मंगलवार, 19 अगस्त 2014

उद्देश्यों के प्रकारः


उद्देश्यों के प्रकारः


उद्देश्यों को लेकर आम जन में भ्रम की स्थिति पाई जाती है। सामान्य व्यक्ति इन्हें सपने कह देता है तो कोई दिवा-स्वप्न कहने से भी नहीं चूकता। कल्पना कहकर आपके उद्देश्यों की मजाक उड़ाने वाले भी मिल ही जायेंगे। वास्तव में इनके लिए शब्द प्रयोग को लेकर भी भ्रम की स्थिति पाई जाती है। सामान्यतः ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्य शब्दों का प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जाता है। ये तीनों शब्द एक-जैसे प्रतीत होते हैं, लगभग समानार्थी ही प्रतीत होते हैं किन्तु इनमें सूक्ष्म अन्तर है-

1. ध्येय (Mission) : ध्येय को दीर्घकालीन उद्देश्य कह सकते हैं। मदर टेरेसा ने सेवा को मिशन बना लिया। उसके बाद कार्ययोजना के अन्तर्गत उद्देश्य व लक्ष्यों का निर्धारण होता रहा। ध्येय को एक आदर्श भी कहा जा सकता है। जब हम जीवन के उद्देश्य की बात करते हैं, तब हमारा मतलब ध्येय से ही होता है। ध्येय व्यक्ति के मूल्य व धारणाओं को व्यक्त करता है। ध्येय की प्राप्ति न तो सरल होती है और न ही त्वरित। तभी तो ये दीर्घकालीन उद्देश्य कहे जा सकते हैं। ध्येय का निर्धारण सरल कार्य नहीं है। मनुष्य का ध्येय के निर्माण की प्रक्रिया उसके बचपन से ही प्रारंभ हो जाती है। समाज व परिवार का वातावरण व्यक्ति के अचेतन मन में आदर्श की रचना करना प्रारंभ कर देता है। बहुत कम व्यक्ति होते हैं, जो चिन्तन-मनन करके अपने ध्येय का निर्धारण कर पाते हैं। ध्येय का निर्धारण जीवन की उपयोगिता व सफलता का आधार स्तंभ कहा जा सकता है। व्यक्ति का ध्येय उसके उद्देश्यों व लक्ष्यों को निर्धारित करने में योगदान देते हुए उसके प्रत्येक प्रयास को प्रभावित करता है। कहने का आशय यह है कि जीवन की समस्त गतिविधियाँ हमारे ध्येय से अनुप्राणित होती हैं या होनी चाहिए। ध्येय के पथ पर निरंतर बढ़ते हुए ही तो हम जीवन को सफलता की ओर अग्रसर कर सकते हैं। 
2. उद्देश्य (Objective): उद्देश्यों को मध्ममकालीन उद्देश्य कहा जा सकता है। ये ध्येय से प्रभावित होते हैं तथा लक्ष्यों को जन्म देते हैं। उद्देश्य सदैव परिस्थितिजन्य होते हैं। इन्हें निश्चित समय में प्राप्त किया जा सकता है। ये ध्येय के अनुकूल ही होने चाहिए। इनमें निश्चितता और स्पष्टता व्यक्ति के अन्तर्गत कार्य करने की लगन पैदा करती है। निःसन्देह सपने उद्देश्यों को प्रभावित करते हैं, किन्तु केवल वे सपने जो विश्लेषण के पश्चात् उपलब्ध संसाधनों व क्षमताओं का आकलन करके व्यावहारिक समझे जाते हैं; उद्देश्यों के रूप में परिणत होते हैं। कार्यरत व्यक्तियों के लिए व्यावहारिक उद्देश्य प्रेरणास्रोत होते हैं, जब उन्हें विश्वास होता है कि इन्हें प्राप्त किया जा सकता है और वे इन्हें प्राप्त कर लेंगे। उद्देश्यों का निर्धारण करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे कठिन भले ही हों किन्तु हवाई अर्थात अव्यावहारिक नहीं होने चाहिए।
3. लक्ष्य (Target or Goal) : उद्देश्य को पाने के लिए अनेक कार्य किये जाते हैं। कौन सा काम कब किया जाना है? इसका निर्धारण करना ही लक्ष्य का निर्धारण है। उद्देश्य को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटकर तात्कालिक रुप से संपन्न करने योग्य बनाना ही लक्ष्यों का निर्धारण कहा जा सकता है। लक्ष्य कार्यबद्ध और समयबद्ध होते हैं। लक्ष्य श्रृंखलाबद्ध भी होते हैं। एक लक्ष्य को प्राप्त होते ही दूसरे लक्ष्य के लिए प्रयास प्रारंभ हो जाते हैं। लक्ष्य का निर्धारण करते समय अपने पास उपलब्ध संसाधनों, तकनीकी, क्षमता आदि के साथ संभावित बाधाओं, अभावों और समस्याओं का भी विचार करना पड़ता है। लक्ष्यों को अल्पकालीन या तात्कालिक उद्देश्य भी कहा जा सकता है।

           सफलता के लिए ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्य का निर्धारण और उसके लिए कार्ययोजना बनाना आवश्यक है अन्यथा व्यक्ति बिना गन्तव्य के भटकेगा और जब कुछ प्राप्त करने की इच्छा ही नहीं है, तो प्रयास क्यों और किसके लिए किए जायेंगे? और जब कुछ प्राप्त करने के लिए प्रयास ही नहीं किए गये हैं तो प्राप्त क्या होगा? अतः सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन का ध्येय निर्धारित करें। ध्येय दीर्घकालीन उद्देश्य या आदर्श है, जिसमें तत्कालीनता का अभाव पाया जाता है। हम ध्येय की तरफ गतिमान रहते हैं किन्तु सामान्यतः यह कभी पूर्णतः प्राप्त नहीं हो पाता। वस्तुतः हम जब जीवन के उद्देश्य की बात करते हैं, तब हमारा आशय जीवन के ध्येय से ही होता है।
      हम सामान्यतः कक्षाओं में ‘मेरे जीवन का लक्ष्य’ शीर्षक पर निबंध लिखते हैं। वास्तव में वहाँ ‘लक्ष्य’ शब्द का प्रयोग करने में भूल है। जीवन का लक्ष्य नहीं ध्येय निर्धारित किया जाता है। सामान्यतः देखा जाता है कि विद्यार्थी जीवन का लक्ष्य चिकित्सक बनना, प्रशासनिक अधिकारी बनना, अध्यापक बनना आदि लिखते हैं। ऐसी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। यदि जीवन का उद्देश्य ही कोई पद मात्र प्राप्त करना है तो उस पद को प्राप्त करते ही जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो गया और उसके बाद जीवन समाप्त हो जाना चाहिए। वास्तव में आजीविका के लिए कोई साधन प्राप्त करना या मार्ग का निर्धारण करना तात्कालिक लक्ष्य हो सकता है किन्तु जीवन का ध्येय वह ही होगा जिसे प्राप्त करने के लिए हम आजीवन कर्मरत रहेंगे। 
            यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन का ध्येय ज्ञान का प्रसार करके विश्व कल्याण के लिए काम करना बना लेता हैं तो यह उसके जीवन भर की दिशा निर्धारित कर देता है। ध्येय के निर्धारण के बाद उसे उद्देश्य का निर्धारण करना होगा। ज्ञान का प्रसार करने के लिए वह अध्यापन या पत्रकारिता के पेशे को अपना उद्देश्य बना सकता है। ज्ञान के प्रसार के लिए वह लेखक भी बन सकता है। उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उसे अपने अध्ययन के विषय का चुनाव करना होगा। दसवीं, बारहवीं, स्नातक, शिक्षक प्रशिक्षण/पत्रकारिता का अध्ययन, विद्यालय में काम प्राप्त करना या किसी मीडिया संस्था से जुड़ना आदि विभिन्न लक्ष्यों को एक के बाद श्रृंखलाबद्ध ढंग से प्राप्त करते रहना होगा। उसको ये लक्ष्य तो समय-समय पर प्राप्त होते रहेंगे। किन्तु अध्यापक या पत्रकार बनने का उद्देश्य काफी समय में प्राप्त होगा। हाँ, ज्ञान का प्रसार करके विश्व-कल्याण के लिए काम करने का ध्येय निरंतर जारी रहेगा। यह कार्य कभी भी पूर्णता प्राप्त करने की स्थिति में नहीं पहुँच सकता, क्योंकि यह एक आदर्श है और आदर्श की ओर हमें ही नहीं हमारी भावी पीढ़ियों को भी बढ़ते रहना होगा।

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