मंगलवार, 26 जनवरी 2021

गणतंत्र दिवस 2021 की हार्दिक शुभकामनाएं।

 आइए आज के दिन भारत माता की आजादी के लिए लड़ने वाले उन सभी देशभक्तों के बलिदानों को याद करते हुए शपथ लें कि हम एक साथ मिलकर अपने कर्त्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करते हुए देश में शांति, समृद्धि और एकता को बनाए रखने के लिए अपने जीवन को अर्पित करें।


    आज हम बिहेत्तरवां गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। देश ने कितना विकास किया है, यह राजधानी में आयोजित हो रहे कार्यक्रम की झांकियों से समझा जा सकता है। इस बार देश के कुछ किसान भी अपनी ताकत का अहसास कराते हुए ट्रेक्टर रैली का आयोजन भी कर रहा है। बैल की एक जोड़ी या एक गाय का सपना देखते हुए इस संसार से विदा होने वाला किसान कितना विकसित हुआ है, इसका अनुमान यह ट्रेक्टर रैली में आयोजित ट्रेकटरों, किसानों के द्वारा प्रयोग किये जा रहे लग्जरी वाहनों को देख कर सहजता से लगा सकता है।

किसान कितना सशक्त हुआ है, यह इसी बात से स्पष्ट है कि प्रचंड बहुमत से चुनी हुई सरकार को देश की राजधानी में चुनौती दे रहा है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि किसान इस शक्ति का प्रयोग देश को और सशक्त करने में कर सके। हम इस विकास, समृद्धि और शक्ति को देश के शेष नागरिकों तक भी पहुंचा सकें, इसकी आवश्यकता है। आओ हम सब जहां भी हैं, जिस भी भूमिका में हैं, पूरी शक्ति के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए देश को विकास के चरम तक ले जाने के लिए प्रयत्न करें।

भारत माता की जय।

शनिवार, 23 जनवरी 2021

अध्यापक बनें-जग गढ़ें-२१

 

कैरियर के क्षेत्र में प्रतियोगिता की चुनौती

कैरियर के क्षेत्र में वर्तमान समय में प्रतियोगिता की चुनौती का सामना करना पड़ता है। अतः आवश्यक है कि हम चुनाव से पूर्व ही हम यह जान लें कि हम क्या हैं? क्या-क्या कर सकते हैं? क्या करना चाहते हैं और हमें क्या करना है ? चुनाव के बाद बार-बार जल्दी-जल्दी अपनी वृत्ति या कैरियर लाइन को उद्देश्यहीन तरीके से बदलना न व्यक्ति के हित में है और न ही समाज के विकास की दृष्टि से उचित कहा जा सकता है। कैरियर में एक निश्चित सीमा तक स्थिरता व्यक्ति और समाज दोनों के लिए ही हितकर होती है। यह स्थिरता तभी हो सकती है जब व्यक्ति अपने बारे में सही विश्लेषण व आकलन करके कैरियर का चुनाव करे।

      सामान्यतः कैरियर के चयन का आधार हाईस्कूल के पश्चात् कक्षा 11 में विषय चयन से ही हो जाता है। मानविकी, विज्ञान, वाणिज्य या वोकेशनल के चयन के साथ ही भावी चयन का आधार बनने लगता है। वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा के बाद स्नातक के विषय भावी कैरियर में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक व स्नातक का व्यवस्थित व योजनाबद्ध अध्ययन सुव्यवस्थित कैरियर के चुनाव के लिए सुविधाजनक रहता है। उदाहरणार्थ, कला या संगीत के क्षेत्र में कैरियर का चुनाव करने वाले विद्यार्थी को माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्तर पर ही कला या संगीत जैसे विषयों का चुनाव करना होगा। यही नहीं उन विषयों में विशेषज्ञता हासिल करते हुए स्नातक स्तर पर विशेष अध्ययन करके आगे बढ़ना होगा।

      वृत्ति, जीविका या कैरियर का चयन एक ऐसा महत्वपूर्ण कृत्य है जो हमें आजीवन सीखते हुए आगे बढ़ने का राजमार्ग प्रदान करता है, जिस पर हम स्व-प्रेरित व स्वानुशासित रहते हुए उन्नति के चरमशिखर की ओर बढ़ते हैं। हम जैसा करते हैं, हमारी अभिरूचि और वृत्ति की आवश्यकताएं हमें भावी बदलाव की ओर अग्रसर करती रहती हैं।

 

 

 “कैरियर का चयन करने से पूर्व संभावित विकल्पों की तलाश करना, उपलब्ध संसाधनों और परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए संभावित विकल्पों का मूल्यांकन कर सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव करना, किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन का महत्वपूर्ण कार्य होता है। कैरियर का वैज्ञानिक विश्लेषण और उचित नियोजन के साथ चयन करने से कैरियर के शिखर तक जाने की संभावनाएं अधिक बलवती हो जाती हैं।“

समय की एजेंसी-35

सफलता की ओर पहला कदमः

सामान्यतः कहा जा सकता है कि समय के संदर्भ में प्रबंधन सफलता की यात्रा प्रारंभ करने का पहला कदम है। यह केवल कहावत मात्र ही नहीं है, एक वास्तविकता है। समय ही जीवन है। जीवन से अधिक मूल्यवान व महत्वपूर्ण व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं है। जो व्यक्ति अपने जीवन का व्यवस्थित प्रयोग नहीं करता अर्थात् अपने समय का योजनाबद्ध ढंग से प्रयोग सुनिश्चित नहीं करता उसे सफलता के सपने नहीं देखने चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपने पास उपलब्ध समय का ही प्रबंधन की सहायता से सदुपयोग सुनिश्चित नहीं कर सकता, तो वह अन्य संसाधनों का भी सही प्रकार से प्रबंधन नहीं कर पायेगा। समय के पल-पल का कार्य के साथ प्रबंधन अन्य संसाधनों के प्रबंधन का आधार है। मानवीय संसाधनों के अतिरिक्त अन्य संसाधनों का भी एक जीवनकाल या कार्यकारी जीवनकाल होता है। अतः उनके सन्दर्भ में भी समय के अनुसार उपयोग करने की योजना बनाना आवश्यक होता है।

Rounded Rectangle: यदि कोई व्यक्ति अपने पास उपलब्ध समय का ही प्रबंधन की सहायता से सदुपयोग सुनिश्चित नहीं कर सकता, तो वह अन्य संसाधनों का भी सही प्रकार से प्रबंधन नहीं कर पायेगा।
 

 

 

 


     

 

यदि व्यक्ति अपने पास उपलब्ध समय के पल-पल का  उपयोग करने के लिए अपने कार्यों का प्रबंधन करने में महारथ हासिल कर लेता है, तो वह अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सभी कार्यों को संभालने में सक्षम होता है। उसे समय के संदर्भ में प्रत्येक कार्य का प्रबंधन करने की आदत बन जाती है। एक बार समय की प्रत्येक इकाई के योजनाबद्ध प्रयेाग की आदत बन गयी तो व्यक्ति स्वयं के प्रबंधन में ही नहीं देश के प्रबंधन में भी सफलता हासिल कर सकता है। जो अपना प्रबंधन कर सकता है, वह किसी का भी प्रबंधन कर सकता है। जो स्वयं पर नियंत्रण पा लेता है, वह सभी पर नियंत्रण प्राप्त कर सकता है। जिसने अपने आपको जीत लिया, दुनिया में कोई उसे पराजित नहीं कर सकता।

      समय के संदर्भ में प्रबंधन की आदत हो जाने पर वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता सुनिश्चित करती है। समय की प्रत्येक इकाई का प्रयोग केवल अपने ही समय के प्रयोग में कुशलता प्रदान नहीं करता वरन अन्य संसाधनों के समयबद्ध प्रबंधन में भी कुशल बनाता है। समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाता है, क्योंकि-

1. समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन समय की प्रत्येक इकाई का सदुपयोग करने की आदत डालकर मितव्ययिता लाता है। समय की प्रत्येक इकाई के प्रयोग के कारण मानवीय व अमानवीय सभी संसाधनों के कुशलतम प्रयोग के कारण लागत में कमी आती है। यही नहीं कुशलतम व प्रभावी प्रयोग गुणवत्ता के स्तर को भी सुनिश्चित करता है।

2. समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन का आधार नियोजन होता है। नियोजन हमें श्रेष्ठतम निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। नियोजन के अन्तर्गत हम ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्यों पर भी चिंतन-मनन करते हैं। इस प्रकार हमारे सामने हमारे उद्देश्य स्पष्ट हो जाते हैं। आप क्या चाहते हैं? इसे याद रखना, अपनी गतिविधियों के प्रबंधन का महत्वपूर्ण कदम ही नहीं है; सफलता का भी प्रथम कदम है। जब आपको पता ही नहीं होगा कि आप चाहते क्या हैं? आप क्या करेंगे? और क्या सफलता पायेंगे?

Rounded Rectangle: आप क्या चाहते हैं? इसे याद रखना, अपनी गतिविधियों के प्रबंधन का महत्वपूर्ण कदम ही नहीं है; सफलता का भी प्रथम कदम है। 

 

 

 


3. समय के संदर्भ यदि कोई व्यक्ति अपने पास उपलब्ध समय का ही प्रबंधन की सहायता से सदुपयोग सुनिश्चित नहीं कर सकता, तो वह अन्य संसाधनों का भी सही प्रकार से प्रबंधन नहीं कर पायेगा।   में कार्य प्रबंधन केवल मानवीय समय को ही अधिक उत्पादक नहीं बनाता वरन अन्य संसाधनों के समय का भी मितव्ययितापूर्वक प्रयोग होने के कारण अधिक उत्पादकता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। कार्य प्रबंधन या समय के सन्दर्भ में कार्य प्रबंधन मानवीय व अमानवीय साधनों का अधिकतम प्रयोग सुनिश्चित करके वस्तु या सेवा की लागत को कम करता है। यही नहीं समय की प्रति इकाई का सदुपयोग होने व सभी संसाधनों का कुशलतम व प्रभावपूर्ण उपयोग होने के कारण कार्य की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।

4. समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन करने से प्रबंधन की तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। नियोजन, निर्णयन व नियंत्रण जैसी प्रबंधन तकनीकों के प्रयोग से कुशलता व कार्य की गति में वृद्धि होती है। कुशलता में वृद्धि के कारण क्रियान्वयन का स्तर भी सुधरता है, जिसके कारण आशा के अनुरूप परिणामों की प्राप्ति होती है और प्रेरणा का स्तर बढ़ता है। परिमाण और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है।

5. समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन से व्यक्ति के तनाव का स्तर कम होकर समाप्तप्राय हो जाता है। कार्य और समय का सही आवंटन हो जाने व योजनाबद्ध ढंग से कार्य होने के कारण किसी प्रकार की हड़बड़ी नहीं रहती। कार्य सुचारू ढंग से चलता रहता है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है, जो जीवन के आनन्द को बढ़ाकर और अधिक कार्य करने को प्रेरित करता है। कार्य प्रबंधन अपनाकर व्यक्ति व्यस्त रहता है, मस्त रहता है और स्वस्थ रहता है।

6. समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन करने से सभी गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक गतिविधि में लगने वाले समय का मानकीकरण हो जाता है। उस मानकीकरण के आधार पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता के परिश्रम का मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है। यही नहीं वस्तुओं या सेवाओं का मूल्यांकन भी अधिक सटीकता के साथ करना संभव होता है। व्यक्ति के समय का सही से उपयोग होने के कारण उसका आर्थिक व सामाजिक विकास होता है। उसके परिवार व समाज पर भी उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

समय की एजेंसी-34

 

अच्छी उत्पादकताः

समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन के अन्तर्गत प्रबंधन की तकनीकों के आधार पर समय का आवंटन किया जाता है। प्रत्येक कार्य का व्यापक अध्ययन करके योजना बनाकर व्यवस्थित रूप से कार्य संपन्न किया या करवाया जाता है। इस प्रकार समय का भी पूर्ण गुणवत्तायुक्त प्रयोग होता है अर्थात् समय के पल-पल का सदुपयोग होता है। यही नहीं प्रबंधन की तकनीकों के प्रयोग के कारण कार्य की गुणवत्ता का भी पूर्ण ध्यान रखना संभव होता है। ध्यान रखने की बात है कि कम समय में अधिक कार्य संपन्न करने का आशय कार्य की गुणवत्ता से समझौता करना नहीं होता। नियोजन के अन्तर्गत हम संतुलन बनाने की कोशिश कर सकते हैं। कार्य प्रबंधन समय व कार्य दोनों की गुणवत्ता में वृद्धि करने के लिए होता है। योजना बनाकर कार्य करने के परिणामस्वरूप कार्य की गुणवत्ता का स्तर भी अच्छा रहे, इस प्रकार का नियोजन करना ही श्रेयस्कर है।

प्रेरणा स्तर में वृद्धि:

कार्य प्रबंधन के अन्तर्गत हम कार्यों को योजनाबद्ध ढंग से करते हैं। योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने के कारण हमारा लक्ष्य स्पष्ट रूप से हमारे सामने रहता है। समय के निवेश से प्राप्त होने वाले परिणामों का पूर्वानुमान रहने के कारण हमारी प्रेरणा का स्तर स्वाभाविक रूप से अच्छा रहता है। योजना के अनुसार कार्य करने के कारण परिणाम भी हमारी योजना के अनुरूप रहने की संभावना रहती हैं। योजना के अनुसार परिणाम आने पर प्रेरणा स्तर व मनोबल में और भी अधिक वृद्धि होती है। हम और भी अधिक प्रभावशीलता के साथ कार्य करने में सक्षम होते हैं। समय का लेखा-जोखा रखे जाने के कारण हमारे जीवन के हर पल का उत्पादक प्रयोग होता है। जीवन के हर पल का उत्पादक प्रयोग करने के लिए प्रेरणा का स्तर उच्च स्तर पर रखना आवश्यक होता है। प्रेरणा का स्तर समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन करके ही उच्च स्तर पर रखा जा सकता है।

अध्यापक बनें-जग गढ़ें-20

 कैरियर या वृत्ति का चुनाव

वस्तुतः किसी आजीविका, वृत्ति या कैरियर का चुनाव हमारे भविष्य का आधार होता है। किन्तु यह चुनाव हमारे भूतकालीन और वर्तमानकालीन परिस्थितियों और भावी संभावनाओं पर भी निर्भर करता है। भूतकाल में हमने जो संसाधन अर्जित किए हैं, जो संसाधन हमें विरासत में मिले हैं। हमने जो योग्यताएँ अर्जित की हैं और वर्तमान में हमारे सामने क्या परिस्थितियाँ हैं? यही नहीं भविष्य में हमारी संभावित परिस्थितियाँ हमारी व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्व भी हमारे कैरियर के चुनाव संबन्धी निर्णय को प्रभावित करते हैं।

      कैरियर के चुनाव में परिवार की आकांक्षाएं और अपेक्षाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। आवश्यक कौशल को प्राप्त करने के लिए, पहले लोग अपने अध्ययन को पूरा करते थे और उसके बाद कैरियर या वृत्ति का चुनाव करते थे। वर्ण व्यवस्था में कैरियर थोपा जाने लगा। वर्तमान में व्यक्ति अपने कैरियर का चुनाव स्वयं करता है तो कई बार परिवार के साथ मिलकर भी वह कैरियर का चुनाव करता है। कई बार वह परिवार द्वारा चुने हुए कैरियर को ही स्वीकार करके आगे बढ़ता है।

वर्ण व्यवस्था, परिवार और आजीविका

एक समय हमारी सामाजिक वर्ण व्यवस्था जन्म लेते ही व्यक्ति की आजीविका का निर्धारण कर देती थी और व्यक्ति को उसके आजीविका के चयन के अधिकार से वंचित कर दिया जाता था। वर्तमान समय में माता-पिता अपने बच्चे के सामने कैरियर संबन्धी लक्ष्य रख देते हैं और उसे उसी की दिशा में शिक्षा व अन्य योग्यताएँ अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या विद्यार्थी ही अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त करते-करते अपने कैरियर का चुनाव कर लेते हैं और तदनुरूप कक्षा 10 व 11 में अपने विषयों का चुनाव कर आगे की शिक्षा प्राप्त करते हैं।

      कैरियर का चुनाव व्यक्ति की जीवन शैली, व्यक्तित्व और जीवन की दिशा को किसी अन्य घटना की तुलना में सबसे अधिक प्रभावित करता है। हमारी आजीविका हमारे जीवन पर बहुआयामी प्रभाव डालती है। हमारी वृत्ति हमारे विचार, दृष्टिकोण, प्रवृत्ति और मूल्यों को प्रभावित करके हमारे व्यक्तित्व की रूपरेखा को ही गढ़ती है।

      वर्तमान गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में आजीविका या कैरियर का चुनाव करना व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय होता है। इतने महत्वपूर्ण निर्णय को लेने में व्यक्ति की सहायता के लिए एक ऐसी प्रक्रिया की आवश्यकता है, जो व्यक्ति को जीवन के विभिन्न कैरियर क्षेत्रों से अवगत कराये। इसी प्रक्रिया में यह व्यवस्था भी होनी चाहिए कि व्यक्ति अपनी योग्यताओं व क्षमताओं का आकलन अपने कैरियर के सन्दर्भ में कर सके।

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

अध्यापक बनें-जग गढ़े-19

 किसी भी व्यक्ति के लिए अपने लिए रोजगार चुनने का निर्णय बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है। यह निर्णय करने में वह सक्षम तभी हो सकता है, जब वह उपलब्ध विभिन्न अवसरों में तुलना कर ले। तार्किक तुलना के पश्चात ही कोई व्यक्ति विभिन्न विकल्पों में से अपने लिए उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव कर सकता है। अतः निर्णय में सहायता करने के उद्देश्य से अगले पृष्ठ पर व्यवसाय, पेशे और रोजगार में तालिका के रूप में अन्तर प्रदर्शित किया जा रहा है-

व्यवसाय, पेशा तथा रोजगार में तुलना

स्रोतः व्यवसाय अध्ययन, कक्षा 11, एन.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली

क्रम

आधार

व्यवसाय

पेशा

रोजगार

 

1

स्थापना की प्रकृति

उद्यमी का निर्णय व अन्य आवश्यक कानूनी ओपचारिकताएं      

किसी व्यावसायिक संस्था की सदस्यता तथा व्यावहारिक योग्यता का प्रमाण-पत्र

नियुक्ति पत्र तथा सेवा समझौता

 

2

कार्य की प्रकृति

जनता को वस्तुओं तथा सेवाओं की सुलभता

व्यक्तिगत विशेषज्ञ सेवाएं प्रदान करना

सेवा समझौता अथवा सेवा के नियमों के अनुसार कार्य करना

 

3

योग्यता

किसी न्यूनतम योग्यता की आवश्यकता नहीं

विशेष क्षेत्र में प्रशिक्षण तथा विशेष योग्यता

(निपुणता) अति आवश्यक      

नियोक्ता द्वारा निर्धारित योग्यता व प्रशिक्षण

 

4

प्रतिफल

अर्जित लाभ

शुल्क(फीस)

वेतन या मजदूरी

 

5

पूँजी निवेश

व्यवसाय की प्रकृति एवं आकार के अनुसार पूँजी निवेश आवश्यक

स्थापना के लिए सीमित पूँजी निवेश आवश्यक

पूँजी की आवश्यकता नहीं

 

6

जोखिम

अनिश्चित लाभ व अनियमित  जोखिम

सदैव नियमित व निश्चित शुल्क, कोई जोखिम नहीं

 

निश्चित व नियमित वेतन, कोई जोखिम नहीं      

7

हित हस्तांतरण

कुछ औपचारिकताओं के साथ हित हस्तांतरण संभव

संभव नहीं

संभव नहीं

8

आचार संहिता

कोई आचार संहिता निर्धारित नहीं

पेशेवर आचार संहिता का पालन आवश्यक

व्यवहार के लिए नियोक्ता द्वारा निर्धारित नियमों का पालन आवश्यक

समय की एजेंसी -33

 कार्य प्रबंधन तकनीक:

समय के सन्दर्भ में कार्यों का प्रबंधन करने के लिए अर्थात् अपनी समस्त गतिविधियों का प्रबंधन करने के लिए हमें प्रबंधन तकनीकों को लागू करना होगा। कार्य प्रबंधन तकनीक ही हमें सीमित उपलब्ध समय में अधिकतम कार्य करने में सक्षम बनाती है। इसी से हम सीखते हैं कि कम उपयोगी कार्यों से हटाकर समय रूपी संसाधन को अधिक उपयोगी कार्यों में लगाकर अधिक व श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। समय के संपूर्ण उपयोग के लिए हमें कार्य व उपलब्ध समय दोनों पर ध्यान देना होगा। समय एक संसाधन है, सीमित है, जिसको प्रयोग करने के असीमित विकल्प उपलब्ध हैं। सीमित समय में अपने असीमित कार्यों को संपन्न करने के लिए हमें अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप कार्यों के लिए समय आवंटित करना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे उपलब्ध समय का प्रत्येक पल प्रयुक्त हो और सबसे पहले सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि में प्रयोग किया जाए।

 

समय के आधार पर बेहतर फैसला:

समय के सन्दर्भ में कार्य संबधी नियोजन करते समय कार्य की आवश्यकता, उसके महत्व, उसके संपन्न करने या करवाने के विकल्पों पर विचार किया जाता है। कार्य की आवश्यकता, कार्य कितना आवश्यक है? कार्य की गुणवत्ता अधिक महत्वपूर्ण है या कार्य की मात्रा या फिर दोनों में संतुलन बनाने की आवश्यकता है? इस विषय पर भी पर्याप्त विचार करने की आवश्यकता है; क्योंकि सांख्यिकी के सह-संबंध के सिद्धांत के अनुसार, ‘परिमाण और गुणवत्ता में नकारात्मक सह-संबंध होता है।’ यदि हम गुणवत्ता पर अधिक जोर देते हैं, तो उत्पादन कम होगा; इसके विपरीत हम कार्य की मात्रा पर अधिक जोर देते हैं, तो गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः यह निर्धारित करना आवश्यक है कि हमारी प्राथमिकताएँ क्या हैं?

Rounded Rectangle: ‘परिमाण और गुणवत्ता में नकारात्मक सह-संबंध होता है।’
 

 

 

 


कार्य किसी से करवाया जा सकता है या उसके महत्व को देखते हुए उसे स्वयं ही करना उचित होगा? उसके लिए कितना समय लगाना उचित होगा? समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन के अन्तर्गत आवश्यक है कि हम सभी पहलुओं पर विचार करके बेहतर फैसला लें ताकि न्यूनतम समय में गुणवत्तापूर्ण कार्य संपन्न होना संभव बनाकर बचे हुए समय का अन्य गतिविधियों में निवेश कर सकें।

सोमवार, 18 जनवरी 2021

समय की एजेंसी-32

  कैसे करें कार्य प्रबंधन?

 


कार्य प्रबंधन के महत्व को सभी व्यक्ति स्वीकार करने लगे हैं। वर्तमान समय में कार्य प्रबंधन पर पर्याप्त लिखा जा रहा है। केवल लिखा ही नहीं जा रहा, छप व बिक भी रहा है। केवल छप व बिक ही नहीं रहा पर्याप्त रूप से पढ़ा भी जा रहा है। कार्य प्रबंधन की आवश्यकता को समझने के कारण ही आज के युवा पर खाली समय देखने को नहीं मिलता। विद्यार्थी अपने अवकाश के समय में भी विभिन्न अतिरिक्त कक्षाओं में जाता है। अध्ययन शिविरों में जाता है। हाबी क्लासेस में जाता है। अतिरिक्त समय में अतिरिक्त आमदनी के प्रयास भी बढ़ते जा रहे हैं। यहाँ तक कि पारंपरिक रूप से खाली समय में गप्पें लगाने वाली गृहिणियाँ भी विभिन्न कलाओं और शिल्पों को सीखकर उत्पादक कार्य में योगदान देने लगी हैं। इस प्रकार कार्य प्रबंधन के महत्व को वर्तमान में बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जाने लगा है।

 

      अब आवश्यकता इस बात की है कि समय जैसे दुर्लभ तत्त्व का प्रबंधन कैसे किया जाय? वास्तव में समय का प्रबंधन नहीं गतिविधियों का प्रबंधन किया जाना है। समय के संदर्भ में कार्य का प्रबंधन किया जाना है। समय का तो विभिन्न गतिविधियों के लिए आवंटन किया जाता है। इस पर व्यावहारिक दृष्टिकोण से विचार किया जाना उचित रहेगा।  कुछ सहज, सरल व बोधगम्य युक्तियों का निर्धारण कर प्रस्तुत किया जाए ताकि जन सामान्य उन युक्तियों का प्रयोग कर अपने समय का सदुपयोग कर सके। अपने समय की प्रत्येक इकाई का प्रयोग करते हुए अपने समय को अधिक गुणवत्तापूर्ण कार्यों में निवेश कर समय की एजेंसी का मालिक बन सके। पीटर ड्रकर के अनुसार, ‘प्रबंधक का काम है, काम को सही करने का और नेतृत्वकर्ता का काम है सही काम करने का।’ अपने जीवन का आपको नेतृत्व भी करना है और अपने समय का प्रबंधन भी आप ही को करना है। इस प्रकार आप अपने प्रबंधक और नेता दोनों ही हैं। अतः हमें न केवल सही कामों में अपने समय का निवेश करना है; वरन् कामों को सही भी करना है।

 क्या करना है? कब करना है? कैसे करना है? किस समय करना है? कितना समय लगेगा? क्या कोई अन्य तरीका है, जिसकी सहायता से इससे कम समय में अमुक कार्य को पूर्ण गुणवत्ता सहित पूर्ण किया जाना संभव हो। इन सभी प्रश्नों पर पूर्ण रूप से विचार करने के बाद ही कार्य और समय के सन्दर्भ में बेहतर फैसला किया जा सकता है। यह कार्य प्रबंधन का क्षेत्र है। कार्य प्रबंधन ही हमें समय की एजेंसी प्रारंभ करने की सामर्थ्य प्रदान करता है। कार्य प्रबंधन ही है, जो हमें समय के व्यवस्थित उपयोग करने की तकनीक बताकर हमें जीवन के प्रत्येक पल को जीने का अवसर प्रदान करता है।









 

अध्यापक बनें-जग गढ़ें-18

 व्यवसाय के अन्तर्गत प्रमुख रूप से दो क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है-

1.    उद्योग- उद्योग से आशय उन आर्थिक क्रियाओं से है, जिनके अन्तर्गत संसाधनों को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है। सामान्यतः इन क्रियाओं के अन्तर्गत यांत्रिक उपकरणों और तकनीकी कौशल का प्रयोग किया जाता है। उद्योग के अन्तर्गत वस्तुओं का उत्पादन, प्रक्रियाकरण, पशुओं का प्रजनन और पालन आदि से जुड़ी क्रियाएं भी सम्मिलित होती हैं। व्यापक अर्थ में उद्योग का अर्थ समान वस्तुओं अथवा संबन्धित वस्तुओं के उत्पादन में लगी इकाइयों के समूह से है।

2.    वाणिज्य- वाणिज्य किसी भी देश के विकास की आधारशिला होती है। वाणिज्य में सामान्यतः दो प्रकार की क्रियाएं सम्मिलित की जाती हैं। पहली वे जो माल की खरीद और बिक्री के लिए की जाती हैं। उन्हें व्यापार कहते हैं। दूसरे वे विभिन्न प्रकार की सेवाएं जो व्यापार की सहायक होती हैं। इन्हें सेवाएं अथवा व्यापार की सहायक सेवाएं कहते हैं। सहायक सेवाएँ किसी भी व्यवसाय, उद्योग और व्यापार के संचालन में सहायता करने वाली सेवाएँ हैं। बैंकिग, बीमा आदि वित्तीय सेवाएं, परिवहन सेवाएं, संचार सेवाएं जैसी सेवाएं उद्योग और व्यापार के संचालन को सुलभ बनाती हैं।

            वाणिज्य प्राचीन काल में महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। खेती को अत्यन्त सम्मानित आजीविका के रूप में देखा जाता था। वाणिज्य मध्यम सम्मान पाता था। नौकरी को हीन भावना से ही देखा जाता था। वास्तविकता तो यही है कि किसान अपने धंधे का स्वामी होता है। व्यवसायी भी अपने धंधे का स्वामी होता है। दूसरी ओर नौकरी करने वाले व्यक्ति को अपने काम के संदर्भ में निर्णय लेने के अधिकार नहीं होते। वास्तविकता यह है कि निर्णय करने की शक्ति ही सम्मान की पात्र होती है। इसी कारण प्राचीन काल में कहावत थी-

‘उत्तम खेती मध्यम वान(वाणिज्य), नीच चाकरी भीख निदान।’

            वर्तमान समय में जनता में नौकरी को प्राथमिकता दी जाने लगी है किंतु इससे वाणिज्य का महत्व कम नहीं हुआ है। वाणिज्य ही देश की आर्थिक गतिविधियों का आधार और सबसे अधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है।

            वाणिज्य के अन्तर्गत सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध है। अतः कैरियर के बारे में निर्णय करते समय उपलब्धता के आधार पर यह क्षेत्र महत्वपूर्ण अवसरों के रूप में देखा जा सकता है।

(ख) पेशाः

पेशे के अन्तर्गत व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपनी विशेषज्ञ सेवाएं प्रदान करता है। इसके लिए विशेष क्षेत्र में प्रशिक्षण और विशेष योग्यता(निपुणता) की आवश्यकता पड़ती है। यह निपूणता ही व्यक्ति की सफलता का आधार होती है। किसी पेशे को करने के लिए किसी पेशेवर संस्था की सदस्यता और व्यावहारिक अनुभव की आवश्यकता होती है। यही नहीं इसमें पेशेवर आचार संहिता के अनुपालन की आवश्यकता भी पड़ती है। किसी भी पेशे की स्थापना में कम पूँजी लगती है। अतः जोखिम भी कम होता है। शुल्क के रूप में आय प्राप्त होती है। चिकित्सक और वकील पेशेवर के उदाहरण हैं।

(ग) रोजगार या नौकरीः 

रोजगार या नौकरी के लिए किसी पूँजी की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके अन्तर्गत कोई जाखिम भी नहीं होता। इसमें किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था के अधीन काम करना होता है। नियुक्ति पत्र या सेवा समझौते के अन्तर्गत काम मिलता है। काम स्वीकार करने के बाद सेवा शर्तो के अधीन काम करना होता है। उसके संबन्ध में निर्णय लेने का अधिकार भी कर्मचारी को नहीं होता। नियोक्ता द्वारा निर्धारित योग्यता, कौशल या अपेक्षाओं को पूरा करने के बाद ही नियुक्ति पत्र प्राप्त होता है। कार्य व्यवहार के लिए नियोक्ता द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना आवश्यक है। किसी भी प्रकार की पूँजी की आवश्यकता नहीं पड़ती। बिना किसी जोखिम के निर्धारित काम पूरा करने पर नियमित व निर्धारित वेतन प्राप्त होता है। घरेलू नौकर से लेकर देश के सचिव तक इस श्रेणी में सम्मिलित हो जाते हैं।

रविवार, 17 जनवरी 2021

अध्यापक बनें-जग गढ़ें-17

 

(क) व्यवसाय-

व्यवसाय का अग्रेजी शब्द ^Business* है जिसका अर्थ व्यस्त रहने से लिया जाता है। इस प्रकार उदार अर्थ लेने से आजीविका और व्यवसाय में कोई अन्तर नहीं रह जाता, किन्तु वास्तव में व्यवसाय का अर्थ उन आर्थिक गतिविधियों से लिया जाता है, जिनके अन्तर्गत वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन करके या उनका क्रय-विक्रय करके आजीविका कमाई जाती है।

      व्यवसाय के उदार अर्थ में प्रत्येक आर्थिक गतिविधि व्यवसाय के अन्तर्गत समाहित हो जाती है। व्यवसाय का अर्थ ऐसे किसी भी धंधे से है, जिसमें लाभार्जन हेतु व्यक्ति विभिन्न प्रकार की क्रियाओं में नियमित रूप से लगे रहते हैं। वे क्रियाएं अन्य लोगों की आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु वस्तुओं के उत्पादन, क्रय-विक्रय या विनिमय और सेवाओं की आपूर्ति से संबन्धित हो सकती हैं।

      व्यवसाय के अन्तर्गत उद्योग और वाणिज्य दोनों को ही सम्मिलित किया जाता है। इनका विस्तृत अध्ययन इस पुस्तक में अपेक्षित नहीं है। संक्षेप में यह समझ लेना ही पर्याप्त होगा कि वस्तुओं का उत्पादन उद्योग के अन्तर्गत आता है, तो उन वस्तुओं के क्रय-विक्रय के द्वारा लाभ कमाना व्यापार कहलाता है। व्यापार और उसकी सहायक सेवाएं सम्मिलित रूप से वाणिजय कही जाती हैं। उद्योग के अन्तर्गत निर्माण इकाइयाँ आती हैं। उद्योग में सामान्यतः अधिक निवेश की अपेक्षा की जाती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में बहुत अधिक मात्रा में निवेश होता है तो दूसरी ओर कुटीर उद्योग भी होते हैं जिनमें कम पूँजी से ही काम चल जाता है। उद्योग द्वारा उत्पादित सामान को क्रय करके उपभोक्ता को विक्रय करने का कार्य व्यापार द्वारा किया जाता है।

      व्यवसाय किसी भी देश के आर्थिक विकास का आधार होता है। अरबों रूपये लगाकर बड़़े-बड़े उद्योग स्थापित करने वाले उद्योगपति भी व्यवसायी हैं और गली-गली घूम-घूम कर छोटी मोटी वस्तुएं बेचने वाले भी व्यवसायी हैं। व्यवसाय और व्यापार में अंतर है। सामान्य व्यक्ति व्यवसाय और व्यापार को समानार्थी समझ लेते हैं किंतु दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। व्यवसाय एक व्यापक शब्द है। व्यापार खरीदने और बेचने की क्रियाओं तक सीमित होता है। प्रत्येक व्यापार व्यवसाय भी है किंतु प्रत्येक व्यवसाय व्यापार नहीं होता।

समय की एजेंसी-31

 

11. आवश्यकतानुसार लोचशीलताः कार्य प्रबंधन के अन्तर्गत हम प्रबंधन की तकनीक के अनुसार नियोजन से प्रारंभ करते हैं। योजना पूरी तरह से सोच विचार कर विभिन्न स्तरों पर सलाह-मशवरा और आवश्यक हो तो विशेषज्ञों की सलाह के बाद बनाई जाती है। इसके पश्चात् योजना को संगठन व सहयोगियों की सहायता से लागू किया जाता है। लागू करते समय योजना पर दृढ़ता से कार्य करना आवश्यक है। दृढ़ता से योजना पर काम नहीं किया गया तो योजना का लाभ नहीं मिल पायेगा। दृ़ढ़ता का आशय यह है कि जब तक परिस्थितियों में प्रभावशाली परिवर्तन न हो जाए; तब तक योजना में परिवर्तन नहीं करना चाहिए। हम योजना पर दृढ़ रह सकते हैं किंतु आवश्यक लोचशीलता का गुण भी उसमें होना आवश्यक है। यदि योजना बनाने के आधार में ही आधारभूत परिवर्तन हो जाते हैं, तो उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकने की व्यवस्था ही लोचशीलता कहलाती है।

      इसके पश्चात् भी कुशल प्रबंधन यह भी सुनिश्चित करता है कि तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुसार योजना लोचशील भी रहे। क्योंकि समय के साथ-साथ कई बार अनेक ऐसी समस्याएँ भी आ सकती हैं, जिन पर नियोजन से पूर्व विचार नहीं हो सका था। अतः किसी भी योजना की सफलता के लिए लोचशीलता का गुण होना भी आवश्यक है। यह कार्य प्रबंधन के द्वारा ही आता है।

12. समय-समय पर योजना का पुनरावलोकनः कार्य प्रबंधन के अन्तर्गत प्रबंधन तकनीक के अनुसार नियोजन किया जाता है। योजना का संगठन, कर्मचारीकरण या सहयोगीकरण, निर्देशन व नियंत्रण के पश्चात् संपूर्ण प्रक्रिया का पुनरावलोकन करने की व्यवस्था भी होती है। पुनरावलोकन नियोजन करने की प्रक्रिया, उसे लागू करने की प्रक्रिया, लगे हुए समय और प्राप्त परिणामों व परिणामों की गुणवत्ता का पुनरावलोकन किया जाता है। पुनरावलोकन का उद्देश्य कमियाँ निकालना नहीं वरन भविष्य की योजनाओं में सुधार कर समय की गुणवत्ता व उत्पादकता में और अधिक वृद्धि करना रहता है। कार्य का समय-समय पर पुनरावलोकन व आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही की व्यवस्था कार्य प्रबंधन के अंतर्गत ही आती है।

13.   सफलता का राजमार्गः समय के सन्दर्भ में अपनी गतिविधियों का प्रबंधन करके हम अपने जीवन में उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई का पूर्ण कुशलता, गुणवत्ता और उत्पादकता के साथ प्रयोग कर पाते हैं। समय का पूर्ण गुणवत्ता, उत्पादकता और कुशलता के साथ प्रयोग करने से हम एक दिन में तीन दिन का कार्य करने में सफल हो सकते हैं। कम समय में अधिक व श्रेष्ठ गुणवत्ता का कार्य करना ही तो सफलता का राजमार्ग है। इस प्रकार कार्य प्रबंधन सफलता का राजमार्ग है, जिस पर चलकर व्यक्ति की सफलता के घोड़े सरपट दौड़ लगाते हैं। निःसन्देह समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन करके ही हम सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं। सफलता की प्रक्रिया का प्रारंभ और अंत दोनों ही समय के संदर्भ में कार्य प्रबंधन से होता है।

      इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उपरोक्त लाभों को प्राप्त करने के लिए हमें कार्य प्रबंधन को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है। कार्य प्रबंधन को अपनाए बिना हम अपने जीवन का सही से प्रयोग नहीं कर पाते। हम अपने समय अर्थात् जीवन के बहुत बड़े हिस्से को बर्बाद कर बैठते हैं। अतः अपने जीवन को संपूर्णता के साथ जीने के लिए हमें समय के सन्दर्भ में अपने कार्यों और संपूर्ण गतिविधियों का प्रबंधन करने की आवश्यकता है।

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

युवा दिवस के रूप में विवेकानन्द जयन्ती

 आज १२ जनवरी है, स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती। भारत अनादिकाल से ही ऋषियों और सन्तों की भूमि रहा है। सन्तों के प्रभाव के कारण ही भारत में भौतिकवाद की अपेक्षा आध्यात्म का प्रभाव अधिक रहा है। असख्यों संतो के केवल सीमित मार्ग अपनाने के कारण भारत को अधविश्वासों का देश भी कहा जाता रहा है। सामान्यतः साधु-सन्तों के बारे में माना जाता रहा है कि वे अपनी मुक्ति की कामना की पूर्ति के लिए संसार के दायित्वों से मुखमोड़कर तपस्या में लीन हो जाते हैं और अपनी आत्मा को परमात्मा में विलीन कर देते हैं। इस प्रकार सन्त नितान्त स्वार्थी कहे जा सकते हैं। केवल अपने लिये साधना करना स्वार्थ नहीं, तो और क्या है?  इसी को झुठलाते हुए विवेकानन्द जैसे अनेकों सन्तों ने भारत के विकास में अमूल्य योगदान दिया है।

स्वामी विवेकानन्द पारंपरिक साधु नहीं थे। उन्होंने अपनी मुक्ति के लिए तपस्या नहीं करनी थी। उनके लिए नर ही नारायण  रूप था। उन्होने आजीवन कमजोर वर्गों के उत्थान के लिये प्रयास किए। नारी शिक्षा पर उन्होंने विशेष जोर दिया। वे आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ भौतिक विकास के भी हिमायती रहे। उनकी ही संचेतना व अभिप्रेरणा राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में काम कर रही थी। स्वामी विवेकानन्द कर्म योग और राज योग पर विशेष जोर देते रहे। उन्हें कुछ लोगों द्वारा राजऋषि कहकर भी संबोधित किया जाता है।

    स्वामी जी निर्धन और पीड़ित में शिव रूप देखते थे। स्वामी जी की अपेक्षाओं के अनुरूप भारत निर्माण अभी तक भी नहीं हो पाया है। स्वामी जी के विचारों को अभी भी कार्यरूप में परिणत करने की आवश्यकता है। स्वामी जी एक सशक्त भारत देखना चाहते थे। भारत में जबतक एक भी व्यक्ति भूखा और शिक्षा से वंचित है। स्वामी जी का कार्य अधूरा है, जिसे स्वामी जी हमारे लिए छोड़कर गये हैं।

     अतः आज स्वामी जी के जन्म दिवस के अवसर पर हमें युवा दिवस मनाने की औपचारिकता मात्र से आगे बढ़कर उनके सपनों के भारत के निर्माण के लिए अपने आप को समर्पित करने की आवश्यकता है।वर्तमान में भारत की जनसंख्या में लगभग 50 प्रतिशत युवा हैं। स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिन को युवा दिवस के रूप में मनाकर हम युवाओं को उनके उत्तरदायित्व का भान कराना चाहते हैं। भारतीय युवाओं को आगे बढ़कर युवा भारत का निर्माण करना है। कुशल भारत का निर्माण करना है। विकसित भारत का निर्माण करना है। भूख, गरीबी और अशिक्षा मुक्त भारत का निर्माण करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस कार्य में हमारी सहयोगी बनेगी ऐसी आशा है।