गलती करके नहीं, दूसरों की गलतियों से सीखें
कोई भी व्यक्ति समय को खरीद या बेच नहीं सकता। समय का उपयोग किया जा सकता है या उसे बर्बाद किया जा सकता है। हम समय का उपयोग, समाजोपयोगी गतिविधियों में कर सकते हैं या असामाजिक गतिविधियों में कर सकते हैं। हम कर्मरत रहते हुए अपने जीवन को आनन्ददायक बना सकते हैं या आलस्य में रहकर जीवन के महत्त्वपूर्ण भाग को बर्बाद भी कर सकते हैं। बहुत से लोग अपने जीवन को अर्थहीन तरीके से आलस, तंद्रा, टीवी देखने, इंटरनेट पर चैटिंग करने, अपने तथाकथित दोस्तों के साथ गप्पें लगाने या खेल के नाम पर अनुपयोगी क्रियाओं में घण्टों बर्बाद करते हुए जीवन के बहुत बड़े भाग को बर्बाद कर देते हैं। उसके बाद अपने जीवन का उपयोग कर सफल हुए व्यक्तित्वों से तुलना करते हुए व्यवस्था को गालियाँ देते हैं कि इस प्रकार का भेदभाव क्यों है? अधिकांश व्यक्ति अपनी असफलताओं की जिम्मेदारी भी स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार वे कभी गलती करते ही नहीं हैं। उनकी असफलता की जिम्मेदारी सदैव किसी न किसी अन्य की ही होती है। उनको अपने नाकारापन के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए कोई और नहीं मिले तो दुर्भाग्य और भगवान तो सदैव दोषारोपण के लिए तैयार हैं ही। वे बेचारे अपने बचाव में तर्क देने भी नहीं आ सकते।
सामान्य व्यक्ति यह नहीं सोचते कि उनके जीवन को कोई अन्य व्यक्ति या व्यवस्था नहीं, वे स्वयं बर्बाद कर रहे हैं। वे यह विचार नहीं करते कि वे क्या कर रहे हैं? और किस ढंग से कर रहे हैं? यहाँ तक कि उनमें इतनी समझ भी नहीं होती कि अपने अमूल्य जीवन को स्वयं ही बर्बाद करने पर पश्चाताप भी कर सकें अर्थात दूसरों की आलोचनाएं करने या व्यवस्था को कोसने में और भी अधिक समय को बर्बाद करते रहते हैं और अपने द्वारा स्वयं ही अपना जीवन बर्बाद करने पर अफसोस भी नहीं करते। इस प्रकार वे अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा खो देते हैं, जिसे वे कभी वापस नहीं पा सकते।
जीवन के बड़े भाग को बर्बाद करने के बाद, कई बार कहने लगते हैं, ‘गलती हो गयी।’ बचाव में तर्क भी तैयार होता है, मानव गलतियों को पुतला है; गलती करके ही सीखा जाता है। निःसन्देह गलतियाँ सीख दे जाती हैं किंतु यह आवश्यक नहीं कि हम गलती करके ही सीखें। हम दूसरों की गलतियों को और उनके परिणामों को देखकर भी सीख सकते हैं। वास्तव में चतुर व्यक्ति वह है जो स्वयं गलती न करके दूसरों की गलतियों से सीख ले। हमें दूसरों की सफलता से ईष्र्या न करके उससे प्रेरणा ग्रहण कर आगे बढ़ना चाहिए। दूसरों की गलतियों को उनकी आलोचना का आधार बनाने की अपेक्षा हमें उनकी गलतियों से सीख लेकर अपने समय को उस प्रकार की गलतियों से बचाकर उपयोगी कार्याे में लगाकर सफलता की राह पर बढ़ते रहना चाहिए।
समय का प्रयोग करने वाला ही शक्तिशाली
पारंपरिक रूप से समय को सबसे शक्तिशाली कहा जाता रहा है। कहा जाता है कि समय-समय की बात है, समय-समय का खेल। सफलता के गिरि चढ़े, अगले क्षण हो फेल। समय को भाग्य का पर्यायवाची भी माना जाता रहा है। समय को शक्तिशाली कहने वाले लोग समय को ही सब कुछ मानकर मनुष्य को कमजोर मान बैठते हैं। उनका कहना होता है कि समय ही सबसे शक्तिशाली है, मनुष्य को इसके सामने घुटने टेकने ही पड़ते हैं। मनुष्य इसकी क्षमता को मापने में सक्षम नहीं है। समय को ही ऐसे मनुष्य जीत हार का कारण मान लेते हैं। समय के साथ अच्छा और बुरा होने का विशेषण लगा कर अपनी अकर्मण्यता की जिम्मेदारी समय के गले मढ़ देते हैं। इस प्रकार वे आत्मसंतुष्टि भले ही प्राप्त कर लें। अपनी असफलताओं से सीख लेने से भी वंचित रह जाते हैं।
भाग्यवादियों का मानना होता है कि समय के फेर से कोई व्यक्ति एक ही पल रंक से राजा और एक ही पल में राजा से रंक हो सकता है। उनका मानना होता है कि सफलता या जीत के लिए एक ही पल काफी होता है। कोई व्यक्ति एक ही पल में अमीर और एक ही पल में गरीब हो सकता है। व्यक्ति के जीवन और मृत्यु के बीच में भी एक ही पल का अन्तर होता है।
निःसन्देह एक ही पल में व्यक्ति राजा से रंक और रंक से राजा हो सकता है। ऐसे स्वर्णावसर आते हैं किंतु इसका श्रेय समय को देना उचित नहीं समय तो सम है। सदैव एक जैसा रहता है। समय अच्छा या बुरा नहीं होता। अच्छा या बुरा होता है, समय का उपयोग। निःसन्देह प्रतिपल हमें नवीन अवसर प्राप्त होते हैं किंतु अवसरों को उपयोग तो हमारे अपने कर्मों के ऊपर निर्भर करता है। ऐसे अवसर ही हमारी निर्णय क्षमता और प्रत्युत्पन्न मति की परीक्षा होते हैं। निर्णय लेने के क्षण हमारे लिए चुनौती के रूप में सामने आते हैं। कई बार हमारा एक निर्णय हमारे भविष्य का आधार बन जाता है। ऐसे अवसर भी कर्मशील व समयनिष्ठ व्यक्तियों को ही प्राप्त होते हैं। ऐसे अवसरों का उपयोग अपनी जागरूकता के ऊपर निर्भर करता है। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और तुरंत निर्णय करने की शक्ति पर निर्भर करता है।
समय रूपी अवसर प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध हैं, यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर है कि वह समयनिष्ठ होकर उपलब्ध समय का योजनाबद्ध व विवेकपूर्ण उपयोग करके समय पर अच्छा होने का ठप्पा लगा दे या आलस्य, अकर्मण्यता का शिकार होकर अवसाद में जाकर आत्महत्या कर समय के रूप में प्रकृति-प्रदत्त जीवन रूपी अमूल्य भेंट को बर्बाद कर दे। समय निःसन्देह सर्वाधिक अमूल्य भेंट है, क्योंकि समय ही जीवन है और जीवन से अधिक महत्त्वपूर्ण इस भौतिक संसार में कुछ भी नहीं होता। हम जितनी भी गतिविधियों में भाग लेते हैं। जो भी लम्बी चैड़ी योजनाएँ बनाते हैं। सभी जीवन को केंद्र में रखकर ही तैयार की जाती हैं। इस तथ्य से पाठक भी सहमत होंगे।
समय रूपी संसाधन की प्राप्ति
यह स्पष्ट हो चुका है कि समय एक अमूल्य व दुर्लभ संसाधन है। पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि संसाधन सीमित होते हैं, संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग किया जा सकता है। विभिन्न विकल्पों में से किस विकल्प पर और कितना किसी संसाधन को प्रयोग किया जाय? अर्थशास्त्र में इसे चयन की समस्या कहकर संबोधित किया गया है। किस विकल्प का चयन करके संसाधन को उस विकल्प के लिए आबंटित करना है? इसका निर्णय व्यक्ति को करना होता है और फिर उस निर्णय को लागू करना होता है क्योंकि केवल निर्णय करना पर्याप्त नहीं होता।
सुविचारित निर्णय लेना और सुविचारित योजना बनाकर उस निर्णय को लागू करना ही सफलता का मूलमंत्र है। यह सभी संसाधनों के सन्दर्भ में सही है। समय भी एक संसाधन है। अतः समय के भी वैकल्पिक प्रयोग हैं। समय का उपयोग करते समय भी चयन की समस्या सामने आती है। अपने उपलब्ध समय को किस गतिविधि में लगाना है? इसका चयन करना ही हमारे लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है। हम अपने सीमित समय को किन गतिविधियों में लगा रहे हैं, यह हमारी प्राथमिकताएँ ही इसका आधार बनती हैं। हम अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर ही तय करते हैं कि हमें अपने अमूल्य समय का निवेश कहाँ करना है।
समय के सन्दर्भ में सर्वप्रथम यह स्मरण रखना आवश्यक है कि अन्य संसाधनों की तरह हमें यह नहीं मालूम कि हमारे पास कितना समय है? अन्य संसाधनों को मापन के विभिन्न तरीके हैं, विभिन्न मापन पैमाने हैं किंतु समय के सन्दर्भ में यह लागू नहीं होता। किसी को भी नहीं मालूम कि उसे कितना जीवन प्राप्त है। जीवन अर्थात् ‘समय’ जो प्रकृति-प्रदत्त है। प्रकृति ने ही हमें जीवन जीने का अवसर दिया है किंतु यह अवसर कब तक है, इसे कोई भी नहीं जानता और न ही आज तक ऐसा कोई तरीका विकसित हुआ है कि हम जान सकें कि हमारे पास कितना समय है? समय की प्राप्ति प्रकृति जिसे हम ईश्वर भी कह सकते हैं, पर ही निर्भर है। समय प्रदान करना तो प्रकृति, ईश्वर या अन्य किसी अदृश्य शक्ति पर निर्भर है, यह माना जा सकता है किंतु उस समय को स्वीकार करके उसका उपयोग करना तो हमारे और केवल हमारे ऊपर ही निर्भर है।
हम अपने प्रयासों से एक भी अतिरिक्त पल प्राप्त नहीं कर सकते। विशेषकर कार्यकारी उपयोगी पल, जिसे उपयोगी जीवन कहा जा सकता है; हमारे पास बहुत कम होते हैं। जब हम यह जानते हैं कि अतिरिक्त समय की प्राप्ति संभव नहीं है तो आओ हम समय के दूसरे पहलू पर विचार करते हैं। दूसरा पहलू यह है कि निःसन्देह गुजरे हुए समय को प्राप्त नहीं किया जा सकता किंतु अपने सहयोगियों के समय को प्राप्त करके अपने कार्य में सहयोग लिया जा सकता है। हम कर्मचारियों को काम पर रखते हैं, वे हमारी योजना के अनुसार काम करते हैं, तब वास्तव में हम उनसे समय ही प्राप्त करते हैं। समय को प्राप्त करना, समय को बचाना और समय का निवेश करना बड़े ही भ्रम पैदा करने वाले शब्द हैं। क्या समय को बचाया जा सकता है? इस प्रश्न पर अगले अध्याय में चर्चा करेंगे।
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