गुरुवार, 17 जुलाई 2014

सफलता परीक्षा केन्द्रित नहीं, प्रयास केन्द्रित

सफलता परीक्षा केन्द्रित नहीं, प्रयास केन्द्रित




          विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिए विद्यालय में जाता है। वह प्रति दिन प्रति कालांश कुछ न कुछ सीखता ही है। अध्यापक विभिन्न प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीकों से विद्यार्थियों को सिखाने का प्रयत्न करते रहते हैं। विद्यार्थी भी कक्षा और कक्षा से बाहर भी सीखने में मगन रहते हैं। वे प्रतिक्षण उपलब्धियाँ हासिल करते हैं किन्तु अध्यापक अपने विद्यार्थियों को इन उपलब्धियों की अनुभूति कर पाने में समर्थ नहीं बना पाते। यदि इस प्रकार की अनुभूति कराने में समर्थ हो जायें तो अध्यापकों को विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करने के लिए परेशान न होना पड़े और यदि अध्यापक विद्यार्थियों को कार्य से अभिप्रेरित करने की कला का विकास कर सकें तो अनुशासनहीनता की समस्या का स्वतः ही समाधान हो जाय। यदि विद्यार्थियों को परीक्षाओं से डराने की अपेक्षा उन्हें सीखने की ओर लगाया जाय तो कार्य स्वयं ही अभिप्रेरणा का साधन बन जायेगा।
              वे जो सीख रहे हैं, उसकी अनुभूति करना उन्हें सिखा दिया जाय तो वे सफलता को स्वीकार करने व उसका आनन्दोत्सव मनाने की आदतों का विकास कर सकेंगे। विद्यार्थियों को जो मिला है, उस पर प्रसन्न होने का अवसर देने की अपेक्षा उन्हें परीक्षाओं के नाम पर डराया जाता है। उन परीक्षाओं को काल्पनिक उपलब्धियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो वास्तव में विद्यार्थी को कुछ भी नहीं सिखातीं। परीक्षा सदैव खरा मापन करती हो, ऐसा भी नहीं है। यदि कोई विद्यार्थी परीक्षा में शून्य अंक प्राप्त करता है तो इसका आशय यह हुआ कि उस विषय में उस परीक्षार्थी को अपने प्रयासों से शून्य उपलब्धि हासिल हुई हैै अर्थात उसे कुछ भी नहीं आता। अब किसी भी विद्यार्थी के लिए जिसने वर्ष भर प्रयास किये हैं, जिसने वर्ष भर बस्ते को ढोया है, व्याख्यानों को झेला है; उसका ज्ञान शून्य होना तो असंभव है। यह तो परीक्षा प्रणाली की ही खामी है कि वह उस विद्यार्थी के ज्ञान का मूल्यांकन नहीं कर पाई।
              परीक्षा पास करना उपलब्धि नहीं, वरन सीखना उपलब्धि है और वह परीक्षाओं से नहीं, कक्षा और कक्षा से बाहर निरंतर प्रयासरत रहने से निरंतर प्राप्त होती रहती है किन्तु विद्यार्थी को उन उपलब्धियों को स्वीकार करना सिखाने में अध्यापक सफल नहीं हो पाते। यह भी कहा जा सकता है कि उसके लिए अध्यापक प्रयास ही नहीं करते। यदि विद्यार्थी को दिन-प्रतिदिन प्राप्त होने वाली सफलताओं को स्वीकार करना सिखाया जा सके तो वह निश्चित रूप से सीखना उनके लिए आनन्ददायक अनुभव हो जायेगा। अतः सफलता तभी मिल सकती है, जब हम अपने प्रत्येक प्रयास के महत्व को समझे और प्रत्येक प्रयास की पूर्णता को स्वीकार करें। पूर्णता के साथ प्रयास करना ही अपने आपमें सफलता है। छोटे-छोटे प्रयास महत्वपूर्ण होते हैं। छोटी-छोटी सफलताएँ भी महत्वपूर्ण होती हैं। ध्यान रखें छोटी-छोटी बातें ही पूर्णता की ओर ले जाती हैं और पूर्णता कभी छोटी नहीं होती। 


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