1. शारीरिक व मानसिक रूप से स्वास्थ्य:- प्राचीन कहावत है, ‘पहला सुख निरोगी काया...............।’ शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। स्वास्थ्य के अभाव में व्यक्ति का जीवन ही भार बनकर रह जाता है। वह अपने कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों के निर्वहन के बारे में तो सोच ही नहीं सकता। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, ‘दुःख का कारण दुर्बलता है। दुर्बलता से अज्ञानता आती है और अज्ञानता से दुःख...........’
जब व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होगा तभी तो वह प्रबंधन कौशल की समझ रखकर उसका प्रयोग कर सकेगा। अतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि वह अपने सर्वतोमुखी स्वास्थ्य का हमेशा ध्यान रखे। जो व्यक्ति अपने स्वास्थ्य का प्रबंधन नहीं कर सकता वह किसी का भी प्रबंधन नहीं कर सकता।
2. सैद्धान्तिक स्पष्टताः- जिस कार्य को हम करने जा रहे हैं और जिसके लिए हमें अपने सहयोगियों से सहयोग लेना है। सर्वप्रथम उस कार्य और उसकी आवश्यकता, उपादेयता उसकी प्रक्रिया के बारे में हमारे मस्तिष्क में स्पष्टता होनी चाहिए। जो विचार हमारे मस्तिष्क में ही स्पष्ट न होगा, उसे अपने सहयोगियों के आगे कैसे स्पष्ट किया जा सकेगा? जिसको सहयोगी स्पष्ट रूप से समझेंगे ही नहीं, उसमें वे सहयोग कैसे करेंगे? वैचारिक स्पष्टता के अभाव में उसे मूर्त रूप देना भी संभव नहीं हो सकेगा।
अतः कुशल प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति के मस्तिष्क में सब कुछ स्पष्ट होना चाहिए। उसका ध्येय, उद्देश्य, लक्ष्य, कार्य प्रणाली, संसाधन जितने स्पष्ट होंगे वह उतना ही कुशल प्रबंधक सिद्ध होगा और सफलता प्राप्त कर सकेगा। अपने सहयोगियों को भी सफलता की अनुभूति करा सकेगा।
3. दृढ़ता व लोचशीलता का समन्वयः- निर्णय करना और दृढ़ता पूर्वक उसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना एक प्रबंधक का आवश्यक गुण है। निर्णय करना जितना महत्वपूर्ण होता है, उससे भी महत्वपूर्ण होता है; उसका क्रियान्वयन करना। अच्छे से अच्छा निर्णय भी क्रियान्वयन के अभाव में व्यर्थ होता है। निर्णय के क्रियान्वयन के लिए दृढ़ता आवश्यक है तो दूसरी ओर आवश्यक रूप से लोचशीलता की भी जरूरत पड़ती है। दृढ़ता और जिद में अन्तर होता है। परिस्थितियाँ व वातावरण में परिवर्तन आने पर तदनुकूल परिवर्तन करना लोचशीलता के अन्तर्गत आता है किन्तु केवल कठिनाइयों के कारण योजनाओं में बार-बार परिवर्तन करने वाला कभी भी कुशल प्रबंधक नहीं हो सकता।
अतः कुशल प्रबंधक के लिए आवश्यक है कि उसमें दृढ़ संकल्पशीलता और लोचशीलता दोनों का संतुलन हो। प्रबंधक को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि उसे अपने कर्तव्य, अधिकार व न्याय के प्रति प्रतिबद्धता रखनी चाहिए। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण के अनुसार-
अधिकार खोकर बैठ रहना, यह महादुष्कर्म है,
न्यायार्थ अपने बंधु को भी दण्ड देना धर्म है।
अपने कर्तव्य, उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए अधिकारों की आवश्यकता पड़ती है। अधिकारों का न्याय पूर्वक प्रयोग करते समय अपने-पराये का भेद नहीं रहता। अन्याय किसी के साथ नहीं हो, किसी भी स्थिति में न्याय का हनन न हो; भले ही कोई कितना भी अपना हो अपने कर्तव्य पालन में किसी भी प्रकार की ढील नहीं देकर ही प्रबंधन के उच्च स्तर को बनाये रखा जा सकता है। जिद, अनिर्णय, मन की डावांडोल स्थिति, पक्षपात व भेदभाव की भावना सदैव ही प्रबंधन कौशल को कमजोर करते हैं। अतः सदैव ध्यान रखना चाहिए कि दृढ़ बनें किंतु जिद्दी नहीं; लोचशीलता अपनायें किंतु बिना पैंदे के लोटा न बनें।
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