शनिवार, 4 अप्रैल 2020

समय की एजेंसी-21

समय का कुशलतम उपयोग करने के सूत्रः


इस संसार में प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी को अनुपम बनाया है। अतः प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मूलभूत विशिष्टता लेकर पैदा होता है किंतु इसके साथ ही सभी में कुछ सामान्य समानताएँ भी होती हैं, जिनके आधार पर एक वर्ग की रचना होती है। यद्यपि व्यक्तिगत भिन्नताओं के कारण किन्हीं दो व्यक्तियों में समान अभिरूचि, अभिक्षमता, योग्यता और सक्षमता नहीं पायी जाती। यही नहीं समयनिष्ठा, ध्येयनिष्ठा, संसाधन प्राप्त करने और प्रयोग करने की क्षमता भी भिन्न-भिन्न होती है। अतः सभी व्यक्तियों के सन्दर्भ में किसी एक ही सूत्र का विकास संभव नहीं होता। इसी बात को ध्यान में रखकर सामान्यतः समय के सन्दर्भ में कार्य प्रबंधन की कुशलता प्राप्त करने के लिए कुछ आधारबिंदु अग्रलिखित हैं-
1. सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम अपने आपके प्रति, अपने जीवन के प्रति, परिवार व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पूर्ण गंभीरता और ईमानदारी के साथ लेकर अपने जीवन को आनन्दपूर्ण ढंग से उपयोग करने की आदत का विकास करें।
2. व्यक्ति को अपना ध्येय, लक्ष्य व उद्देश्य स्पष्ट रूप से समझ व निर्धारित कर लेना चाहिए।
3. अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक सीमाओं का स्पष्ट रूप से ज्ञान होना चाहिए।
4. हमें हर पल स्मरण रखना होगा कि जो बीत गया सो बीत गया, उससे सीख भले ही ली जा सकती हो; बीते हुए समय में जाकर उसका उपयोग नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार भविष्य की चिंता करके वर्तमान समय को कम या नष्ट करना भी समझदारी नहीं होगी। अतः वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करें। आज और अभी जो समय आपके पास उपलब्ध है, उसका पूर्ण दोहन करें और सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ें।
5. ध्येय, लक्ष्य व उद्देश्य निर्धारित करते समय न केवल अपनी सीमाओं वरन उपलब्ध और उपलब्ध किए जा सकने वाले संसाधनों को भी ध्यान में रखना चाहिए। ध्येय, लक्ष्य व उद्देश्य स्पष्ट व वास्तविकता पर आधारित होने चाहिए जिनको प्राप्त करना संभव हो। बिना आधार के हवाई कल्पना करने का कोई मतलब नहीं होता।
6. ध्येय, लक्ष्य व उद्देश्य प्राप्त करना ही महत्त्वपूर्ण या सफलता का आधार नहीं, उन्हें प्राप्त करने के तरीके भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। कार्य ही नहीं, कार्य करने की प्रक्रिया भी महत्त्वपूर्ण होती है। अतः ‘येन केन प्रकारेण’ लक्ष्य सिद्धि की बात लेकर न चलें। अपनी योजना के अनुसार और ‘सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय’ के मंत्र पर चलते हुए कार्य सिद्धि होनी चाहिए। यदि हमने अनुचित, अवैधानिक व असामाजिक प्रक्रिया को अपनाकर कोई सफलता हासिल की तो वह सफलता नहीं, असफलता है। 
7. हमें अपने दैनिक कार्य योजना और सूची अपने तरीके से बनानी होगी। हमें यह चिंता करने की आवश्यकता नहीं है कि दूसरे लोग इसे कैसे बना रहे हैं? बना भी रहे हैं या नहीं? आप अनुपम हैं और अपना आत्मसम्मान बनाये रखते हुए अपने कार्य अपने मौलिक तरीके से अधिकतम कुशलता से करें। किसी की नकल न केवल आपकी सृजन क्षमता को मार देती है वरन्् आपके आत्मसम्मान को भी चोट पहुँचाती है।
8. व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक कत्र्तव्यों के निर्वहन के लिए किये जाने वाले कार्यों की स्पष्ट रूप से रूपरेखा बना लेनी चाहिए। इस रूपरेखा को दीर्घकालीन अर्थात् पाँच वर्ष से अधिक समय में किए जाने वाले कार्य, मध्यम कालीन अर्थात् दो से पाँच वर्ष के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्य और अल्पकालीन एक वर्ष के अन्तर्गत किए जाने कार्यों में स्पष्ट रूप से विभाजित कर लेना चाहिए।
9. व्यक्ति को किसी भी प्रकार की सफलता के लिए आवश्यक है कि वह स्पष्ट रूप से समझ ले, कि काम करवाना कार्य करने की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करवाना ही प्रबंधन कहलाता है। अतः समय के पल-पल का उपयोग करने के लिए हमें प्रबंधन कला में कुशलता प्राप्त करना भी आवश्यक है।
10. नियोजन व विचार विमर्श अच्छे नियोजन व निर्णयन के लिए आवश्यक है किंतु यह विचार विमर्श इतना दीर्घ नहीं होना चाहिए कि वह स्वयं ही समय बर्बादी का कारण बने। प्रसिद्ध कहावत है कि ‘दाता से सूम भलो, जो तुरत ही देत जबाब।’ तत्काल निर्णय तत्काल कार्य प्रारंभ करने का आधार प्रदान करता है। अतः निर्णय लेने में हड़बड़ी और उतावलापन नहीं होना चाहिए किंतु दीर्घसूत्रता भी नहीं होनी चाहिए। समय पर शीघ्र निर्णय लेकर ही हम समय का सदुपयोग कर सकते हैं।
किसी भी सफलता के पथिक के लिए यह आवश्यक है कि वह करना क्या चाहता है? यह उसे स्पष्ट रूप से मालूम हो क्योंकि यदि व्यक्ति को यही नहीं मालूम होगा कि उसे जाना कहाँ है? तो उसकी यात्रा का प्रारंभ होना और गंतव्य स्थल पर पहुंचना तो असंभव हो जायेगा। जब हमें कहाँ जाना है? इसी का पता न होगा तो हम प्रस्थान कहाँ के लिए करेंगे? अतः सर्वप्रथम अपने ध्येय, लक्ष्य व उद्देश्य का निर्धारण कर आवश्यक रूपरेखा बनाकर अपने कर्तव्य पथ का निर्धारण करना होगा।
अपने कर्तव्य पथ पर चलते हुए निर्धारित गंतव्य को प्राप्त करने के लिए सुविचारित कार्ययोजना बनाकर कार्य करना न केवल सुविधाजनक होता है वरन् सुविचारित पूर्व योजना कार्य में सफलता की 50 प्रतिशत संभावना सुनिश्चित कर देती है, शेष 50 प्रतिशत उस योजना के क्रियान्वयन से हो जाता है।

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