सोमवार, 31 दिसंबर 2018

समय प्रबंधन-3

व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के समय को आयु के नाम से जाना जाता है। देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप आयु विभिन्न होती हैं और अनिश्चित होती हैं। आयु के बारे में केवल अनुमान लगाये जा सकते हैं किंतु किसी व्यक्ति की कितनी आयु होगी, इसका पता लगाने का कोई विश्वसनीय तरीका अभी ज्ञात नहीं है। किसी व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक जो समय उपलब्ध होता है, उसी समय को आयु के नाम से जाना जाता है। अर्थात समय ही आयु है। जिस प्रकार किसी के धन को मापा जा सकता है, उसी प्रकार उसकी उम्र की गणना तो की जा सकती है किंतु उसकी आयु कितनी होगी? इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। क्यों कि किस पल मृत्यु हो जाय किसी को नहीं पता। गंभीर से गंभीरतम् बीमारियों के मरीज वर्षो तक बिस्तर पर पड़े हुए जिन्दा रहते हैं। वर्षो तक कोमा में पड़े हुए भी जिन्दा रहने के आकड़े मिल जायेंगे। 
                  इस प्रकार आयु की दीर्घता मनुष्य की प्रभावशीलता का द्योतक नहीं होती। स्वामी विवेकानन्द केवल 39 वर्ष की आयु प्राप्त किए किंतु 39 वर्ष में ही उन्हांेने विश्व पर वह छाप छोड़ी कि आज भी हम उन से प्रेरणा ग्रहण करते हैं। शदियों तक हम स्वामी जी के काम से प्रेरित होते रहेंगे। कहने का आशय यह है कि कोई व्यक्ति कितने वर्ष तक जीवित रहा, यह उस व्यक्ति या उसके परिवार के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। किंतु समाज के लिए उसके उपयोगी जीवन का ही महत्व होता है। आपको ऐसे अनेक उदाहरण मिल जायेंगे जब परिवार के सदस्य ही यह प्रतीक्षा करने लगते हैं कि उनका वह संबंधी मर क्यों नहीं रहा है? आसपास के लोगों में भी चर्चा मिल सकती है कि अब तो अच्छा है कि ईश्वर उसे ऊपर ही उठा ले। यही नहीं स्वयं व्यक्ति भी अपनी मृत्यु की कामना करने लगता है। महाभारत में भीष्म के प्रसंग को देखा जा सकता है, उनकी मृत्यु नहीं हो रही थी, जिसे इच्छा मृत्यु का वरदान कहा जाता है। अतः भीष्म ने स्वयं मृत्यु का वरण किया। इसे आत्महत्या कहें तो भी शायद गलत न होगा? अपनी उपयोगिता समाप्त हो जाने की अनुभूति के बाद पांडवों का हिमालय गमन और श्री राम द्वारा सरयू में जल समाधि लेने की कथा ही नहीं, एक निश्चित समय बाद वानप्रस्थ ओर संन्यास की प्रथा जीवन में समय प्रबंधन के उदाहरण माने जाते हैं। जैन मत में तो अन्न-जल त्याग करके अपने शरीर को त्याग देना बहुत बड़ा महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है।
                    वर्तमान समय में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिसमें लोगों की मृत्यु की प्रतीक्षा की जाती है या व्यक्ति स्वयं अपनी मृत्यु चाहता है। आत्महत्या भी अपने आप को अनुपयोगी समझ लेने की अनुभूति मात्र ही होती है। 

रविवार, 30 दिसंबर 2018

समय प्रबंधन-2

वर्तमान समय में हम किसी से बातचीत में सामान्यतः पहला या दूसरा प्रश्न यह करते हैं, ‘और भाई! क्या हो रहा है?’ इस प्रश्न का उत्तर भी बड़ा ही सामान्य होता है, ‘कुछ नहीं ऐसे ही टाइमपास हो रहा है।’ यह अधिकांश व्यक्तियों के बीच के वार्तालाप का भाग रहता है। यही यह निर्धारित करता है कि व्यक्ति समय की बर्बादी कर रहा है या समय का निवेश कर रहा है। जब व्यक्ति यह कहता है कि वह कुछ नहीं कर  रहा है। तब यह स्पष्ट है कि वह सबसे अमूल्य दुर्लभ संसाधन समय को बर्बाद कर रहा है। क्योंकि समय का संचय तो संभव नहीं है। यदि आप समय का सदुपयोग नहीं कर रहे हो तो उसे बर्बाद ही कर रहे हो। इसके अतिरिक्त समय के सन्दर्भ में अन्य कोई विकल्प तो उपलब्ध ही नहीं है। बैंजेमिन फ्रेंकलिन के अनुसार, ‘सामान्य व्यक्ति समय को काटने के बारे में सोचता है और महान व्यक्ति सोचते हैं समय का उपयोग करने के बारे में।‘
                आओ हम समय प्रबंधन अर्थात् टाइम मैनेजमेण्ट शब्द के शाब्दिक अर्थ पर विचार करते हुए आगे बढ़ें। समय प्रबंधन समय और प्रबंधन दो शब्दों के मेल से बना है। इसको पूरी तरह समझने के लिए इन दोनों ही शब्दों पर अलग-अलग विचार कर लेना अधिक उपयोगी रहेगा।
                  समय बड़ा ही चर्चित शब्द है। विकीपीडिया के अनुसार, ‘समय एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानान्तरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहा जाता है।’
                   हमारी समस्त गतिविधियाँ समय के बारे में चर्चा करते हुए ही बीतती हैं? कई बार हम कहते हैं बड़ा मुश्किल समय है, खैर कोई बात नहीं, धैर्य रखो ये भी निकल जायेगा। कोई कहता है, उसके तो दिन फिर गये। कोई-कोई तो जमाना खराब है कहकर वर्तमान को ही कोसने लगता है। विभिन्न समयों में समय के विभाजन के भी अलग-अलग तरीके रहे है। समय को क्षण, घड़ी, पल, सेकिण्ड, मिनट, घण्टे आदि में ही नहीं, इसे पहरों में भी बांटा जाता रहा है। समय की अनेक इकाई प्रचलित हैं। भाषा अध्यापक समय को भूत, वर्तमान व भविष्य काल कहकर पढ़ाते हैं। सामान्यतः अपने कर्म की कमी को भी समय के गले मढ़ दिया जाता है। बुरा समय व अच्छा समय कहकर अपनी कठिनाइयों को भी समय से जोड़ दिया जाता है। कुल मिलाकर समय की बात सभी करते हैं किंतु समय को बांधना किसी के वश की बात नहीं है। अब इतने महत्वपूर्ण तत्व की सर्वस्वीकृत परिभाषा देना भी अपने वश की बात नहीं है। समय को आदि और अन्त में नहीं बांधा जा सकता तो इसको परिभाषा में कौन बांध सकता है?
                    समय की परिभाषा करना इस पुस्तक के लिए आवश्यक भी नहीं है। यहाँ पर समय को एक संसाधन के रूप में देख सकते हैं। समय को व्यक्ति और वस्तु दोनों के सन्दर्भ में देखा जा सकता है। व्यक्ति और वस्तु दोनों का ही उपयोगी जीवन काल होता है। उपयोगी जीवन काल के पश्चात् वस्तु का निस्तारण कर दिया जाता है। व्यक्ति के जीवन काल के बाद व्यक्ति के शरीर का भी विभिन्न समुदायों में विभिन्न प्रकार से निस्तारण किया जाता है जिस सम्मानित शब्द अन्तिम संस्कार के नाम से जाना जाता है।

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

समय प्रबन्धन-१

मानव संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, ऐसा माना जाता है। व्यक्ति ने तुलनात्मक रूप से अन्य समस्त प्राणियों की अपेक्षा अपने बौद्धिक स्तर का विकास करके ऐसा सिद्ध भी किया है। मानव अपने बौद्धिक विकास के बल पर प्रकृति के अन्य उपादानों का न केवल कुशलतम उपयोग करने के प्रयत्न करता है, वरन् वह प्रकृति के अन्य उपादानों को नियन्त्रित करने के प्रयत्न भी करता है। अपने इन्हीं प्रयत्नों के क्रम में वह ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रहों पर भी दस्तक दे रहा है। इन सभी प्रयत्नों व उपलब्धियों के कारण ही सर्वश्रेष्ठ होने का हकदार कहा जा सकता है।
     हम मानव का कितना भी बखान कर लें। हमने कितना भी तकनीकी विकास किया हो, किंतु प्रकृति का एक संसाधन ऐसा है जिस पर नियंत्रण की बात तो दूर उसको संग्रह करने की क्षमता भी मानव में नहीं है और न ही इस प्रकार की कल्पना है कि वह भविष्य में भी समय पर नियंत्रण या समय को संरक्षित करने की क्षमता प्राप्त कर पायेगा। वास्तव में समय ही मानव को उपलब्ध सबसे मूल्यवान संसाधन है। मूल्यवान कहना भी संभवतः उपयुक्त न होगा। इसे अमूल्य कहना ही उपयुक्त है, क्योंकि इसके मूल्य का आकलन संभव ही नहीं है।
            वास्तव में समय ही जीवन है। मानव आयु का मतलब ही मानव को अपने जीवन में मिले हुए समय से है। मानव को कितना समय उपलब्ध है, वही उस व्यक्ति का जीवन है। वह अपने समय का कितना कुशलतम् प्रयोग करता है? इस पर उसके जीवन की सफलता निर्भर करती है। हम सामान्यतः सामाजिक उपयोगिता की दृष्टि से विचार करें तो मानव द्वारा समय की उपयोगिता के द्वारा ही उसे परिणाम मिलते हैं और समय की उपयोगिता के आधार पर ही व्यक्ति का मूल्यांकन होता है।

गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

समय प्रबन्धन

हम अपने आप से प्रश्न करें, क्या समय का प्रबंधन संभव है? निःसन्देह इसका एक ही उत्तर आयेगा,  ‘नहीं।’ जी हाँ! यही सत्य है। समय का प्रबंधन कोई नहीं कर सकता। न तो समय का संचय किया जा सकता है और न ही उसे प्रबंधित किया जा सकता है। हाँ, हम अपने पास उपलब्ध समय को या तो बर्बाद कर सकते हैं, जिसे हम टाइम पास करना बोलते हैं या समय का उपयोग करके उसका निवेश कर सकते हैं। निःसन्देह हम समय का प्रबंधन नहीं कर सकते किंतु हम समय के सन्दर्भ में अपनी गतिविधों अर्थात किए जाने वाले कार्यो का प्रबंधन कर सकते हैं। अपने पास उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई अर्थात प्रत्येक क्षण का उपयोग करके और अपने कर्तव्यों को उचित समय का आबंटन करके हम समय के साथ अपने काम काज का प्रबंधन कर सकते हैं। सामान्य जन इसी को समय प्रबंधन अर्थात टाइम मैनेजमेंट कहते हैं।