एक गलत निर्णय आप पर, आपके परिवार पर और आपकी संस्था पर भारी पड़ सकता है
मेरे एक साथी हैं उन्होने कई बार उच्च पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया। उच्च पद पर उनकी नियुक्ति भी एकाधिक बार हो चुकी है किन्तु उचित निर्णय न ले पाने के कारण वे उच्च पद को ग्रहण न कर सके। एक बार तो उन्हें उच्च पद पर नियुक्ति की सूचना भी मिल गई। उच्च पर पर कार्य ग्रहण करने का निर्णय लेने के लिए उन्हें लगभग दो माह से अधिक का समय मिला, जो कि इस विषय पर परिवार के साथ विचार-विमर्श कर सामूहिक निर्णय लेने के लिए पर्याप्त कहा जाना चाहिए।
लगभग दो माह तक उन्होंने विभिन्न पक्षों से विचार-विमर्श किया निर्णय लेने की प्रक्रिया में फँसे रहे। निर्णय लेने में वे अन्ततः कशमकश में फँसे रहे और आधे-अधूरे मन से अपने वर्तमान पद से त्यागपत्र देकर नवीन पद का कार्यभार ग्रहण कर लिया।
उनके नवीन पद पर कार्यभार ग्रहण करते ही, उनके पुराने पद पर ही रहने के पक्ष के हिताधिकारी सक्रिय हो गये और उनका नवीन पद उच्च होते हुए भी वहाँ पर रहना, उनके लिए मुश्किल हो गया और उन्हें पुराने पद पर वापस आने का निर्णय लेना पड़ा। नवीन पद पर जहाँ कार्यभार ग्रहण कर लिया, छोड़ने के लिए एक माह की पूर्व सूचना या एक माह का वेतन जमा कराना आवश्यक था। उनको एक माह का वेतन जमा कराना पड़ा, इस इधर-उधर के कारण लगभग एक माह का वेतन भी नहीं मिला। आर्थिक हानि हुई, सेवा अभिलेखों में लगभग एक माह की सेवा की वरिष्ठता की हानि हुई, लगभग दो माह तक मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा वह अलग से।
अतः स्मरण रखें कोई भी निर्णय उचित समय पर, उचित निर्णय प्रक्रिया का पालन करते हुए और समस्त हिताधिकारियों से उचित सलाह लेकर करें। सदैव याद रखें, यदि अनिवार्य परिस्थितियाँ न हों तो प्रभावित होने वाले सभी व्यक्तियों से विचार-विमर्श करके ही निर्णय लें; क्योंकि एक व्यक्ति से दो व्यक्तियों का निर्णय सही होने की संभावना अधिक होती है। हाँ! निर्णय पूर्ण सोच विचार के साथ करें किन्तु निर्णय हो जाने के बाद उसका क्रियान्वयन दृढ़ता और प्रतिबद्धता के साथ करें आखिर आपकी विश्वसनीयता का भी प्रश्न है।
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