रविवार, 24 अप्रैल 2022

अपने लिए जिएं-१

 समाज सेवा और परोपकार के नाम पर घपलों की भरमार करने वाले महापुरूष परोपकारी होने और दूसरों के लिए जीने का दंभ भरते हैं। अपनी आत्मा की मोक्ष के लिए पूरी दुनिया को उपेक्षित करके तपस्या करने में तल्लीनता का दंभ भरने वाले स्वार्थी व्यक्ति अपने आपको महर्षि कहकर गौरवान्वित होने का प्रयत्न करते हैं। रंगे हुए कपड़े पहनकर बिना परिश्रम के संसार के सुख भोगने वाले मुफ्तखोर अपने आपको साधु कहलाने का दंभ भरते हैं। करोड़ों रूपयों में खेलने वाले अपने को त्यागी का नाम देते हैं। 

धार्मिक आस्था का सहारा लेकर भोली भाली युवतियों को फंसाकर उनके साथ रासलीला रचाने वाले अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संत कहलाते हैं। पकड़ने जाने पर भी जेलों में रहकर भी नहीं शर्माते हैं। उनके लाखों अंधभक्त उसके बावजूद उनके अनुयायी बने रहते हैं। अपने पेशे के साथ धोखाधड़ी करके धन कमाने के लिए मानवता को कलंकित करने वाले महापुरूष भी अपने को जनसेवक घोषित करते हैं। गरीब जनता से टेक्स के नाम पर धन इकट्ठा करके उसका दुरुपयोग करने वाले तथाकथित नेता अपने आपको जन सेवक ही नहीं, जननायक के रूप में प्रस्तुत करते हैं। 

अपने शरीर का प्रदर्शन ही नहीं शरीर को सीढ़ियों की तरह प्रयोग करके किसी मुकाम पर पहुँचने वाली महिलाएं विदुषी कहलाती हैं और हमारी नई पीढ़ी की लड़कियों के लिए नायिका बन जाती हैं। पर्दे के पीछे पुरुषों को फसाकर मस्ती करने वाली तथाकथित भद्र महिलाएं सती सावित्री की कहानी सुनाकर भोली भाली युवतियों को मूर्ख बनाती हैं। प्रेमी संग मिलकर अपने ही पति की हत्या का षड्यंत्र रचने वाली स्त्रियाँ करवा चौथ का व्रत रखकर व्रत को कलंकित करती हैं। पैसे के लिए पारिवारिक संबन्धों को दाव पर लगाया जाता है और प्रेम के नाम पर ब्लेकमेल करते हुए धन ऐंठकर अपने आपको महान सिद्ध करने के प्रयत्न भी किए जाते हैं। आश्रमों और अनाथालयों के नाम पर देह व्यापार चलाने वाली महिलाएं और पुरुष समाज सेवा के नाम पर सरकारों व समाज को लूटते हैं। 

उपरोक्त कुछ उदाहरण मात्र हैं, जो समाज सेवा, जनसेवा, परोपकार या फिर ईश्वर के नाम पर किए जाते हैं। मंदिरों, मस्जिदों, चर्चो व अन्य पूजा स्थलों में दिनों दिन भीड़ बढ़ते हुए भी भ्रष्टाचार और बेईमानी क्यों बढ़ रही हैं। इन पूजा स्थलों में जाने वाले तथाकथित आस्तिक लोग अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सदाचार को अपना लें तो कोई कारण नहीं कि भ्रष्टाचार, बेईमानी और सामूहिक दुष्कर्म जैसे कृत्य इस प्रकार बढ़ें। अतः आवश्यकता इस बात की है कि जनसेवा, समाजसेवा और धार्मिक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लगाते हुए अपने आपको महानता के चोगे से मुक्त कर अपने लिए जीना प्रारंभ करें।

हमें जनसेवा करने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि अपने कर्तव्यों का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करते हुए अपनी आजीविका कमाए और अपनी कमाई से ही अपने खर्चों का निर्वहन करें। हमें जनसेवा के नाम पर होने वाले चंदों की लूट से आश्रम ऐयाशी करने के स्थान पर अपने परिश्रम से कमाई रोटी खाकर अपने लिए काम करने और अपने लिए जीने की आवश्यकता है। हमें निपट स्वार्थी बनकर केवल अपने लिए, अपने परिवार के लिए काम करके आजीविका कमाने की आवश्यकता है। हमें जनसेवा, समाजसेवा और धर्म सेवा को तिलांजलि देकर अपने लिए जीकर स्वार्थी बनने की आवश्यकता है। हमें समाजसेवा के नाम पर, धर्म के नाम पर और राजनीति के नाम पर मुफ्तखोरी को रोककर सभी स्वार्थी बनकर स्वयं के लिए जीने की आवश्यकता है। हमें आवश्यकता है कि हम मुफ्तखोरी की बुराई से बचकर अपने लिए जिएं किसी को दान न करें किंतु ईमानदारी से अपने लिए स्वयं कमाएं। दूसरों के लिए नहीं, समाज के लिए नहीं, ईश्वर के लिए नहीं अपने लिए जिएं। ईमानदारी पूर्वक अपने लिए कमाएं और स्वयं कमाकर खाएं और संपत्ति का सृजन करें। आओ हम संकल्प करें कि हम अपने लिए जिएंगे अपने परिश्रम के द्वारा अपने स्वार्थो को पूरा करेंगे। 


शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

संसाधनों के कुशलतम प्रयोग और प्रभावशाली तंत्र की आशा

नवोदय विद्यालयों के संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की

विद्यालय समेकन परिकल्पना
                        
अर्थशास्त्र में चयन के सि़द्धांत का आधार होता है कि संसाधन सीमित होते हैं और उनका वैकल्पिक प्रयोग किया जा सकता है। सीमित संसाधनों का कुशलतम प्रयोग करके अधिकतम और प्रभावी परिणामों की प्राप्ति प्रबंधन के द्वारा ही संभव है। उसी प्रबंधन का नियोजन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुच्छेद 7 के स्कूल कॉम्प्लेक्स/कलस्टर के विचार में दिखाई देता है।
शिक्षा के क्षेत्र में ससाधनों की सदैव ही कमी देखी गई हैं। संसाधनों की कमी के साथ ही संसाधनों का अनुपयोगी पड़े रहना भी एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर आया है। यह मानवीय व भौतिक दोनों प्रकार के संसाधनों में देखा जा रहा है। एक तरफ वि़द्यालयों में बड़ी मात्रा में अनुपयोगी भूमि व भवन देखे जा सकते हैं तो दूसरी और विद्यार्थियों के पास एक छत भी उपलब्ध नहीं होती। एक तरफ अध्यापक नियुक्त हैं किंतु विद्यार्थी नहीं हैं, तो दूसरी तरफ विद्यार्थियों हैं किंतु अध्यापक नहीं हैं। इस समस्या का समाधान विद्यालय समेकन करते हुए विद्यालय परिसर की स्थापना या शिक्षा संकुल बनाने की परिकल्पना में है।
जब आंगनवाड़ी, प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय, उच्च विद्यालय, उच्च माध्यमिक विद्यालय व व्यावसायिक विद्यालय एक ही परिसर में होंगे तो संसाधनों की सहभागिता के साथ ही संसाधनों का कुशलतम प्रयोग हो सकेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विद्यार्थियों के लिए विषयों की विविधता उपलब्ध करवाने के विचार को लिया गया है। विद्यार्थियों की रूचि के अनुसार विषय ही नहीं शैक्षणिक विषयों के साथ कौशल को बढ़ाने के लिए स्किल सब्जेक्टस देने पर जोर दिया गया है। इस विचार का क्रियान्वयन विद्यालय परिसरों के माध्यम से ही हो सकता है। एक ही परिसर में विद्यालयों का समूह होने पर वे न केवल अपने भौतिक संसाधनों में सहभागिता कर सकेंगे, वरन मानवीय संसाधनों का भी कुशलतम प्रयोग हो सकेगा।
विद्यालयों के समेकन या शिक्षा परिसरों का विचार जितना सुंदर प्रतीत होता है। उतना ही कठिन भी है। शिक्षा के सार्वभौमीकरण के विचार को लेकर चलने के कारण हम प्रत्येक बच्चे के निकट विद्यालय उपलब्ध करवाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में विद्यालयों का समूहीकरण बड़े पैमाने पर नहीं किया जा सकता। हम आंगनवाड़ी और प्राथमिक विद्यालय को उच्च माध्यमिक विद्यालय के परिसर में ले जायेंगे तो वह बच्चों से दूर हो जायेंगे।इसी समस्या का आभास होने के कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में ‘जहाँ तक संभव हो’ भाव का प्रयोग किया है।
जवाहर नवोदय विद्यालय इस विचार को मूर्त रूप देने में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। नवोदय विद्यालयों की स्थापना मॉडल स्कूलों के रूप में हुई थी। ये संपूर्ण जिले में गतिनिर्धारक संस्था के रूप में कार्य करने के लिए एक प्रयास है। नवोदय विद्यालय प्रत्येक जिले खोलने के प्रयास रहते हैं। नवोदय विद्यालयों के पास सामान्यतः आधुनिकतम भौतिक संसाधन उपलब्ध हैं। जवाहर नवोदय विद्यालयों के आसपास स्थित विद्यालयों को नवोदय विद्यालय परिसर में स्थापित करके एक आदर्श विद्यालय परिसर की परिकल्पना को प्रस्तुत किया जा सकता है। नवोदय विद्यालय में उपलब्ध भौतिक संसाधनों का कुशलतम प्रयोग भी हो सकेगा। 

जवाहर नवोदय विद्यालयों के पास बड़े-बड़े क्रीड़ास्थल हैं। आधुनिकतम व स्मार्ट प्रयोगशालाएं हैं, समृद्ध पुस्तकालय हैं, कम्प्यूटर और स्मार्ट प्रयोगशालाओं की उपलब्धता है। इंटरनेट व वाई-फाई की सुविधा उपलब्ध है। विद्यालय परिसर की स्थापन से इन सुविधाओं का प्रयोग इन सुविधाओं से वंचित विद्यालय भी कर सकेंगे। यही नहीं अन्य विद्यालयों की नवोदय परिसर में स्थापना होने से विद्यालय प्रशासन की क्षमताओं का भी कुशलतम प्रयोग हो सकेगा। जवाहर नवोदय विद्यालय स्वायत्तशासी संस्थाएं हैं। अतः इन परिसरों में स्थापित संस्थाओं को सम्मिलित करते हुए सहयोगी और सहभागी स्वायत्त संस्थाओं का समूह विकसित होगा, जो संपूर्ण देश की शिक्षा प्रणाली के सामने एक आदर्श स्थापित करके देश की शिक्षा प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।