सहयोगियों की खोज
वास्तव में इसके लिए हमें काम के साथ ही लोगों को भी खोजना होगा कि कौन किसी कार्य को करने में हमारा सहयोग कर सकता है। वास्तव में कार्य सौंपना समय पर नियंत्रण की सबसे अच्छी तकनीक है। कार्य सौंपने की तकनीक में कुशलता हासिल कर हम अपने समय में वृद्धि करते हैं। एक प्रकार से दूसरों के समय का भी उपयोग कर सकने में कुशलता हासिल कर हम अपने समय में विस्तार कर लेते हैं। पीटर ड्रकर के अनुसार, ‘जो काम सबसे कम तनख्वाह वाला व्यक्ति कर सकता हो, वह काम हमेशा उसी को करने दें।’
पीटर ड्रकर ने आर्थिक आधार पर काम सौंपने की बात की है, ऐसा आर्थिक संगठनों में होता है किंतु हम व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में भी इसे लागू कर सकते हैं। जिस कार्य को आपसे कम कुशल आपका सहयोगी कर सकता है, तो वह काम आप उसको सौंप दें; और अपने आपको अधिक कुशलता की माँग वाले कार्यों में लगाएँ। इस प्रकार आप अपने ही समय का नहीं, वरन् अपने सहयोगियों के समय का भी उपयोग कर सकने में सफल होंगे और आप कभी भी हड़बड़ी में नहीं रहेंगे। समय के सन्दर्भ में हड़बड़ी का अहसास न होना ही, समय के सन्दर्भ में स्वयं के प्रबंधन का सुखद परिणाम है।
वुडरो विल्सन ने स्पष्ट रूप से लिखा है, ‘मैं सिर्फ उतने ही दिमाग का इस्तेमाल नहीं करता, जितना मेरे पास है, बल्कि वह सब भी, जो मैं उधार ले सकता हूँ।’’ निर्णयन प्रक्रिया के सन्दर्भ में भी एक कहावत है कि एक व्यक्ति के निर्णय से पाँच लोगों का निर्णय सदैव श्रेष्ठ होता है। निःसन्देह सम्बन्धित व्यक्तियों से विचार-विमर्श की प्रक्रिया को पूर्ण करके लिए हुए निर्णय अच्छे होने की संभावना अधिक होती है। अपने सहयोगियों से सहयोग लेने के लिए आवश्यक है कि अपनी प्राथमिकताओं और योजनाओं को अपने तक सीमित न रखें, अपने सहयोगियों को विश्वास में लेकर उन्हें सब कुछ समझा दें और उनसे पूर्ण सहयोग लेकर अपनी योजनाओं को सफल बनाकर उनके समय को भी अपने समय में जोड़ने में सफल हों। इस प्रकार आपके जीवन की प्रभावशीलता में वृद्धि आपके सहयोगियों के समय से होगी। यह आपके जीवन का विस्तार है। आपके फैसलों को दूसरे लागू करते हैं तो सफलता तो आपको ही मिली ना।
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, ‘आपके फैसले आपके भविष्य के परिचायक हैं।’ अतः हमें निर्णय करते समय निर्णयन प्रक्रिया का पालन भी करना चाहिए। निर्णय लेते समय ही उसका नियोजन करके यह निर्धारण कर लेना चाहिए कि उसे कब और किस-किस के सहयोग से पूरा किया जायेगा। केवल नियोजन कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता। नियोजन के साथ ही उसे लागू करने का महत्त्वपूर्ण कार्य शुरू हो जाता है। नियोजन को लागू करने के लिए हमें कम या अधिक मात्रा में सांगठनिक गतिविधियों को भी अपनाना पड़ता है। हमें नियोजन का क्रियान्वयन करने के लिए छोटे या बड़े संगठन की आवश्यकता पड़ती ही है। संगठन की स्थापना के बाद हमें संगठन के अनुरूप कर्मचारीकरण अर्थात् सहयोगियों को खोजना होता है। सहयोगी खोजने के बाद अपने सपनों का साझीदार बनाकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सहयोगियों को अपने विश्वास में लेना होगा। उन्हें अपनी अपेक्षाएँ और उन अपेक्षाओं को पूरा करने की प्रक्रिया से भी अवगत कराना होगा। आवश्यकता पड़ने पर उन्हें संक्षिप्त प्रशिक्षण देने की भी व्यवस्था की जा सकती है।
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