जीवन में प्रबन्धन एक अप्रचलित या नई अवधारणा प्रतीत होती है किन्तु यह है प्राचीनतम्। मनुष्य ने जबसे सामूहिक रूप से रहना व मिलकर कार्य करना प्रारंभ किया है, तभी से प्रबंधन का भी अस्तित्व है। मानव का साथ-साथ रहना व कार्य करना संबन्धों के प्रबंधन के द्वारा ही संभव होता है। नितांत वैयक्तिक उद्देश्यों को लेकर तो न साथ-साथ रहना संभव है और न ही सहयोगी बनकर कार्य करना। अतः प्रबंधन के सिद्धान्तों का विकास भले ही बीसवीं शताब्दी में माना जाता हो। प्रबंधन का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आया है। प्रबंधकीय अनुभवों एवं शोध कार्यो के आधार पर प्रबंध प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए जो आधारभूत सत्य खोजे गये हैं, उन्हें ही प्रबंधन के सि़द्धांत कहा जाता है। स्पष्ट है प्रबंधन का प्रयोग पहले हुए और सिद्धांतों की खोज बाद में हुई होगी। हाँ, इसके नाम ओर प्रयोग के तरीके भिन्न-भिन्न रहे हों; यह संभव है।
प्राचीन भारत में व्यक्ति ने प्रबन्धन का प्रयोग मानव जीवन को सुगम, आनन्दपूर्ण व सन्तुष्टिदायक बनाने के लिए किया किन्तु आज कोई भी देश यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि उसके नागरिक सुगम, आनन्दपूर्ण व सन्तुष्टिदायक जीवन जी रहे हैं। वास्तव में जीवन में प्रबन्धन का प्रयोग किये बिना इन उद्देश्यों को प्राप्त किया ही नहीं जा सकता। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जीवन प्रबन्धन की अवधारणा का विकास व विस्तार आवश्यक है। प्रबन्धन के सिद्धान्त उद्देश्यपरक, सर्वव्यापक व लोचपूर्ण हैं, अतः इनका प्रयोग व्यक्गितगत जीवन में भी किया जा सकता है। जीवन प्रबन्धन के बिना जीवन से सन्तुष्टि सम्भव नहीं।
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