शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

"अध्यापक बनें-जग गढ़ें"-14

आजीविका का चुनाव


जिस प्रकार जीना और जीवनयापन के लिए कोई न कोई आजीविका को अपनाना व्यक्ति की मजबूरी होती है, उस प्रकार की मजबूरी कौन सी आजीविका अपनानी है? इसमें नहीं होती। व्यक्ति को जन्म लेने का चुनाव करने का अधिकार नहीं है। व्यक्ति को जन्म दाता माता-पिता, परिवार या समाज का चुनाव करने का भी अधिकार भी नहीं है। किन्तु सबसे अच्छी बात है कि यह है कि वह आजीविका अपनाये या न अपनाये इसका विकल्प तो नहीं होता किन्तु कौन सी आजीविका अपनाये? इसका चुनाव करने का विकल्प उसके पास अवश्य होता है। 
             आजीविका का चयन करने का अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास का अवसर भी प्रदान करता है। आजीविका का चयन व उसमें सफलता का स्तर व्यक्ति की प्रतिष्ठा का निर्धारक होता है। श्री मोहन राकेश  ने अपने नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ में लिखा है, ‘योग्यता एक चैथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है, शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है।’ व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसकी आजीविका और उसमें सफलता के स्तर पर आधारित होती है। इस प्रकार व्यक्ति की योग्यता के साथ ही उसके व्यक्तित्व के निर्माण में उसकी आजीविका का महत्वपूर्ण योगदान होता है अर्थात् व्यक्ति आजीविका चुनाव करते समय केवल आजीविका का चुनाव ही नहीं कर रहा होता। अपनी प्रतिष्ठा और व्यक्तित्व का भी चुनाव कर रहा होता है। अतः आजीविका या कैरियर का चुनाव करना व्यक्ति के कठिन व जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक होता है।
         निश्चित रूप से जीविका का चुनाव हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण आयाम है। निसन्देह हमें जीविका का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त होता है। यद्यपि कुछ सामाजिक परंपरायें या कानूनी पहलू इसे विनियमित कर सकते हैं। हम जो चाहे वह काम नहीं कर सकते। प्रत्येक कार्य के लिए कुछ पूर्वापेक्षा होती हैं। हम अपनी योग्यता के अनुसार ही अपनी आजीविका या कैरियर का चुनाव कर सकते हैं। यहाँ पर एक और पहलू है कि किसी भी कार्य के लिए कुछ विशिष्ट योग्यताओं की आवश्यकता पड़ती है। 
हमारे सामने दो विकल्प हो सकते हैं कि या तो हम अपनी योग्यता के अनुसार अपने कैरियर का चुनाव करें या कैरियर का चुनाव करने के बाद हम उसके अनुरूप योग्यता और सक्षमता अर्जित करें। यह ठीक उसी प्रकार है कि हम जिसे प्यार करते हैं, उससे शादी करें या जिससे शादी की है उससे प्यार करने लगें। हाँ! प्यार के बिना शादी की सफलता की अधिक संभावना नहीं होती। उसी प्रकार वांछित योग्यता, सक्षमता के बिना हमें किसी कैरियर में सफलता नहीं मिल सकती। किसी भी कार्य को करने के लिए उसमें कुशलता होना आवश्यक है। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि या तो हम अपनी कुशलता के अनुरूप कार्य का चुनाव करें या कार्य के अनुरूप योग्यता और सक्षमता विकसित करें। किसी भी सामाजिक व्यवस्था की सफलता भी इसी पर निर्भर करती है कि वह प्रत्येक व्यक्ति की कुशलता, योग्यता और अभिरूचि के अनुसार कार्य और प्रत्येक कार्य को वांछित अभिरूचि, योग्यता और कुशलता वाला व्यक्ति उपलब्ध करा सके। कार्य और व्यक्ति के समायोजन की कमी के कारण ही बेरोजगारी और छिपी हुई बेरोजगारी का जन्म होता है, जो वर्तमान समय की बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनी हुई है। 
बेरोजगारी की समस्या न केवल व्यक्ति के जीवन को समस्या से ढक देती है, वरन् सम्पूर्ण व्यवस्था को ही समस्याओं का पिटारा बना देती है। इसके कारण वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय विकास में बाधाएं तो आती ही है, साथ ही विभिन्न प्रकार के अपराधों का आधार भी निर्मित होता है। अतः किसी भी देश के विकास के लिए आवश्यक है कि शिक्षा के साथ साथ व्यक्ति और कार्य में समन्वय पर भी पर्याप्त ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

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