मंगलवार, 29 मार्च 2011

rashtrapremi.in

नमस्कार
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रविवार, 20 मार्च 2011

प्रबन्धन गुरू देशभक्त संन्यासी का राष्ट्र के नाम अभिप्रेरण

प्रबन्धन गुरू देशभक्त संन्यासी का राष्ट्र के नाम अभिप्रेरण




रामकृष्ण मिशन इंस्टीच्यूट ऑफ कल्चर द्वारा विवेकानन्द के 125वें जन्म वर्ष के उपलक्ष में बंगला भाषा में प्रकाशित, `सबार स्वामीजी´ का हिन्दी भावानुवाद `सबके स्वामीजी´ प्रथम हिन्दी संस्करण(१९९१) के पृष्ठ ३९ पर स्वामीजी का राष्ट्र के कर्णधार युवाओं के लिए सन्देश दिया गया है। स्वामीजी तत्कालीन सर्वोच्च प्रबन्धन गुरू कहे जा सकते हैं. स्वामी जी ने मानव संसाधन प्रबन्धन को कितना महत्व दिया? इसमें स्पष्ट है. स्वामी मानव संसाधन की गुणवत्ता को भी समझते व स्पष्ट करते हैं. आप सबके साथ मानव संसाधन पर स्वामीजी के अभिप्रेरण को बांटते हुए मुझे अतीव हर्ष हो रहा है। स्वामीजी का राष्ट्र के युवकों के नाम सन्देश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था, बल्कि उससे भी अधिक प्रासंगिक है क्योंकि स्वामीजी द्वारा दिखाया गया लक्ष्य दिखाई देने लगा है; हमें अब और भी अधिक द्रुत गति से उस तक पहुंचना है किन्तु धैर्य व सहनशीलता के साथ। आज प्रबन्धन में हम जिस समर्पण व अभिप्रेरण की मांग करते है, वह स्वामी जी के इस अभिप्रेरण में सम्मिलित है.  मैं स्वामी जी के इस अभिप्रेरण के माध्यम से आपको आगाह करता हूं कि होली के नाम पर बेहूदगी से रास-रंग में न डूब जायें, अभी हमें बहुत आगे जाना है. अतः आओ आगे बढ़ें-


स्वामीजी ने युवाओं को सन्देश दिया है, ``देशभक्त बनो - उस जाति से प्रेम करो जिस जाति ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े-बड़े काम किए हैं।


हे ! वीर-हृदय युवक-वृन्द...... और किसी बात की आवश्यकता नहीं, आवश्यकता है केवल प्रेम, सरलता और धैर्य की। जीवन का अर्थ है विस्तार, विस्तार और प्रेम एक ही है। इसलिए प्रेम ही जीवन है, प्रेम ही जीवन का एकमात्र गति निर्धारक है। स्वार्थपरता ही मृत्यु है, जीवन रहते हुए भी यह मौत है, देहावसान में भी यही स्वार्थपरता मृत्यु स्वरूप मृत्यु है...........जितने नर पशु तुम देखते हो, उसमें नब्बे प्रतिशत हैं मृत, प्रेत तुल्य क्योंकि हे युवक वृन्द! जिसके हृदय में प्रेम नहीं वह मृत के अलावा और क्या हो सकता है?
हे युवकगण! तुम दरिद्र, मूर्ख एवं पददलित मनुष्य की पीड़ा को अपने हृदय में अनुभव करो, उस अनुभव की वेदना से तुम्हारे हृदय की धड़कन रुक जाये, सिर चकराने लगे और पागल होने लगो, तब जाकर ईश्वर चरणों में अन्तर की वेदना बताओ। तब ही तुम्हें उनसे शक्ति व सहायता मिलेगी- अदम्य उत्साह, अनन्त शक्ति मिलेगी। मेरा मूल मन्त्र था- आगे बढ़ो! अब भी यही कह रहा हूं- बढ़े चलो! तब चारों और अन्धकार ही अन्धकार था, अन्धकार के सिवा कुछ नहीं देख पाता था, तब भी कहा था- आगे बढ़ो। अब जब थोड़ा-थोड़ा उजाला दिखाई पड़ रहा है, तब भी कह रहा हूं - आगे बढ़ो! डरो मत मेरे बच्चो! अनन्त नक्षत्र खचित आकाश की ओर भयभत दृष्टि से मत देखो, जैसे कि वह तुम्हें कुचल डालेगा। धीरज धरो, देखोगे- कुछ ही समय के बाद सब कुछ तुम्हारे पैरों तले आ गया है।
न धन से काम होता है, न नाम यश से काम होता है, विद्या से भी नहीं होता, प्रेम से ही सब कुछ होता है - चरित्र ही बाधा विघ्न की वज्र कठोर दीवारों के बीच से रास्ता बना सकता है।


महान बनने के लिए किसी भी जाति या व्यक्ति में तीन वस्तुओं की आवश्यकता है- `सदाचार की शक्ति में विश्वास, ईर्ष्या और सन्देह का परित्याग एवं जो सदाचारी बनने या अच्छा कार्य करने की कोशिश करता है उनकी सहायता करना।´


कार्य की सामान्य शुरूआत देखकर घबराओ मत, कार्य सामान्य से ही महान होता है। साहस रखो , सेवा करो, नेता बनने की कोशिश मत करो। नेता बनने की पाशविक प्रवृत्ति ने जीवन रूपी समुद्र में अनेक बड़े-बड़े जहाजो को डुबो दिया है। इस विषय में सावधान रहो, अर्थात मृत्यु को भी तुच्छ मानकर नि:स्वार्थी बनो और काम करते रहो।


हे वीर-हृदय युवको! यह विश्वास करो कि तुम्हारा जन्म बड़े-बड़े काम करने के लिए हुआ है। कुत्तों के भोंकने से न डरो- यहां तक कि आसमान से वज्रपात होने से भी न घबराना, `उठकर खड़े हो जाओ और काम करो।


विश्व के इतिहास में क्या कभी ऐसा देखा गया है कि धनवानों द्वारा कोई महान कार्य सिद्ध हुआ हो? हृदय और दिमाग से ही हमेशा सब बड़े काम किए जाते हैं-धन से नहीं। रुपय-पैसे सब अपने आप आते रहेंगे। आवश्यकता है मनुष्यों की धन की नहीं। मनुष्य सब कुछ करता है, रुपया क्या कर सकता है? मनुष्य चाहिए- जितने मिलें, उतना ही अच्छा है।


संसार की समस्त सम्पदाओं से मनुष्य अधिक मूल्यवान है। हे वीर-हृदय बालकगण, आगे बढ़ो! धन रहे या न रहे, लोगों की सहायता मिले या न मिले, तुम्हारे पास तो प्रेम हे न ? भगवान तो तुम्हारा सहारा है न? आगे बढ़ो, कोई तुम्हारी गति रोक नहीं पायेगा। लोग चाहे कुछ भी क्यों न सोचें, तुम कभी अपनी पवित्रता, नैतिकता तथा भगवत् प्रेम का आदर्श छोटा न करना...... जिसे ईश्वर से प्रेम है उसके लिए शठता से घबराने का कोई कारण नहीं है, पवित्रता ही पृथ्वी और स्वर्ग में सबसे महत् दिव्य शक्ति है।


गणमान्य, उच्च पदस्थ और धनवानों पर कोई भरोसा न रखो। उनके अन्दर कोई जीवन शक्ति नहीं है- एक तरह से उनको मृतकल्प कहा जा सकता है। भरोसा तुम्हारे ऊपर ही है - जो पद मर्यादाविहीन गरीब किन्तु विश्वास परायण है........ हमें धनी और बड़े लोगों की परवाह नहीं। हम लोग हृदयहीन कोरे बुद्धिवादी व्यक्तियों और उनके निस्तेज समाचार पत्र के प्रबन्धों की परवाह नहीं करते। विश्वास-विश्वास, सहानुभूति, अग्निमय विश्वास, ज्वलन्त सहानुभूति चाहिए। जय प्रभु! जय प्रभु! जीवन तुच्छ है, तुच्छ है मरण, भूख तुच्छ है, तुच्छ है शीत भी। प्रभु की जय हो। आगे बढ़ो, बढ़ते चलो, हम ऐसे ही आगे बढ़ेंगे - एक गिरेगा तो दूसरा उसका स्थान लेगा।


ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मेरे अन्दर जो आग जल रही है, वह तुम्हारे अन्दर भी जल उठे। तुम्हारे मन और मुख एक हों, तुम लोग अत्यन्त निष्कपट बनो, तुम लोग संसार के रण क्षेत्र में वीर गति को प्राप्त करो- विवेकानन्द की यही निरन्तर प्रार्थना है।


      मैं भी आज होली के इस अवसर पर यह कामना करता हूं कि हम अपने लक्ष्य को न भूलें और दुनियां की रंगीनियों में भी अपने पथ पर प्रबन्धन गुरू स्वामी विवेकानन्द के हृदय की आग से अभेप्रेरित होते हुए आगे बढ़ते रहें निरन्तर ........अविरल......... अनन्त तक

शनिवार, 19 मार्च 2011

होली की पावन वेला में, मित्रो तुम्हें मुबारक होली

होली के रंग, बजती हो चंग, 
दिल में हो उमंग- होगा संबन्धों का प्रबन्ध

                                                  जी हां

होली का उत्सव हमें संबन्धों के प्रबंधन का अवसर देता है.

संबन्धों में किन्ही कारणों वश जो सिथिलता आ गयी है,
उसे दूर कर रंगों के माध्यम से 
संबन्धों में उमंग भरने का अवसर देता है.

                                                            आप सभी 
अपने वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय व वैश्विक संबन्धों में रंग भरकर
 उन्हें और भी रंगीन बनाने में सफ़लता हासिल करें, 
होली के इस रंगीन उत्सव पर आप सभी को रंगील होली की रंगीन शुभकामनाएं.
डा.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
मोबाइल ९९९६३८८१६९
आओ कविता पढ़े
आओ कहानी पढ़ं

रविवार, 13 मार्च 2011

कार्य-प्राथमिकताओं का निर्धारण करें.

कार्य प्राथमिकता द्वारा समय प्रबंधन

समय प्रबंधन वर्तमान समय में प्रबंधन के क्षेत्र में सबसे अधिक प्रचलित तत्वों में से एक है. मानव संसाधन को मान्यता मिलने व दिन-प्रतिदिन महत्व बढ़ते जाने के कारण समय प्रबंधन का महत्व और भी अधिक हो गया है. 
           हम जब समय प्रबंधन की बात करते हैं, तब हमारा आशय  कार्य- प्रबंधन से ही होता है क्योंकि वास्तव में समय एक ऐसा संसाधन है जिसको बचाकर नहीं रखा जा सकता अर्थात इसे भण्डारित (store) नहीं किया जा सकता किन्तु इसे एक क्रिया में से बचाकर दूसरी में सदुपयोग किया जा सकता है. १९८९-९० में मथुरा में मेरे एक मित्र थे जिनका नाम याद नहीं, वे मजाक में कहा करते थे, यदि मुझे ईश्वर मिल जाय तो उससे समय की एजेन्सी मागूंगा और यदि एक बार समय की एजेन्सी मिल गई तो मैं विश्व का सबसे धनी आदमी बन जाऊंगा क्योंकि समय की मांग विश्व में सबसे अधिक है. मजाक में कही हुई बात भी एकदम सटीक है. जिस व्यक्ति से भी मिलो, वही समय की कमी का रोना रोता है, जबकि समय की उपलब्धता सभी के लिये बराबर है. सभी को दिन मैं २४ घण्टे ही उपलब्ध हैं, प्रबन्धन का कितना भी उपयोग करें इन्हें बढ़ाना संभव नहीं है.
         हां,  समयानुसार अपनी कार्य प्राथमिकताओं का निर्धारण कर कुशलता पूर्वक कार्य की पूर्णता सुनिश्चित कर सकते है. ध्यातव्य है जब हम कार्य- प्राथमिकताओं का निर्धारण करने बैठेंगे, मालुम चलेगा अनेक कार्य तो ऐसे हैं जिन्हें करने की आवश्यकता ही नहीं है या जिनको करना समय की बर्बादी मात्र है, अनेक कार्य ऐसे है जिन्हें दूसरों को सौंपा जा सकता है (Delegate). इसके बाद उन कार्यों की सूची बनाई जा सकती है जो अत्यन्त महत्वपूर्ण होने के कारण स्वयं ही किये जाने आवश्यक हैं. इसके बाद उनकी भी प्राथमिकता निर्धारित की जायं और प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य को संपादित किया जाय. 


इस प्रकार कार्यों का प्रबंधन कर हम अपने समय का सदुपयोग  कर सकते हैं, इसी को समय प्रबंधन कहा जाता है. कार्य सौंपते (डेलीगेट करते) समय यह ध्यान रखना आवश्यक है जो चार काम कर सकता है वह पांचवे को भी पूर्ण कर लेगा किन्तु जो एक भी कार्य को पूर्ण नहीं करता, वह कोई काम नहीं कर सकता क्योंकि वह कार्य करना ही नहीं चाहता; उसे कार्य सौंपने से पूर्व अभिप्रेरेत कर कार्य-प्राथमिकता निर्धारित कर कार्य करने को तैयार करके ही कार्य सौंपा जाना चाहिये अन्यथा कार्य पूर्ण नहीं होगा.
         कार्य-प्रबन्धन केवल कार्यकारी अधिकारियों के लिये ही नहीं, स्टाफ़ अधिकारियों व सामान्य कर्मचारियों सहित प्रत्येक व्यक्ति के लिये महत्वपूर्ण है.  

गुरुवार, 10 मार्च 2011

"कोई निर्णय न लेने का निर्णय भी एक निर्णय होता है."

सरकारी जांच प्रणाली भ्रष्टाचार प्रबंधन
               -एक उदाहरण

वर्तमान में मीडिया में भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया हुआ है. सरकार के तीनों अंगों- विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका में भ्रष्टाचार ही सर्वाधिक चर्चा का विषय बना हुआ है. मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, इसे जोर-शोर से उठा रहा है. सत्ता पक्ष यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ गंभीर व प्रभावी कार्यवाही हो रही है, जबकि विपक्ष की पार्टियां सत्ता पक्ष पर भ्रष्टाचार में संलग्न होने व भ्रष्टाचारियों का बचाव करने का आरोप लगा रही हैं. यहां ध्यातव्य है कि कोई भी पार्टी अपने आप को भ्रष्टाचार से मुक्त रहने का दावा नहीं कर रही और न ही कोई पार्टी सत्ता में आने पर भ्रष्टाचार को समाप्त करने का संकल्प लेकर कोई योजना प्रस्तुत कर रही है. अधिकांश पार्टियां केवल भ्रष्टाचार के लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनने हेतु भविष्य के लिये मत-प्रबंधन करने का प्रयत्न कर रही हैं.
                     देखने की बात है, भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने आने पर पहले तो सरकार उसको असत्य बताती है, असत्य बताते-बताते कम से कम इतना समय तो अवश्य निकाल देती है कि आरोपी नेता या अधिकारी अपने पद पर रहते हुए अपने खिलाफ़ उपलब्ध साक्ष्यों को नष्ट कर सके. विपक्ष, मीडिया या न्यायपालिका के हस्तक्षेप से जब जांच करवानी ही पड़े तो जांच की अनुमति तब दी जाय, जब जांच कमेटी को कोई साक्ष्य मिलना संभव ही न रह जाय. आरोपी पर आरोप भी सरकारी एजेन्सिओं को ही लगाने होते हैं. सरकार की इच्छा न होने के कारण वे इस कार्य को सही तरीके से नहीं करतीं. ये बात पिछ्ले दिनो न्यायालयों द्वारा की गयीं टिप्पणियों से स्पष्ट हो जाती है.
            इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रबंधन के विद्यार्थी को यह समझना भी आवश्यक है कि प्रबंधन का प्रयोग केवल सकारात्मक उद्देश्यों के लिये ही नहीं नकारात्मक उद्देश्यों के लिये भी किया जा सकता है. निर्णय को लटकाना लापरवाही ही नहीं सोची समझी योजना भी हो सकती है. एक शैक्षिक प्रशासक से मैंने स्पष्ट सुना है व उन्हें प्रयोग करते हुए देखा भी है कि "कोई निर्णय न लेने का निर्णय भी एक निर्णय होता है." प्रशासन के क्षेत्र में इसका प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जाता है किन्तु प्रबन्धन के क्षेत्र में इसका प्रयोग असफ़लता की ओर ही ले जायेगा. अतः प्रबंधन के विद्यार्थी को समझने की आवश्यकता है कि प्रबन्धन का प्रयोग सकारात्मक उद्देश्यों की कुशलता पूर्वक प्राप्ति के लिये ही किया जाना चाहिये तथा सावधन भी रहना चाहिये कि समाज के कथित शुभचिन्तक स्वार्थ-साधना के लिये प्रबंधन व प्रबंधकों का दुरुपयोग भी कर सकते हैं. उससे न केवल स्वयं बचना है, वरन उन्हें निष्प्रभावी भी करना है.