कार्य प्रबंधन, सफलता का आधार
दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति व प्रत्येक संस्था सफलता की बात करती है। सभी सफलता के अभिलाषी हैं। कई बार तो लोग सफलता के पीछे इस तरह पड़ जाते हैं कि वे तथाकथित सफलता को किसी भी कीमत पर पा लेना चाहते हैं। यहाँ पर तथाकथित सफलता का प्रयोग जानबूझकर किया है क्योंकि जब हम सफलता के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं, तभी सफलता के मार्ग से भटक चुके होते हैं। जब हम सफलता के लिए अनुचित व असामाजिक मार्ग पर चलते हैं, हम तभी असफल हो चुके होते हैं क्योंकि सफलता किसी विशेष पद को पाना नहीं है और न ही सफलता संपत्ति का अंबार खड़ा करना है।
सफलता तो अपनी योजना के अनुरूप अपने ईमानदार प्रयासों के परिणाम प्राप्त करना है। महान् विचारक कन्फ्यूशियस का कहना था, ‘जहाँ भी जाएँ, पूरे दिल के साथ जाएँ। जितनी अधिक अंदरूनी खुशी, उतना ही हम सफलता के लिए प्रेरित होंगे।’ यथार्थ में यह अंदरूनी खुशी ही तो सफलता है। यदि बेईमानी, धोखेबाजी और षड्यंत्रों से कुछ उपलब्धि हासिल भी हो जाय तो भी वह सफलता नहीं, असफलता ही है। हम असफल उसी क्षण हो जाते हैं, जब हम उल्टे-सीधे रास्ते पर चल पड़ते हैं।
जब भी जीवन की सफलता की बात की जाती है, वह समय के सदुपयोग पर ही आकर टिकती है। फील्ड के अनुसार, ‘सफलता और असफलता के बीच की सबसे बड़ी विभाजक रेखा को इन पाँच शब्दों में बताया जा सकता है, ‘मेरे पास समय नहीं है।’
वास्तविक बात यह है कि सभी के वर्ष, माह, दिन या घण्टे में बराबर समय होता है। समय की इकाई कम से कम इस संसार में एक ही है। हाँ! अन्य ग्रहों पर अलग हो तो अलग बात है। प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में 12 माह या 365 दिन, एक दिन में 24 घण्टे, 1 घण्टे में 60 मिनट, 1 मिनट में 60 सेकण्ड ही मिलती हैं। हाँ! किसी के जीवन के बारे में निश्चित रूप से कुछ स्थिर रूप से नहीं कहा जा सकता कि उसे कितने वर्ष का जीवन मिला है?
सामान्यतः विभिन्न परिस्थितियों के अधीन प्रकृति समय आवंटन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करती, ऐसी मान्यता है। इसके बाबजूद एक व्यक्ति बड़े ही सामान्य ढंग से केवल कार्य से बचने के लिए ही कह देता है कि मेरे पास समय नहीं है, जबकि दूसरा व्यक्ति कितना भी व्यस्त रहते हुए सभी महत्त्वपूर्ण कार्यो के लिए समय निकाल ही लेता है। इसी प्रकार समय बचाकर कार्य करने की प्रवृत्ति के कारण एक व्यक्ति से मिलने के लिए लोगों की कतार लगी रहती है, जबकि दूसरे व्यक्ति को कोई पूछने वाला नहीं होता। यह प्रबंधन कला का ही कमाल है कि उसी समय के उपयोग से एक व्यक्ति सफलता के शिखरों को चूमता है, जबकि दूसरा उसी समय की बर्बादी के कारण समय की कमी का रोना रोता हुआ मारा-मारा फिरता है।
समय के महत्त्व को बेंजैमिन फैंक्लिन के कथन, ‘समय ही पैसा है’ के द्वारा भी समझा जा सकता है। यह एक यर्थाथ है कि समय के प्रयोग के द्वारा ही पैसा कमाया जाता है, जो व्यक्ति अपने समय का सही प्रयोग करना जानता है। उसका एक-एक क्षण उसको धन कमाकर देता है। सफलता कार्य प्रबंधन का ही कमाल है। फ्रैंक्लिन आगे कहते हैं, ‘सामान्य व्यक्ति समय को काटने के बारे में सोचता है, जबकि महान् व्यक्ति सोचते है इसके उपयोग के बारे में।’ अर्थात् जो व्यक्ति समय को काटते हैं, वे जन सामान्य हैं और जो व्यक्ति अपने उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई का योजनाबद्ध ढंग से उपयोग करते हैं वही महान् व्यक्तियों की सूची में नाम लिखवाते हैं।
सोवियत रूस के महान् चिंतक ने संसार के सामने नया चिंतन रखा। कार्ल मार्क्स ने श्रम को लेकर महान् कार्य किया, वे श्रम प्रबंधन के हामी थे। श्रम प्रबंधन भी कार्य प्रबंधन का ही एक रूप है। कार्ल माक्र्स ने स्पष्ट रूप से लिखा, ‘किसी के गुणों की प्रशंसा करने में अपना समय व्यर्थ मत करो, उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करो।’
वास्तविक रूप में किसी के गुणों की प्रशंसा करने से कोई उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती। उपलब्धि हासिल होती है, गुणों को अपनाने से। गुणों की प्रशंसा करने से कोई लाभ नहीं मिलने वाला। प्रशंसा करना भी अच्छे व्यवहार की पहचान माना जाता है। इसे अभिप्रेरित करने वाला व्यवहार कहा जा सकता है किंतु प्रंशसा करने से हमें कोई लाभ नहीं होता, लाभ होता है, उन गुणों को अपनाने से। गुणों की प्रशंसा करना अपने स्थान पर अच्छे आचरण का अंग हो सकता है किंतु आचरण की श्रेष्ठता तो गुणों को अपने आचरण में ढालकर वास्तविक प्रशंसा करने से ही प्राप्त होगी। मूर्ति पूजा का अवगुण भी प्रशंसा करने की प्रवृत्ति का ही द्योतक है। मूर्ति पूजा ने मानव विकास की गति को धीमा ही किया है। मूर्ति पूजा के अन्तर्गत व्यक्ति गुणों की अपेक्षा भौतिक रूप पर ध्यान केंद्रित करता है। वह उसके गुणों के लिए नहीं, केवल स्वार्थ पूर्ति के उद्देश्य से पूजा करता है।
भारत में तो मूर्ति पूजा ने बहुत हानि पहुँचाई है। हमारी प्रवृत्ति गुणों को अपनाने, महापुरूषों के बताये रास्ते पर चलने की अपेक्षा उनके चित्र पर माला चढ़ाने और उनकी पूजा करने की बन गई है, जबकि मूर्ति पर माला चढ़ाने और पूजा करने से किसी को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। यह तो समय की बर्बादी मात्र है। वास्तविक पूजा तो तब होगी, जब हम उन गुणों और कर्मों को जिनके कारण हम उस व्यक्ति को महान् समझ रहे हैं, अपने आप में विकसित करें। वर्तमान सन्दर्भ में उनके द्वारा बताये गये और चले गये मार्ग पर चलकर व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को विकास के मार्ग पर ले जाने का कार्य करें। जब हम किसी महापुरूष या महान् विदुषी के आदर्शो पर चलने की अपेक्षा उसकी पूजा का पाखण्ड करने लगते हैं, तब हमारा आचरण असत्य की ओर चल पड़ता है। जिन लोगों को भी हम महान् व्यक्तियों की सूची में सम्मिलित करते हैं, वे अपने समय के पल पल का सदुपयोग करते हुए ही उस स्थान पर पहुँचे हैं।
सफलता की दौड़ को जीतने के लिए हम अपने आप में अनेक योग्यताओं का अर्जन करने की कोशिश करते हैं। हम अनेक कौशल सीखना चाहते हैं। निःसन्देह व्यक्ति को सक्षम, योग्य व कुशल होना ही चाहिए। सक्षमता, कुशलता और योग्यताएं ही तो व्यक्ति की सफलता के मार्ग पर सहायक के रूप में कार्य करती हैं। इससे भी अलग हटकर विचार करें तो केवल स्वयं की योग्यता और कुशलता ही नहीं, दूसरे लोगों से सहयोग लेने की हमारी कुशलता भी हमें सफलता के निकट ले जाने में सहायता करती है। अल्बर्ट हब्बार्ड के विचार में, ‘अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है, लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना नेता की असली परीक्षा है।’
कहने की आवश्यकता नहीं है कि सामाजिक जीवन में ही नहीं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमें नेतृत्व के गुण की भी आवश्यकता पड़ती है। सफलता के लिए हम जिस प्रबंधन की आवश्यकता महसूस करते हैं। प्रबंधन के लिए भी नेतृत्व क्षमता अनिवार्य आवश्यकता है। किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए समय के प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती ही है। कार्य प्रबंधन के द्वारा ही समय की कमी की समस्या से निपटा जा सकता है। समय की कमी के भूत से केवल कार्य प्रबंधन ही बचा सकता है। कार्य प्रबंधन ही हमें समय की एजेंसी दिलवाता है।
अमेरिका के भूतपूर्व न्यायाधीश चाल्र्स इवान्स हम्स के अनुसार, ’लोग अधिक काम से कभी नहीं मरते, वे अपने समय के अपव्यय और चिंता के कारण मरते हैं।’ श्री चाल्र्स का कहने का आशय यह है कि समय को व्यर्थ की चिंताओं में नष्ट करके पल पल मृत्यु के निकट जाने से अच्छा है कि पल पल को कार्य में लगाकर जीवंत बने और जीवन के प्रत्येक पल को आनन्द पूर्वक जिया जाय। जब हम जानते हैं कि चिंता चिता से भी अधिक बढ़कर है। चिता तो हमारे मृत शरीर को जलाती है किंतु चिंता तो हमें जीवित ही जला डालती है, फिर हम जानबूझ कर अपने आपको चिंता में डालकर अपने जीवन को नष्ट क्यों करें। करना ही है तो काम करें और सभी चिंताओं से मुक्त हो जाएँ।
कार्य ही जीवन का प्रतीक है। सक्रियता ही जीवन है और काम करना ही सक्रियता है। जब हम काम करते हैं तो वे सृजनात्मक व समाज के हित में हों यही मानवता है। हम जितना समय काम करते हैं, वास्तव में वही जीवन है। अपने समय के पल पल का उपयोग करना ही समय की एजेंसी की मूल शर्त है। कार्य प्रबंधन ही जीवन का आधार है। हमें कार्य की चिंता से ध्यान हटाकर केवल अपने कार्य पर फोकस करना चाहिए। हमें लोगों की अच्छे और बुरे होने की टिप्पणियों के जंजाल से निकल कर अपने कार्य पर फोकस करना चाहिए। प्रसिद्ध अमेरिकी अभिनेत्री का चर्चित कथन है, ‘जब मैं अच्छी होती हूँ, अच्छा काम करती हूँ, लेकिन जब मैं बुरी होती हूँ तो और भी अच्छा परफाॅर्म करती हूँ।’ इस कथन का आशय है कि हमें अच्छे बुरे के विचार में समय व शक्ति नष्ट करने की अपेक्षा अपने कार्य पर केन्द्रित होकर अपने समय के पल पल का उपयोग करना चाहिए।
प्रसिद्ध चिंतक बर्नाड शाॅ ने भी अनुपयोगी समय को ही दुख का मूल कारण माना है। श्री बर्नाड के अनुसार, ‘अपने सुख-दुःख के विषय में चिंता करने का समय मिलना ही, आपके दुःख का कारण होता है।’ वास्तव में चिंता करने से किसी भी समस्या का हल नहीं निकलता केवल समय की बर्बादी होती है और मनोबल गिरता है। सोच-विचारकर योजना बनाकर ही सभी समस्याओं का समाधान व पल-पल का उपयोग करते हुए सफलता की ओर यात्रा की जा सकती है। अतः अतीत या भविष्य की चिंता करने की आदत से छुटकारा पाकर कार्य करने की आदत का विकास करने की आवश्यकता है।
कार्यरत रहना ही दुःखों की समाप्ति का एकमात्र मार्ग है। सदैव वर्तमान में जीना है। वर्तमान ही भविष्य का आधार है। वर्तमान में समय के पल-पल का उपयोग करने से ही भविष्य बनता है। अतीत से सीख ली जा सकती है, किंतु बदला नहीं जा सकता। अतः अतीत पर चिंता करके समय नष्ट करने का कोई मतलब नहीं है। भविष्य का आधार वर्तमान में हमारे समय के सदुपयोग से ही बनता है। वास्तविकता यही है कि वर्तमान के पल-पल का उपयोग करते हुए उपलब्धियाँ प्राप्त करते हुए हमें थकान भी नहीं होगी या कम होगी। हमें अधिकांशतः थकान उस कार्य को सोचने से होती है, जो वास्तव में हमने किया ही नहीं है।
किसी अज्ञात चिंतक का कथन है, ‘मानसिक यानि दिमागी कार्य की अपेक्षा मनुष्य उस कार्य से अधिक थकता है, जिसे वह करता ही नहीं है।’ अतः हमें बिना कार्य के होने वाली थकान से बाहर निकलना होगा और इसका एकमात्र रास्ता अपने पल-पल का उपयोग करते हुए कार्य करना है। अधिकांश व्यक्ति कार्य करने की अपेक्षा कार्य न करने के बहाने खोजने में अधिक समय और ऊर्जा लगाते हैं। अतः समय के महत्त्व को समझें। समय का सदुपयोग केवल और केवल कर्म करने में ही है।
चौधरी मित्रसेन आर्य के अनुसार, ‘सच्चे मन से पुरूषार्थ करना ही सफलता का मूल मंत्र है।’ पुरूषार्थ समय को विस्तार देता है। सफलता के पथिक को उपलब्ध समय के पल पल का उपयोग करते हुए समय का विस्तार करने का भी प्रयत्न करना होगा। यही तो समय की एजेंसी है, जिससे अतिरिक्त समय की प्राप्ति की जा सकती है। सफलता के पथिक को समय के विस्तार के साथ-साथ पल पल का उपयोग करना होगा, क्योंकि समय का संरक्षण नहीं किया जा सकता। कार्य का समय के साथ तालमेल ही कार्य प्रबंधन की कुंजी है। अनावश्यक गतिविधियों में नष्ट हो रहे समय को खोजकर उपयोगी और अधिक उपयोगी गतिविधियों में निवेश करना ही समय की एजेंसी का एकमात्र लक्ष्य है।