गुरुवार, 2 मई 2019

समय की एजेंसी-१

समय और प्रबंधन


हम अपने आप से प्रश्न करें,
क्या समय का प्रबंधन संभव है?
 निःसन्देह इसका एक ही उत्तर आयेगा, ‘नहीं।’ 
        जी हाँ! यही सत्य है। समय का प्रबंधन कोई नहीं कर सकता। न तो समय का संचय किया जा सकता है और न ही उसे प्रबंधित किया जा सकता है। हाँ, हम अपने पास उपलब्ध समय को या तो बर्बाद कर सकते हैं, जिसे हम टाइम पास करना बोलते हैं या समय का उपयोग करके उसका उत्पादक व महत्वपूर्ण कार्यो में निवेश कर सकते हैं। निःसन्देह हम समय का प्रबंधन नहीं कर सकते किंतु हम समय के सन्दर्भ में अपनी गतिविधियों अर्थात् किए जाने वाले कार्यो का प्रबंधन कर सकते हैं। समय के सन्दर्भ में कार्यो का प्रबंधन ही हमारे पास उपलब्ध समय का सदुपयोग सुनिश्चित करके कार्याे का उचित समय में संपादन सुनिश्चित करता है। अपने पास उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई अर्थात् प्रत्येक क्षण का उपयोग करके और अपने कर्तव्यों को उचित समय का आवंटन करके हम समय के साथ अपने काम काज का प्रबंधन कर सकते हैं। अपने पास उपलब्ध समय के संदर्भ में अपने कार्यो व गतिधियों के प्रबंधन को हम स्वयं का प्रबंधन कहें तो भी उचित ही होगा।  समय के साथ अपने कामकाज का प्रबंधन करके ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जीवन का सही से प्रयोग करके उपलब्धियाँ हासिल कर सकते हैं। सामान्य जन इसी को कार्य प्रबंधन अर्थात्् टाइम मैनेजमेंट कहता है।
              मानव संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, ऐसा माना जाता है। व्यक्ति ने तुलनात्मक रूप से अन्य समस्त प्राणियों की अपेक्षा अपने बौद्धिक स्तर का विकास करके ऐसा सिद्ध भी किया है। मानव अपने बौद्धिक विकास के बल पर प्रकृति के अन्य उपादानों का न केवल कुशलतम उपयोग करने के प्रयत्न करता है, वरन्् वह प्रकृति के अन्य उपादानों को नियन्त्रित करने के प्रयत्न भी करता है। अपने इन्हीं प्रयत्नों के क्रम में वह ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रहों पर भी दस्तक दे रहा है। इन सभी प्रयत्नों व उपलब्धियों के कारण ही मानव को सर्वश्रेष्ठ होने का हकदार कहा जा सकता है।

समय अमूल्य संसाधन


हम मानव का कितना भी बखान कर लें। हमने कितना भी तकनीकी विकास किया हो, किंतु प्रकृति का एक संसाधन ऐसा है जिस पर नियंत्रण की बात तो दूर उसको संग्रह करने की क्षमता भी मानव में नहीं है और न ही इस प्रकार की कल्पना है कि वह भविष्य में भी समय पर नियंत्रण या समय को संरक्षित करने की क्षमता प्राप्त कर पायेगा। वास्तव में समय ही मानव को उपलब्ध सबसे मूल्यवान संसाधन है। मूल्यवान कहना भी संभवतः उपयुक्त न होगा। इसे अमूल्य कहना ही उपयुक्त है, क्योंकि इसके मूल्य का आकलन संभव ही नहीं है। समय का मूल्य व्यक्ति सापेक्ष कहा जा सकता है। समय का कोई एक मूल्य निर्धारित करना संभव नहीं है क्योंकि व्यक्ति केवल एक उपकरण मात्र नहीं है, जिसकी कीमत लगाई जा सके। ठीक उसी प्रकार व्यक्ति के समय की भी कीमत निर्धारित नहीं हो सकती। 
             समय बाजार में बिक्री करने की वस्तु नहीं है, अतः इसकी कोई अधिकृत कीमत निर्धारित नहीं होती; किंतु समय का मूल्यांकन समय के उपयोग आधारित विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर होता है। सेवाओं के रूप में मानव के समय को ही किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था द्वारा खरीदा जाता है। सेवाओं के अनुसार उनका पारिश्रमिक उन व्यक्तियों की कुशलता पर या उनके द्वारा उस समय में किए गए कार्यो की मात्रा व गुणवत्ता पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति के एक दिन का भी कोई विशेष मूल्य नहीं होता, जबकि कोई कलाकार कुछ मिनटों में ही लाखों कमा लेता है। समय की उत्पादकता में वृद्धि  अवश्य ही  समय के मूल्य में वृद्धि करती है। समय की कीमत तो उसके उपयोग पर ही निर्भर होती है। यदि आप समय का उपयोग नहीं करते तो निश्चित रूप से वह समय बर्बाद हो गया और उस समय की कोई कीमत नहीं रह जाती।
              वास्तव में समय ही जीवन है। मानव आयु का मतलब ही मानव को अपने जीवन में मिले हुए समय से है। मानव को कितना समय उपलब्ध है, वही उस व्यक्ति का जीवन है। वह अपने समय का कितना कुशलतम् प्रयोग करता है? इस पर उसके जीवन की सफलता निर्भर करती है। हम सामान्यतः सामाजिक उपयोगिता की दृष्टि से समय की कीमत पर विचार करें तो मानव द्वारा समय की उपयोगिता के द्वारा ही उसे परिणाम मिलते हैं और समय की उपयोगिता के आधार पर ही व्यक्ति का मूल्यांकन होता है। समाज उन्हीं को पूजता है, जो समाज के लिए अपने जीवन अर्थात् अपने संपूर्ण समय या फिर सबसे महत्वपूर्ण समय में समाज के लिए कोई ऐतिहासिक कार्य कर जाते हैं। जो समाज के लिए अपने महत्वपूर्ण पलों का उपयोग करता है, समाज केवल उन्हीं को स्मरण करता है।

 क्या हो रहा है?

                वर्तमान समय में हम किसी से बातचीत में सामान्यतः पहला या दूसरा प्रश्न यह करते हैं, ‘और भाई! क्या हो रहा है?’ इस प्रश्न का उत्तर भी बड़ा ही सामान्य होता है, ‘कुछ नहीं ऐसे ही टाइमपास हो रहा है।’ यह अधिकांश व्यक्तियों के बीच के वार्तालाप का भाग रहता है। यही यह निर्धारित करता है कि व्यक्ति समय की बर्बादी कर रहा है या समय का निवेश कर रहा है। जब व्यक्ति यह कहता है कि वह कुछ नहीं कर  रहा है। तब यह स्पष्ट है कि वह सबसे अमूल्य दुर्लभ संसाधन समय को बर्बाद कर रहा है, क्योंकि समय का संचय तो संभव नहीं है। यदि आप समय का सदुपयोग नहीं कर रहे हो तो उसे बर्बाद ही कर रहे हो। इसके अतिरिक्त समय के सन्दर्भ में अन्य कोई विकल्प तो उपलब्ध ही नहीं है। 
              बैंजेमिन फ्रेंकलिन के अनुसार, ‘सामान्य व्यक्ति समय को काटने के बारे में सोचता है और महान् व्यक्ति सोचते हैं समय का उपयोग करने के बारे में।‘ इसको हम इस प्रकार कहें कि जो समय का उपयोग करते हैं, वे महान् बन जाते हैं तो भी अनुपयुक्त न होगा। वास्तव में व्यक्ति साधारण या असाधारण नहीं होता, उसके कार्य साधारण या असाधारण होते हैं। जिसके कार्य असाधारण होते हैं, उसी को हम असाधारण व्यक्तित्व का धनी कहते हैं। असाधारण कार्य वही कर पाता है, जो समय के साथ चलता है। समय के पल-पल का उपयोग करता है। समय का प्रबंधन करने में कुशल होता है।
              कार्य प्रबंधन शब्द की चर्चा युवाओं में ही नहीं सभी उम्र के लोगों में देखी जा सकती है। कार्य प्रबंधन की चर्चा महिलाओं, पुरूषों, विद्यार्थियों, युवाओं, वृद्धों, व्यापारियों, नौकरी-पेशा वर्गो, पत्रकारों, लेखकों, राजनीतिज्ञों व समाजसेवकों सभी वर्गो  में सुनी जा सकती है। कार्य प्रबंधन पर बाजार में भी पुस्तकों का क्रेज है। नित नयी पुस्तकंे बाजार में आ रही हैं। कार्य प्रबंधन पर चर्चित व्यक्तियों को प्रबंधन गुरू के नाम से संबोधित किया जाने लगा है।
             अतः आओ हम कार्य प्रबंधन अर्थात् टाइम मैनेजमेण्ट शब्द के शाब्दिक अर्थ पर विचार करते हुए आगे बढ़ें। कार्य प्रबंधन समय और प्रबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है। कार्य प्रबंधन शब्द युग्म को पूरी तरह समझने के लिए इन दोनों ही शब्दों पर अलग-अलग विचार कर लेना अधिक उपयोगी रहेगा। सर्वप्रथत समय पर विचार करते हैं, तत्पश्चात प्रबंधन पर विचार करेंगे।

समय की सर्व स्वीकृत परिभाषा नहीं


समय बड़ा ही चर्चित शब्द है। इसका अर्थ बहुत ही व्यापक व विभिन्न सन्दर्भो में बहुअर्थी है। विकीपीडिया के अनुसार, ‘समय एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानान्तरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घंटीयंत्र कहा जाता है।’
हमारी समस्त गतिविधियाँ समय के बारे में चर्चा करते हुए ही बीतती हैं? कई बार हम कहते हैं बड़ा मुश्किल समय है, खैर कोई बात नहीं, धैर्य रखो, ये भी निकल जाएगा। कोई कहता है, उसके तो दिन फिर गए। कोई-कोई तो जमाना खराब है कहकर वर्तमान को ही कोसने लगता है। बैंकिंग क्षेत्र के ग्रेशम के नियम, ‘बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है’, की तरह ही समय का भी नियम है कि कठोर समय कोमल समय को बाहर कर देता है। 
               वास्तव में समय अच्छा या बुरा; कोमल या कठोर नहीं होता; यह विशेषण तो मनुष्य द्वारा आरोपित कर दिये जाते हैं। समय का प्रयोग मनुष्य द्वारा विभिन्न गतिविधियों में विभिन्न प्रकार से किया जाता है। इस प्रकार प्रयोग करने का तरीका ही कोमल या कठोर परिणाम देता है। अपनी गलती स्वीकार करने के स्थान पर मानव उन परिणामों का दोष समय के ऊपर थोप देता है। यह मानव प्रवृत्ति है कि उसका कभी दोष नहीं होता। दोष सदैव दूसरे का ही होता है। यदि दोषारोपण के लिए कोई भी नहीं मिले, तो समय को दोष दिया जा सकता है। समय सबसे कमजोर है, उसे सभी के आरोपों को सहन करना ही पड़ता है। आखिर समय तो जबाब देने के लिए उपलब्ध नहीं होता ना। व्यक्ति अपनी कमियों को समय के ऊपर थोप देता है। कई बार तो अच्छे परिणाम मिलने पर अच्छा समय है, कहकर समय को श्रेय भी दिया जाता है।

क्षण से पल ओ पल से घड़ी, घड़ी से दिन बन जाता है।
इसका  बढ़ते  रहना काम,  समय  कब  वापस आता है?

                    विभिन्न कालों में समय के विभाजन के भी अलग-अलग तरीके रहे हैं। समय को क्षण, घड़ी, पल, सेकण्ड, मिनट, घण्टे आदि में ही नहीं, इसे पहरों में भी बांटा जाता रहा है। समय की अनेक इकाई प्रचलित हैं। भाषा अध्यापक समय को भूत, वर्तमान व भविष्य काल कहकर पढ़ाते हैं। सामान्यतः व्यक्ति द्वारा अपने कर्म की कमी को भी समय के गले मढ़ दिया जाता है। बुरा समय व अच्छा समय कहकर अपनी कठिनाइयों को भी समय से जोड़ दिया जाता है। कुल मिलाकर समय की बात सभी करते हैं किंतु समय को बांधना किसी के वश की बात नहीं है। अब इतने महत्वपूर्ण तत्व की सर्वस्वीकृत परिभाषा देना भी अपने बस की बात नहीं है। समय को आदि और अन्त में नहीं बांधा जा सकता तो इसको परिभाषा में कौन बाँध सकता है?
             समय की सर्वस्वीकृत परिभाषा देना, उसी प्रकार असंभव है, जिस प्रकार ईश्वर की अवधारणा को सर्वस्वीकृत रूप से स्पष्ट करना। समय की परिभाषा करना इस पुस्तक के लिए आवश्यक भी नहीं है। यहाँ पर समय को एक संसाधन के रूप में देख सकते हैं। समय को व्यक्ति और वस्तु दोनों के सन्दर्भ में देखा जा सकता है। व्यक्ति और वस्तु दोनों का ही उपयोगी जीवन काल होता है। उपयोगी जीवन काल के पश्चात् वस्तु का निस्तारण कर दिया जाता है। व्यक्ति के जीवन काल के बाद व्यक्ति के शरीर का भी विभिन्न समुदायों में विभिन्न प्रकार से निस्तारण किया जाता है जिसे सम्मानित शब्द अन्तिम संस्कार के नाम से जाना जाता है।

आयु


व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के समय को आयु के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार आयु भी समय का ही एक मापक है। देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप विभिन्न प्राणियों की आयु विभिन्न होती है और अनिश्चित होती है। आयु के बारे में केवल अनुमान लगाये जा सकते हैं किंतु किसी व्यक्ति की कितनी आयु होगी, इसका पता लगाने का कोई विश्वसनीय तरीका अभी ज्ञात नहीं है। 
             किसी व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक जो समय उपलब्ध होता है, उसी समय को आयु के नाम से जाना जाता है अर्थात् समय ही आयु है। जिस प्रकार किसी के धन को मापा जा सकता है, उसी प्रकार उसकी उम्र की गणना तो की जा सकती है किंतु उसकी आयु कितनी होगी? इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि किस पल मृत्यु हो जाय किसी को नहीं पता? गंभीर से गंभीरतम् बीमारियों के मरीज वर्षो तक बिस्तर पर पड़े हुए जिन्दा रहते हैं। वर्षो तक कोमा में पड़े हुए लोगों के भी जिन्दा रहने के आकड़े मिल जाएँगे। इस प्रकार आयु अधिक होने का कोई लाभ न तो व्यक्ति को मिल पाता है और न ही उस व्यक्ति के परिवार को। सामाजिक दृष्टि से भी ऐसी आयु का कोई उपयोग नहीं होता। वह व्यक्ति कष्ट भोगता रहता है। कई बार लोग इसे नर्क के नाम से संबोधित करने लगते हैं। किसी देश की स्वास्थ्य सुविधाओं का आकलन करने के लिए औसत आयु का भी प्रयोग किया जाता है। तथ्य यही कहते हैं कि किसी देश में स्वास्थ सुविधाओं की वृद्धि के साथ-साथ औसत आयु में भी वृद्धि होती है। इस प्रकार आुय देश के विकास के मापन का आधार भी बनती है।
               आयु के सन्दर्भ में चर्चा चल रही है। अतः इस विषय पर आयुर्वेद में आयु की परिभाषा को यहाँ स्पष्ट किया जा रहा है, ’शरीरेन्द्रियसत्वात्मस्रंयोगों धारि जीवितम’ अर्थात् शरीर, इन्द्रिय, मन एवं आत्मा के संयोग को आयु कहते हैं। वास्तव में शरीर, इन्द्रिय, मन एवं आत्मा को समय के सन्दर्भ में समझकर ही हम आयु की अवधारणा को स्पष्ट  कर सकते हैं। आयु के विषय में स्मरण रहे कि आयु के विज्ञान को ही आर्युवेद के नाम से जाना जाता है। आयु का विज्ञान होने के नाते आयुर्वेद भारत की सबसे महत्वपूर्ण विधा रही है।

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