रविवार, 9 नवंबर 2014

जीवन की समग्रता और प्रबंधन

जीवन की समग्रता और प्रबंधन 


हमने जीवन में से प्रबंधन को निकाल दिया। जीवन की समग्रता को त्यागकर उसे टुकड़ों-टुकड़ों में जीने लगे। उसी का परिणाम है जीवन का तनावों से भर जाना। शिक्षा, आजीविका, व्यवसाय, प्रशासन आदि जीवन के घटक हैं; परिवार, देश, समाज व विश्व की व्यवस्था सभी कुछ तो व्यक्ति के जीवन को सुखद व आनन्दपूर्ण बनाने के लिए है। जब जीवन के सभी अंगों में प्रबंधन महत्वपूर्ण है तो समग्र जीवन का प्रबंधन और भी अधिक महत्वपूर्ण है। हमें प्रत्येक गतिविधि का प्रबंधन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि समग्र जीवन सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। अध्ययन व समझ विकसित करने के लिए विश्लेषण महत्वपूर्ण हो सकता है किन्तु परिणाम तो संश्लेषण से ही प्राप्त होंगे। जीवन को समग्रता से ही देखना होगा। जीवन का मूल्यांकन टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं समग्रता से ही किया जा सकता है। जीवन का नियोजन करने के लिए इसे विभिन्न वर्गो में वर्गीकृत करना निःसन्देह आवश्यक है किन्तु प्रबंधन के निर्देश की एकता के सिद्धांत को नहीं भुलाया जा सकता। जीवन के सभी भागों को जीवन के ध्येय से ही निर्देशित होना चाहिए। निःसन्देह कार्य विभाजन से विशिष्टीकरण आता है और विशिष्टीकरण से सभी को लाभ प्राप्त होता है किन्तु सभी गतिविधियों की योजना बनाते समय स्मरणीय है कि जीवन सर्वोच्च है। जीवन की समस्त गतिविधियाँ जीवन के ध्येय से ही निर्देशित होनी चाहिए। सभी योजनाएँ, समस्त गतिविधियाँ, हमारे समस्त कार्य, संपूर्ण अर्थात समग्र जीवन के लिए हितकर होने चाहिए।

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