मंगलवार, 29 जुलाई 2014

सपने, कल्पनाएँ व उद्देश्यः 


उद्देश्यों की बात तो सभी करते हैं किन्तु इनके अर्थ को लेकर भ्रम की स्थिति पाई जाती है। वास्तव में संगठन व संसाधन लक्ष्य प्राप्ति के साधन मात्र होते हैं, किन्तु यदि आप लक्ष्यों का निर्धारण ही नहीं करेंगे तो साधन क्या करेंगे? इमर्सन के अनुसार, ‘न ही मानवीय श्रम से, न ही पूँजी से और न ही भूमि से धन का निर्माण होता है। कल्पनाएँ हैं जो धन का निर्माण करती हैं।’ यही तो समझने की बात है। इमर्सन जिसे कल्पना कहते हैं, कलाम साहब उन्हें ही सपने कहते हैं। वास्तव में वैचारिक स्तर पर वही तो नवाचार है। नवाचार से ही सृजन का पथ प्रशस्त होता है।
विलियम ग्लूएक के अनुसार, ‘उद्देश्य वे लक्ष्य हैं, जिन्हें संगठन अपने अस्तित्व और संचालन से उपलब्ध करने की अपेक्षा करता है।’ विलियम ग्लूएक संगठन के संदर्भ में उद्देश्यों की चर्चा कर रहे हैं किन्तु वास्तव में लक्ष्य संगठन के नहीं व्यक्तियों के होते हैं। संगठन तो स्वयं ही लक्ष्य प्राप्ति का एक साधन मात्र है। उद्देश्यों को लेकर केस्ट और रोजेनज्विग की परिभाषा कुछ अधिक स्पष्ट है, ‘उद्देश्य अपेक्षित भविष्यकालीन स्थितियाँ हैं, जिन्हें प्राप्त करने के लिए व्यक्ति, समूह और संगठन प्रयासरत रहते हैं।’ इस प्रकार स्पष्ट है कि हम उद्देश्यों को ही प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। यदि हमारे उद्देश्य ही स्पष्ट नहीं होंगे तो प्रयास भी स्पष्ट नहीं हो सकते और सफलता की तो बात करना ही बेमानी होगी, तभी तो इमर्सन कहते हैं कि दक्षतापूर्वक कार्य करने के लिए सबसे जरूरी बात यह है कि कार्य के उद्देश्य स्पष्ट हों। वास्तव में उद्देश्य जितने स्पष्ट और निश्चित होंगे, वे उतने ही अधिक स्फूर्तिदायक, अभिप्रेरक व प्रयासोत्पादक होंगे।

कोई टिप्पणी नहीं: