गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

धारा के विपरीत तैरना साहस का काम हो सकता है, किन्तु बुद्धिमत्ता ध्येय की ओर तैरने में है

धारा के विपरीत तैरना साहस का काम हो सकता है, किन्तु बुद्धिमत्ता ध्येय की ओर तैरने में है



डॉ. विजय अग्रवाल के अनुसार, ‘धारा के विपरीत तैरना बहादुरी की बात तो हो सकती है, लेकिन समझदारी की नहीं।’ जी, हाँ! धारा के विपरीत तैरना साहस का काम अवश्य हो सकता है किन्तु विवेकवान व्यक्ति धारा के विपरीत नहीं, अपने लक्ष्य के अनुकूल तैरता है। यदि धारा के विपरीत तैरना आपको आपके लक्ष्य से दूर ले जाता है तो ऐसी स्थिति में केवल अपना साहस सिद्ध करने के लिए विपरीत तैरना बुद्धिमत्ता तो नहीं होगी। 
     अतः जो निर्णय मैंने सामाजिक बुराई के खिलाफ लिया था, उसके कारण मैं समाज से ही कट गया; जबकि यह भी विवाद का विषय है कि दहेज सामाजिक बुराई ही है? लड़कियों को सदियों से पैतृक संपत्ति में से कुछ नहीं दिया जाता। उन्हें पराई संपत्ति मानकर उपेक्षा भी की जाती रही है। ऐसे में शादी के अवसर पर परंपरा के नाम पर ही सही कुछ उपहार देने की जो व्यवस्था है; दहेज के विरोध के नाम पर उससे भी वंचित करना क्या उनके साथ अन्याय नहीं हो जायेगा? पैतृक संपत्ति में व्यावहारिक रूप से उनका भाग निर्धारित किए बिना दहेज से भी वंचित करना लड़कियों के अधिकारों पर कुठाराघात करना है। समाज में जो धारा चल रही है, उस पर विचार-विमर्श की आवश्यकता हो सकती है किन्तु केवल विरोध के लिए विरोध करना तो बुद्धिमत्ता नहीं होती।
यदि हमें समुद्र में अनुसंधान कार्यो के लिए जाना है, तो धारा के साथ बहना ही उचित रहेगा। यदि धारा हमारे गंतव्य की ओर ही बह रही है, तो फिर हम धारा के विपरीत जाने के साहस का प्रयोग क्यों करें? किस समय किस संसाधन का कितनी मात्रा में प्रयोग करना है; यह तो हमें प्रबंधन के अंतर्गत नियोजन से ही पता चलेगा। 

बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

निर्णय प्रक्रिया का प्रयोग-2

आज जबकि मैं निर्णयन और निर्णयन प्रक्रिया पर विचार कर रहा हूँ तो समझ में आता है कि उस समय निर्णय लेते समय निर्णय प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। अतः अब लगता है कि निर्णय प्रकिया के अन्तिम घटक निर्णय का पुनरावलोकन व सुधारात्मक कार्यवाही के अन्तर्गत मुझे उसका पुनरावलोकन करना चाहिए और देर से ही सही अपने निर्णय को निर्णय प्रक्रिया में डाल देना चाहिए। निर्णय पर पुनरावलोकन करके उचित निर्णय करना चाहिए कि क्या वह निर्णय और उसका अनुपालन उचित था? यदि नहीं तो उसे बदला जा सकता है।
           संपूर्ण प्रकरण कुछ इस प्रकार था-
लगभग 1989-90 या 1990-91 शैक्षणिक सत्र की बात है। मैं और मेरे एक साथी श्री विजय सारस्वत दोनों ही ट्यूशन पढ़कर वापस लौट रहे थे। हम लोग दहेज के खिलाफ चर्चा कर रहे थे। मथुरा में जमुना तट से होकर रास्ता था। जब मेरे मित्र दहेज के खिलाफ कुछ अधिक ही भावुक हो रहे थे, मैंने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें नीचे जमुनाजी के घाट पर ले गया। मैंने उनके हाथ में जमुना जल देकर कहा, ‘बहुत बड़ी बातें बनाने की जरूरत नहीं है। हम अपने आप से शुरूआत करेंगे। संकल्प करो कि अपनी शादी में किसी भी प्रकार से दहेज नहीं लेंगे और न ही ऐसी किसी शादी में भाग लेंगे जिसमें दहेज का लेन-देन किया जाना हो।’ 
        मैंने विजयजी को संकल्प दिलाया किन्तु उन्हें इसका ख्याल भी न रहा कि वे मुझे भी ऐसा ही संकल्प कराते किन्तु चूँकि मैंने उन्हें संकल्प कराया था। अतः यह संकल्प मुझ पर भी समान रूप से लागू था।
        परिणाम यह रहा कि मैं आज तक किसी शादी में सम्मिलित नहीं हो पाया। यहाँ तक कि घनिष्ठ मित्र श्री विजय सारस्वत जी की शादी में भी नहीं। अपने भाई और बहनों की शादी भी मेरी उपस्थिति के बिना संपन्न हुई। 
        आज जबकि मैं प्रबंधन के अन्तर्गत निर्णयन व निर्णयन प्रक्रिया की चर्चा कर रहा हूँ कि मेरा वह निर्णय एक सामान्य आदमी का निर्णय था और उससे मेरे सिवा कोई प्रभावित भी नहीं हुआ और न ही मैंने अपने निर्णय से प्रभावित होने वाले पक्षों से किसी प्रकार का विचार-विमर्श किया था। उस निर्णय से मेरी स्वतंत्रता सीमित हो गई। कहीं भी, किसी भी स्थान पर जाने के मौलिक अधिकार का हनन मैंने स्वयं ही कर लिया। अपने मित्र और संबन्धियों को ऐसे समारोहों में अपनी निकटता से वंचित करता रहा वह अलग।
      आज मेरा विचार बन रहा है कि निर्णयन प्रक्रिया के अन्तिम घटक ‘निर्णय का पुनरावलोकन कर सुधारात्मक कार्यवाही करना’ अन्तर्गत अपने भावुकता में सामान्य आदमी की हैसियत से लिए गये उस निर्णय को निर्णयन प्रक्रिया की कसौटी पर कसूँ और यदि वह ठीक नहीं था तो उसको बदल दूँ, क्योंकि जिद पूर्वक बिना किसी औचित्य के भीष्म की तरह किसी संकल्प पर टिके रहने की गुंजाइश प्रबंधन के सिद्धांतों में और सफलता की राहों में नहीं है। सफलता के पथिक को कोई भी निर्णय निर्णयन प्रक्रिया का पालन करके ही करना चाहिए और जब उसे लगे कि निर्णय लेने में गलती हुई है, निर्णय की समीक्षा करके आवश्यक सुधार कर लेना चाहिए। 

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

निर्णय प्रक्रिया का प्रयोग


एक डेनिश कहावत है, ‘‘उत्तर देने से पूर्व सोचिए कि व्यक्ति को क्या कहना है, और निर्णय के पूर्व कई लोगों को सुनिए।’’ यह कहावत हमें निर्णय लेते समय निर्णय प्रक्रिया का पालन करने के लिए अभिप्रेरित करती है कि निर्णय तीर नहीं तो तुक्का ही सही के मार्ग पर चलकर नहीं लेना चाहिए। हम अपने जीवन या परिवार की उन्नति या अपने संगठन के विकास या अपने समाज व राष्ट्र की प्रगति को जोखिम में नहीं डाल सकते। हमें सभी निर्णय निर्णयन प्रक्रिया का पालन करके लेने हैं ताकि हमारे निर्णय सर्वोत्तम हो सकें। सर्वोत्तम निर्णय ही सफलता के शिखर की यात्रा सुनिश्चित कर सकते हैं।
      वेब्स्टर शब्दकोष के अनुसार, ‘निर्णयन से आशय अपने मस्तिष्क में किसी कार्यवाही करने के तरीके के निर्धारण से है।’ डॉ.आर.एस.डावर के मतानुसार, ‘एक प्रबंधक का जीवन एक सतत् निर्णयन प्रक्रिया है।’ मेरे विचार में प्रत्येक व्यक्ति का जीवन एक सतत् निर्णयन प्रक्रिया है। प्रबंधक व सामान्य व्यक्ति में अन्तर यह है कि व्यक्ति बिना निर्णयन प्रक्रिया का पालन किए निर्णय लेता है और प्रबंधक एक पेशेवर निर्णयकर्ता है जो निर्णयन प्रक्रिया का पालन करके निर्णय लेता है और अपने साथ-साथ अपने संगठन का भी विकास सुनिश्चित करता है। प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए निर्णयन प्रक्रिया में कुशलता प्राप्त करना आवश्यक है। कुण्टज ओ‘ डोनेल के अनुसार निर्णयन एक क्रिया को करने के विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का वास्तविक चयन है। यह नियोजन की आत्मा है। हमें प्रत्येक व्यक्ति को सफलता का मार्ग दिखाना है तो प्रत्येक व्यक्ति को निर्णयन प्रक्रिया में कुशल बनाना होगा ताकि वह निर्णयन की कला में पारंगत होकर श्रेष्ठ निर्णय ले सके और उनको लागू कर सके।      
               निर्णयन कला व विज्ञान दोनों है। सामान्य व्यक्ति द्वारा लिए गये निर्णय सीमित ज्ञान व अनुमान पर आधारित होते हैं, जबकि कुशल प्रबंधक निर्णयन प्रक्रिया का पालन करते हुए निर्णय लेता है और संस्था व अपना विकास सुनिश्चित करता है। यद्यपि निर्णयन प्रक्रिया के लिए एक ही प्रारूप का निर्धारण करना कठिन कार्य है, तथापि सामान्यतः मार्गदर्शक के रूप में निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है-
1. समस्या का चयन व परिभाषित करना।
2. समस्या का विश्लेषण करना।
3. वैकल्पिक समाधानों को खोजना।
4. सीमित करने वाले घटको पर विचार करना।
5. सर्वश्रेष्ठ हल का चयन करना।
6. निर्णय को क्रियान्वित करना।
7. निर्णय का पुनरावलोकन कर सुधारात्मक कार्यवाही करना।
    स्पष्ट है कि सामान्य व्यक्ति इस निर्णय प्रक्रिया का पालन नहीं करता और अधिकांशतः गलत निर्णय लेकर हानि उठाता है। कई बार देखने में आता है कि वह गलत निर्णय तो लेता ही है जिद पूर्वक उस पर टिका भी रहता है और हानि उठाता है, उदाहरणार्थ लगभग 1990-91 में विद्यार्थी जीवन में जब मैं एम.कॉम. का छात्र था, दहेज विरोध की भावना के प्रभाव में  निर्णय किया कि मैं ऐसी किसी शादी में भाग नहीं लूँगा, जिसमें किसी भी प्रकार से दहेज का लेन-देन किया जा रहा हो। लगभग 23 वर्ष से इस निर्णय का अनुपालन भी किया और आज तक किसी भी शादी में भाग नहीं ले पाया। यहाँ तक कि अपने परिवार में भाई-बहनों की शादी में भी भाग नहीं लिया और एक प्रकार से परिवार से कट सा ही गया। जवाहर नवोदय विद्यालय, नागौर में एक समय प्राचार्य के पद पर तैनात श्री चन्द्र मोहन शर्मा का कथन था कि किसी शादी में न जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। हाँ! उसमें सम्मिलित होकर उसे कुछ हद तक प्रभावित भी किया जा सकता है। फेसबुक पर एक मित्र ने तो इसे स्वनिर्वासन तक करार दिया।

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

निर्णयन कला व विज्ञान दोनों


निर्णय लेना कला व विज्ञान दोनों है। निर्णय प्रबंधक व प्रशासक के लिए ही नहीं वैयक्तिक जीवन में व्यक्ति के लिए भी महत्वपूर्ण होते हैं। निर्णय किसी उद्योग, व्यवसाय, राष्ट्र को प्रभावित करते हैं। एक गलत निर्णय राष्ट्र, संस्था व व्यक्ति के जीवन को बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है तो एक सही व सामयिक निर्णय समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुूशल प्रबंधक का ही कार्य है। निर्णय सभी व्यक्ति लेते हैं किन्तु सभी व्यक्ति निर्णयन विज्ञान में पारंगत व निर्णय कला के कुशल कलाकार नहीं होते। निर्णय की कला व विज्ञान में कुशल व पारंगत व्यक्ति को सफलता की चिन्ता नहीं करनी पड़ती, सफलता स्वयं ही उनके पास चलकर आती है।

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

निर्णय उचित समय पर, उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए, सक्षम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा-2

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निर्णय उचित समय पर, उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए, सक्षम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा


निर्णय लेने की प्रक्रिया ही निर्णयन कहलाती है। निर्णय लेने की प्रक्रिया निर्णय की श्रेष्ठता व गुणवत्ता को सुनिश्चित करती है। निर्णय की गुणवत्ता व उपयुक्तता उसकी सफलता का आधार लिखती है। देर से किया गया निर्णय अवसरों को खो देता है तो उतावलेपन में लिया गया निर्णय प्रयासों को असफल होने का आधार तय करता है। अतः निर्णय न तो अत्यधिक जल्दबाजी में होने चाहिए और न ही विचार-विमर्श में इतना समय लगाना चाहिए कि निर्णय लेने में देर हो जाय और अवसर ही गँवा बैठे। अतः निर्णय के लिए आवश्यक है कि निर्णय निर्णयन प्रक्रिया का पालन करते हुए, उचित समय पर, उचित व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा लिए जाने चाहिए।
             निर्णय लेने के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम हम स्वीकार करें कि निर्णय लेना हमारा उत्तरदायित्व है। निर्णय लेने के अधिकार को अधिकार के रूप में ही समझा जाता है, जबकि प्रत्येक अधिकार के साथ उसके उचित प्रयोग का कर्तव्य व उत्तरदायित्व भी जुड़ा होता है। निर्णय लेने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम उस निर्णय के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले परिणामों का उत्तरदायित्व स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।     
            सामान्य मानव में यह कमजोरी देखी जाती है कि वह निर्णय करने का अधिकार तो चाहता है किन्तु उसका उत्तरदायित्व दूसरे व्यक्ति पर थोपने की कोशिश करता है। सामान्यतः व्यक्ति निर्णयन लेने के उत्तरदायित्व को स्वीकार करना नहीं चाहता। सरकारी क्षेत्रों में यह अक्सर देखा जाता है कि निर्णय लेने की जिम्मेदारी को एक-दूसरे पर टालने के चक्कर में देर से निर्णय होते हैं और परियोजना की लागत बढ़ जाती है।  
           अतः यह आवश्यक है कि निर्णयन की जवाबदेही स्पष्ट रूप से निर्धारित होनी चाहिए। हम व्यक्तियों को निर्णयन प्रक्रिया में प्रशिक्षित करें ताकि वे निर्णयन के उत्तरदायित्व से बचने की कोशिश न करें। निर्णय लेने में जोखिम समाहित होता है। जोखिम लेने की हिम्मत सभी में समान रूप से नहीं हुआ करती। जो जोखिम उठाकर सही समय पर सही निर्णय लेकर सही क्रियान्वयन कर लेते हैं। सफलता उन्हीं के चरण चूमती है।
      व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन में भी निर्णय लेने की जिम्मेदारी को एक-दूसरे पर टालने के उदाहरण देखे जा सकते हैं। कुछ ऐसे उदाहरण भी मिल सकते हैं कि हम दूसरों के बारे में शीध्रता से निर्णय लेते हैं और उन पर अपने निर्णय थोप देते हैं, जबकि अपने बारे में निर्णय लेते समय हम जोखिम लेने से डरते हैं और निर्णय लेने में देरी होने के कारण अवसर हाथ से निकल जाता है। 
           स्मरण रखें अवसर किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। सर्वप्रथम यह निर्धारित करना आवश्यक है कि अमुक निर्णय लेने की जिम्मेदारी किसकी है? जिम्मेदारी निर्धारित करने का सबसे प्रमुख आधार यह है कि जो उस निर्णय को क्रियान्वित करता है और जो उससे प्रभावित होता है उसे ही निर्णय करना चाहिए या उसे निर्णय प्रक्रिया में आवश्यक रूप से सम्मिलित होना चाहिए। यदि व्यक्तियों का समूह प्रभावित होता है तो समस्त समूह को निर्णय प्रक्रिया में सम्मिलित करना चाहिए। हाँ, निर्णय करने की क्षमता का आकलन भी आवश्यक है। निर्णय करने की क्षमता न होने के कारण ही बच्चों से सम्बन्धित निर्णय उनके अभिभावकों द्वारा किए जाते हैं।

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

प्रबन्धन का आधार- निर्णयन

निर्णयन 


निर्णयन प्रबंधन का ही क्यों? प्रत्येक व्यक्ति का अनिवार्य कार्य है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में निरंतर विभिन्न निर्णय लेने पड़ते हैं। हम वैयक्तिक, पारिवारिक व सांगठनिक प्रत्येक क्षेत्र में छोटे-बड़े निर्णय लेते ही रहते हैं। वास्तव में निर्णय लेना व उसे लागू करना ही तो प्रबंधन है। 
          हम प्रातः कितने बजे उठना है? चाय पीनी है या दूध? कहाँ जाना है? क्या करना है? क्या खाना है? बच्चे का प्रवेश कौन-से विद्यालय में करवाना है?  पत्नी के लिए कौन-सी साड़ी खरीदनी है? कूलर कौन-सी कंपनी का लेना है? आदि छोटे-छोटे निर्णयों से लेकर बड़े-बड़े पूँजी व जीवन के विनियोग से संबन्धित निर्णय भी लेते हैं। जो व्यक्ति निर्णय लेने में कुशलता हासिल कर लेता है, उसी के प्रयास सफलता प्राप्त करते हैं। टैरी के शब्दों में, ‘यदि प्रबंधक की कोई सार्वभौमिक पहचान है तो वह उसका निर्णय लेना ही है।’ 
        निर्णय लेना प्रबंधन के समस्त कार्यो नियोजन, संगठन, नियुक्तियाँ, निर्देशन व नियंत्रण में निहित हैं। साइमन ने तो यहाँ तक कह दिया, ‘निर्णय लेना ही प्रबंधन है।’ निर्णयन का व्यावहारिक अर्थ तार्किक रूप से किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से है।
वेब्सटर शब्द कोष के अनुसार, ‘निर्णयन किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विचार या कार्य के क्रम को निश्चित करने की क्रिया है।’ वास्तव में निर्णयन से आशय निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न विकल्पों की खोज व उन विकल्पों के विश्लेषण व मूल्यांकन के बाद सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव करने से है। 
        निर्णय लेना विभिन्न अवसरों की उपलब्धता को पहचानना और उनमें से उपयुक्त अवसर का लाभ उठाने से है। निर्णय लेना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। प्रतिदिन हमें विभिन्न निर्णय लेने ही पड़ते हैं। व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक किसी भी स्तर पर सक्रिय रहने के लिए निर्णय लेना एक अनिवार्य आवश्यकता है। प्रत्येक क्षेत्र में सफलता हमारे द्वारा लिए गये निर्णयों और उनके क्रियान्वय की स्थिति पर निर्भर करता है।

बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

बधाई पूर्व करनी होगी, सत्कर्मो की तुम्हें कमाई।

मित्रों! आओ दीपावली पर स्वीकारो मेरी भी बधाई।

बधाई पूर्व करनी होगी, सत्कर्मो की तुम्हें कमाई।

प्रदूषण फैलाकर दीप जलाते, कैसी दीपावली है भाई?

पूजा नहीं, अनुसरण राम का, इसमें सबकी होगी भलाई।

सीता को वनवास मिले ना, पग-पग हो न परीक्षा भाई।

रावण का पुतला मत फूँकों, अन्तर्मन की करो सफाई।

सूपर्णखाँ की नाग कटे ना, शादी का अवसर मिले भाई।

अब मजबूर न नारी हो कोई, जैसे जमीन में सीता समाई। 

जनकसुता क्यों जमीन में गढ़तीं, उनका भी सम्मान हो भाई।

नर-नारी हो सहयोगी, सुखी रहें सब लोग-लुगाई।

अधिकारों की आग में जलकर, कर्तव्यों की राह गँवाईं?

नर-नारी मिल करें प्रतिज्ञा, सत्कर्मो की स्वीकारो बधाई।

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

11. प्रतिनिधित्वः

11. प्रतिनिधित्वः


 प्रबंधन का यह एक महत्वपूर्ण सहायक कार्य माना जाता है। प्रतिनिधित्व लोकतंत्र का आधार है। जीवन में हमें विभिन्न व्यक्तियों या संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करना होता है। हम जब किसी व्यक्ति को अपना कार्य सौंपकर भेजते हैं, तो स्वाभाविक रूप से वह उस समय हमारे प्रतिनिधि के रूप में हमारी तरफ से कार्यो को पूरा कर रहा होता है। संस्था के अन्दर व बाहर तो प्रबंधन प्रतिनिधित्व करता ही है। व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन में भी दिन-प्रतिदिन हम अनेक कार्य प्रतिनिधि बनकर करते हैं और अनेक व्यक्तियों को हम अपना प्रतिनिधि बनाते हैं। वास्तव में प्रतिनिधित्व को स्वीकार करना ही लोकतंत्र का आधार है। प्रबंधन में लोकतत्र का प्रयोग ही प्रतिनिधित्व का आधार है।
              उपरोक्त समस्त कार्य प्रबंधन के कार्यो में महत्वपूर्ण हैं किन्तु ये कार्य सर्वस्वीकृत नहीं हैं। कुछ कार्य तो आपस में अन्तर्सम्बन्धित हैं। कुण्टज तथा ओ‘डोनेल ने तो प्रबंधन के पाँच कार्यो को ही माना है- नियोजन, संगठन, नियुक्तियाँ, निर्देशन व नियंत्रण।
             वास्तव में ये पाँच कार्य अन्य सभी को अपने अन्दर समाहित किए हुए हैं। अतः इस पाँच कार्यो को सबसे अधिक स्वीकृति प्राप्त हैं। प्रबंधन के कार्यो की संख्या व उनके वर्गीकरण पर भले ही विचार-विभिन्नता हो किन्तु यह सर्वस्वीकृत तथ्य है कि प्रबंधन के कार्य सार्वभौमिक हैं जो सभी संगठनों में समान रूप से लागू होते हैं।
प्रबंधन के अनेक कार्य गिनाये जाते हैं। वास्वत में प्रबंधन के कार्य इतने व्यापक रूप से फैले हैं कि उनका गिनाना बड़ा ही जटिल कार्य हैं। ये सभी कार्य आपस में अन्तर्व्याप्त हैं। हाँ, इन सभी कार्यो के मूल में एक कार्य अवश्य पाया जाता है, वह है- ‘निर्णयन।’

रविवार, 19 अक्तूबर 2014

नवाचार

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संप्रेषणः

9. संप्रेषणः 

संप्रेषण संगठन में समन्वय बनाने के लिए प्रत्येक स्तर पर आवश्यक है। संप्रेषण का आशय व्यक्तियों के मध्य विचारों की साझेदारी स्थापित करना है। साथ-साथ काम करने के लिए आपस में सन्देशों का आदान-प्रदान करना एक अनिवार्य आवश्यकता है। नियोजन से लेकर नियंत्रण तक की समस्त कार्यवाहियों के लिए संप्रेषण एक आवश्यक तत्व है। संप्रेषण ही किसी भी कार्य का प्रारंभ करता है और संप्रेषण ही उसे निर्धारित दिशा में चालू भी रखता है। आवश्यकता पड़ने पर सुधारात्मक कार्यवाही भी संप्रेषण की सहायता से ही पूरी हो सकती है।