बुधवार, 30 जून 2010

मानव संसाधन नियोजन

मानव संसाधन नियोजन


उत्पादन के साधनों में मानव संसाधन ही एक सक्रिय साधन है, जो अन्य निष्किय साधनों का प्रयोग करके उत्पादन प्रक्रिया को सम्भव बनाता है। मानव संसाधन स्वयं ही प्रबंध प्रक्रिया को लागू करता है तथा यह प्रक्रिया स्वयं अर्थात मानव संसाधन पर भी लागू होती है। प्रंबध प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण व प्रारंभिक कदम है- नियोजन। यह महत्वपूर्ण चरण मानव संसाधन के लिए आवश्यक ही नहीं वरन् अनिवार्य है।

नियोजन का अर्थ:- नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें न केवल संस्था के उद्देश्यों को निर्धारित किया जाता है, वरन उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले कार्यो, आवश्यक संसाधनों, उन्हें प्राप्त करने के स्रोतों, नीतियों, पद्धतियों, कार्यविधियों, कार्यक्रमों व व्यूह रचना को भी निर्धारित किया जाता है।

मानव संसाधन नियोजन या जनशक्ति नियोजन शब्द का प्रयोग विभिन्न स्तरों पर किया जाता है, जैसे- वैश्विक, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व संस्थान के स्तर पर ही नहीं, यह परिवार व वैयक्तिक स्तर पर भी आवश्यक है। देखने में आता है कि हम भौतिक संसाधनों के पीछे तो जी-जान से पड़े रहते हैं किन्तु परिवार में व्यक्तियों का तथा स्वयं अपना प्रबंध नहीं करते और तमाम धन-संपत्ति के रहते हुए भी जीवन, जीवन नहीं रह जाता। अन्त में निराश होकर मन्दिर और मस्जिदों में शान्ति खोजते हैं। मन्दिर और मस्जिदों आदि में बढ़ती भीड़ मानव संसाधन प्रबंध की कमी की द्योतक है। सभी स्तरों पर मानव संसाधन प्रबंध की आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती हैं।

संस्थान के स्तर पर जनशक्ति आयोजन का अर्थ ऐसे कार्यक्रम से है, जिसमें नियोक्ता द्वारा संस्था के लिए आवश्यक व पर्याप्त मानव शक्ति की प्राप्ति, विकास, अनुरक्षण और उपयोग सम्भव हो। जनशक्ति का मूल्यांकन, पूर्वानुमान तथा उपलब्धि के स्रोतों की खोज तथा प्राप्त करने का कार्यक्रम भी जनशक्ति आयोजन की विषयवस्तु है। जिस प्रकार आर्थिक आयोजन का उद्देश्य भौतिक आर्थिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना है, उसी प्रकार मानव संसाधन आयोजन का अर्थ मानव संसाधन का विवेकपूर्ण उपयोग करने से है।

वर्तमान समय में जनशक्ति आयोजन में- 1.वर्तमान एवं अपेक्षित रिक्त स्थानों का विश्लेशण, जो सेवानिवृत्ति, स्थानान्तरण, पदोन्नति, बीमारी अवकाश, दुघर्टना, पदत्याग, अनुपस्थिति, अनुशासनहीनता आदि के कारण रिक्त होते हैं, 2. विभागीय विस्तार एवं कटौती का विश्लेशण तथा 3. उत्पादकीय क्षेत्र के होने वाले तकनीकी परिवर्तनों के साथ सामंजस्य सम्मिलित किया जाता है। तकनीकी परिवर्तनों के साथ सामाजिक परिवर्तन, कौशल के स्तर, जनशक्ति उपलब्धि की मात्रा, राजकीय नियमों में परिवर्तन, न्यायालयों के निर्णय, मजदूरी नीति, आरक्षण नीति, मानवीय अधिकार संबन्धी व्यवस्थाओं का भी ध्यान रखना पड़ता है।

एरिक डब्लयू.वेटर के अनुसार- ``मानव संसाधन नियोजन एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से प्रबंध यह निश्चय करता है कि संगठन को किस प्रकार से कदम उठाने चाहिए कि वह अपनी विद्यमान मानव संसाधन स्थिति से इच्छित मानव संसाधन स्थिति में पहुंच जाय। आयोजन के माध्यम से प्रबंध सही संख्या में, सही प्रकार के व्यक्तियों को, सही स्थानों पर, सही समय में प्राप्त करने में समर्थ होता है। इससे संगठन एवं कार्मिक दोनों को ही अधिकतम दीर्घकालीन लाभों की प्राप्ति होती है।´´

इस प्रकार मानव संसाधन नियोजन से आशय किसी उपक्रम के द्वारा कर्मचारियों की मांग व पूर्ति में सामंजस्य स्थापित करना है। यह मानवीय आवश्यकताओं का पूर्वानुमान व नियोजन है। इसके अन्तर्गत उपक्रम की मानव संसाधन आवश्यकताओं का संख्यात्मक व गुणात्मक रूप से अनुमान व व्याख्या तथा इस अनुमान पर कर्मचारियों की व्यवस्था संबन्धी नीति सम्मिलित होती है।

सोमवार, 28 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंधक के कार्य

Functions Of Human Resource Manager


आओ मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका का अध्ययन करने के बाद उसके कार्यो की चर्चा करते हैं। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है। प्रबंध एक बहुआयामी कार्य है। इसे सामान्यत: तीन प्रकार के कार्य करने होते हैं :

अ. व्यवसाय का प्रबंध करना (Managing A Business)


ब. प्रबंधकों का प्रबंध करना (Managing Managers)


स. कार्य तथा कार्यकर्ताओं का प्रबंध करना


(Managing The Work And The Workers)

इनमें से अन्तिम दो मानव संसाधन प्रबंधक से संबधित हैं। स्पष्ट है कि मानव संसाधन प्रबंधक को प्रबंधकों का भी प्रबंध करना होता है। कार्य तथा कार्यकर्ताओं का प्रबंध भी उसी की जिम्मेदारी है। प्रबंधक, कार्य व कार्यकर्ताओं के प्रबंध करने की प्रक्रिया में उसे विभिन्न कार्या को संपन्न करना होता है, जिनका उल्लेख विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से किया है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से उनका वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है:-

क- क्रियात्मक कार्य (Operative Functions): क्रियात्मक कार्यों में उन कार्यो का अध्ययन किया जाता है, जो प्रत्यक्ष रूप से कर्मचारियों की प्राप्ति, विकास व उन्हें संगठन में बनाए रखने से संबन्धित हैं। ये कार्य निम्नलिखित हैं-

1. कर्मचारियों की प्राप्ति (Procurement)


2. कर्मचारियों का विकास (Development)


3. क्षतिपूर्ति कार्य (Compensating)


4. श्रमिकों को संगठन में बनाये रखने का कार्य (Maintenance)

ख- प्रबंधकीय कार्य (Managerial Functions) : लारेन्स एप्पले के अनुसार, ``प्रबंध अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाने की कला है।´´ मूलत: प्रबंध का अर्थ उस प्रक्रिया से लिया जाता है जिसके द्वारा भौतिक व मानवीय संसाधनों का उपयोग निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आयोजन, संगठन, नियुक्तियां, निर्देशन व नियन्त्रण आदि कार्यो को सम्मिलित किया जाता है,

1. नियोजन (Planning)


2. संगठन (Organising)


3. नियुक्तियां (Staffing)


4. निर्देशन(Directing)


5. नियन्त्रण (Controlling)



सारत: मानव संसाधन प्रबंधक के कार्यो को निम्न प्रकार संक्षिप्त किया जा सकता है :-

1. संगठनात्मक आयोजन एवं विकास- संगठनात्मक आवश्यकता का निर्धारण, संगठनात्मक ढांचे का निर्माण व व्यक्ति संबन्ध स्थापित करना।


2. जन-नियोजन- जनशक्ति आयोजन, भर्ती, चयन, स्थापन, कार्य से परिचय, स्थानान्तरण, पदोन्नति व पृथक्करण।


3. प्रिशक्षण एवं कर्मचारी विकास- क्रियात्मक प्रिशक्षण, अधिशासी विकास, प्रिशक्षण पाठयक्रम निर्धारण, जांच आयोजन व पुनरावलोकन।


4. मजदूरी एवं वेतन प्रशासन- कार्य मूल्यांकन, मजदूरी एवं वेतन प्रशासन, प्रेरणात्मक क्षतिपूर्ति व कार्य निष्पदन मूल्यांकन।


5. अभिप्रेरण- गैर वित्तीय प्रेरणा, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि व समूह अभिप्रेरण एवं मनोबल वृद्धि के उपाय।


6. कर्मचारी सेवाएं : सुरक्षा, विचार-विमर्श, चिकित्सा, मनोरंजन, अवकाश, पेंशन, भविष्य-निधि व ग्रेच्युटी आदि।


7. कर्मचारी आलेख : समंक संकलन, समंक विश्लेशण, निर्णयन हेतु सूचना का विकास, सेवा पंजिका एवं सेवा आलेख।


8. श्रम संबन्ध : परिवाद निवारण, अनुशासन, श्रम नियमों को लागू करना, सामूहिक सौदेबाजी व कल्याण कार्य।


9. सेविवर्गीय शोध : सर्वेक्षण, समंक संकलन, सेविवर्गीय कार्यक्रम मूल्यांकन, आवश्यकता निर्धारण तथा परिवर्तन क्षेत्र निर्धारण, अधिक उपयुक्त कार्यक्रम व नीतियों का विकास।

रविवार, 27 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका - भाग-दो

मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका




हैनरी मिन्ज़बर्ग व उनके सहयोगियों द्वारा प्रबंधक की भूमिका के बारे अपने अध्ययन के बाद निम्नलिखित दस भूमिकाओं का उल्लेख किया है, जो तीन वर्गो में वर्गीकृत की गई हैं :-

अ. आपसी या पारस्परिक भूमिकाएं : सभी प्रबंधकों को अपने औपचारिक अधिकारों व अपनी स्थिति के कारण अपने अधीनस्थों व समकक्ष व्यक्तियों के साथ आपसी संबन्ध बनाए रखने पड़ते हैं। मानव संसाधन प्रबंधक का मुख्य काम कार्यरत मानव समुदाय के संबन्धों का प्रबंध करना है। अत: उसे समस्त मानव संसाधन के साथ आपसी संबन्ध बनाए रखने होते हैं। इस उद्देश्य से उसे निम्न तीन प्रकार की भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है-

1. अध्यक्षीय या मुखिया की भूमिका :- सभी प्रबंधकों को कुछ प्रतीकात्मक व सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता है। उदाहरणार्थ, संस्था या विभाग में आने वाले अतिथियों का स्वागत करना, समारोहों में सम्मिलित होना, अध्यक्षता करना आदि। मानव संसाधन प्रबंधक का तो मुख्य कृत्य ही कार्यरत मानव समुदाय में सामाजिक व अपनत्व की भावना का विकास करना है। मानव संसाधन प्रबंधक कर्मचारियों द्वारा अपने मुखिया के रूप में देखा जाता है। अत: उसे न केवल अपने वरिष्ठ अधिकारियों वरन अपने समकक्षों व अधीनस्थों के साथ भी सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है। कर्मचारी वर्ग द्वारा मुखिया के रूप में देखे जाने के कारण उसे विभिन्न कार्यक्रमों में जाना व अध्यक्षता करनी होती है। अत: वह समय-समय पर अध्यक्षीय या मुखिया की भूमिका का निर्वहन करता है।

2. नायक या अगुआ की भूमिका :- मानव संसाधन प्रबंधक कर्मचारियों के विकास व सन्तुष्टि के द्वारा संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान देता है। कर्मचारी अपना हितचिन्तक समझकर उसे अपना नायक या अगुआ मानने लगें, यह उसकी सबसे बड़ी सफलता होगी। यह तभी होगा, जब मानव संसाधन प्रबंधक कर्मचारियों के नायक या अगुआ की भूमिका का निर्वहन करेगा।

3. सम्पर्क भूमिका :- मानव संसाधन प्रबंधक कार्यकारी अधिकारी न होकर विशेषज्ञ अधिकारी होता है। अत: वह निर्णय न लेकर निर्णय लेने में सहायता करता है। कर्मचारी वर्ग उससे ही अपेक्षा करता है, जबकि निर्णय लेने का कार्य कार्यकारी प्रबंधक का होता है। मानव संसाधन प्रबंधक संस्थान के अधिकारी व कर्मचारी ही नहीं कार्यकारी अधिकारियों से भी संपर्क बनाकर रखता है। वह तभी संस्था में अपनी विशेषज्ञता के आधार पर कर्मचारियों संबन्धी नीतियां बनवा पायेगा। वैसे भी उसे प्रबंधकों का भी प्रबंध करना है और कार्य और कार्यकर्ताओं का प्रबंध करना है और यह सब उसे अपनी संपर्क की भूमिका के बल पर ही करना होता है।

ब. सूचनात्मक भूमिकाएं : वर्तमान युग में दो कहावत प्रचलित हैं, `ज्ञान ही शक्ति है,´ (Knowledge Is Power), और `सूचना ही ज्ञान है´ (Information Is Knowledge)। इन दोनों को मिलाकर देखें तो वास्तविकता यही है कि सूचना ही ज्ञान है। यह प्रबंध के क्षेत्र में शत-प्रतिशत सही है। मानव संसाधन प्रबंधक को प्रबंधकों व कर्मचारियों के बारे में सारी सूचनाएं रखनी पड़ती है। वह निम्नलिखित भूमिकाओं का निर्वहन सूचनाओं के रखने के कारण ही कर पाता है :-

1. मॉनीटर या स्नायु-केन्द्र की भूमिका :- मानव संसाधन प्रबंधक को एक मॉनीटर की तरह संस्था व उसके वातावरण से विभिन्न प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करनी होती हैं। इन सूचनाओं की सहायता से ही वह वातावरण में हो रहे परिवर्तनों, जन्म ले रहीं चुनौतियों तथा उत्पन्न हो रहे अवसरों का आंकलन कर सकते हैं। प्रबंधक विभिन्न स्रोतों से सूचनाएं प्राप्त करते रहते हैं।

2. प्रसारक या प्रचारक की भूमिका : मानव संसाधन प्रबंधक सूचनाओं का संग्रह निजी प्रयोग के लिए नहीं करता। वह सूचनाओं का प्रसार कार्यकारी प्रबंधकों को निर्णय लेने में सहायता करने के उद्देश्य से व अधिकारियों व कर्मचारियों में संस्था में लिए गए निर्णयों व बनाई गई नीतियों के बारे में सूचित करता है। इस प्रकार वह एक प्रसारक या प्रचारक की भूमिका का निर्वहन करता है।

3. प्रवक्ता की भूमिका : मानव संसाधन प्रबंधक अपने विभाग से संबन्धित ही नहीं समस्त संस्था की और से सेविवर्गीय नीतियों का प्रवक्ता होता है। मानव संसाधन को प्रभावित करने वाली सभी नीतियां उसके द्वारा ही घोशित की जाती है। कर्मचारी वर्ग के लिए वह संस्था के लिए प्रवक्ता की भूमिका में होता है।

स. निर्णयात्मक भूमिकाएं : यद्यपि मानव संसाधन प्रबंधक एक लाइन अधिकारी नहीं होता, तथापि दिनोदिन उसकी भूमिका में वृद्धि होती जा रही है। अपने द्वारा प्रदान की गई विशे्षज्ञ व प्रभावी सेवाओं के कारण वह उच्चस्तरीय निर्णयों को भी प्रभावित करता है। सेविर्गीय नीतियां उसकी सलाह के आधार पर ही बनाई जाती हैं। अत: विशेषज्ञ अधिकारी होते हुए भी वह निर्णयात्मक भूमिकाओं का निर्वहन करता है-

1. साहसी भूमिका : मानव संसाधन प्रबंधक मानव संसाधन के कुशलतम प्रयोग के लिए नये-नये विचारों, अवसरों व कार्यविधियों की खोज करके उन्हें संस्था में लागू करवाने के प्रयत्न करता है। इस प्रकार वह एक साहसी की भूमिका का निर्वहन करता है।

2. अशान्ति निवारक/संकटमोचक की भूमिका :- संस्था में कर्मचारियों के असन्तोष के समय हड़ताल या अन्य किसी प्रकार के आन्दोलन से कोई संकट पैदा हो जाने पर वह कर्मचारियों के साथ अपने निकट व विश्वास के संबन्धों व प्रबंधन का हिस्सा होने के कारण व संकटमोचक की भूमिका में आ जाता है। वह कर्मचारियों व प्रबंध दोनों को विश्वास में लेकर समस्या के समाधान का वातावरण बना सकता है।

3. संसाधन आबंटन भूमिका : विभिन्न विभागों की मांग के अनुसार अधिकारियों व कर्मचारियों का आबंटन मानव संसाधन विभाग द्वारा ही किया जाता है। अत: मानव संसाधन प्रबंधक मानव संसाधन आबंटन करने की भूमिका का निर्वहन भी करता है।

4. वार्ताकार भूमिका : सेविवर्गीय मामलों में मानव संसाधन प्रबंधक को समझौता वार्ताकार की भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। प्रबंध वर्ग का सदस्य होने के कारण वह संस्था के प्रतिनिधि की भूमिका का भी निर्वाह करता है तो कर्मचारी विभाग का मुखिया होने के कारण कर्मचारी इसकी बात पर विश्वास करने की स्थिति में होते हैं। अत: मानव संसाधन प्रबंधक वार्ताकार की भूमिका का निर्वहन भी करता है।

शनिवार, 26 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका

मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका



(Role Of Human Resource Manager)



मानव संसाधन प्रबंधक अन्य प्रबंधकों की भांति मूलत: एक प्रबंधक है। प्रबंधक का कार्य प्रबंध करना है। प्रबंध एक बहुआयामी कार्य है, जिसके अन्तर्गत तीन प्रमुख कार्य सम्मिलित हैं :-

1. व्यवसाय का प्रबंध करना (Managing A Business)


2. प्रबंधकों का प्रबंध करना (Managing Managers)


3. कार्य तथा कार्यकर्ताओं का प्रबंध करना (Managing The Work And The Workers)

इनमें से अन्तिम दो कार्य मानव संसाधन प्रबंधक से संबधित हैं। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। मानव संसाधन प्रबंधक वास्तविक रूप से दोहरी भूमिका में होता है। अपने विभाग के लिए वह वास्तव में कार्यकारी अधिकारी होता है तो मानवीय संबन्धों के बारे में संस्था में प्रत्येक स्तर पर उसे विशेषज्ञ सेवाएं देनी होती हैं। तकनीकी रूप से वह लाइन अधिकारी न मानकर स्टॉफ अधिकारी माना जाता है अर्थात व कार्यकारी अधिकारी न होकर विशेषज्ञ अधिकारी है। एक विशेषज्ञ अधिकारी के रूप में मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है।

प्रबंध की भूमिका को समझने हेतु दो प्रमुख विचारधाराएं प्रचलित हैं :-


1. क्रियात्मक विचारधारा के अनुसार यह माना जाता है कि एक प्रबंधक होने के नाते मानव संसाधन प्रबंधक को नियोजन, संगठन, कर्मचारीकरण (Staffing), निर्देशन व नियन्त्रण जैसे प्रबंधकीय कार्य संपन्न करने होते हैं।


2. द्वितीय विचारधारा प्रबंधकीय भूमिका विचार धारा है, जिसके अनुसार यह माना जाता है कि प्रत्येक प्रबंधक अपना कार्य करते समय कुछ भूमिकाओं का निर्वाह करता है। मानव संसाधन प्रबंधक को भी एक प्रबंधक होने के नाते उन्हीं भूमिकाओं का निर्वाह करना होता है। इस विचारधारा के विकास का श्रेय श्री हैनरी मिन्ज़बर्ग व उनके सहयोगियों को जाता है।

मिन्जबर्ग के अनुसार, प्रत्येक प्रबंधक संस्था द्वारा प्रदत्त औपचारिक अधिकार तथा अपनी स्थिति के अनुसार दस सम्बन्धित भूमिकाओं (Ten Related Roles) का निर्वाह करता है। उन्होंने इन भूमिकाओं को निम्नांकित तीन वर्गो में विभाजित किया है :-

I. आपसी या पारस्परिक भूमिकाएं : 1. अध्यक्षीय या मुखिया की भूमिका, 2. नायक या अगुआ की भूमिका, 3. सम्पर्क भूमिका।


II. सूचनात्मक भूमिकाएं : 1. मॉनीटर या स्नायु-केन्द्र की भूमिका, 2. प्रसारक या प्रचारक की भूमिका, 3. प्रवक्ता की भूमिका।


III. निर्णयात्मक भूमिकाएं : 1. साहसी भूमिका, 2. अशान्ति निवारक/संकटमोचक की भूमिका, 3. संसाधन आबंटन भूमिका, 4. वार्ताकार भूमिका।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि एक प्रबंध के नाते मानव संसाधन प्रबंधक को सामान्यत: आवश्यकतानुसार समय-समय पर उपरोक्त भूमिकाओं का निर्वाह करना होता है। इन भूमिकाओं के निर्वाह के ऊपर ही मानव संसाधन प्रबंधक की सफलता व असफलता निर्भर करती है। इन भूमिकाओं का विवेचन अगले पोस्टों में करने का प्रयास करेंगे।

शुक्रवार, 25 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंध की विशेषताएं

मानव संसाधन प्रबंध की विशेषताएं :-


मानव संसाधन प्रबंध की परिभाषाओं के अध्ययन करने व उसके अर्थ को समझने के पश्चात बनी अवधारणा के अनुसार हम कह सकते हैं कि मानव संसाधन प्रबंध में निम्नलिखित विशेषताएं हैं :-

1. मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध की एक विशिष्ट शाखा है, जिसका संबन्ध उत्पादन के एक बहुमूल्य साधन मानव संसाधन से है। इसीलिए मानव संसाधन प्रबंध के अन्तर्गत मानव शक्ति का नियोजन, संगठन, निदेशन तथा नियन्त्रण जैसी क्रियाएं सम्मिलित की जा सकती हैं।


2. मानव संसाधन प्रबंध के अन्तर्गत, मानव सेवाओं को प्राप्त करना, कार्यरत व्यक्तियों की देखभाल(साज-संभाल) निरन्तरता के उद्देश्य से उनकी सेवाओं को बनाए रखना तथा कार्यरत व्यक्तियों का अधिकतम विकास करना, जैसे कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।


3. मानव संसाधन प्रबंध, कार्यरत व्यक्तियों को कार्य संचालन में अधिकतम् योगदान के अवसर प्रदान करने से सम्बन्धित है।


4. सेविवर्गीय प्रबंध का उद्देश्य कार्यरत व्यक्तियों को अधिकतम् कार्य सन्तुष्टि प्रदान करना तथा उपक्रम के लिए सर्वाधिक एवं सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करना है।


5. मानव संसाधन प्रबंध कार्यरत कर्मचारियों का वैयक्तिक तथा सामूहिक, दोनों ही स्वरूपों में अध्ययन करता है।


6. मानव संसाधन प्रबंध उपक्रम तथा उपक्रम में कार्यरत व्यक्तियों के पारस्परिक संबन्धों का अध्ययन है।


7. मानव संसाधन प्रबंध कर्मचारियों को अपनी अन्त:शक्ति विकसित करने तथा अपनी क्षमताओं का अधिकतम् सदुपयोग करने में सहयोग करने से सम्बन्धित है।


8. मानव संसाधन प्रबंध केवल श्रम कर्मचारियों से ही सम्बन्धित नहीं है, अपितु किसी संगठन में कार्यरत सभी व्यक्तियों यथा उच्च अधिकारी, मध्यस्तरीय अधिकारी एवं निम्नस्तरीय अधिकारी सहित सभी कर्मचारियों से सम्बन्धित है।


9. मानव संसाधन प्रबंध निरन्तर प्रकृति का है। जार्ज आर टेरी के अनुसार, ``यह पानी की भांति नहीं है, जिसे एक टोंटी से चालू या बन्द किया जा सकता है। इसे एक दिन में एक घण्टा या एक सप्ताह में एक दिन के लिए लागू नहीं किया जा सकता। मानव संसाधन प्रबंध दिन-प्रति-दिन की क्रियाओं में मानवीय संबन्धों एवं उनके महत्व के प्रति निरन्तर सतर्क एवं सावधान बने रहना आवश्यक मानता है।´´

गुरुवार, 24 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंध : अर्थ व परिभाषा

मानव संसाधन प्रबंध : अर्थ व परिभाषा




मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध की एक महत्वपूर्ण शाखा है। एप्पले ने तो यहां तक कह दिया है, `प्रबंध व्यक्तियों का विकास है न कि वस्तुओं का निर्देशन......................प्रबंध एवं सेविवर्गीय प्रशासन एक ही है, उन्हें कदापि पृथक नहीं किया जाना चाहिए।´ पीटर एफ ड्रकर के अनुसार, `कर्मचारी व कार्य का प्रबंध करना ही प्रबंध का कार्य है।´ कहने का आशय यह है कि मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध का एक महत्वपूर्ण अंग है। मानव संसाधन विकास भी इसी के अन्तर्गत आता है। इसके अर्थ को और अधिक स्पष्टता के साथ समझने के लिए इसकी कुछ परिभाषाओं का अध्ययन उपयोगी रहेगा।


मानव संसाधन प्रबंध एक नवीन शब्द है। इसका प्रयोग पिछले 30-35 वर्षों से ही होने लगा है। इससे पूर्व इसके लिए सेविवर्गीय शब्द का प्रयोग किया जाता था। अत: यहां पर वही परिभाषा दी जा रही हैं:-

1. श्री टेरी लियोन्स के अनुसार, `सेविवर्गीय प्रबंध, प्रबंध की वह क्रिया है, जो कि इस तथ्य के कारण उत्पन्न होती है कि किसी भी उद्यम का कार्य चलाने के लिए लोगों की सेवाओं का प्रयोग करना होता है।´

2. पीगर्स एवं मायर्स के अनुसार, `सेविवर्गीय प्रशासन कार्यकर्ताओं की संभावित क्षमताओं को विकसित करने की एक विधि है, जिससे उन्हें अपने कार्य से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो तथा संस्था को उनके परिश्रम का अधिकतम् लाभ मिले।´

3. प्रो.माइकल जे ज्यूसियस के अनुसार, `प्रबंध का वह क्षेत्र है जो कि श्रम शक्ति की प्राप्ति, संधारण तथा प्रयोग करने की क्रिया के संबध में नियोजन, संगठन, निदेशन तथा नियन्त्रण का कार्य करे, जिससे कि- (अ) कंपनी अपने संस्थापन के उद्देश्यों को मितव्ययिता तथा प्रभावकारी तरीके से प्राप्त कर सके। (आ) सभी स्तरों पर कार्य कर रहे कर्मचारी वर्ग के उद्देश्यों की अधिकतम् सीमा तक सन्तुष्टि हो सके। (इ) समाज के उद्देश्यों का उचित चिन्तन कर उनकी सन्तुष्टि की जा सके।

4. ई.एफ.एल.ब्रीच के अनुसार, `सेविवर्गीय प्रबंध प्रबंध प्रक्रिया का वह भाग है जो मुख्यत: किसी संगठन के मानवीय तत्वों से संबधित है।´

5. अमेरिकी सेविवर्गीय प्रशासन संस्थान के अनुसार, `सेविवर्गीय प्रशासन, सक्षम कार्यदल को प्राप्त करने, विकसित करने तथा संधारण करने की वह कला है जिससे संगठन के उद्देश्यों को जनशक्ति का पूर्ण उपयोग करके न्यूनतम लागत पर प्राप्त किया जा सके।´

6. भारतीय सेविवर्गीय प्रबंध संस्थान के अनुसार, `प्रबंधकीय कार्य का वह भाग जो संगठन में मानवीय संबन्धों से सम्बन्धित है, सेविवर्गीय प्रबंध कहलाता है। इसका उद्देश्य उन संबन्धों का संधारण है, जिससे संगठन में प्रभावी कार्य के माध्यम से संगठन को अधिकतम सहयोग प्राप्त हो सके।´

7. ब्रिटिश इन्स्टीट्यूट ऑफ परसोनल मैनेजमेण्ट के अनुसार, `सेविवर्गीय प्रबंध इन तत्वों से संबधित है : (अ) सेविवर्गीय भर्ती प्रणालियां, उनके चयन, प्रिशक्षण, शिक्षा तथा उनकी उपयुक्त स्थानों पर नियुक्ति, (ब) रोजगार की शर्ते, भुगतान प्रणालियां, प्रमापीकरण, कार्य की दशाएं, सुविधाएं तथा अन्य कर्मचारी सेवाएं उपलब्ध करना, (स) नियोक्ता और सेविवर्ग के मध्य सामूहिक विचार-विमर्श को प्रभावी बनाना तथा विवाद हल करने के लिए निश्चित प्रणाली स्वीकार करना।

8. सेविवर्गीय प्रशासन समिति (1958) द्वारा प्रकाशित प्रशासन की आचार संहिता के अनुसार, `सेविवर्गीय प्रशासन सक्षम कार्य-समूह को भर्ती करके, विकसित करने तथा कार्यरत रखने की वह कला है जिससे अधिकतम निपुणता तथा बचत के साथ संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए कार्य करना सम्भव हो सके।´



उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् कहा जा सकता है कि `मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध की वह महत्वपूर्ण शाखा है जिसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्यों को मितव्ययिता पूर्ण व प्रभावकारी तरीके से प्राप्त करने के उद्देश्य से संगठन के विभिन्न स्तरों हेतु मानव संसाधनों को प्राप्त करके, विकास करने व उन्हें सन्तुष्टि प्रदान करते हुए संधारित करने के लिए प्रबंधकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है।´

बुधवार, 23 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंध बनाम सेविर्गीय प्रबंध

मानव संसाधन प्रबंध बनाम सेविर्गीय प्रबंध




मानव संसाधन प्रबंध शब्द का प्रयोग विगत 30-35 वर्षों से होने लगा है। ``मानव संसाधन प्रबंध´´ व ``मानव संसाधन विकास´´ शब्दावली का प्रयोग दिनों-दिन बढ़ रहा है। यहां तक कि विभिन्न सरकारों ने अपने-अपने शिक्षा मन्त्रालयों का नाम मानव संसाधन विकास मन्त्रालय कर दिया है। कम्पनियों में मानव संसाधन प्रबंधक की नियुक्तियां होने लगीं हैं.


``मानव संसाधन प्रबंध´´ शब्द का प्रयोग सामान्यत: ``सेविवर्गीय प्रबंध´´ के समानार्थी के रूप में ही होता रहा है, किन्तु सेविवर्गीय प्रबंध की अपेक्षा मानव संसाधन प्रबंध अधिक व्यापक व गरिमापूर्ण प्रतीत होता है।


मानव संसाधन प्रबंध के अन्तर्गत विभिन्न पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग स्वतन्त्र रूप से अथवा स्थानापन्न शब्द के रूप में किया जाता है, उदाहरणार्थ- सेविवर्गीय या स्टॉंफ प्रबंध, श्रम प्रबंध, कर्मचारी प्रबंध, जनशक्ति प्रबंध, औद्योगिक संबन्ध, सेविवर्गीय प्रशासन आदि। इसी प्रकार सेविवर्गीय प्रशासक को भी विभिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है।


कैल्हुन का मत है कि सेविवर्गीय प्रशासन के मुख्य प्रशासक के लिए प्रारंभ में रोजगार प्रबंधक (Employment Manager) शब्द प्रचलित था, परन्तु ईस्वी सन् 1920 से 1930 के मध्य `ओद्योगिक संबन्ध और श्रम संबन्ध (Industrial relation or Labour Relation) का प्रयोग होने लगा। संघात्मक कार्यवाहियों और अन्य श्रमिक कार्यवाहियों, कार्यक्रमों में दिन-प्रतिदिन वृद्धि के कारण `औद्योगिक संबन्ध अधिकारी´, श्रम कल्याण अधिकारी, श्रम अधिकारी, कल्याण अधिकारी आदि की नियुक्तियां की जाने लगीं। सन् 1940 से 1950 तक कुछ कम्पनियों ने श्रम विभाग के निदेशक या प्रबंधक को मानवीय निदेशक या प्रबंधक कहना प्रारंभ कर दिया जो उस समय सभी प्रबंधकीय व्यवहारों के प्रति उत्तरदायित्व पूरा करने की भावना के अनुरूप था। 1960 और उसके उपरान्त मुख्य शब्द सेविवर्गीय प्रबंधक ही रहा है।


डेल योडर द्वारा `औद्योगिक संबन्ध´ शब्द का प्रयोग किया गया है। इसमें जनशक्ति प्रबंध के सभी कार्य सम्मिलित हैं। इसके दो मुख्य उपभाग हैं-


1.सेविवर्गीय प्रबंध, जिसमें नियोक्ता और कर्मचारियों के संबन्ध सम्मिलित किए जाते हैं;
2.श्रम संबन्ध, जिसमें नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच विचारों का आदान-प्रदान, सामूहिक निर्णयों का प्रशासन तथा संविदा सम्मिलित किए जाते हैं।


सामान्यत: कहा जा सकता है, `सेविवर्गीय प्रबंध से आशय उन सभी प्रबंधकीय विधियों से है, जिनका प्रयोग कर्मचारियों की समस्याओं को व्यक्तिगत रूप से हल करने में किया जाता है, जबकि श्रम संबधों का निर्धारण नियोक्ता, कर्मचारी व सरकार के सामूहिक प्रयासों से होता है।


जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, मानव संसाधन प्रबंध तथा मानव संसाधन विकास शब्दावली का प्रयोग पिछले 30-35 वर्षों से ही प्रारंभ हुआ है तथा अभी तक मानव संसाधन प्रबंध को सेविवर्गीय प्रबंध के पर्यायवाची के रूप में ही जाना जाता है। वस्तुत: मानव संसाधन प्रबंध, मानव संसाधन विकास से अधिक व्यापक व प्रभावशाली है। विकास प्रबंध का ही एक भाग है। मानव संसाधन प्रबंध का अर्थ एक ऐसी प्रक्रिया से है, जिसके माध्यम से संगठन कार्मिकों की नियमित प्राप्ति तथा सतत् व नियोजित रूप से विकास योजनाएं संचालित करता है ताकि वे,


1. वर्तमान व भावी प्रत्याशित कार्यो के लिए निष्पादन योग्यता प्राप्त कर सकें,


2. एक व्यक्ति की हैसियत से उनकी सामान्य व छुपी हुई योग्यताओं का विकास करके उनका प्रयोग संगठन की विकास योजनाओं में किया जा सके,


3. संगठन में ऐसी कार्य-संस्कृति का विकास किया जा सकें जिसमें, पर्यवेक्षक-अधीनस्थ संबन्ध, समूह-भावना, कर्मचारियों के कल्याण, अभिप्रेरण व आत्मसम्मान का मार्ग प्रशस्त किया जा सके।



मंगलवार, 22 जून 2010

प्रबंध : अर्थ व परिभाषा

प्रबंध : अर्थ व परिभाषा
जब से मानव ने समूह में रहना प्रारंभ किया है, तब से किसी न किसी रूप में मानव की गतिविधियों में प्रबंध का अस्तित्व रहा है। प्रबंध एक सर्वव्यापक व अमूर्त अवधारणा है, जिसे देखा व छुआ नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है। मेरे विचार में प्रबंध ईश्वर की तरह सर्वव्यापक है तथा विश्व का सबसे बड़ा प्रबंधक ईश्वर है, जो समस्त गतिविधियों का सुचारू प्रबंध करता है। जिस प्रकार ईश्वर व उसके कार्यो की व्याख्या सम्भव नहीं है; उसी प्रकार प्रबंध की व्याख्या भी सम्भव नहीं है। लोग अपने-अपने विचार व दृष्टी दृष्टिकोण के अनुसार जिस प्रकार ईश्वर की प्रतिमाएं व उसके बारे में विचारों का सृजन करते हैं; उसी प्रकार प्रबंध की परिभाषाएं  भी विभिन्न दृष्टिकोणों से भिन्न-भिन्न दी जाती रही हैं और दी जाती रहेंगी।



प्रबंध के सन्दर्भ में एक कहानी भी उद्धृत की जाती है- "एक बार कुछ अंधों को एक हाथी मिल गया। उन्होंने हाथी को छूकर, टटोल-टटोल कर महसूस किया और हाथी के बारे में अपनी अनुभूति बताई। हाथी की टांगों को पकड़ने वाले ने हाथी को किसी खम्भे या पेड़ के तने की भांति बताया, पूंछ पकड़ने वाले ने उसे रस्सी जैसा बताया, सूड़ पकड़ने वाले ने उसे सांप जैसा बताया, कान पकड़ने वाले ने हाथी को सूप जैसा बताया, दांत पकडने वाले ने भाले जैसा तो हाथी के पेट को छूने वाले ने हाथी को मशक या दीवार जैसा बताया।" स्पष्ट है कि हाथी के बारे में सही जानकारी किसी को भी न हो सकी। ठीक यही स्थिति प्रबंध के बारे में है। इसकी परिभाषाएं तो बहुतायत में हैं किन्तु एक सर्वमान्य परिभाषा का अभाव ही है। फिर भी अध्ययन के दृष्टिकोण से कुछ परिभाषाओं को ध्यान में रखना उपयोगी रहेगा।


प्रबंध की परिभाषाएं :-


1. वैज्ञानिक प्रबंध के प्रणेता श्री एफ.डब्ल्यू.टेलर के अनुसार, ´´प्रबंध यह जानने की कला है कि आप क्या करना चाहते हैं? तत्पश्चात यह सुनिश्चित करना कि वे (कर्मचारी) उस कार्य को सर्वात्तम व मितव्ययिता पूर्वक करें।´´


2. टेरी के अनुसार, ``प्रबंध एक अदृश्य शक्ति है। इसे देखा एवं छुआ नहीं जा सकता किन्तु इसके प्रयासों के परिणामों के आधार पर इसकी उपस्थिति का स्वत: अहसास हो जाता है।´´


3. प्रबंध के सिद्धान्तों के प्रणेता श्री हेनरी फेयोल के अनुसार, ``प्रबंध पूर्वानुमान एवं नियोजन करना, संगठित करना, निर्देश देना, समन्वय करना तथा नियन्त्रण करना है।´´


4. मेरी पार्कर फोलेट के अनुसार, ``प्रबंध अन्य लोगों के माध्यम से कार्य करवाने की कला है।´´


5. लारेंस एप्पले के अनुसार, ``अन्य व्यक्तियों के प्रयासों से परिणाम प्राप्त करना ही प्रबंध है।´´


6. कुंटज के अनुसार,`` औपचारिक रूप से संगठित लोगों के समूहों के साथ तथा उनके माध्यम से कार्य करवाने की कला ही प्रबंध है।´´


7. वीहरिच तथा कुण्टज के अनुसार, ``प्रबंध एक ऐसे वातावरण का निर्माण करने तथा उसे बनाये रखने की प्रक्रिया है, जिसमें लोग समूह में कार्य करते हुए चयनित उद्देश्यों को दक्षतापूर्वक प्राप्त करते हैं।´´


उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन व प्रबंध के बारे में बनी अवधारणा के अनुरूप कहा जा सकता है कि ``प्रबंध मानव को अभिप्रेरित करके निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप कार्य कराने वाली एक अदृश्य शक्ति है, जिसमें नियोजन, संगठन, नियुक्तियां, निर्देशन व नियन्त्रण जैसी क्रिया-विधियों का प्रयोग किया जाता है।´´ सार रूप में लोकतन्त्र की भाषा में कहा जा सकता है, ``मानव द्वारा मानव के लिए मानव द्वारा कार्य कराना ही प्रबंध है।"

सोमवार, 21 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंध : द्वितीय भाग

मानव संसाधन प्रबंध




मानव संसाधन प्रबंध को समझने के लिए इसके संरचनात्मक अर्थ को समझते हैं। यह तीन शब्दों से मिलकर बना है, मानव, संसाधन व प्रबंध। मानव संसाधन प्रबंध पर चर्चा करने से पूर्व इन तीनों के अलग-अलग अर्थ जानना उपयोगी होगा।

1. मानव- मानव शब्द का अर्थ बड़ा ही सामान्य है। मानव (human being) में स्त्री व पुरूष दोनों ही सम्मिलित हैं। प्राचीन समय में महिलाओं के विकास पर कोई ध्यान नहीं, दिया जाता था, यहां तक कि दास-प्रथा के समय दासों को भी मानवीय अधिकारों से वंचित रखा जाता था। वर्तमान में  मानव के अन्दर दोनों सम्मिलित हैं। यद्यपि मानव में सभी उम्र के व्यक्ति सम्मिलित किए जाते हैं, तथापि उद्योग व व्यवसाय के क्षेत्र में कार्य करने की क्षमता रखने वाले व्यक्तियों को ही मानव के अर्थ में सम्मिलित करके अध्ययन में सुविधा रहेगी।

2. संसाधन(resource)- मानव आदि काल से ही विकास की ओर प्रवृत्त रहा है। प्रारंभ में उसकी आवश्यकताएं अत्यन्त सीमित थी किन्तु समय के साथ-साथ उसने उत्तरोत्तर अपने जीवन स्तर का उन्नयन किया है। उसकी आवश्यकताओं पर इच्छाएं हावी होने लगी हैं। मानव विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं की आवश्यकता व इच्छा महसूस करता है। वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए विभिन्न वस्तुओं को जुटाता है, उत्पादन करता है, उपयोगिता बढ़ाता है। उसकी आवश्यकता व इच्छाओं की पूर्ति के लिए उत्पादन कार्य में योग देने वाले साधन ही संसाधन कहलाते हैं, जैसे- भूमि, पूंजी, तकनीक, श्रम, प्रबंध व उद्यम आदि।
डॉ जिमरमैन के अनुसार, "संसाधन का अर्थ किसी उद्देश्य की प्राप्ति करना है, यह उद्देश्य व्यक्तिगत आवश्यकताओं तथा सामाजिक लक्ष्यों की पूर्ती करना है." वास्तव मैं ऐसा कोई भी पदार्थ जिसे अधिक उपयोगी वस्तुओं में रूपांतरित किया जा सकता है, संसाधन कहलाता है. डॉ जिमरमैन ने लिखा   है, "संसाधन होते नहींमानव के सहयोग से बन जाते हैं. "  इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोई भी प्राकृतिक संपदा तभी संसाधन का रूप ले सकती है, जब मनुष्य ने उसे प्रयोग करने की तकनीकी क्षमता प्राप्त कर ली हो.
कहा जा सकता है किसी वस्तु को संसाधन तब कहा जा सकता है, जब -
१-मानव द्वारा वस्तु का उपयोग संभव हो.
२.इस वस्तु या पदार्थ का रूपान्तरण अधिक मूल्यवान व उपयोगी वस्तु में किया जा सकता हो.
 इन संसाधनों को दो वर्गो में वर्गीकृत किया जा सकता है, सजीव संसाधन व निर्जीव संसाधन। श्रम, प्रबंध व उद्यम सजीव संसाधन हैं, जो निर्जीव संसाधनों का विकास कर उनकी उपयोगिता बढ़ाते हैं।

3. प्रबंध (management)- ``पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों को सर्वोत्तम व मितव्ययिता पूर्ण ढंग से प्राप्त करने के लिए लोगों के साथ मिलकर कार्य कराने की प्रक्रिया को प्रबंध कहा जाता है।´´ एक समय था, जब लोगों से येन-केन-प्रकारेण कार्य कराने को ही प्रबंध कहा जाता था किन्तु आधुनिक समय में यह स्थापित हो चुका है कि श्रम, प्रबंध व उद्यम मानवीय साधन हैं और मानवीय साधन अन्य साधनों का उपयोग करते हैं। अत: अन्य साधनों का मितव्ययिता पूर्वक उपयोग करके अधिकतम व गुणवत्तायुक्त कार्य, मानवीय साधनों के शोषण से नहीं वरन् उनका विकास करके, उन्हें अभिप्रेरित व सन्तुष्ट करके ही, कराया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि सभी उत्पादन मानव के द्वारा मानव के लिए हैं तथा मानव संसाधन का विकास करके, न केवल मानव संसाधन अधिक उपयोगी हो जाता है, वरन् वह अन्य साधनों का भी सर्वोत्तम व मितव्ययितापूर्ण उपयोग करके अधिकतम उत्पादन प्राप्त करता है।



उपरोक्त के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है उत्पादन के क्षेत्र में मानव, न केवल भौतिक संसाधनों का प्रबंध करता है, वरन् वह स्वयं में एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसके प्रबंधन के द्वारा न केवल उसकी उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है, वरन् मानव संसाधन के प्रबंधन से अन्य संसाधनों की उपयोगिता बढ़ाकर न्यूतम् लागत व प्रयासों से अधिकतम् परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है। मानव संसाधन प्रबंध उत्पादन के सजीव संसाधन श्रम, प्रबंध व उद्यम का प्रबंध करता है अर्थात मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध का भी प्रबंध करता है तथा मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध का ही भाग है। अत: इसे समझने के लिए प्रबंध के अर्थ व परिभाषा को समझना भी उपयोगी रहेगा।

रविवार, 20 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंध : अवधारणा - प्रथम भाग

मानव संसाधन प्रबंध : अवधारणा  - प्रथम भाग


किसी भी वस्तु, व्यक्ति, क्रिया या प्रक्रिया की बात आते ही हम उसके बारे में जानने का प्रयास करते हैं. उसे देखते है, उसके बारे में पूछताछ करते है, अध्ययन करते है और विभिन्न जानकारियों के फ़लस्वरूप हमारे मस्तिष्क में उसकी एक अमूर्त छवि बनती है, जिसे अवधारणा (CONCEPT) कहा जाता है. किसी भी विषय के अध्ययन के बाद उसकी एक अवधारणा बनती है, तभी कहा जा सकता है कि वह विषय हमारी समझ में आ गया है. जब तक हमारे मस्तिष्क में अवधारणा नहीं बनती उसके बारे में हमारी जानकारी केवल रटने पर आधारित होती है. अवधारणा स्थिर प्रत्यय या संकल्पना नहीं है. अध्ययन, अनुभव, अनुभूति व चिन्तन-मनन के साथ अवधारणा में परिवर्तन आ सकता है.

              आओ अवधारणा को और स्पष्ट समझने का प्रयास करते हैं-

बेबस्टर शब्दकोश के अनुसार, "अवधारणा वह अमूर्त या निराकार विचार है, जो विशिष्ट उदाहरणों या घटनाओं से सामान्यीकृत किया गया है."( "A concept is an abstract idea generalised from particular instance.")

डा.आर.एल.नौलखा के अनुसार, "प्रत्येक मानव के मस्तिष्क में किसी भी वस्तु, कार्य या व्यक्ति के सम्बंध में कुछ विचार या आकृतियां उभर सकती हैं, ये विचार या आकृतियां उनके भौतिक स्वरूप या विशेषताओं के आधार पर बनती हैं. अतः ऐसा विचार या आकृति ही उस वस्तु, कार्य या व्यक्ति के बारे में अवधारणा (CONCEPT) है."

              इस प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी भी वस्तु, व्यक्ति,कार्य या विषय के बारे में हमारी अवधारणा तुरन्त नहीं बनती वरन हमारे अवलोकन, अध्ययन, चिन्तन-मनन के परिणाम स्वरूप उभरती है और विकसित होती रहती है.

             अतः मानव संसाधन प्रबंधन के बारे में कोई अवधारणा बनाने के लिये हमें न केवल इसका अर्थ, परिभाषा व इतिहास जानना होगा वरन इसके बारे में गहन चिन्तन-मनन भी करना होगा.

           कल के पोस्ट में इसके अर्थ पर विचार करेंगे.

शनिवार, 19 जून 2010

नेट वाणिज्य विषय का पाठयक्रम

वाणिज्य में नेट

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET) का पाठयक्रम

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा वर्ष में दो बार जून और दिसम्बर में आयोजित की जाने वाली यह परीक्षा महाविद्यालय स्तरीय अध्यापकों की पात्रता निर्धारित करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाने वाली एकमात्र परीक्षा है. इसकी अधिसूचना बेबसाइट और समाचार पत्र दोनों पर जारी  की जाती है. इसका पाठयक्रम आयोग की बेबसाइट पर दिये हुए लिन्क पर देखा जा सकता है. यहां पर वाणिज्य के हिन्दी माध्यम के परीक्षार्थिओं के लिये पाठ्यसामग्री की कमी को देखते हुए तृतीय प्रश्न-पत्र के (IIIB) तृतीय ऐच्छिक खण्ड- "मानव संसाधन प्रबन्ध" का पाठ्यक्रम दिया जा रहा है, जिस पर बिन्दुबार इस ब्लोग पर पोस्ट प्रकाशित कर चर्चा का आयोजन किया जायेगा.

मानव संसाधन प्रबन्ध-

अवधारणा; मानव संसाधन प्रबन्ध की भूमिका व कार्य
मानव संसाधन नियोजन, कार्य विश्लेषण, कार्य विवरण एवं निर्दिष्टीकरण, कार्य विश्लेषण सम्बन्धी सूचना के उपयोग, भर्ती एवं चयन, प्रशिक्षण एवं विकास, उत्तराधिकार संबन्धी नियोजन
क्षतिपूर्ति: मजदूरी एवं वेतन प्रशासन, प्रोत्साहक एवं अनुषंगी लाभ, होसला एवं उत्पादकता
निष्पादन मूल्यांकन
भारत में औद्योगिकस सम्बन्ध स्वास्थ्य, सुरक्षा, समृद्धि एवं सामाजिक बचाव, प्रबन्ध में कार्मिकों की साझेदारी

शुक्रवार, 18 जून 2010

तथ्यों का संकलन व अध्ययन

प्रबन्धन मानव की एक विशेषता है. मानव बिना प्रबन्धन के नहीं रह सकता. मानव की विचार करने की क्षमता ही उसे प्रबन्धन करने को अभिप्रेरित करती है. वास्तविकता यह है कि व्यक्ति के कार्य सुप्रबन्धित व कुप्रबन्धित हो सकते हैं, किन्तु प्रबन्धन के बिना कोई भी कृत्य मानव द्वारा किया जाना, सम्भव ही नहीं है. प्रबन्ध गुरू के रूप में विख्यात प्रबन्ध विद्वान पीटर ड्रकर के अनुसार, "किसी भी देश के सामाजिक विकास में प्रबन्ध निर्णायक तत्व है............ प्रबन्ध आर्थिक व सामाजिक विकास का जन्मदाता  है...............विकासशील राष्ट्र अविकसित नहीं बल्कि कुप्रबन्धित हैं." श्री ड्रकर का कथन राष्ट्र के सम्बन्ध में ही नही, व्यकि के सन्दर्भ में भी सही है. 
                    जब व्यक्ति यह स्वीकार कर लेता है कि  उसके आसपास या उसके जीवन में कोई समस्या है, तो वह आगे विचार करता है कि समस्या क्यों है और क्या इसका निराकरण संभव है? वास्तविकता को स्वीकार करना और उसका निराकरण करने का मार्ग खोजना ही प्रबन्धन का आधार है. उदाहरण के लिये, मेरे सामने समस्या यह है कि मैं इस ब्लोग पर नियमित नहीं लिख पा रहा. मेरे द्वारा यह स्वीकारोक्ति ही कि मैं नियमित नहीं लिख पा रहा, जबकि मुझे ऐसा करना चाहिये. मुझे यह विचार करने का मार्ग सुझाती है कि मैं नियमित क्यों नहीं लिख पा रहा? अब आवश्यकता इस बात की है कि मैं विचार करूं कि मैं नियमित क्यों नहीं लिख पा रहा? इस पर विचार करने पर अनेक कारण सामने आ सकते हैं, मसलन व्यवस्थित इन्टरनेट संयोजन का न होना, लिखने के लिये समय की कमी, लिखने के लिये ब्लोग के लिये पूर्व-निर्धारित विषय से सम्बन्धित शीर्षकों का निर्धारण न कर पाना आदि अनेक कारण हो सकते हैं, जिन्हें तथ्य कहा जा सकता है. समस्या के समाधान व निराकरण के लिये इस प्रकार के तथ्यों का संकलन, व्यवस्थितीकरण, विश्लेषण व अध्ययन करके समाधान के लिये एक योजना बनाना आवश्यक है. इस प्रकार की योजना बनाने के कार्य को ही प्रबन्धन की भाषा में नियोजन कहते हैं.
             जब मैंने स्वीकार कर लिया कि मैं ब्लोग पर नियमित नहीं लिख पा रहा, तो तथ्यों का संकलन व अध्ययन किया कि समय की कमी, इन्टरनेट संयोजन की अनुपलब्धता व उप-शीर्षक निर्धारित कर पाने में कठिनाई के कारण ब्लोग की निरन्तरता में बाधा आती है, तो मैंने नियोजन किया. इन्टरनेट से नियमित जुड़ाव के लिये मोबाइल इन्टरनेट के प्रयोग, समय क्रय नहीं क्या जा सकता. अतः कार्यों का समय के साथ उचित प्रबन्धन तथा उप-शीर्षकों के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीयता पात्रता परीक्षा (NET) के लिये निर्धारित वाणिज्य (COMMERCE) विषय के लिये निर्धारित पाठयक्रम के तृतीय प्रश्नपत्र के ऐच्छिक विकल्प तीन- "मानव संसाधन प्रबन्ध"  के निर्धारित उप-शीर्षकों पर नियमित लिखने का नियोजन किया. इसके लिये यू.जी.सी. की बेबसाइट पर जाकर पाठयक्रम डाउनलोड किया जिसे अगले पोस्ट में दिया जायेगा.

सोमवार, 7 जून 2010

छोटी-छोटी

"छोटी-छोटी बातों से ही पूर्णता आती है, और पूर्णता कभी छोटी नहीं होती."