मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

छोटा सा एक, दीप जलायें।

दीपावली के शुभ अवसर पर सभी साथियों को सुख-समृद्धि व आनन्दपूर्ण जीवन के लिए शुभ-कामनाये-


समस्याओ का अम्बार लगा है,

व्यक्ति विकास ने आज ठगा है।

प्रबन्धन कर एक बार फिर,

छोटा सा एक, दीप जलायें।

उद्योगों में ही नही,जीवन में,

प्रबंधन को हम अपनाएं .

छोटा सा एक, दीप जलायें।


मानव-मन को पुन: मिलायें।।


अंधकार से ढका विश्व है,


दीप से दीप जलाते जायें।



चौराहे पर रक्त बह रहा,


नारी नर को कोस रही है,


नर नारी का खून पी रहा,


लक्ष्मीजी चीत्कार रही हैं।



राम का हम हैं, स्वागत करते


रावण मन के अन्दर बस रहा।


लक्ष्मी को है मारा कोख में


अन्दर लक्ष्मी पूजन हो रहा।



आओ शान्ति सन्देश जगायें,


हर दिल प्रेम का दीप जलायें।


बाहर दीप जले न जले,


सबके अन्दर दीप जलायें।



विद्वता बहुत हाकी है अब तक,


पौथी बहुत बांची हैं अब तक,


हर दिल से आतंक मिटायें,


छोटा सा एक, दीप जलायें।



सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

प्रबंधन का प्रथम चरण - वास्तविकता स्वीकार करें

प्रबंधन का प्रथम चरण - वास्तविकता स्वीकार करें

प्रबंधन की आवश्यकता विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान व विकास आवश्यकताओं के लिए पड़ती है। किंतु सर्वप्रथम हमें वास्तविकता को स्वीकार करना होगा की समस्या का अस्तित्व है। समस्या के अस्तित्व की स्वीकृति से ही समाधान के प्रयास प्रारंभ होते हैं। प्रबंधन केवल आदर्शवाद से नहीं किया जा सकता यथार्थ को स्वीकार कर आदर्श के लिए प्रयास किए जा सकते हैं। साथ ही स्वीकार करना होगा की सब कुछ हमारे नियंत्रण में नहीं होता। प्रबंधन से हम सुधार व विकास करते हैं किंतु आमूल-चूल परिवर्तन नहीं कर सकते। प्रकृति की इस वास्तविकता को स्वीकार करना ही होगा की हम किसी भी वस्तु को उत्पन्न या नष्ट नहीं कर सकते, केवल रूप परिवर्तन कर उपयोगिता में वृद्धि कर सकते हैं।

यहाँ तक की जीवन-मूल्यों में समयानुसार परिवर्तन हो सकता है किंतु सत्य-असत्य,न्याय-अन्याय, सदाचार-भ्रष्टाचार में से किसी भी पक्ष को नष्ट नहीं किया जा सकता। सुधार का दंभ भरने वाले सुधारकों को चाहियें कि वे विचार करें कि राम,कृष्ण, परशुराम,विवेकानंद व गांधी जैसे व्यक्तित्व भी मानवीय व प्राकृतिक प्रवृत्ति को बदल नहीं पायें, हम क्या बदलेंगे? कहने का आशय यह है कि हम प्रबंधन से दुनिया को बदलने के ख्वाब न देखें केवल सुधार की दिशा में नियंत्रीय कारकों पर प्रयास करें और परिणामों को खुले मन से स्वीकार कर उनका विश्लेषण कर पुनः नियोजन करें। कर्मण्येवा अधिकारेस्तु ------------- गीता का संदेश प्रबंधन के क्षेत्र में भी उपयोगी है। अनियांत्रनीय कारकों पर वक्त व शक्ति जाया न करके नियंत्रनीय कारकों पर प्रबंधन की सहायता से जीवन सुखद,आनंदपूर्ण व उपयोगी बनाया जा सकता है। वास्तविकता यही है कि प्रबंधन भी रामवाण दवा नहीं है।

प्रकृति के नियमों को बदलने या इस प्रकार के दुस्साहस के परिणामस्वरुप होने वाले नकारात्मक प्रभावों को रोकने की सामर्थ्य विज्ञान व प्रबंधन में भी नहीं है। उदाहरण के लिए प्रकृति विविधता पूर्ण है और प्रत्येक प्राणी यूनिक है कोई किसी के समान नहीं है। विविधता ही प्रकृति को पूर्ण बनाती है। अतः हम कितने भी प्रयास करें नर और नारी को समान नहीं बना सकते, क्योंकि प्रकृति ने प्रत्येक की भुमिका का निर्धारण किया है। हाँ, मानवीय प्रयासों से मानव द्बारा बनाई गयी व्यवस्थाओं में परिवर्तन कर नकारात्मक या सकारात्मक परिवर्तन कर सकते हैं।

वास्तविकता को स्वीकार करके ही हम समस्या के विश्लेषण से होते हुए समस्या का समाधान खोजने की ओर बढ़ सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति यह स्वीकार ही नहीं करता कि वह तम्बाकू का प्रयोग करता है ओर तम्बाकू पीना हानिकारक है तो उस व्यक्ति से तम्बाकू नही छुडवाया, जा सकता उसे मजबूर किया जाएगा तो वह छिपकर प्रयोग करेगा। प्रबंधन का कार्य ही समस्या की स्वीकृति से प्रारंभ होता है।