मंगलवार, 11 नवंबर 2014

जीवन के सन्दर्भ में प्रबंधनः


प्रबन्धन को जीवन के सन्दर्भ में समझे बिना जीवन प्रबन्धन को नहीं समझा जा सकता। प्रबन्धन उद्देश्यपरक, व्यक्तिपरक, लोचपूर्ण व सर्वव्यापक प्रक्रिया है। प्रत्येक उद्देश्यपूर्ण क्रिया जो व्यक्तियों के समूह द्वारा सम्पन्न की जाती है, प्रबन्ध के प्रयोग से श्रेष्ठ परिणाम प्रदान कर सकती है। वस्तुतः प्रबन्धन मानव क्रिया से सम्बन्धित है, प्रबंधन मानव संबन्धों से संबन्धित है। प्रबन्धन का प्रयोग मानव द्वारा किया जाता है ताकि जीवन सुगम, आनन्दपूर्ण व सन्तुष्टिदायक बन सके। अभी तक प्रबन्धन का प्रयोग मानव समूह की क्रियाओं का पूर्वानुमान नियोजन, संगठन, समन्वयन, निर्देशन, अभिप्रेरण व नियन्त्रण करने में किया जाता रहा है। 
जीवन प्रबन्ध का अर्थ समझने के लिए इसकी रचना पर ध्यान देना आवश्यक हैं। जीवन प्रबन्धन दो शब्दों से मिलकर बना है जीवन व प्रबन्धन। इसके अर्थ को स्पष्ट समझने हेतु दोनो शब्दों के अर्थ पर विचार करना उपयोगी रहेगा। 
      जीवन शब्द के विभिन्न अर्थ लिये जाते हैं किन्तु यहाँ पर जीवन से आशय गर्भ में जीव की उत्पत्ति से लेकर मृत्यु तक की प्रक्रिया जीवन है। प्रबन्धन के जन्मदाता हेनरी फेयोल के अनुसार-प्रबन्ध से तात्पर्य पूर्वानुमान लगाने, नियोजन करने, संगठन करने, आज्ञा देने, समन्वय व नियन्त्रण करने से है। प्रबन्धन को स्पष्ट करते हुए सी.एस.जॉर्ज ने लिखा है कि दूसरों से कार्य करवाना ही प्रबन्धन है। कुण्टज ने औपचारिक दलों में संगठित लोगों से उनके साथ मिलकर कार्य करने व कराने की कला को प्रबन्धन की संज्ञा दी है। 
        ध्यान रहे प्रबन्ध लोचपूर्ण है व जहाँ इसका प्रयोग किया जाता है उसके अनुरूप अपने आप को ढाल लेता है। अतः जीवन प्रबन्धन को ऐसी कला व विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो जीवन को सुगम, आनन्दपूर्ण व सन्तुष्टिदायक बनाती है। वास्तव में जीवन को सुगम आनन्दपूर्ण व सन्तुष्टिदायक बनाने के लिए जीवन में प्रबन्धन के सिद्धान्तों व तकनीकियों का प्रयोग किया जा सकता है। यह प्रबन्धन का श्रेष्ठतम प्रयोग होगा, अन्य समस्त क्षेत्रो में सभी क्रिया, विश्लेषण व अध्ययन जीवन की सफलता हेतु ही किये जाते हैं किन्तु जीवन प्रबन्धन की ओर हमने ध्यान नहीं दिया। यदि प्रबन्धन का प्रयोग इस क्षेत्र में भी किया जाता तो उपयोगी रहता। जीवन प्रबन्धन व्यक्ति व समाज दोनो के लिए समान रूप से उपयोगी है।

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