदत का निर्माण हो जाता है, तब वह हमारे व्यवहार का महत्त्वपूर्ण भाग बन जाती है। आदतों को प्रयत्नों द्वारा बदला भी जा सकता है। एक अध्येता के अनुसार नवीन व्यवहार लगभग चालीस दिन में आदतों में परिवर्तित हो जाता है। अतः व्यवहार में परिवर्तन के द्वारा आदतों को बदला जा सकता है। आदतों में सकारात्मक परिवर्तन जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि का आधार होता है। 

अपने आप पर निवेश

शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार व्यवहार में होने वाले सकारात्मक परिवर्तन को ही शिक्षा या अधिगम के नाम से जाना जाता है। इसी को सीखना भी कहते हैं। व्यवहार में होने वाले इस परिवर्तन को आवश्यकतानुसार नियोजित या नियंत्रित भी किया जा सकता है। अपने जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा हम इस प्रकार के सीखने में भी लगाते हैं। जब हम सीखने में अपना समय लगा रहे होते हैं, उसमें भी हमारे जीवन में कमी हो रही होती है किंतु सीखने से हम अपने समय की उपयोगिता और उत्पादकता में वृद्धि करने में सफल हो सकते हैं। सरकारी क्षेत्र में शिक्षा पर किए गए व्यय को अनुत्पादक व्यय माना जाता रहा है किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। शिक्षा व प्रशिक्षण से हमारी उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है। वास्तव में सीखने में लगाया गया समय, समय की बर्बादी नहीं है, सही अर्थो में शिक्षा व प्रशिक्षण पर लगाया गया समय अपने आप पर किया गया निवेश है। अपने जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने पर किया गया निवेश है। समय की एजेंसी पर किया गया निवेश है।
                   हम आजीवन सीखते रहतें हैं किंतु सीखने के लिए हम कार्य करना बंद नहीं कर देते। कार्य बंद करके सीखना नहीं होता। कार्य बंद करके तो समय बर्बाद करना होता है। कार्य करते हुए सीखना अर्थात्् अनुभव से सीखना ही तो सीखने का सबसे अच्छा तरीका है। हाँ! दूसरों के अनुभवों से भी सीखना संभव है। कार्य प्रबंधन के ़क्षेत्र में समय के सन्दर्भ में कार्यों का प्रबंधन करके और उसको पूरा करने के बाद जब हम पुनरावलोकन करते हैं, वह सीखने की प्रक्रिया होती है; जो हमें भावी कार्य प्रबंधन में और भी अधिक कुशल बनाती है। शिक्षा व प्रशिक्षण व्यक्ति को प्रभावशाली ढंग से जीने के योग्य बनाते हैं।

जिंदा रहना ही जीवन नहीं

जब हम जीवन की बात करते हैं, तो विचार का विषय यह भी होता है कि जीवन है क्या? जीवन कितना है? के उत्तर में हम संभावित आयु के बारे में ही बात करते हैं। इसका अर्थ तो यही हुआ कि हमें जितना समय मिला है, वही जीवन है किंतु वास्तव में यदि कोई व्यक्ति कोमा में है तो यथार्थ में वह जिंदा तो है किंतु कुछ करने की स्थिति में नहीं होता। ऐसे जीवन को हम उपयोगी, उत्पादक या प्रभावशाली जीवन नहीं कह सकते। केवल जिंदा रहना ही वास्तव में व्यक्ति, परिवार, देश व समाज के लिए उपयोगी जीवन नहीं होता।
              वास्तव में इस प्रकार के जीवन को हम जीवन ही नहीं कह पाते। जीवन तो जिंदादिली का नाम है। सामान्य व्यक्ति कहने लगता है कि यह जीवन भी कोई जीवन है? इससे तो अच्छा है, मृत्यु हो जाय। व्यक्ति बीमार हो और उसके प्राण-पखेरू उड़ न रहे हों; तो उसकी आत्मा की शांति के लिए गाय दान करने की परंपरा रही है। वर्तमान समय में कई बार तो ऐसे व्यक्ति के परिजनों ने उनकी मृत्यु के लिए न्यायालय से अनुमति प्राप्त करने के लिए याचिकाएं भी लगाई हैं। 
                कहने का आशय यह है कि वास्तविकता में समाज की दृष्टि में सक्रिय जीवन ही जीवन होता है। हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि उपलब्ध समय का सदुपयोग करना ही वास्तव में जीवन जीना है। 

रविवार, 5 मई 2019

समय की एजेंसी-४

कार्य प्रबंधन के महत्वपूर्ण क्षेत्र

मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। समय सर्वव्यापक है। संपूर्ण संसार में समय ही है जो अनादि, अनन्त और क्षणभंगुर है। समय अपने आप में असीम व अनन्त है किंतु मानव ही क्यों? अमानवीय साधनों का भी निर्धारित जीवन काल होता है। समय अपने आप में असीम व अनंत भले ही हो, हमारे पास असीमित समय नहीं है। हम यह तो जानते हैं कि हमें प्राप्त समय सीमित है किंतु कितना सीमित है? हम तो उस सीमा को भी नहीं जानते। अगले क्षण भी हम जीवित रहेंगे, इसकी भी कोई गारंटी नहीं ले सकता। इसीलिए जीवन को क्षणभंगुर कहा जाता है, अर्थात सभी मानवीय व अमानवीय संसाधन क्षणभंगुर हैं। कब नष्ट होकर दूसरे रूप में आ जायँ? कोई नहीं जानता। समय अनादि है, जिसका आदि अर्थात् प्रारंभ कब हुआ हम नहीं जानते। समय अनन्त है अर्थात् इसका अंत नहीं होगा किंतु हमारे लिए यह क्षणभंगुर है क्योंकि हमारा समय कब समाप्त हो जायेगा? हम नहीं जानते। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि हमारे शरीर सहित सभी पदार्थ क्षणभंगुर हैं। इस अनिश्चित समय में ही हमें व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक अनेक काम करने हैं। इन अनेक कार्यो का उपलब्ध समय के सन्दर्भ में प्रबंधन करना अत्यावश्यक है। 
                 जीवन भले ही क्षणभंगुर हो किंतु हमारे कर्तव्य असीमित होते हैं। हम अपनी मृत्यु के बाद तक के लिए अपने लोगों के लिए व्यवस्था करने का प्रयास करते हैं। हमारे पास कामों की कमी कभी नहीं होती। एक समाप्त होता है, चार प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। अर्थशास्त्र में चयन के सिद्धांत के अनुसार विकल्प अनेक होते हैं तो चयन करना पड़ता है। यही तो प्रबंधन में निर्णयन कहलाता है। चयन का मतलब अपने कार्यो की प्राथमिकताओं का निर्धारण करना, प्रस्तावित कार्य के लिए समय का आवंटन करना और उस समय में कार्य को पूर्ण प्रभावशीलता के साथ पूर्ण करने के लिए प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। इसे सामान्यतः कार्य प्रबंधन कहा जाता है किंतु वास्तव में समय का प्रबंधन नहीं हो सकता। अतः हम इसे कार्य प्रबंधन कहना ही उपयुक्त समझते हैं।
                    हमें हर क्षेत्र में समय की कमी महसूस होती है। अधिकांश व्यक्ति समय की कमी का रोना रोते देखे जा सकते हैं। इसी कारण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कार्य प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। कार्य प्रबंधन में कुशलता या अकुशलता ही सफलता या असफलता का आधार होती है। फील्ड के अनुसार, ‘सफलता और असफलता के बीच की सबसे बड़ी विभाजक रेखा को इन पाँच शब्दों में बताया जा सकता है कि ‘मेरे पास समय नहीं है।’’ वास्तव में सभी के पास समय है। यह उस पर निर्भर करता है कि वह अपने समय को कहाँ और किस प्रकार उपयोग करता है? यह समय के संदर्भ में अपनी गतिविधियों के प्रबंधन पर निर्भर करता है। अपनी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। कार्य प्रबंधन को विभिन्न क्षेत्रों में लागू करके ही सफलता सुनिश्चित की जा सकती है। विभिन्न क्षेत्रों में कार्य प्रबंधन की आवश्यकता को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

सभी क्षेत्रों में प्रबंधन की आवश्यकताः

संसार में समस्त कार्य समय के संदर्भ में प्रबंधन की माँग करते हैं। कार्य प्रबंधन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उपयोगी रहता है, किसी घर का प्रबंध सभालने वाली सामान्य गृहिणी हो, किसान हो, मजदूर हो, कोई डाक्टर हो, कोई छोटा-मोटा व्यापारी हो, कोई बड़ा उद्योगपति हो, पेशेवर चार्टर्ड एकाउटेण्ट, वकील ही क्यों न हो सभी को कार्य प्रबंधन की आवश्यकता होती है। सभी कुछ न कुछ मात्रा में प्रबंधन करते ही हैं। उनकी प्रबंध कुशलता ही उनके स्तर को निर्धारित करती है। जिसमें जितनी अधिक प्रबंध कुशलता होती है, वह उतना ही अधिक महत्वपूर्ण कार्य करने व करवाने में सफल होता है। प्रबंध कुशलता में सक्षम व्यक्ति के लिए कोई कार्य मुश्किल नहीं होता। कोई व्यक्ति किसी छोटे से छोटे कार्य को कर रहा हो या बड़े से बड़े कार्य करने में व्यस्त हो किंतु उसे प्रबंधन तो करना ही होता है। प्रबंधन ही उस कार्य को पूर्णता दिलाता है।
               एक छोटे बच्चे को भी अपने प्रिय खेल में भाग लेने के लिए माता के हाथ के दूध को छोड़कर भाग जाना पड़ता है। आप किसी निठल्ले बैठे व्यक्ति को कोई रचनात्मक कार्य बतायेंगे तो वह भी यही कहेगा कि उसके पास समय नहीं है। उसके द्वारा यह कहने का आशय यह नहीं है कि उसके पास समय नहीं है। उसका आशय यह है कि उसने अपने लिए प्राथमिकताओं का निर्धारण कुछ अलग ढंग से कर रखा है। उसे उस समय को कहीं अन्यत्र लगाना है। हम यह कह सकते हैं कि उसने अपनी प्राथमिकताओं का निर्धारण सही से नहीं किया है और अपनी गतिविधियों का समय के संदर्भ में प्रबंधन करना उसे नहीं आता है, किंतु उसके विचार व योग्यता के अनुसार वही सही है। सभी व्यक्तियों को सभी क्षेत्रों में प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। इस तथ्य को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के सन्दर्भ में कार्य प्रबंधन की चर्चा करना उपयोगी रहेगा।

1. गृहिणी के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता- 

व्यक्ति के जीवन में प्रथम समूह उसका घर अर्थात्् परिवार होता है। परिवार का मुख्य आधार गृहिणी होती है। कहावत भी है, ‘बिन घरनी, घर भूत का डेरा’। परिवार का सृजन, विकास व परिवर्धन गृहिणी के द्वारा ही संभव है। गृहिणी द्वारा गृह प्रबंधन कुशलता के साथ हो तो घर ही जन्नत बन जाता है। यदि गृहिणी गृह प्रबंध में कुशल न हो या उसकी निष्ठा घर से बाहर हो तो घर -घर नहीं रहता, एक भवन मात्र रह जाता है, ऐसे भवन को नर्क या दोजख में परिवर्तित होने में अधिक समय नहीं लगता। महत्त्वाकांक्षी व कर्मठ व्यक्ति के लिए ऐसा घर प्रताड़ना भवन बन जाता है और ऐसे व्यक्ति के लिए ऐसे घर से अलग हो जाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रहता। 
                इस प्रकार मेरे कहने का आशय यह है कि परिवार व्यक्तित्व के विकास व समाज का आधार होता है और गृहिणी घर का आधार होती है। संपूर्ण घर को कुशलता के साथ संभालने के लिए गृहिणी को कार्य प्रबंधन की अत्यन्त आवश्यकता होती है। एक घर-गृहस्थी को कुशलतापूर्वक संभालने वाली महिला भी एक प्रबंधक है और किसी संस्था को संभालने वाले प्रबंधक से किसी भी प्रकार से कम नहीं होती। किसी संस्था के प्रबंधक के कत्र्तव्य पूर्णतः परिभाषित होेते हैं। एक गृहिणी के कत्र्तव्य और उत्तरदायित्व परिभाषित नहीं होते, असीमित होते हैं। 
                गृहिणी को न केवल घर का प्रबंधन करना होता है, वरन् उसे संबन्धों का प्रबंधन भी करना होता है, अपने आप का भी प्रबंधन करना होता है। वह ही एकमात्र धुरी होती है जो सभी परिवारीजनों को एक सूत्र में बांधे रखती है। इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए उसके पास समय की कमी बराबर बनी रहती है किंतु इसके बाबजूद वह कार्य प्रबंधन तकनीकों का प्रयेाग करके सब कुछ व्यवस्थित बनाये रखने में सफल होती है। 
                 वह परिवारीजनों से बिना किसी आधिकारिकता के सहयोग लेती है। बच्चों से सहयोग लेती है, बड़ों से सहयोग लेती है, सभी को प्रसन्न रखने की कोशिश करती है और सभी की प्रसन्नता में ही अपनी प्रसन्नता खोज लेती है। इतनी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन वह कार्य प्रबंधन के द्वारा ही कर पाने में सफल होती है। निःसन्देह एक घर को चलाने का कार्य एक संस्था के चलाने के कार्य से अधिक प्रबंध कुशलता की मांग करता है। 
               अतः हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि एक गृहिणी कार्य प्रबंधन के द्वारा ही अपने उत्तरदायित्वों का कुशलता व सफलता के साथ निर्वहन कर पाती है। हाँ! यह अलग बात है कि उसे कार्य प्रबंधन के शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए किसी विद्यालय या महाविद्यालय में नहीं जाना पड़ता। पारंपरिक रूप से अपने घर से ही वह प्रबंधन में कुशलता हासिल कर लेती है। धीरे-धीरे यह पक्ष कमजोर पड़ता जा रहा है, गृह प्रबंधन सीखने की पारंपरिक व्यवस्था कमजोर पड़़ती जा रही है। अतः हो सकता है, अगली शताब्दी में गृह प्रबंधन भी एक स्वतंत्र विषय के रूप में विद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ाना प्रारंभ करना पड़े।

2. विद्यार्थियों के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता:-

 विद्यार्थी किसी भी देश की पूँजी होते हैं। विद्यार्थियों को  किसी भी देश का भविष्य कहा जाता है। ‘अध्यापक हैं युग निर्माता, छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता’ नारे के अनुसार; उन्हें राष्ट्र का भाग्य विधाता भी कहा जाता है। विद्यार्थी जीवन सबसे अधिक मजेदार और भविष्य की तैयारी के लिए सबसे अधिक उत्तरदायित्व वाला काल होता है। विद्यार्थियों को अध्ययन ही नहीं, व्यक्तिगत, पारिवारिक, विद्यालय की शैक्षणिक गतिविधियों, पाठ्येत्तर गतिविधियों व अन्य अनेक गतिविधियों में व्यस्त रहना होता है। व्यक्तिगत स्तर पर भी विद्यार्थी जीवन को ही मौजमस्ती का काल भी कहा जाता रहा है। वर्तमान में कैरियर को लेकर विद्यार्थी मनोवैज्ञानिक दबाव में भी रहते हैं। विद्यार्थी को अभिभावकों की अति महत्त्वाकांक्षा के दबाव का भी सामना करना पड़ता है। 
             विद्यार्थियों को प्रातःकाल पीटी से लेकर, कक्षाओं के नियमित कालांशों के अलावा सायंकालीन खेलकूद में भी भाग लेना होता है। विद्यालय समय के बाद भी कक्षाओं में ढेर सारा गृहकार्य भी दे दिया जाता है। इसके अतिरिक्त,  अतिरिक्त कक्षाओं की भी परंपरा चल पड़ी है। इस प्रकार विद्यार्थी भी बहुत अधिक व्यस्त हो जाता है। कई विद्यार्थी तो अवसाद के शिकार हो जाते हैं। ऐसी स्थितियों में अपनी सभी गतिविधियों में सफलतापूवर्क भाग लेने के लिए विद्यार्थियों को अपनी सभी गतिविधियों का समय के सन्दर्भ में प्रबंधन करना पड़ता है। समय के सन्दर्भ में कार्य प्रबंधन ही विद्यार्थियों को तनाव, दबाब व अवसाद से बचाकर सफलता दिलाने का एकमात्र विकल्प है।
               कार्य प्रबंधन के बिना विद्यार्थी जीवन की सफलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विद्यार्थी का संपूर्ण जीवन समय तालिका के अनुसार विद्यालय की घण्टियों पर चलता है। विद्यार्थी जीवन में ही व्यक्ति बार-बार समय तालिका बनाने और लागू करने का प्रयास करता है। यदि वह अपनी समय तालिका को भली प्रकार बना और लागू कर पाता है तो ज्ञान की उपलब्धियाँ हासिल कर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विद्यार्थी जीवन के लिए कार्य प्रबंधन अत्यन्त आवश्यक है। इसी काल में वह समय के सन्दर्भ में कार्य प्रबंधन सीखने का अभ्यास भी करता है।

3. व्यापारियों के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता:-

 किसी भी कार्य को करने के लिए समय के अनुशासन की आवश्यकता रहती है। क्रय व विक्रय की क्रिया से लाभ कमाने को व्यापार कहते हैं। व्यापार तो समय पालन पर ही निर्भर करता है। जो व्यक्ति समय पालन नहीं कर सकता, वह कभी भी अच्छा व्यापारी क्या? व्यापारी ही नहीं हो सकता। समय के अनुशासन का पालन करके ही वह अपने ग्राहकों का विश्वास अर्जित कर सकता है। समय के सन्दर्भ में व्यापारिक गतिविधियों का प्रबंधन किए बिना व्यापार की साख निर्मित नहीं हो सकती और कोई भी व्यापार साख के बिना दीर्घकाल तक चल ही नहीं सकता।

               व्यापारी अपने व्यवसाय का स्वयं मालिक होता है, अतः संपूर्ण व्यापार के संचालन का उत्तरदायित्व उसी का होता है। उसे अन्य व्यक्तियों से भी काम लेना होता है। उसके व्यापार में अन्य संसाधनों का भी निवेश होता है। व्यापारी के लिए समय का अत्यन्त महत्त्व है। अधिक समय तक उधारी रहने पर व्यापारी एक-एक दिन का ब्याज लगा लेता है। व्यापारी को अपने ही नहीं, अपने कर्मचारियों व अन्य आर्थिक संसाधनों के समय का भी प्रबंधन करना होता है।

4. उद्योगपतियों के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता:-

उद्यम को करने वाले उद्यमी कहलाते हैं। उद्यम ही आधुनिक औद्योगिक विकास की धुरी है।  उद्योग के अन्तर्गत अधिकांशतया वस्तुओं का उत्पादन, निर्माण या प्रक्रियाकरण सम्मिलित होता है। उद्योग किसी देश के विकास की आधारशिला होते हैं। उद्यमी छोटा हो सकता है, बड़ा हो सकता है। बड़ा होने पर वही  उद्योगपति कहलाता है। उद्योगपति ही देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाते हैं। उद्योगपति पूँजी लगाते हैं, इसी कारण इन्हें पूँजीपति भी कहते हैं।
                पेशेवर प्रबंधन का श्रेय पूँजीपतियों को ही जाता है। जब तक उद्योग व व्यवसाय छोटे स्तर पर रहता है, मालिक ही प्रबंधक का काम भी करते हैं। जब उत्पादन बड़े पैमाने पर करने के लिए वृहद स्तर के उद्योगों की स्थापना की जाती है। वृहद स्तर के उद्योग काॅरपोरेशन प्रारूप में काम करते हैं। कम्पनी प्रारूप में स्वामित्व और प्रबंधन अलग-अलग होते हैं। 
              उद्योगपति उद्योग का प्रबंधन स्वयं नहीं करते हैं, पेशेवर प्रबंधकों से करवाते हैं। पेशेवर प्रबंधक ही वास्तव में उद्योगों का संचालन करते हैं। उद्योगपति पेशेवर प्रबंधकों से प्रबंधन करवाते हैं। इसका आशय यह नहीं है कि उद्योगपतियों पर कोई काम नहीं होता। पेशेवर प्रबंधकों से काम करवाने के लिए भी काम करना पड़ता है। दूसरों से कार्य करवाना ही तो प्रबंधन है। ‘कार्य करने वाला व्यक्ति कर्मचारी होता है, किंतु काम करवाने वाला व्यक्ति प्रबंधक होता है।’ काम करवाने के लिए भी प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। उद्योगपति कार्य प्रबंधन करके ही पूँजीपति बनते हैं। कार्य प्रबंधन के बिना वे उद्योगपति रहेंगे ही नहीं। इस प्रकार उद्योगपति को भी कदम-कदम पर कार्य प्रबंधन पर ध्यान दे देना चाहिए। वास्तव में उद्यमी प्रबंधकों का भी प्रबंधक होता है। कार्य प्रबंधन के बिना वह एक साथ अनेक उद्यमों का स्वामित्व सभांल पाने में सक्षम न हो सकेगा। अतः उद्यमियों के लिए समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन अनिवार्य है।


5. फ्रीलांसरों के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता:-

जो व्यक्ति किसी के अधीन कार्य न करके स्वतंत्र रूप से अपनी क्षमता व कुशलता के साथ कार्य करते हैं, उन्हें फ्रीलांसर कहते हैं। फ्रीलांसर अधिकांशतया अपने घर से ही कार्य करते हैं। उनका घर ही उनका कार्यालय हो सकता है, आवश्यकता के अनुसार घर से अलग कार्यालय की भी स्थापना कर सकते हैं। ये अपनी सेवाएं विभिन्न बाहरी पार्टियों को प्रदान करते हैं और कार्य के आधार पर भुगतान प्राप्त करते हैं। घर से कार्य करते हुए अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक व अपने व्यावसायिक कत्र्तव्यों को एक साथ पूरा करना काफी कठिन होता है। इस कठिन कार्य को पूरा करने के लिए फ्रीलांसर को अनिवार्यतः कार्य प्रबंधन करना ही होता है। फ्रीलांसर कार्य प्रबंधन को अपनाये बिना कभी अपने हुनर को निखार नहीं सकता। उसे अपने सभी कार्य समयनिष्ठ रहकर पूरे करने होते हैं।

6. विभिन्न पेशेवरों के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता:-

 वर्तमान समय में न केवल पारंपरिक पेशों का विकास हो रहा है, वरन् नये-नये पेशों का भी जन्म हो रहा है। कोई भी पेशा विशिष्टीकृत सेवाओं का विक्रय है। पेशा व्यक्तिगत आस्था, विश्वास और निष्ठा के आधार पर विकसित और पल्लवित होता है। पेशेवर व्यक्ति को अपनी छवि पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। आस्था, विश्वास और निष्ठा तो समय के अनुशासन से ही पैदा होते हैं। आस्था, विश्वास और निष्ठा के बिना केवल विशिष्टीकृत सेवाओं के बल पर कोई पेशेवर अपने पेशे में सफल नहीं हो सकता। 
             इस प्रकार कहा जा सकता है कि निष्ठा, आस्था और विश्वास ही वह शक्ति है, जो पेशेवरों को समयनिष्ठ बनाती है। पेशेवरों को समय निष्ठ होना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा वह अपने ग्राहकों का विश्वास अर्जित नहीं कर पाएगा। विश्वास के बिना पेशेवरों की कोई कीमत नहीं रहती। स्पष्ट है किसी भी पेशे के लिए समय के सन्दर्भ में कार्य प्रबंधन अत्यन्त आवश्यक है।

7. प्रबंधकों व प्रशासकों के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता:- 

प्रबंधक व प्रशासक किसी भी संस्था के संचालक होते हैं। संस्था के लिए नीतियों को विकसित करने से लेकर उन्हें लागू करके सफलतापूर्वक संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने का सारा उत्तरदायित्व प्रबंधकों और प्रशासकों का ही होता है। किसी संस्था का नियोजन, संगठनीकरण, कर्मचारीकरण, निर्देशन व नियंत्रण का संपूण कार्य प्रबंधन व प्रशासन के अन्तर्गत ही आता है। प्रबंधन और प्रशासन में सीमा रेखा खींचकर अन्तर करना भी बड़ा मुश्किल कार्य है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। 
             प्रबंधक व प्रशासक ही किसी संस्था की गतिविधियों के लिए जवाबदेह होते हैं। ये संस्था के अन्य सभी वर्गो से अधिक व्यस्त रहते हैं। इनके पास इतने अधिक कार्य होते हैं कि समय के सन्दर्भ में कार्यो का प्रबंधन किए बिना अपने कार्यों को कर ही नहीं सकते। कार्य करने वाले को कर्मचारी कहा जाता है, किंतु अधिक कार्य करने वाले को अधिकारी कहा जाता है। प्रबंधक और प्रशासक, वे अधिकारी है कि वे अधिक कार्य ही नहीं करते, सभी कार्यो को संपन्न करवाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि प्रबंधन व प्रशासन के लिए कार्य प्रबंधन अनिवार्य आवश्यकता है।

8. नेताओं के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता:-

वर्तमान समय में नेताओं के लिए नकारात्मक अवधारणा निर्मित होती जा रही है, किंतु हमें विचारने की बात है कि सभी नेता स्वार्थी और लालची नहीं होते। वास्तव में नेता प्रबंधन और प्रशासकों से भी काम करवाने वाला व्यक्ति होता है। नेता वह होता है, जो अपने कामों के माध्यम से बड़े जनसमूह को प्रभावित करता है और जनसमूह की आकांक्षा की पूर्ति के लिए काम करता है। पीटर ड्रकर के अनुसार, ‘प्रबंधक का काम है काम को सही करने का और नेतृत्वकर्ता का काम है सही काम करने का।’ 
          नेताओं को प्रबंधन व प्रशासन से भी अधिक जवाबदेह होना होता है, वे संपूर्ण राष्ट्र व समाज के प्रति उत्तरदायी होते हैं। कुछ नकारात्मक छवि के नेताओं के कारण हम नेताओं के महत्व व उनके कार्यो को नजर अंदाज नहीं कर सकते। हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ही उदाहरण लें, उन पर अक्सर अधिक विदेश यात्राएँ करने का आरोप लगाया जाता रहा है। इस प्रकार के आरोप लगाने वाले विरोधी नेता वे होते हैं, जो अक्सर अपनी विदेश यात्राओं में आराम फरमाते हैं और केवल निजी पर्यटन के लिए अपनी विदेश यात्राओं का प्रयोग करते हैं। श्री मोदी जी की दिनचर्या संपूर्ण विश्व के लिए एक आदर्श दिनचर्या है। विश्व के नेता भी उनका लोहा मानते हैं। 
            श्री मोदी जहाँ भी जाते हैं, अपने पास उपलब्ध समय में अपने कार्यक्रमों का प्रबंधन इस प्रकार करते हंै कि वे उस क्षेत्र के अधिकतम् देशों की यात्राएँ कर सकें। अधिकतम् देशों के प्रतिनिधियों से मिल सकें। यहाँ तक कि वे विमान में भी कार्यो को निपटा रहे होते हैं। जहाँ तक जानकारी उपलब्ध है वे 3 से 4 घण्टे का ही विश्राम करते हैं और उनका सारा समय इस प्रकार से आबंटित होता है कि वे अधिकतम् गतिविधियों में भाग ले सकें। विश्व स्तर पर देखने पर अनेक ऐसे नेता मिल जायेंगे जिन्होंने कम समय में प्रबंधन के बल पर प्रभावपूर्ण कार्य किया और कार्य प्रबंधन के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ गए।
           इस प्रकार स्पष्ट है कि समय के संदर्भ में प्रबंधन के असीम क्षेत्र हैं। प्रबंधन, प्रशासन, पेशेवर, उद्यमी, नेता, वकील, अध्यापक, दुकानदार, विद्यार्थी, गृह प्रबंधन, समारोह प्रबंधन आदि कोई भी मानवीय क्रिया ऐसी नहीं है जिसमें समय के सन्दर्भ में प्रबंधन की आवश्यकता न पड़ती हो। मनुष्य जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जहाँ उसे कार्य प्रबंधन की आवश्यकता न पड़ती हो। मनुष्य को जहाँ भी कोई कार्य करना है या करवाना है किसी संसाधन का प्रयोग करना है या करवाना है, वहाँ समय के सन्दर्भ में उसको उन समस्त गतिविधियों का प्रबंधन करना ही होगा। आबंटित व्यक्तियों या वस्तुओं के समय के प्रबंधन के बिना हम उनका मितव्ययितापूर्ण उत्पादक उपयोग सुनिश्चित नहीं कर सकते। अतः कार्य प्रबंधन मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनिवार्य है।