शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011
गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011
पुतला दहन छोड़ सैकड़ों राम पैदा करें
पुतला दहन नहीं, जन-प्रबंधन करने की आवश्यकता
वास्तविक बात यह है कि जो राम की पूजा करते हैं, यह आवश्यक नहीं कि वे राम के अनुयायी भी हों; इसी प्रकार रावण के पुतले को फ़ूकने वाले भी राक्षसी प्रवृत्तियों के विरोधी नहीं होते यदि ऐसा होता तो अपराधों का ग्राफ़ इतना ऊंचा नहीं होता. वर्तमान में हम लोग तो रावण से भी गिरी हुई प्रवृत्ति के हो गये हैं. रावण ने तो बहिन सूपर्णखा की बेइज्जती के प्रतिशोध में सीता-हरण किया था और सीता के साथ बलात्कार नहीं किया था वरन सम्मानपूर्वक लंका की वाटिका में पूर्ण सुरक्षा घेरे में रखा था. किन्तु आज सड़्कों पर चलते जाने कितनी सीताओं, पार्वतियों व सरस्वतियों का अपहरण किया जा रहा है: उम्र का ख्याल किये बिना अबोध व मासूम बालिकाओं के साथ बलात्कार करके हत्या कर दी जाती है; यही नहीं संभ्रान्त कहलाने वाला वर्ग बालिकाओं को जन्म ही नहीं लेने देता और कोख में ही हत्या कर देता है. वर्तमान में इस राक्षसी प्रवृत्ति को समझाने के लिये न तो मन्दोदरी है और न ही भेद देने वाला विभीषण. आज मन्दोदरी भी अपराध में साथ दे रही है और विभीषण स्वयं ही बचाव करने में उतर रहे हैं. राम तो हो ही नहीं सकते क्योंकि जिस विचार पर अगरबत्ती लगा दी जाती है, जिस की पूजा कर दी जाती है, वह वास्तव में श्रृद्धांजलि होती है और वह विचार मर जाता है. हमें राम की पूजा करने या रावण के पुतले जलाने की आवश्यकता नहीं है. इससे तो हम प्रदूषण बढ़ाकर रावण का काम आसान कर रहे होते हैं.
हमें राम के जीवन को अपने जीवन में ढालने उनके आदर्शों को आचरण में ढालने व उनके द्वारा अपनाई गई कार्य-पद्धिति व प्रबंधन को अपना कर राम के द्वारा किये गये कार्यों को करने की आवश्यकता है. राम के बारे में कहा जाता है कि उनकों वनवास दिया गया किन्तु कैकई के चरित्र की दृढ़ता व उसकी विद्वता को देखकर यह प्रतीत नहीं होता. वस्तुतः राम जब विश्वामित्र के साथ गये थे तब विश्वामित्र जी ने उन्हें युद्ध कौशल सिखलाते हुए राक्षसों के दमन का संकल्प दिला दिया था. राक्षसों का दमन करने के लिये जन सहयोग आवश्यक था. जन-सहयोग राजा को प्राप्त नहीं हो सकता था. यह एक प्रमाणित तथ्य है कि जनता और राजा के बीच में दूरी रहती है. राजा जनता को साथ नहीं ले पाता वह सेना पर निर्भर रहता है. सेना के बल पर रावण को परास्त करना विशेषकर राक्षसी प्रवृति को नष्ट करना संभव नहीं था. यह बात समझते हुए राम ने माता कौशल्या का सहयोग लेकर अपने को अयोध्या के राजतंत्र से मुक्त करवाया था. जन-हित को ध्यान में रखते हुए विदुषी कैकई ने अपयश लेकर भी राम का सहयोग किया.
राम ने चौदह वर्ष में स्थान-स्थान पर भ्रमण करते हुए जन-जागरण ही नहीं किया जनता का संगठन कर उसे शिक्षित व प्रशिक्षित कर शक्ति-संपन्न भी बनाया और लंका के आस-पास की ही नहीं लंका की जनता को भी रावण के विरुद्ध खड़ा कर दिया. यही नहीं रावण अपने घर को भी एक-जुट नहीं रख सका कहा यह जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी भी रावण को राम के पक्ष में समझाती थी, डराती थी. यही नहीं रावण का भाई कई मन्त्रियों के साथ राम से आ मिला. कहने की आवश्यकता नहीं, विभीषण के पक्ष के लोगों और विभीषण से सहानुभूति रखने वाले सेनानायकों ने भी रावण का साथ तो नहीं दिया होगा. जनता को साथ लेकर ही राम रावण को परास्त करने में सफ़ल रहे थे. उन्होने जन प्रबंधन करके ही सफ़लता हासिल की.
आज परिस्थितियां उस समय से भी विकराल व भयानक हैं. उस समय राक्षसी प्रवृत्ति के लोग रावण के साथ एक अलग राज्य में रहते थे और उन पर बाहरी आक्रमण करके व आन्तरिक सहानुभुति व सहायता का उअपयोग करके उसे परास्त कर दिया गया किन्तु आज राक्षसी प्रवृत्ति हमारे अन्दर प्रवेश कर चुकी है. लोक-तन्त्र होने के कारण राक्षसी प्रवृत्ति ने जनता में भी पैठ बना ली है. आज हम राम की पूजा व रावण के पुतले को जलाने का ढोंग करते हैं, आडम्बर करके राम की जय बोलते हैं और रावण का जीवन जीते हैं. सत्य की बात करते हैं असत्य का आचरण करते हैं. आज समस्या शासन तक सीमित नहीं है, यह जनता तक पैठ बना चुकी है. भ्रष्टाचार तन्त्र तक सीमित नहीं है, सर्वव्यापक हो चुका है: आडम्बर धार्मिक ठेकेदारों तक सीमित नहीं रहा वरन जन जीवन में प्रवेश कर चुका है. आज सीताओं को खतरा बाहरी रावणों से ही नहीं, घर के अन्दर अपने लोगों के अन्दर प्रवेश कर गई राक्षसी प्रवृत्तियों से भी है. आज पिता व गुरू भी बलात्कारी व हत्यारे हो चुके हैं. भ्रूण-हत्या बाहरी रावण नहीं वरन मां-बाप द्वारा ईश्वर का दर्जा पाने वाले चिकित्सक की सहायता से की जाती है. इस विकराल व सर्वव्यापक होती जा रही राक्षसी प्रवृत्ति को परास्त करने के लिये जन प्रबंधन, जन शिक्षण, जन प्रशिक्षण व जन-जागरूकता की आवश्यकता है. आज एक राम नहीं वरन सैकड़ों राम-लक्ष्मणों की जरूरत पड़ेगी और यह कार्य चौदह वर्षों में नहीं सैकड़ों वर्षों में होगा. अतः हमें अपना जीवन लगाने, देश के लिये जीने व राम के पथ पर चलते हुए जन-प्रबंधन करते हुए कार्य रत रहने की आवश्यकता है.
विजयादशमी की शुभकामनाओं सहित
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