बुधवार, 19 नवंबर 2014

साध्य के साथ साधन पर भी ध्यान दीजिए


येन केन प्रकारेण उद्देश्य की प्राप्ति न तो व्यक्ति के हित में होती है और न ही परिवार व समाज के; कार्य करने में आनन्द भी नहीं आता। वस्तुतः जितना महत्वपूर्ण कार्य होता है, उतना ही महत्वपूर्ण कार करने का तरीका और कार्य करने के साधन भी होते हैं। किसी भी कीमत पर सफलता की कोशिश करने वालों को कार्य करने की प्रसन्नता नसीब नहीं होती।
यदि कोई विद्यार्थी किसी भी कीमत पर परीक्षा उत्तीर्ण करने को लक्ष्य मानकर चलेगा तो वह विद्यार्थी की गरिमा से ही हाथ धो बैठेगा। वह अपने लक्ष्य से ही भटक जायेगा। वास्तविक रूप से परीक्षा पास करना, उसका लक्ष्य नहीं; लक्ष्य तो ज्ञानार्जन है और परीक्षा तो अर्जित ज्ञान का मापन या मूल्यांकन करने का उपकरण मात्र है। किसी भी कीमत पर परीक्षा पास करने की उसकी जिद उसे अपराधी बनायेगी और शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगी, जो न तो व्यक्ति के रूप में उसके हित में है और न ही परिवार और समाज के लिए हितकर है। वास्तविक बात यह है कि किसी भी कीमत पर परीक्षा पास करने के विचार को जिस समय वह स्वीकार करता है, उसी समय वह असफलता की राह को चुन लेता है; क्योंकि उसका उद्देश्य तो ज्ञानार्जन था, परीक्षा पास करना नहीं। तभी तो एम. हेनरी ने कहा है, ‘विश्व में सबसे निकृष्ट व्यक्ति कौन है? जो अपना कर्तव्य जानते हुए भी उसका पालन नहीं करता।
यही कारण है कि महात्मा गांधी सदैव साध्य के साथ-साथ साधन की पवित्रता पर भी ध्यान देते थे। गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन साधन की पवित्रता को बनाये रखने के लिए ही स्थगित कर दिया था। फ्रासिंस बेकन का विचार था कि ‘बुरा व्यक्ति उस समय और भी बुरा हो जाता है, जब वह अच्छा होने का ढोंग रचाता है।’ वास्तव में हमें अपना कार्य पूर्ण निष्ठा, समर्पण व उचित साधनों का प्रयोग करते हुए ही संपन्न करना चाहिए; प्रदर्शन की इच्छा से किया गया कार्य श्रेष्ठता प्राप्त नहीं कर पाता किन्तु श्रेष्ठ कार्य का प्रदर्शन अच्छा होता है। कार्य करना अपने आप में महत्वपूर्ण है, जब कार्य करने में ही आनन्द लिया जायेगा तो आनन्द के लिए परिणाम की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। जीवन में प्रबंधन का प्रयोग हमें यही तो सिखाता है। 

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