ठीक, यही स्थिति सफलता की भूख के बारे में भी है। शारीरिक भूख तो कुछ घण्टों के लिए शांत हो भी जाय किन्तु सफलता की भूख मानसिक भूख है। यह शांत नहीं होती। एक उपलब्धि को प्राप्त करते ही दूसरा लक्ष्य सामने होता है। हम किसी स्थान पर रूक नहीं सकते। एक लक्ष्य को प्राप्त करते ही दूसरा लक्ष्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा होता है। ए.एच. मास्लो का आवश्यकता का क्रमबद्धता का सिद्धांत सफलता की भूख के मामले में भी पूरी तरह लागू होता है। कविवर रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार, ‘‘राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही अभ्रभेदी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही संुदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसका अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।’’
वास्तव में फूल हो या पेड़, जीवन यात्रा कहीं भी समाप्त नहीं होती। प्रत्येक लक्ष्य दूसरे लक्ष्य की ओर संकेत करते हुए आगे बढ़ने को अभिप्रेरित करता है। जीवन यात्रा है, विश्राम नहीं। विश्राम की चाह रखने वालों को समझ लेना चाहिए कि ऊर्जस्वित होने के लिए कुछ समय के लिए यात्री विश्राम कर ले वह अलग बात है किन्तु उसे यह याद रखना होगा कि उसे यात्रा करनी है। पूर्ण विश्राम की स्थिति तो मृत्यु के बाद ही संभावित है किंतु यह कहना कठिन है कि मृत्यु के बाद भी पूर्ण विश्राम मिल पाता है। अतः स्मरण रखें कि कोई भी उपलब्धि जीवन का लक्ष्य नहीं है। कोई भी उपलब्धि जीवन की सफलता नहीं है। जीवन की सफलता तो आनंदपूर्ण यात्रा करते रहना है। एक पड़ाव की सुषमा का अवलोकन कर अगले पड़ाव की यात्रा के लिए चल पड़ना है। यह सब सफलता की भूख की निरंतरता बने रहने के कारण ही संपन्न होगा, क्यों कि यात्रा के लिए अगला कोई लक्ष्य होना आवश्यक है। एक उपलब्धि के बाद दूसरी उपलब्धि प्राप्त करने का लक्ष्य ही तो सफलता की भूख है, जो विकास के पथिक के लिए अनिवार्य पाथेय है।
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