शुक्रवार, 7 जून 2019

समय की एजेंसी-18

समय का नहीं, स्वयं का प्रबंधन


हम यह भली प्रकार समझ चुके हैं कि समय का प्रबंधन संभव नहीं है। समय को रोकना, उसका भण्डारण करना या उसका क्रय-विक्रय संभव न होने के कारण उसका प्रबंधन भी संभव नहीं है। हाँ! हम स्वयं का प्रबंधन कर सकते हैं अर्थात् अपनी क्रियाओं और गतिविधियों का प्रबंधन संभव है। इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि हम समय का प्रबंधन नहीं कर सकते किंतु समय के सन्दर्भ में अपना प्रबंधन कर सकते हैं; अपने कार्यो का प्रबंधन कर सकते हैं।

            आनन्दपूर्ण जीवन जीने के लिए ध्येय, उद्देश्य व लक्ष्यों का निर्धारण करना स्वयं के प्रबंधन के लिए आवश्यक व पहला कदम है। उन्हें प्राप्त करने के लिए योजना बनाना उससे अगला कदम है, क्योंकि प्रबंधन का आरंभ ही योजना से होता है। योजना को याद रखना और स्थायित्व देने के लिए उसे अपनी डायरी में दर्ज करना स्वयं प्रबंधन का तीसरा कदम कहा जा सकता है। विचारपूर्वक बनाई गयी दिनचर्या को अपनी दिनचर्या का अंग बनाकर आत्मसात करना सफलता का आधार बनता है। योजना के अनुसार परिणामों को प्राप्त करना और परिणामों को स्वीकार करते हुए उसका पुनरावलोकन करना स्वयं प्रबंधन के नियंत्रण और आगामी नियोजन दोनों का भाग बनता है। सफलता का श्रेय सहयोगियों को समर्पित कर देना और कमियों के लिए उत्तरदायित्व का निर्धारण करते हुए सुधार करना स्वयं के प्रबंधन के लिए आवश्यक कदम हैं। हम विभिन्न व्यक्तियों और वस्तुओं के प्रबंधन की बात करते हैं किंतु स्वयं के प्रबंधन को नजर अंदाज कर देते हैं। हमारे पास सबके लिए समय होता है किंतु अपने लिए समय नहीं होता। सामान्यतः व्यक्ति स्वयं ही अपनी उपेक्षा करता है।

प्रबंधन विकास का आधार


प्रबंधन संसार के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषयों में से एक है। प्रबंधन ही विकास का आधार है। प्रबंधन ही है जिसकी सहायता से व्यक्ति विकास के झण्डे गाड़ता है। प्रबंधन की सहायता से ही व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता के शिखर की यात्रा संपन्न करते हैं। प्रबंधन ही वह शक्ति है, जो न्यूतनम संसाधनों से अधिकतम् परिणामों की प्राप्ति सुनिश्चित करती है। प्रबंधन ही समस्त संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने वाला तत्व है। यह तथ्य निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुका है। अतः हमें समय को या प्रबंधन को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है। परिभाषाएँ देना या सिद्धांत गढ़ना इस पुस्तक का क्षेत्राधिकार भी नहीं है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक किसी प्रकार की विद्वता प्रमाणित नहीं करना चाहता, क्योंकि जो उसके पास नहीं है; उसको प्रमाणित करने का प्रयत्न, एक झूठ के सिवा कुछ नहीं होगा। लेखक तो जन सामान्य के पास समय की कमी को देखते हुए उसे समय की एजेंसी के बारे में जानकारी देकर लाभान्वित करना चाहता है।
इस संसार में कदम-कदम पर ज्ञान बिखरा हुआ है। ज्ञान भी असीम है। उसका अंश मात्र भी लेखक प्राप्त कर पाया है, ऐसा लेखक को प्रतीत नहीं होता। श्री हरिवंशराय की कविता की भाषा में-

कर यत्न मिटे सब सत्य किसी ने जाना?
नादान वही है, हाय जहाँ पर दाना।
फिर मूढ़ न क्या जग जो उस पर भी सीखे,
मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना।

अर्थात् युगों-युगों से लोग प्रयत्न करते आ रहे हैं। एक-एक कर सभी नष्ट होते जा रहे हैं। विभिन्न प्रकार के ज्ञान गढ़े जाते रहे हैं किंतु शाश्वत सत्य को आज तक परिभाषित नहीं किया जा सका है। हम जिसे ज्ञान समझते हैं, वही अन्य किसी विद्वान द्वारा असत्य सिद्ध करके अज्ञान सिद्ध कर दिया जाता है। अतः वास्तविक ज्ञान क्या है? इसका निर्णय ही नहीं हो पाया है। 
         वर्तमान में शिक्षाशास्त्री भी मानने लगे हैं कि कोई ऐसा ज्ञान अर्थात् शिक्षा नहीं है, जिसे बच्चे को बाहर से दिया जाय। शैक्षिक मनोविज्ञान की रचनावाद, निर्मितवाद या निर्माणवाद (ब्वदेजतनबजपअपेउ) विचारधारा के अनुसार ज्ञान बाहर से नहीं दिया जा सकता। ज्ञान का निर्माण सीखने वाले के मस्तिष्क में होता  है। यह निर्माण प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जिसे वातावरण अभिप्रेरित करता है। निष्कर्षतः ज्ञान का कोई रूप अन्तिम नहीं होता, ज्ञान सदैव निर्मित होता रहता है। अतः समय जैसे अनिर्वचनीय तत्व के बारे में परिभाषा देना भी मेरे जैसे व्यक्ति के लिए असंभव जैसा है। हाँ! जन प्रचलित अर्थ को लेते हुए उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई के प्रयोग के द्वारा अपने जीवन को प्रभावपूर्ण बनाना ही इस पुस्तक का उद्देश्य है।


समय अगोचर तत्व के रूप में

जिस प्रकार ज्ञान का कोई अन्तिम रूप नहीं होता, उसी प्रकार समय का भी अन्तिम ज्ञान उपलब्ध नहीं है। ज्ञान की तरह इसे भी परिभाषित करना संभव नहीं है। समय को परिभाषित करना संभव नहीं है, इसकी अवधारणा के बारे में कोई सहमति नहीं बनी है और न ही बन सकती है। समय अगोचर तत्व है, जिसको महाकाल अर्थात्् ईश्वर भी कहा जाता रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम कार्य प्रबंधन नहीं कर सकते। समय के सन्दर्भ में स्वयं का अर्थात्् अपनी गतिविधियों का प्रबंधन कर सकते हैं। समय के सन्दर्भ में अपनी गतिविधियों का प्रबंधन करने का आशय अपनी समयचर्या को पूर्व नियोजित करके उसके अनुसार प्रत्येक पल का उपयोग करने से है। 

गुरुवार, 6 जून 2019

समय की एजेंसी-17

कार्य प्रबंधन, सफलता का आधार


दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति व प्रत्येक संस्था सफलता की बात करती है। सभी सफलता के अभिलाषी हैं। कई बार तो लोग सफलता के पीछे इस तरह पड़ जाते हैं कि वे तथाकथित सफलता को किसी भी कीमत पर पा लेना चाहते हैं। यहाँ पर तथाकथित सफलता का प्रयोग जानबूझकर किया है क्योंकि जब हम सफलता के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं, तभी सफलता के मार्ग से भटक चुके होते हैं। जब हम सफलता के लिए अनुचित व असामाजिक मार्ग पर चलते हैं, हम तभी असफल हो चुके होते हैं क्योंकि सफलता किसी विशेष पद को पाना नहीं है और न ही सफलता संपत्ति का अंबार खड़ा करना है। 
               सफलता तो अपनी योजना के अनुरूप अपने ईमानदार प्रयासों के परिणाम प्राप्त करना है। महान् विचारक कन्फ्यूशियस का कहना था, ‘जहाँ भी जाएँ, पूरे दिल के साथ जाएँ। जितनी अधिक अंदरूनी खुशी, उतना ही हम सफलता के लिए प्रेरित होंगे।’ यथार्थ में यह अंदरूनी खुशी ही तो सफलता है। यदि बेईमानी, धोखेबाजी और षड्यंत्रों से कुछ उपलब्धि हासिल भी हो जाय तो भी वह सफलता नहीं, असफलता ही है। हम असफल उसी क्षण हो जाते हैं, जब हम उल्टे-सीधे रास्ते पर चल पड़ते हैं।
              जब भी जीवन की सफलता की बात की जाती है, वह समय के सदुपयोग पर ही आकर टिकती है। फील्ड के अनुसार, ‘सफलता और असफलता के बीच की सबसे बड़ी विभाजक रेखा को इन पाँच शब्दों में बताया जा सकता है, ‘मेरे पास समय नहीं है।’
       वास्तविक बात यह है कि सभी के वर्ष, माह, दिन या घण्टे में बराबर समय होता है। समय की इकाई कम से कम इस संसार में एक ही है। हाँ! अन्य ग्रहों पर अलग हो तो अलग बात है। प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में 12 माह या 365 दिन, एक दिन में 24 घण्टे, 1 घण्टे में 60 मिनट, 1 मिनट में 60 सेकण्ड ही मिलती हैं। हाँ! किसी के जीवन के बारे में निश्चित रूप से कुछ स्थिर रूप से नहीं कहा जा सकता कि उसे कितने वर्ष का जीवन मिला है? 
               सामान्यतः विभिन्न परिस्थितियों के अधीन प्रकृति समय आवंटन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करती, ऐसी मान्यता है। इसके बाबजूद एक व्यक्ति बड़े ही सामान्य ढंग से केवल कार्य से बचने के लिए ही कह देता है कि मेरे पास समय नहीं है, जबकि दूसरा व्यक्ति कितना भी व्यस्त रहते हुए सभी महत्त्वपूर्ण कार्यो के लिए समय निकाल ही लेता है। इसी प्रकार समय बचाकर कार्य करने की प्रवृत्ति के कारण एक व्यक्ति से मिलने के लिए लोगों की कतार लगी रहती है, जबकि दूसरे व्यक्ति को कोई पूछने वाला नहीं होता। यह प्रबंधन कला का ही कमाल है कि उसी समय के उपयोग से एक व्यक्ति सफलता के शिखरों को चूमता है, जबकि दूसरा उसी समय की बर्बादी के कारण समय की कमी का रोना रोता हुआ मारा-मारा फिरता है।
       समय के महत्त्व को बेंजैमिन फैंक्लिन के कथन, ‘समय ही पैसा है’ के द्वारा भी समझा जा सकता है। यह एक यर्थाथ है कि समय के प्रयोग के द्वारा ही पैसा कमाया जाता है, जो व्यक्ति अपने समय का सही प्रयोग करना जानता है। उसका एक-एक क्षण उसको धन कमाकर देता है। सफलता कार्य प्रबंधन का ही कमाल है। फ्रैंक्लिन आगे कहते हैं, ‘सामान्य व्यक्ति समय को काटने के बारे में सोचता है, जबकि महान् व्यक्ति सोचते है इसके उपयोग के बारे में।’ अर्थात् जो व्यक्ति समय को काटते हैं, वे जन सामान्य हैं और जो व्यक्ति अपने उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई का योजनाबद्ध ढंग से उपयोग करते हैं वही महान् व्यक्तियों की सूची में नाम लिखवाते हैं।
      सोवियत रूस के महान् चिंतक ने संसार के सामने नया चिंतन रखा। कार्ल मार्क्स ने श्रम को लेकर महान् कार्य किया, वे श्रम प्रबंधन के हामी थे। श्रम प्रबंधन भी कार्य प्रबंधन का ही एक रूप है। कार्ल माक्र्स ने स्पष्ट रूप से लिखा, ‘किसी के गुणों की प्रशंसा करने में अपना समय व्यर्थ मत करो, उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करो।’
               वास्तविक रूप में किसी के गुणों की प्रशंसा करने से कोई उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती। उपलब्धि हासिल होती है, गुणों को अपनाने से। गुणों की प्रशंसा करने से कोई लाभ नहीं मिलने वाला। प्रशंसा करना भी अच्छे व्यवहार की पहचान माना जाता है। इसे अभिप्रेरित करने वाला व्यवहार कहा जा सकता है किंतु प्रंशसा करने से हमें कोई लाभ नहीं होता, लाभ होता है, उन गुणों को अपनाने से। गुणों की प्रशंसा करना अपने स्थान पर अच्छे आचरण का अंग हो सकता है किंतु आचरण की श्रेष्ठता तो गुणों को अपने आचरण में ढालकर वास्तविक प्रशंसा करने से ही प्राप्त होगी। मूर्ति पूजा का अवगुण भी प्रशंसा करने की प्रवृत्ति का ही द्योतक है। मूर्ति पूजा ने मानव विकास की गति को धीमा ही किया है। मूर्ति पूजा के अन्तर्गत व्यक्ति गुणों की अपेक्षा भौतिक रूप पर ध्यान केंद्रित करता है। वह उसके गुणों के लिए नहीं, केवल स्वार्थ पूर्ति के उद्देश्य से पूजा करता है। 
      भारत में तो मूर्ति पूजा ने बहुत हानि पहुँचाई है। हमारी प्रवृत्ति गुणों को अपनाने, महापुरूषों के बताये रास्ते पर चलने की अपेक्षा उनके चित्र पर माला चढ़ाने और उनकी पूजा करने की बन गई है, जबकि मूर्ति पर माला चढ़ाने और पूजा करने से किसी को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। यह तो समय की बर्बादी मात्र है। वास्तविक पूजा तो तब होगी, जब हम उन गुणों और कर्मों को जिनके कारण हम उस व्यक्ति को महान् समझ रहे हैं, अपने आप में विकसित करें। वर्तमान सन्दर्भ में उनके द्वारा बताये गये और चले गये मार्ग पर चलकर व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को विकास के मार्ग पर ले जाने का कार्य करें। जब हम किसी महापुरूष या महान् विदुषी के आदर्शो पर चलने की अपेक्षा उसकी पूजा का पाखण्ड करने लगते हैं, तब हमारा आचरण असत्य की ओर चल पड़ता है। जिन लोगों को भी हम महान् व्यक्तियों की सूची में सम्मिलित करते हैं, वे अपने समय के पल पल का सदुपयोग करते हुए ही उस स्थान पर पहुँचे हैं।
                सफलता की दौड़ को जीतने के लिए हम अपने आप में अनेक योग्यताओं का अर्जन करने की कोशिश करते हैं। हम अनेक कौशल सीखना चाहते हैं। निःसन्देह व्यक्ति को सक्षम, योग्य व कुशल होना ही चाहिए। सक्षमता, कुशलता और योग्यताएं ही तो व्यक्ति की सफलता के मार्ग पर सहायक के रूप में कार्य करती हैं। इससे भी अलग हटकर विचार करें तो केवल स्वयं की योग्यता और कुशलता ही नहीं, दूसरे लोगों से सहयोग लेने की हमारी कुशलता भी हमें सफलता के निकट ले जाने में सहायता करती है। अल्बर्ट हब्बार्ड के विचार में, ‘अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है, लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है।’ 
कहने की आवश्यकता नहीं है कि सामाजिक जीवन में ही नहीं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमें नेतृत्व के गुण की भी आवश्यकता पड़ती है। सफलता के लिए हम जिस प्रबंधन की आवश्यकता महसूस करते हैं। प्रबंधन के लिए भी नेतृत्व क्षमता अनिवार्य आवश्यकता है। किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए समय के प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती ही है। कार्य प्रबंधन के द्वारा ही समय की कमी की समस्या से निपटा जा सकता है। समय की कमी के भूत से केवल कार्य प्रबंधन ही बचा सकता है। कार्य प्रबंधन ही हमें समय की एजेंसी दिलवाता है।
               अमेरिका के भूतपूर्व न्यायाधीश चाल्र्स इवान्स हम्स के अनुसार, ’लोग अधिक काम से कभी नहीं मरते, वे अपने समय के अपव्यय और चिंता के कारण मरते हैं।’ श्री चाल्र्स का कहने का आशय यह है कि समय को व्यर्थ की चिंताओं में नष्ट करके पल पल मृत्यु के निकट जाने से अच्छा है कि पल पल को कार्य में लगाकर जीवंत बने और जीवन के प्रत्येक पल को आनन्द पूर्वक जिया जाय। जब हम जानते हैं कि चिंता चिता से भी अधिक बढ़कर है। चिता तो हमारे मृत शरीर को जलाती है किंतु चिंता तो हमें जीवित ही जला डालती है, फिर हम जानबूझ कर अपने आपको चिंता में डालकर अपने जीवन को नष्ट क्यों करें। करना ही है तो काम करें और सभी चिंताओं से मुक्त हो जाएँ। 
                कार्य ही जीवन का प्रतीक है। सक्रियता ही जीवन है और काम करना ही सक्रियता है। जब हम काम करते हैं तो वे सृजनात्मक व समाज के हित में हों यही मानवता है। हम जितना समय काम करते हैं, वास्तव में वही जीवन है। अपने समय के पल पल का उपयोग करना ही समय की एजेंसी की मूल शर्त है। कार्य प्रबंधन ही जीवन का आधार है। हमें कार्य की चिंता से ध्यान हटाकर केवल अपने कार्य पर फोकस करना चाहिए। हमें लोगों की अच्छे और बुरे होने की टिप्पणियों के जंजाल से निकल कर अपने कार्य पर फोकस करना चाहिए। प्रसिद्ध अमेरिकी अभिनेत्री का चर्चित कथन है, ‘जब मैं अच्छी होती हूँ, अच्छा काम करती हूँ, लेकिन जब मैं बुरी होती हूँ तो और भी अच्छा परफाॅर्म करती हूँ।’ इस कथन का आशय है कि हमें अच्छे बुरे के विचार में समय व शक्ति नष्ट करने की अपेक्षा अपने कार्य पर केन्द्रित होकर अपने समय के पल पल का उपयोग करना चाहिए। 

                  प्रसिद्ध चिंतक बर्नाड शाॅ ने भी अनुपयोगी समय को ही दुख का मूल कारण माना है। श्री बर्नाड के अनुसार, ‘अपने सुख-दुःख के विषय में चिंता करने का समय मिलना ही, आपके दुःख का कारण होता है।’ वास्तव में चिंता करने से किसी भी समस्या का हल नहीं निकलता केवल समय की बर्बादी होती है और मनोबल गिरता है। सोच-विचारकर योजना बनाकर ही सभी समस्याओं का समाधान व पल-पल का उपयोग करते हुए सफलता की ओर यात्रा की जा सकती है। अतः अतीत या भविष्य की चिंता करने की आदत से छुटकारा पाकर कार्य करने की आदत का विकास करने की आवश्यकता है। 
                   कार्यरत रहना ही दुःखों की समाप्ति का एकमात्र मार्ग है। सदैव वर्तमान में जीना है। वर्तमान ही भविष्य का आधार है। वर्तमान में समय के पल-पल का उपयोग करने से ही भविष्य बनता है। अतीत से सीख ली जा सकती है, किंतु बदला नहीं जा सकता। अतः अतीत पर चिंता करके समय नष्ट करने का कोई मतलब नहीं है। भविष्य का आधार वर्तमान में हमारे समय के सदुपयोग से ही बनता है। वास्तविकता यही है कि वर्तमान के पल-पल का उपयोग करते हुए उपलब्धियाँ प्राप्त करते हुए हमें थकान भी नहीं होगी या कम होगी। हमें अधिकांशतः थकान उस कार्य को सोचने से होती है, जो वास्तव में हमने किया ही नहीं है।

                    किसी अज्ञात चिंतक का कथन है, ‘मानसिक यानि दिमागी कार्य की अपेक्षा मनुष्य उस कार्य से अधिक थकता है, जिसे वह करता ही नहीं है।’ अतः हमें बिना कार्य के होने वाली थकान से बाहर निकलना होगा और इसका एकमात्र रास्ता अपने पल-पल का उपयोग करते हुए कार्य करना है। अधिकांश व्यक्ति कार्य करने की अपेक्षा कार्य न करने के बहाने खोजने में अधिक समय और ऊर्जा लगाते हैं। अतः समय के महत्त्व को समझें। समय का सदुपयोग केवल और केवल कर्म करने में ही है। 
                  चौधरी मित्रसेन आर्य के अनुसार, ‘सच्चे मन से पुरूषार्थ करना ही सफलता का मूल मंत्र है।’ पुरूषार्थ समय को विस्तार देता है। सफलता के पथिक को उपलब्ध समय के पल पल का उपयोग करते हुए समय का विस्तार करने का भी प्रयत्न करना होगा। यही तो समय की एजेंसी है, जिससे अतिरिक्त समय की प्राप्ति की जा सकती है। सफलता के पथिक को समय के विस्तार के साथ-साथ पल पल का उपयोग करना होगा, क्योंकि समय का संरक्षण नहीं किया जा सकता। कार्य का समय के साथ तालमेल ही कार्य प्रबंधन की कुंजी है। अनावश्यक गतिविधियों में नष्ट हो रहे समय को खोजकर उपयोगी और अधिक उपयोगी गतिविधियों में निवेश करना ही समय की एजेंसी का एकमात्र लक्ष्य है।

मंगलवार, 4 जून 2019

समय की एजेंसी-16

समय अच्छा या बुरा नहीं होता



आमतौर पर अधिकांश लोग समय के महत्त्व के बारे में चर्चा करते हुए देखे जा सकते हैं। समय ही शक्तिशाली है, इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। समय पर अच्छे और बुरे होने का ठप्पा लगा देते हैं। यह सब समय से मित्रता न करने के कारण होता है। हम समय के साथ चलेंगे तो समय हमारा बन जायेगा। समय का विश्लेषण कर समय का पोस्टमार्टम करने का प्रयत्न करेंगे तो समय हमारा पोस्टमार्टम कर देगा। हम समय को नष्ट करेंगे तो समय नहीं, हमारा जीवन नष्ट हो जायेगा। हमें सदैव स्मरण रखना होगा, समय कभी भी किसी के लिए भी रूकता नहीं और न ही किसी पर कोप या दयालुता दिखाता है। यह तो हमारे ऊपर निर्भर है कि हम समय का उपयोग किस प्रकार करते हैं और उससे दयालुता या निर्दयता क्या प्राप्त करना चाहते हैं? 
             समय चक्र में से हमें क्या मिलेगा? यह तो हमारे चलने पर निर्भर है कि हम समय चक्र के साथ कितना तालमेल बिठाकर चल सकते हैं? समय हमारे साथ तालमेल नहीं करेगा। हमें समय के साथ तालमेल करना होगा। समय का काम तो केवल चलना होता है; तालमेल, समन्वय या सहयोग करने जैसे कार्य समय के नहीं व्यक्ति के होते हैं। अतः समय के साथ तालमेल हमें ही करना होगा।

                संपूर्ण ब्रह्माण्ड में समय से अधिक शक्तिशाली और अमूल्य और कोई तत्व नहीं है। हमेशा बदलता हुआ, चक्रित समय प्रकृति की अनूठी प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। समय चक्र से ही हमें सीख मिलती है कि, ‘परिवर्तन प्रकृति का नियम है।’ इस संसार में सब कुछ चलता है, सब कुछ बदलता है, जो स्थिर रहने का प्रयत्न करता है,  वह ही मरता है। सब कुछ समय के साथ चलता है, समय के साथ बदलता है। समय चक्र में सभी बँधे हुए हैं। समय से कोई स्वतंत्र नहीं। समय का रोकना, समय का संचय करना, समय का विश्लेषण व प्रबंधन करना संभव नहीं। समय का निवेश करना, समय का उपयोग करना और समय को जीकर जिंदगी मेँ  परिवर्तित करना संभव है और यह व्यक्ति के हाथ में है, ईश्वर के नहीं। यह समय की एजेंसी की सहायता से किया जा सकता है।
                अतः आओ हम समय की बचत करके निवेश करते हुए अपने लिए समय की एजेंसी प्राप्त करें। हम समय के हर पल का उपयोग करते हुए न केवल स्वयं के लिए समय प्राप्त करें वरन् दूसरों को भी समय की एजेंसी का राज़ बताकर उनको समय का लाभकारी उपयोग करने का तरीका सिखायें। जी हाँ! ज्ञान बांटने से बढ़ता है, कम नहीं होता। अतः समय की एजेंसी के राज को अपने तक सीमित मत रखिए; दूसरों को भी समय की एजेंसी से लाभ प्राप्त करने दीजिए। सफलता और विकास के पथिक को समय के चरैवेति-चरैवेति के मंत्र अर्थात् सदैव चलते रहो, सदैव चलते रहो पर चलना होगा। अपने साथियों और सहयोगियों को भी इसी मंत्र में दीक्षित करना होगा। प्रगति-पथ पर समय के साथ चलने के लिए प्रेरित करते हुए हम अपने साथियों को भी जीवन रस का आनन्द लेने की कला सिखला सकते हैं। प्रगति-पथ पर समय के साथ-साथ चलें और समय की बचत कर निवेश कर समय से रिटर्न अर्थात् अमूल्य लाभ प्राप्त करें। यही समय की एजेंसी का मूलमंत्र है।

रविवार, 2 जून 2019

समय की एजेंसी-15

समय का संचय नहीं, निवेश


        आप समय को बचाकर भविष्य के लिए संरक्षित नहीं कर सकते; हाँ! समय का श्रेष्ठतम उपयोग करते हुए वर्तमान में ही समय का निवेश कर वर्तमान को परिणामोत्पादक बनाते हुए भविष्य को सुरक्षित व मजबूत आधार प्रदान कर सकते हैं। समय का संचय नहीं किया जा सकता, केवल निवेश किया जा सकता है। समय का कुशलता के साथ उपयोग करना ही निवेश है। समय को कोई भी कीमत देकर प्राप्त नहीं किया जा सकता, इसीलिए इसे अमूल्य कहा गया है। अतः हमारी समझदारी इसी में है कि हम समय के किसी भी पल को व्यर्थ नहीं जाने दें और समय के प्रत्येक पल का पूरा पूरा लुफ़्त उठाते हुए उसका पूरा-पूरा उपयोग करें। 
              यदि हम समय के महत्त्व और संकेत को समझने में भूल या देर करते हैं तो जीवन के स्वर्णावसर को खो देंगे। यह जीवन का ध्रुव सत्य है कि जो पल गया, वह गया। हमें अपने जीवन के स्वर्णावसर को कभी भी जाने नहीं देना चाहिए; वरन्् सकारात्मक, लाभकारी, सुविचारित योजना के अनुसार उसका प्रयोग करना चाहिए। समय के प्रयोग करने के अवसर का उपयोग करने वाला प्रबंधक ही सफलता का सच्चा पथिक होता है। समय रूपी दुर्लभ संसाधन को व्यर्थ ही गवाँ देने वाला व्यक्ति ही दुर्भाग्य का रोना रोता रहता है। वही ईश्वर को दोष देता है, तभी तो कहा गया है, ‘दैव दैव आलसी पुकारा।’
                  समय का अपने लक्ष्य और अपनी योजनानुसार प्रयोग करना ही तो समय का निवेश है। स्मरण रखिये निवेश सदैव रिटर्न देता है। निवेश भविष्य में लाभ कमाने के लिए ही किया जाता है। जब हम समय रूपी संसाधन का योजनानुसार सुविचारित रूप से निवेश करते हैं तो उसका रिटर्न केवल हमें ही नहीं, हमारे परिवार, समाज, देश और संपूर्ण सृष्टि को प्राप्त होता है। हमारे इसी निवेश की मात्रा और कुशलता पर हमारी सामाजिक मान्यता निर्भर करती है। समय के कुशलतम निवेश के द्वारा ही व्यक्ति महापुरूष, यहाँ तक कि देवत्व तक पहुँच जाता है। लोग उसे ईश्वर मानकर पूजा करने लगते हैं। यह सब समय के कुशल निवेश के कारण ही संभव होता है।

गिव एण्ड टेक


        मित्रो! संसार लेन-देन से चलता है। आंग्ल भाषा में इसे ‘गिव और टेक’ का सिद्धांत भी कहते हैं। मेरे कहने का आशय यह है कि हम समय को जितना महत्त्व देते हैं, समय भी हमें उतना ही महत्त्वपूर्ण व्यक्ति बना देता है। यदि व्यक्ति समय की अहमियत को नहीं समझता तो समय को भी क्या दरकार कि वह व्यक्ति की अहमियत को समझे या उस व्यक्ति को अहमियत दे। जो समय को बर्बाद करेगा, समय उसके जीवन को ही बर्बाद कर देगा। 
               यह कहावत शत-प्रतिशत सत्य है कि ‘समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता’ यहाँ ध्यान देना होगा कि जब समय हमारी प्रतीक्षा नहीं करता तो गिव एण्ड टेक के सिद्धांत के अनुसार हमें भी समय की प्रतीक्षा नहीं करनी है और बिना प्रतीक्षा किए प्रत्येक पल का उपयोग करना है। प्रतीक्षा में समय बिताकर उस अवसर को अपने हाथ से जाने देना, बुद्धिमत्ता नहीं। हम एक पल का निवेश एक ही कार्य में कर सकते हैं अर्थात् समय हमें एक ही मौका देता है, यदि हम उस मौके को एकबार खो देते हैं तो सदैव के लिए खो देते हैं। उसे पुनः प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि समय चक्र कभी विपरीत नहीं घूमता।

चलते रहो

    समय चक्र एक अप्रतिम व आश्चर्यजनक उपकरण है, समय का न आदि है और न कोई अन्त। यह ईश्वर की तरह सर्वव्यापी है, अगोचर है। यह बहुत ही शक्तिशाली है। समय ही है जिसके साथ जैविक व अजैविक वस्तु और प्राणी जन्मते हैं, बढ़ते हैं, घटते हैं और फिर समय चक्र में मिट जाते हैं। हिंदु धर्म की आस्था के अनुसार इसके देवता महाकाल अर्थात् शिव हैं। शिव संहारकर्ता भी माने जाते हैं अर्थात् जो समय की चिंता नहीं करता, समय उसके जीवन का ही संहार कर देता है। समय असीमित है, इसकी कोई सीमा नहीं है। यह सदैव चलता रहता है। ऐतरेय ब्राह्मण का चरैवेति का मंत्र समय चक्र की गति का सार स्पष्ट करता है।

चरन् वै मधु विन्दति चरनस्वादुमुदुबरम्।

सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरंष्चरैवैति।।

अर्थात् इतस्ततः भ्रमण करते हुए मनुष्य को मधु प्राप्त होता है, उसे उदुम्बर (गूलर) सरीखे सुस्वादु फल मिलते हैं। सूर्य की श्रेष्ठता को तो देखो जो विचरणरत रहते हुए आलस्य नहीं करता। उसी प्रकार तुम भी चलते रहो। 
चरैवेति का यह मंत्र समय चक्र का ही सार है। समय चक्र कभी रूकता नहीं। वास्तव में चलते रहना ही जीवन है, चलते रहने में ही आनन्द है। बिना रुके, बिना थके, बिना आलस्य सदैव चलते रहना यही जीवन की सफलता का सार है और यही समय का सदुपयोग करने और समय प्राप्त करने की एजेंसी है। समय चक्र सदैव चलता रहता है। अतः समय के साथ चलने के लिए हमें भी चलना होगा। सदैव चलते रहना होगा। चलना ही जीवन यात्रा का सार है। चलते रहने से ही समय बन जाता हमारा यार है। चलते रहना ही जीवन है और थम जाना तो मृत्यु है। अतः मित्रांे! मृत्यु को गले मत लगाओ, चरैवेति का मंत्र अपनाकर समय चक्र के साथी बनकर जीवन का आनन्द मनाओ। अपने निर्धारित पथ पर बिना सुख-दुख की परवाह किए आगे बढ़ते रहो। पथ में मिलने वाले साथियों को गले लगाओ किंतु उनके साथ थमना नहीं है। उनकी राह नहीं, अपनी राह पर निरंतर चलते रहना है। यही जीवन है।
समय की कोई सीमा नहीं है, इसकी गति का कोई निर्धारक नहीं है, यह तो अपनी ही गति से चलता रहता है। स्व प्रेरित है। अतः इसको किसी बाहरी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं है। समय चक्र सदैव चलता रहता है। इसको कोई रोक नहीं सकता। इसकी गति को प्रभावित नहीं कर सकता। ये सृष्टि का शासक है, इस पर कोई अन्य शासन नहीं कर सकता। हाँ! इसके साथ चलकर इससे मित्रता कर सकता है। कुछ समय तक इसके आगे चलने का प्रयत्न कर इसका अधिकतम् उपयोग कर सकता है।
जीवन के किसी भी स्तर पर हम समय पर नियंत्रण नहीं कर सकते। हम समय पर चर्चा कर सकते हैं, इस का विश्लेषण करने का असंभव प्रयास कर सकते हैं, किंतु कोई परिणाम नहीं निकलेगा। समय पर चर्चा करने की अपेक्षा समय को साथी बनाकर, इसके साथ सदैव गतिमान रहकर, समय का योजनाबद्ध सदुपयोग करते हुए, हम अपने जीवन अर्थात् समय को उपयोगी बनाकर जीवन का लुफ्त उठा सकते हैं। गति ही जीवन है और गति में ही आनंद है। थम जाना तो जड़ होने की निशानी है।