मानव विकास के लिए अभिप्रेरणा एक आवश्यक तत्व है। मानव मशीन मात्र नहीं है कि जब उसे चला दिया जाय। काम करने लगेगी। मानव के पास काम करने की क्षमता व योग्यता के साथ-साथ ‘काम करने की इच्छा’ या मानसिक तत्परता होना भी आवश्यक है। इस मानसिक तत्परता को जाग्रत करने का काम करने वाली शक्ति ही अभिप्रेरक कही जाती है। मानव-शक्ति के व्यवहार को निर्देशित करने के लिए उसका सहयोग प्राप्त करने की कला व विज्ञान को ‘अभिप्रेरण’ कहते हैं। वास्तव में वह मानसिक शक्ति जो व्यक्तियों में स्वेच्छया काम करने की प्रवृत्ति को जाग्रत करती है। अभिप्रेरणा कही जाती है। अभिप्रेरण अन्तर्विषयक शब्द है। इसका प्रयोग प्रबंधन में किया जाता है किन्तु इसका मूल मनोविज्ञान में मिलता है। वस्तुतः अभिप्रेरण एक मनोवैज्ञानिक शक्ति है जो व्यक्तियों में कार्य करने की तत्परता जाग्रत करती है तथा उसे बनाये रखती है।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हर्जबर्ग ने पीट्सबर्ग में किए गये अनुसंधानों से मनुष्य की आवश्यकताओं को दो वर्गो में वर्गीकृत किया- स्वास्थ्य आवश्यकताएँ व अभिप्रेरक आवश्यकताएँ। हर्जबर्ग ने कार्य, उपलब्धियाँ, उत्तरदायित्व, मान्यता, उन्नति व विकास जैसे तत्वों को अभिप्रेरक तत्वों में गिनाया है। दूसरी ओर मास्लो ने आवश्यकता क्रमबद्धता के सिद्धांत के द्वारा यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि मानव आवश्यकताओं को क्रमबद्ध किया जा सकता है। ए.एच. मास्लो ने अपनी पुस्तक ‘^^A Theory of Human Motivation** में विभिन्न मानवीय आवश्यकताओं को क्रमबद्ध किया है-
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