व्यक्ति सब कुछ नहीं, बहुत कुछ कर सकता है
जी हाँ हमें स्मरण रखना होगा। हम भले ही चाँद पर ही नहीं, मंगल पर पहुँच गए हों किंतु व्यक्ति सब कुछ नहीं कर सकता। हाँ, सब कुछ भले ही न कर सकता हो किंतु बहुत कुछ अवश्य कर सकता है। किसी भी स्तर के व्यक्ति की बात कर लें, सभी के सामने दो प्रकार की परिस्थितियाँ आती ही हैं-
1. नियंत्रणीय,
2. अनियंत्रणीय।
नियंत्रणीय परिस्थितियाँ वे परिस्थितियाँ होती हैं, जिनको हम नियंत्रित कर सकते हैं, अपनी योजना बनाते समय हम अपने पास उपलब्ध संसाधनों के बारे में निर्णय कर सकते हैं कि किन-किन और कितने-कितने संसाधनों को कहाँ प्रयुक्त करना है। यही नहीं जो संसाधन हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं। उनमें से भी बहुत सारे ऐसे होते हैं कि प्रयास करके हम उन्हें हासिल कर सकते हैं और अपनी योजना के क्रियान्वयन में उनका प्रयोग कर सकते हैं। किंतु कई बार जो संसाधन आपके पास उपलब्ध नहीं हैं, उनको प्राप्त करने के लिए, केवल प्राप्त करने के आपके प्रयास ही काफी नहीं होते। कई बार वे संसाधन आपकी प्राप्ति क्षमता से बाहर के हो सकते हैं। हो सकता है आप किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त धन खर्च करने के लिए तैयार हों किन्तु दुर्लभता के कारण वह वस्तु आपको न मिल सके। यह भी हो सकता है कि अपने कार्य के लिए जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह वस्तु किसी ऐसे व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में हो कि वह व्यक्ति किसी भी स्थिति में आपको उसे देने के लिए तैयार ही न हो। कहने का आशय यह है कि हम अपने प्रयासों, लगन, निष्ठा और समर्पण से बहुत कुछ कर सकते हैं किंतु सब कुछ नहीं कर सकते।
अतः आवश्यकता इस बात की है कि हमें अपने कैरियर का चुनाव करने से पूर्व ही अपना और अपने संसाधनों को आकलन कर लेना चाहिए। यथार्थ आकलन के पश्चात किया गया नियोजन अवश्य ही सफलता की सीढ़ियों की ओर अग्रसर करेगा। निःसन्देह संघर्ष करना पड़ेगा, संघर्ष करना भी चाहिए वरना संघर्ष के आनंद की अनुभूति कैसे हो सकेगी। संघर्ष के पश्चात् प्राप्त सफलता का आनंद ही इस संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है। व्यवस्थित और सुविचारित नियोजन की सहायता से हम सब कुछ भले ही हासिल न कर सकते हों, किंतु नियोजन के लक्ष्यों को प्राप्त कर बहुत कुछ अवश्य ही हासिल कर सकते हैं।
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