विपरीत लिंगी आकर्षण प्राकृतिक है, अपराध नहीं
किशोरावस्था में परिवार व विद्यालय सबसे अधिक समय किशोर-किशोरियों को आपसी मिलने-जुलने से रोकने के प्रयासों पर लगाते हैं। इसे ऐसे प्रस्तुत किया जाता है मानों लड़के-लड़कियों का आपस में बातचीत करना अपराध हो। किशोर-किशोरी विपरीत लिंगी आकर्षण से प्रभावित होते है, इस आकर्षण में व्यवधान उत्पन्न करने या बाधक बनने की अपेक्षा शिक्षक को चाहिए कि वह किशोर-किशोरियों को प्रेम, विश्वास, सहयोग व सम्मानपूर्ण व्यवहार करना सिखाये। उन्हें अलग-अलग करके उनका सन्तुलित विकास सम्भव नहीं। शिक्षक की जरासी लापरवाही उनके जीवन को बर्बाद कर सकती है। उन्हें स्पष्ट रूप से समझाना चाहिए कि प्रेम का अर्थ शारीरिक सम्बन्ध नहीं है।
वास्तव में शारीरिक सम्बन्धों व प्रेम में दूर का भी सम्बन्ध नहीं हैं। सामान्य शिष्टाचार व एक-दूसरे के प्रति सम्मान व शिष्ट आचरण की सीख विद्यार्थी जीवन में नहीं मिलेगी तो कब मिलेगी? किशोर-किशोरियों में सहयोग, समन्वय व प्रेमपूर्ण व्यवहार व्यक्ति, परिवार व समाज सभी के विकास के लिए आवश्यक है। किशोर-किशोरियों को प्रत्येक जानकारी स्पष्ट रूप से देनी चाहिए, क्योंकि रोक-टोक छिपाव को जन्म देती है और छिपाव समस्त अवगुणों का पोषक है। अतः किशोर-किशोरियों को सलाह सुझाव व मार्गदर्शन देकर निर्णय करने में समर्थ बनाना चाहिए, निर्णय थोपने की प्रवृत्ति उनके विकास में बाधक होती है। यह कार्य अकेले शिक्षक के बस का भी नहीं, परिवार व समाज प्रत्येक स्तर पर समयोजन करते हुए ही किया जा सकता है।