रविवार, 29 जून 2014

भूख का आशयः असंतुष्टि नहीं


जी, हाँ! आपका ध्यान इस ओर खींचना चाहूँगा। जब हम भूख की बात करते हैं, खास कर सफलता की भूख की; तो हमें संतुष्ट रहने की सीख दी जाती है। जो मिले उसी में संतुष्ट रहने की सीख दी जाती है यहाँ तक कि मलूकदास तो यहाँ तक कह गए कि यदि उनकी बात मानी जाय तो मानव और मानव सभ्यता का नामोनिशान न रहे। मुझे नहीं मालुम उन्होंने यह किस सन्दर्भ में और कब लिखा:-
अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करे न काम।
दास मलूका कह गये,  सबके दाता राम।।
कबीरदास ने भी रूखी-सूखी खाकर ठण्डा पानी पीने व लालच न करने की सीख दी है। लालच पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से तो यह सीख ठीक है किन्तु कबीरदास जैसा जुझारू व्यक्तित्व हमें कभी भी अकर्मण्य बनने की सीख तो नहीं दे सकता। 
सन्दर्भ के बिना किसी की आलोचना करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। हाँ! यह अवश्य है कि विकास के पथिक के लिए मलूकदास का यह कथन किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। प्रसिद्ध गजलकार दुष्यंत कुमार ने ऐसे विचार को चुनौती देते हुए ठीक ही लिखा हैः
न हो  कम़ीज तो  पाँवों से  पेट ढँक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।
निःसन्देह मानसिक तनाव से मुक्ति के लिए सदैव संतुष्टि का यह विचार उपयोगी हो सकता है। लालची प्रवृत्ति का परिमार्जन करने के लिए यह विचार उपयोगी हो सकता है। गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा को लगाम देने के लिए यह विचार उपयोगी हो सकता है। हताशा में की जाने वाली आत्महत्याओं को रोकने के लिए भी इस विचार की उपयोगिता हो सकती है, किन्तु विकास के पथ के पथिक के लिए यह आत्मघाती ही होगा। व्यक्ति को विकास के चरम तक ले जाने की आकांक्षा के लिए यह वज्रपात होगा।
मानव समाज के विकास के लिए यह आवश्यक है कि वह सफलता की भूख से निरंतर प्रेरित होता रहे। सफलता की भूख ही नहीं होगी तो उसकी प्रयास करने की तत्परता, गति व कुशलता मंद पड़ जायेगी और वह वहाँ नहीं पहुँच पायेगा, जहाँ वह पहुँच सकता था। अतः सफलता की भूख को जगाये रखना और उसे तीव्रतर करते जाना आवश्यक है।


सफलता

मानव विकास के लिए आवश्यक सफलता की भूख


किसी भी कीमत पर सफलता प्राप्त करने की अंधी दौड़ न तो मानव के लिए श्रेयस्कर है और न समाज के लिए, किंतु उसके बाबजूद सफलता की भूख व सफलता के लिए ईमानदार प्रयास करने की तत्परता तो व्यक्ति व समाज के विकास के लिए जरूरी है। मानव समाज को सुन्दर व आनन्दप्रद बनाने के लिए हममें सफलता की भूख होना आवश्यक है। मानव समुदाय को विकास की और अग्रसर करने के लिए सफलता की भूख आवश्यक है। मानव कल्याण के लिए आपको सत्यं, शिवं व सुन्दरं की भूख और उपलब्धि होना आवश्यक है। इसके लिए बड़े-बड़े सपने देखना और उन सपनों को वास्तविक रूप प्रदान करने के लिए अपने सुविधापूर्ण सीमाओं से बाहर निकलकर कुछ जोखिम उठाकर नवाचार अपनाते हुए सफलता की खोज में आगे बढ़िये।


शनिवार, 28 जून 2014

सफलता की भूख


वर्तमान समय में सफलता की दरकार किसे नहीं है? कौन सफलता की भूख से पीड़ित नहीं है? सफलता की दौड़ में सभी भाग लेना चाहते हैं, यही नहीं सफलता को प्राप्त करने के लिए तड़पन बढ़ती ही जा रही है। अधिकांश लोग विशेष कर युवा सफलता के लिए कुछ भी करने को तत्पर दिखते हैं, किंतु सफलता कुछ भी करने वालों को प्राप्त नहीं होती। सफलता के लिए कुछ भी करने की तत्परता सफलता से दूर ले जा सकती है। सफलता के लिए तो सुप्रबंधित, अविरल व अनथक प्रयासों की आवश्यकता होती है। सफलता परिणाम में नहीं कार्य को श्रेष्ठतम् तरीके से पूर्ण करने में है। व्यक्ति सफलता के पीछे अंधी दौड़ लगाने को बेताब हैं। अधिकांश लोग सफलता के पीछे अंधी दौड़ लगा भी रहे हैं। सफलता की आकांक्षा में ही तो दल-बदल होते हैं, सफलता की आकांक्षा में ही बूथ कैप्चरिंग होती है, सफलता की आकांक्षा में ही तो षड़यंत्र पूर्वक विरोधियों को मौत के घाट उतरवा दिया जाता है, सफलता की आकांक्षा में ही तो फर्जी विश्वविद्यालय व फर्जी डिग्रियों की दुकानें खुली हुई है। सफलता की आकांक्षा में ही डिग्रियों को प्राप्त करने की होड़ लगी रहती है। सफलता की अंधी दौड़ के कारण ही तो शिक्षा में नित नये स्कैण्डलों का खुलासा होता है और व्यक्ति शिक्षा माफिया के चंगुल में फँसता चला जाता है। विद्यार्थी परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए ही तनाव के दौर से गुजरता है। तथाकथित सफलता के लिए ही तो हम अपने बच्चों के वर्तमान आनन्द को समाप्त करते हुए उन्हें निरन्तर प्रतिस्पर्धा में झौंक देते हैं।
सफलता की भूख प्रत्येक व्यक्ति को है और प्रत्येक व्यक्ति को होनी भी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति सफलता पाने का अधिकारी है। श्रीमद्भगवद्गीता (मर्म और संदेश-5) में दिए एक उद्धरण के अनुसार, ‘यदि आप सफलता के अलावा किसी और को विकल्प नहीं मानते हैं, तो सफलता जरूर मिलेगी।’ सफलता के प्रति यह निर्विकल्प आकांक्षा ही तो मानव को अभिप्रेरित करती है। यही वह शक्ति है जो उसे सक्रिय रखती है। व्यक्ति सफलता की भूख को शांत करने के लिए ही तो आकाश-पाताल एक कर देता है। सफलता की भूख ने ही तो मानव को चाँद और मंगल पर पहुँचाया है। सफलता की भूख ने ही पाषाण युग से तकनीकी के युग में पहुँचने में मदद की है। वास्तव में सफलता की भूख ही वह प्रेरक शक्ति है, जो प्रत्येक क्षेत्र में विकास का आधार बनती है। सफलता की भूख के बिना व्यक्ति वहाँ नहीं होता जहाँ आज है। सफलता की भूख ने ही मानव को वर्तमान स्तर पर पहुँचाया है। मानव की सफलता की यात्रा को जारी रखने के लिए सफलता की भूख को जगाये रखना व इसे तीव्रतर बनाये रखना आवश्यक है।

शुक्रवार, 27 जून 2014

छठी पुस्तक तीन वर्ष की प्रतीक्षा के बाद

मेरी छठी पुस्तक तीन वर्ष की प्रतीक्षा के बाद 

प्रकाशक महोदय ने हिन्दी निबन्ध की पुस्तक 

"आधुनिक सन्दर्भ में" २५ जून २०१४ को मुझे 

प्राप्त करा दी. 

प्रकाशक महोदय- 

अतुल गुप्ता, 

जाह्नवी प्रकाशन,  

ए-७१, विवेक विहार, फ़ेस-२, 

दिल्ली- ११००९५  

को 

बहुत-बहुत धन्यवाद.