बिना समय गँवाए निर्णय कीजिए
आप अपने मित्र से एक किताब कुछ दिन के लिए उधार प्राप्त करना चाहते हैं। आपको सन्देह है कि वह आपको किताब देगा या नहीं? ऐसी स्थिति में आप विचार करते हैं कि उससे किताब माँगी ही न जाय। वस्तुतः यहाँ आप प्रयास करने से बच रहे हैं। इसे दूसरे शब्दों में कामचोरी भी कह सकते हैं। वह आपका मित्र है फिर उससे सहयोग लेने में संकोच कैसा? सर्वप्रथम अपने संकोच पर विजय पाइये और अपने प्रयास तो कीजिए। आपको सहयोग लेने का निर्णय लेना है। सहयोग लेना व देना तो व्यक्ति के जीवन का अनिवार्य तत्व है। सहयोग माँगने का निर्णय करने में आप देरी करेंगे तो आप अपने कार्य में पिछड़ सकते हैं। आप ही निर्णय करने में देरी करेंगे तो सहयोग देने वाला सहयोग करेगा कैसे?
आपको अपना कार्य करना है, देना या न देना मित्र का काम है; उसके कार्य के लिए आप पहले से ही चिन्तित क्यों हो रहे हैं? वह अपने कार्य को किस प्रकार करेगा आपको पुस्तक देगा या नहीं देगा? इस पर विचार करते हुए आप अपने प्रयासों को क्यों रोकते हैं? आपका मित्र कुछ भी करे। आपको अपना प्रयास अवश्य ही करना चाहिए और आधे-अधूरे मन से नहीं, पूरी प्रतिबद्धता के साथ करना चाहिए। सबसे पहले महत्वपूर्ण यह है कि आप निर्णय करें और पूरी प्रतिबद्धता के साथ उसका क्रियान्वयन करें। अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। आप अपने मित्र को भविष्य में यह कहने का अवसर क्यों देते हो कि अरे! तुम मेरे पास आये ही नहीं, ऐसा कैसे हो सकता था कि मैं आप से मना करता।
वास्तविकता भी यही है, यदि वह आपका मित्र है और आप अपनी आवश्यकता के बारे में उसे आश्वस्त करा देते हैं तो निःसन्देह वह आपसे इन्कार नहीं करेगा। हाँ, आवश्यकता इस बात की भी है कि आप विश्वस्त भी हों। उस मित्र को ही नहीं, आपके शत्रुओं को भी आप पर विश्वास हो कि आपने जो कहा है, आप अवश्य ही वह वचन पूरा करेंगे। कोई भी कार्य करते हुए आपको गिल्पिन के कथन को स्मरण रखना चाहिए, ‘अधूरे काम मैं बिल्कुल पसन्द नहीं करता, यदि वे उचित हैं तो उन्हें पूर्ण मन से करो, यदि अनुचित हैं तो बिल्कुल त्याग दो।’ यह कथन हमें कार्य को पूर्ण प्रतिबद्धता से करने को अभिप्रेरित करता है। पूर्ण प्रतिबद्धता से कार्य करने से ही तो कार्य करने का आनन्द, विश्वसनीयता और सफलता की अनुभूति कर सकना संभव होगा।
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