गुरुवार, 24 जुलाई 2014

उपलब्धियों को अपने प्रयासों से आँकें 



मान लीजिए एक विद्यार्थी ने अपने अध्ययन के परिणामस्वरूप अपनी वार्षिक परीक्षाओं में 50 प्रतिशत अंक लाने का लक्ष्य बनाया और वह अपने अध्ययन के परिणाम स्वरूप 51 प्रतिशत अंक प्राप्त कर लेता है, निःसन्देह उसे सफलता मिली है और इसके लिए वह स्वाभाविक रूप से आनन्द की अनुभूति करने का अधिकारी है। दूसरी ओर एक अन्य विद्यार्थी ने 90 प्रतिशत अंकों का लक्ष्य लेकर अध्ययन किया और उसने 80 प्रतिशत अंक प्राप्त किये, तो निःसन्देह उसने पहले वाले से कहीं अधिक अंक प्राप्त किए हैं तथापि वह अपनी योजना में सफल न हो सका। किसी न किसी स्तर पर उससे गलती हुई है। वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया है। वह अपने लक्ष्य के अनुरूप योजना बनाने, संसाधन जुटाने या प्रयास करने में सफल नहीं रहा है। 
          अतः उसे आगामी वर्षो का नियोजन करते समय अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। उसे अपने पूर्वानुमान, लक्ष्य, योजना, संसाधनों , तकनीकी व कार्यकौशल के पुनरावलोकन की आवश्यकता है। सफलता का आशय निरपेक्ष रूप से परिणाम या उपलब्धियों से नहीं है। सफलता को सापेक्ष रूप से अपने नियोजन के तुलना करके ही आँका जा सकता है। सफलता को अपने द्वारा किए गये प्रयासों के सापेक्ष ही आँका जा सकता है। हमें समझना पड़ेगा कि हम अपनी उपलब्धियों की तुलना दूसरे व्यक्तियों की उपलब्धियों से नहीं, वरन् अपने द्वारा किए गये प्रयासों से करनी है। अपनी योजनाओं से करनी है। उपलब्धियाँ कर्म सापेक्ष होती हैं, व्यक्ति सापेक्ष नहीं। निष्कर्षतः अपने प्रयासों से लक्षित परिणामों के लिए जिस प्रकार नियोजन में कुशलता की आवश्यकता है; संगठन कला की आवश्यकता है; संसाधनों के उचित बँटवारे की आवश्यकता है; कुशल निर्देशन व नियंत्रण की आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार सफलता की अनुभूति करने के लिए सफलता को समझने की आवश्यता है। सफलता को किए गये प्रसायों के सन्दर्भ में जानने की आवश्यकता है और प्राप्त परिणाम को स्वीकार कर उससे संतुष्टि प्राप्त करते हुए आलस्य से बचकर अगले लक्ष्य के लिए गतिमान रहने की आवश्यकता है। आखिर आप सफलता के आकांक्षी है आपको हर पल जागरूक रहने की आवश्यकता है।


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