शनिवार, 4 अप्रैल 2020

अध्यापक बनना नहीं,

 विचारपूर्वक अध्यापन करना है

हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एक बात पर बार-बार बल देते हैं कि कुछ बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। कुछ करने की आवश्यकता है। उनकी बात में सच्चाई है। बनने में बनावटीपन होता है। हमें सदैव अपने जीवन पथ पर चलने के बारे में ही सोचना चाहिए। सदैव कुछ करने के बारे में न केवल सोचना चाहिए वरन् सदैव कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। कुछ न कुछ करते रहने का तात्पर्य कुछ भी करने से नहीं है। मानव एक विचारवान प्राणी है अतः सक्रिय रहने के साथ यह भी आवश्यक है कि हमारी सक्रियता सुविचारित हो। कहा भी गया है-

बिना विचारे जो करे, वो पाछे पछताय।
काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हसाय।

अर्थात हर समय सक्रिय रहने का आशय यह नहीं है कि हर समय कुछ भी करते रहना है। हमें अपने कार्य का निर्धारण कार्य करने से पूर्व ही कर लेना होगा। पूर्व निर्धारित कार्य का ही मापन संभव है। मूल्यांकन संभव है। सफलता या असफलता का आकलन संभव है। इसी कारण प्रबंधन के अन्तर्गत नियोजन अर्थात योजना बनाना सबसे प्रारंभिक कार्यो में आता है। 
अध्यापक वह है, जो अध्यापक का कार्य करे। अध्यापक के रूप में नियुक्ति पत्र प्राप्त करके कोई अध्यापक नहीं बन जाता। अध्यापक के लिए आवश्यक है कि वह अध्यापन करे। अध्यापन भी जैसे-तैसे नहीं, अध्यापन में अध्यापक को ही नहीं, विद्यार्थी को भी सीखने में आनंद आना चाहिए। अध्यापन जैसे-तैसे नहीं, सुनियोजित और सुविचारित होना चाहिए। शिक्षण का कोई निश्चित प्रारूप नहीं हो सकता। यह अध्यापक और विद्यार्थी पर निर्भर करता है। अच्छा शिक्षण, अच्छा शिक्षण ही होता है। भले ही वह कैसे भी किया जाय। अतः अध्यापक को अपने विद्यार्थियों का विश्लेषण करके उनकी आवश्यकताओं पर विचार करके योजना बनानी होगी अर्थात नियोजन करना होगा। यही अध्यापन का आधार बनेगा। अध्यापक को अध्यापन पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा, तभी वह अपने अध्यापन को पेशेवर बना पाएगा। वास्तविकता यही है कि जो अध्यापक बनने पर ध्यान न देकर अध्यापन पर ध्यान केन्द्रित करेगा। अध्यापन के क्षेत्र में उसका कैरियर उत्तरोत्तर प्रगति करेगा।

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