रविवार, 5 अप्रैल 2020

"अध्यापक बने- जग गढ़े" -9

अध्यापन में आवश्यक नियोजन


नियोजन केवल व्यवसाय या उद्योगों के लिए ही आवश्यक हो। ऐसा नहीं है। अध्यापन जैसे मानव निर्माण के पेशे में नियोजन का अलग ही महत्व है। अध्यापन में नियोजन का अर्थ केवल पाठ योजना तैयार करने तक सीमित नहीं है। विद्यार्थी के मन में कुछ सीखने और अध्यापन के मन में कुछ सिखाने की अभिलाषा के साथ ही नियोजन प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। नियोजन के बिना अध्यापक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता।
नियोजन क्या है? बड़ा ही सरल उत्तर है- यात्रा से पूर्व यात्रामार्ग का निर्धारण ही नियोजन है। केवल यात्रामार्ग के निर्धारण से ही तो काम नहीं चलेगा। यात्रा के साधन का भी निर्धारण करना होगा। उस साधन की उपलब्धता के बारे में भी विचार करना होगा। उसको प्राप्त करने के लिए हमारे पास आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध हैं या नहीं उस पर भी विचार करना होगा।
आप अपने संसाधनों को किस सीमा तक उस साधन को प्राप्त करने पर लगाने के लिए तैयार और तत्पर हैं। यह भी आपकी यात्रा की सफलता और असफलता का आधार बनेगा। इसका आशय यह है कि आपकी इच्छा ही आपकी यात्रा की सफलता का निर्धारण नहीं करती। यह अन्य अनेक कारणों पर भी निर्भर करता है। कारण-कार्य संबन्ध सार्वभौमिक रूप से लागू होते हैं। कैरियर के मामले भी ऐसा ही है। अध्यापन जैसे सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक महत्वपूर्ण पेशे के लिए तो कैरियर के सभी आधार महत्वपूर्ण हो जाते हैं। नियोजन सबसे महत्वपूर्ण और प्रारंभिक घटक है।
कहा तो यह जाता है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसे हो जाते हैं और हम जो पाना चाहते हैं उसे प्राप्त कर सकते हैं। इतिहास में ऐसे लोग ही स्थान बनाते हैं, जो सोचते हैं और सोचे हुए को करते भी हैं। स्वर्गीय वैज्ञानिक व देश के राष्ट्रपति पद को सुशोभित करने वाले आदरणीय कलाम साहब का भी सदैव आह्वान रहता था कि सपने देखो। सपने देखने से ही उन्हें हकीकत में बदला जा सकेगा।
अभिप्रेरणा(Motivation) के लिए यह सोचना सही है और आवश्यक भी किंतु यह सदैव सही सिद्ध हो यह आवश्यक नहीं है। केवल सोचने मात्र से तो काम नहीं हो जाते? हम जो करना चाहते हैं, उसे वैसा ही कर पाने की सक्षमता, योग्यता, संसाधन और परिस्थितियाँ हमारे पास हों; यह सदैव तो नहीं होता ना? केवल हों यह तो संभव होता ही नहीं, कई बार जुटा पाना भी संभव सा नहीं दिखता, किंतु यह सब होते हुए भी अध्यापन करने से किसी को रोका नहीं जा सकता। कितनी भी बाधाएं आएं किंतु जिसे अध्यापन से प्रेम है, वह अध्यापन करेगा ही। संसाधनों की कमी एक अध्यापक को अध्यापन करने से नहीं रोक सकती। यदि विद्यार्थी और अध्यापक शिक्षण-अधिगम के लिए समर्पित हैं तो शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया संसाधनों की कमी के कारण प्रभावित तो अवश्य होगी किंतु वह और भी अधिक प्रभावशाली बनेगी। सभी समस्याओं के होते हुए भी अध्यापक और विद्यार्थी कोई न कोई मार्ग निकाल ही लेंगे। कहा भी जाता है, ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’।
           संसार में व्यक्ति कितना भी ताकतवर हो जाय किंतु सब कुछ उसके नियंत्रण में हो; ऐसा कभी संभव नहीं हुआ और न ही हो सकेगा। हम जब भी कोई काम करना चाहते हैं। हमें अपनी सक्षमता, सक्षमता विस्तार की सीमा, सहयोगी, उपलब्ध संसाधन, अतिरिक्त संसाधन व सहयोगी प्राप्त करने की संभावना आदि सभी संभावनाओं और सीमाओं पर विचार करके ही आगे बढ़ना चाहिए। विचार कर आगे बढ़ना ही तो नियोजन का आधार है।

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