शनिवार, 15 मार्च 2014
शुक्रवार, 7 मार्च 2014
सफलताः
सफलता शब्द का निमार्ण ‘स’ उपसर्ग और ‘ता’ प्रत्यय के ‘फल’ के साथ योग से हुआ है, जिसका अर्थ है- अपने प्रयासों का परिणाम प्राप्त करना अर्थात किए गये प्रयासों का परिणाम के रूप में फलीभूत होना। अभिधा शब्द-शक्ति के अनुसार सफल का अर्थ फल लगने से होता है किन्तु इसका अधिकांशतः लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। लाक्षणिक अर्थ में सफलता का अर्थ- ‘किसी कर्म का तदनुकूल परिणाम प्राप्त होने से है।’
इस प्रकार सफलता कर्म के पश्चात् आती है। सफलता से पूर्व कर्म की उपस्थिति आवश्यक है। यदि किसी व्यक्ति को बिना कर्म किए कोई वस्तु अनायास प्राप्त हो जाती है तो उसे सफलता नहीं कहा जा सकता। वह व्यक्ति सफलता के आनन्द का अधिकारी भी नहीं है। यदि वह व्यक्ति अनायास प्राप्त होने वाली वस्तु को प्राप्त करने का जश्न मनाता है, तो वह मुफ्तखोर है। मुफ्तखोरी न तो व्यक्ति के विकास के लिए उपयोगी है और न समाज और राष्ट्र के विकास के लिए। जब कर्म ही नहीं किया गया तो सफलता किस बात की। पेड़ पर ही फल लगेगा, तभी वह सफल होगा। बिना बीज डाले, सिंचाई किए, पुष्पित-पल्लवित हुए फल प्राप्त नहीं हो सकता। प्राप्त होना भी नहीं चाहिए। कहने का आशय है अनायास कुछ प्राप्त हो जाना सफलता नहीं है।
सफलता तो तब है, जब हमने कोई लक्ष्य निर्धारित किया हो, परिस्थितियों का अध्ययन किया हो, पूर्वानुमान लगाया हो, उसके लिए योजना बनाई हो, उसके लिए संसाधन जुटाये हों, उन संसाधनों का तकनीकी के साथ कुशलतापूर्वक प्रयोग किया हो। इस प्रकार मानवीय व भौतिक संसाधनों का प्रबंधन करने के साथ किए गये प्रयासों के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाला संतुष्टिदायक परिणाम ही उस कार्य का फल है। कार्य का फल प्राप्त होना ही तो सफलता है।
रविवार, 2 मार्च 2014
सफ़लता का राज
सफलता को जानें-स्वीकार करें
सफलता सर्वप्रिय शब्द है। सभी व्यक्ति सफल होना चाहते हैं। एक छोटा बच्चा भी अपने प्रयासों में सफलता पाकर फूला नहीं समाता। आप कभी बच्चों को खेलते हुए देखिए, खेल में सफल होकर बच्चे कितने आनन्द का अनुभव करते हैं। बच्चा अपने माँ-बाप या अपने अभिभावकों से कोई बात मनवाना चाहता हैं और उसके प्रयास के फलस्वरूप हम उसकी बात मान लेते हैं; अपने प्रयासों के सफल होने पर वह कितना खुश होता है। कभी अनुभूति करके तो देखिए।
इसी प्रकार सफलता हमें भी अच्छी लगती हैं, किन्तु मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की। हम जैसे-जैसे बड़ें होते हैं, अपने प्रयासों में प्रबंधन को नजरअन्दाज करने लगते हैं। हम जैसे-जैसे बड़े होते हैं, यह भूल जाते हैं कि हम जो भी प्रयास सुप्रबन्धित ढंग से करते हैं वे उनका परिणाम सुफल लेकर आता है। हम सफलता की कामना करते हैं और शायद सफल होते भी हैं, किन्तु सफलता की अवधारणा को न समझने के कारण, सफलता का आनन्द नहीं ले पाते। हमें जीवन में प्रतिदिन सफलताएं मिलती हैं। आवश्यकता है उन्हें समझने और उनका यथोचित जश्न मनाने की।
सफलता को समझे बिना हम उसका आनन्द नहीं उठा सकते यह ठीक उसी प्रकार है कि औषधि आपके पास है किन्तु आप उसके महत्व व उपयोग को न जानने के कारण अस्वस्थ हैं; जैसे ही आपको पता चलता है कि अरे! यही तो औषधि है जिसके सेवन से आरोग्य प्राप्त कर में आनन्द का उपभोग कर सकता हूँ। आप आनन्द के हकदार हो जाते हैं अर्थात पहले से ही उपलब्ध संसाधनों से आप आनन्द का उपभोग करने लगते हैं। यही बात सफलता के आनन्द का उपभोग करने के लिए भी है। सफलता सुप्रबंधन के साथ किए गये आपके प्रयासों का एक अनिवार्य परिणाम होता है और सफलता आनन्द प्राप्त करने का संसाधन है। दूसरे शब्दों में हम कहें सफलता ही तो व्यक्ति को आनन्द की अनुभूति कराने का जादू है, आओ हम इस जादू का परिचय प्राप्त करें।
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