3. मनोबल में वृद्धिः किसी भी कार्य के लिए केवल समय और संसाधनों की ही आवश्यकता नहीं पड़ती वरन् कितने भी संसाधनों के उपलब्ध होते हुए भी व्यक्ति कार्य का प्रारंभ भी नहीं कर पाता, यदि उसका मनोबल निम्न स्तर पर है। वह सोच ही नहीं पाता कि वह उस कार्य को कर भी पायेगा। मनोबल के अभाव में व्यक्ति अपने समय और अन्य संसाधनों को बर्बाद करता रहता है। प्रबंधन की तकनीक व्यक्ति को यह विश्वास दिलाकर कि वह अमुक कार्य को प्रभावशीलता के साथ पूर्ण करने में सक्षम है। उसके मनोबल में वृद्धि करती है। मनोबल ही वह तत्व है, जो व्यक्ति से गुणवत्तापूर्ण कार्य संपन्न करवाता है। वास्तव में व्यक्ति नहीं उसका मनोबल ही कार्य करता है और मनोबल में वृद्धि के लिए प्रबंधन एक सहज तकनीक है।
4. स्व-अभिप्रेरणः प्रेरणा और अभिप्रेरणा की चर्चा मनोविज्ञान के क्षेत्र में सामान्यतः की जाती रही है। प्रेरणा की चर्चा इतनी होती है कि जन सामान्य इसे किसी विषय विशेष से जोड़कर नहीं देखता। प्रेरणा को एक बाहरी तत्व माना जाता है, जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए मजबूर करती है। एक प्रकार से यह एक बाहरी लालच है जिसके लिए व्यक्ति कार्य करने के लिए मजबूर होता है। सामान्य व्यक्ति से कार्य करवाने के लिए उसे कोई वस्तु या सुविधा प्रदान करने का आश्वासन दिया जाता है। बाहरी प्रेरणा से कार्य तो होता है किंतु समय और कार्य दोनों की ही गुणवत्ता उच्च स्तर की नहीं होती अर्थात् कार्य भी निम्न श्रेणी का होता है और समय भी अधिक लगता है। अभिप्रेरणा एक आन्तरिक तत्व है, जो व्यक्ति के अन्दर ही होता है और उसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है और कार्य भी गुणवत्ता के साथ संपन्न होता है। व्यक्ति स्व-अभिप्रेरित होने की स्थिति में कार्य प्रबंधन की तकनीकों के माध्यम से ही पहुँचता है।
5. तनाव रहित जीवनः व्यक्ति कार्य प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से न्यूनतम समय में अधिकतम गुणवत्तापूर्ण कार्य करके अपने जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करता है। यही नहीं वह उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई का उचित नियोजन के साथ सदुपयोग करता है। अतः उसके जीवन में उतावलापन, हड़बड़ी व भाग-दौड़ नहीं रहती। इस प्रकार वह तनावों से भी कोसों दूर रहकर तनावरहित जीवन जी सकता है। तनावरहित, सफल व प्रभावी जीवन जीने से अधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के लिए क्या हो सकता है? यह तनाव रहित जीवन केवल कार्य प्रबंधन के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।
6. सुविचारित योजनाः प्रबंधन का प्रारंभ ही नियोजन अर्थात् योजना निमार्ण से होता है। प्रबंधन की पाँच प्रमुख तकनीकें हैं- नियोजन, संगठन, कर्मचारीकरण या सहयोगीकरण, निर्देशन व नियंत्रण। इनमें से नियोजन से ही प्रबंधन का प्रारंभ होता है। जब हम समय के सन्दर्भ में कार्यों या अपनी गतिविधियों का प्रबंधन करते हैं तो प्रारंभ सुविचारित योजना से ही होता है। सुविचारित योजना के कारण समय की बर्बादी रुकती है और हमारे पास उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई का सदुपयोग होता है। कार्यों को सुविचारित योजना के अनुरूप समयबद्ध तरीके से करने के लिए कार्य प्रबंधन की आवश्यकता है।
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