अपनी बात
1990-91 में वृंदावन प्रवास के दौरान सरस्वती शिशु मन्दिर में आचार्य श्री बृजेश जी से अक्सर मिलना होता था। बृजेश जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। अतः उनके पास अनेकों काम रहते थे। सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य मजबूरी में ही सही समाज सेवक बन जाते हैं। वे कुछ अधिक ही थे। मैंने भी उन दिनों समाज को जागरूक करने व संगठित करने का ठेका ले रखा था। अतः श्री बृजेश जी से मिलना अपरिहार्य था।
मैं जब भी उनसे किसी कार्य का प्रस्ताव लेकर मिलता, सदैव ही उनके पास समय का अभाव होता। वे अक्सर मजाक में कह दिया करते थे कि भाईसाहब! यदि मुझे भगवान मिल जायें तो मैं उनसे समय की एजेंसी ले लूँ। मैं ही नहीं सभी समय की कमी का रोना रोते हैं। सबसे अधिक कारोबार समय का ही होगा। उस समय श्री बृजेश जी द्वारा मजाक में कही हुई बात को मैं आज तक भूल नहीं पाया। आज जब प्रबंधन के अध्येता के रूप में सोचता हूँ तो प्रतीत होता है कि ईश्वर या प्रकृति ने भले ही व्यक्ति को समय सीमित दिया हो किंतु समय के पल-पल की उपयोगिता सुनिश्चत कर हम सभी समय की एजेंसी प्राप्त कर सकते हैं। सभी व्यक्ति अपने लिए कार्यकारी व प्रभावी समय में वृद्धि कर अतिरिक्त समय प्राप्त कर सकते हैं। सभी व्यक्ति अपने पास उपलब्ध समय की गुणवत्ता में वृद्धि कर अपने जीवन में वृद्धि कर सकते हैं। सभी व्यक्ति अपने जीवन को उपयोगी बना सकते हैं, और यह हो सकता है- ‘‘अपने समय की उपयोगिता बढ़ाकर हमें अपने समय को सदैव सबसे महत्वपूर्ण कामों में ही लगाना चाहिए। अपने कार्याे में प्रबंधन का उपयोग करके हम अपने समय को अधिक उपयोगी और उत्पादक बनाकर समय की एजेंसी प्राप्त कर सकते हैं।’’
समय को मापने की इकाई सभी के लिए समान हैं। क्षण, पल या सेकण्ड की बात करें या दिन, सप्ताह, वर्ष और युग की। मापन की दृष्टि से सभी के लिए समय की इकाइयों में कोई अन्तर नहीं होता। व्यक्ति के जीवन के विस्तार के मामले में भी प्रकृति ने कोई भेद नहीं किया है। आनुवांशिकता, वातावरण, जीवनशैली व अन्य परिस्थितियों के कारण सभी के जीवन का विस्तार भिन्न-भिन्न होता है किंतु सभी के जीवन विस्तार में प्रकृति ने कोई भेद किया हो, इस प्रकार का आरोप शायद ही कोई लगाये। सामान्यतः मनुष्य की अधिकतम आयु 100 वर्ष मानी जाती है। आपवादिक रूप से कुछ लोग इससे अधिक समय तक भी जीते हैं किंतु सामान्यतः 100 वर्ष की आयु प्राप्त करने वालों की संख्या कम ही होती है। विभिन्न देशों व विभिन्न प्रदेशों में जीवनशैली व विकास के आधार पर औसत आयु भिन्न-भिन्न पाई जाती है। इसके बाबजूद एक ही स्थान पर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में आयु के स्तर पर बहुत अधिक अन्तर देखा जाता है। कहने का आशय है कि विभिन्न व्यक्तियों के पास उपलब्ध समय भिन्न-भिन्न होता है और अनिश्चित होता है।
किसी के बारे में भी यह निश्चित नहीं होता कि उसे जीवन जीने के लिए कितना समय मिला है। माना यह भी जाता है कि सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है। हम इस धारणा को मान भी लें तो भी कम से कम हमें यह पता नहीं होता कि हमको कितना जीवन मिला है? इसी कारण जीवन को क्षणभंगुर कहा जाता है। इसका आशय यह है कि व्यक्ति को पता नहीं होता कि वह अगले क्षण जीवित रहेगा भी या नहीं? अतः व्यक्ति को जिस प्रकार पता होता है कि उसके परिवार में कितने व्यक्ति हैं? उसके कितने मित्र हैं? उसके पास कितनी जमीन है? कितना धन है? उस प्रकार उसे यह पता नहीं होता कि उसके पास कितना समय है? अर्थात् समय एक अदृश्य धन है जिसके बारे में व्यक्ति को यह मालूम नहीं होता कि उसके पास कुल कितनी पूँजी है?
जी हाँ, समय एक अदृश्य धन है जिसका संचय नहीं किया जा सकता। अतः समय के प्रत्येक पल को जीना होता है। वास्तव में व्यक्ति जितने पलों का उपयोग कर लेता है वही तो जीवन है। व्यक्ति को कितना समय मिला यह तो उसकी मृत्यु के साथ ही पता चल सकता है। अतः भौतिक धन की भाँति समय रूपी धन का संचय करना संभव नहीं है। हाँ! जीवन को व्यवस्थित करके अर्थात समय का सदुपयोग करके समय को व्यक्ति, परिवार व समाज के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। समय का उपयोग किया जा सकता है या समय को बर्बाद करके अपने जीवन को छोटा किया जा सकता है। टाइम पास करना अर्थात समय को नष्ट करना जीवन को बर्बाद करना ही है।
आपने अपने आसपास देखा होगा कि कुछ व्यक्ति अपने जीवन से परेशान हो जाते हैं। वे कहने लगते हैं, हे ईश्वर! अब तो उठा ले! यही नहीं परिवार वालों को भी देखा जा सकता है कि वे परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। व्यक्ति परेशान होकर आत्महत्या कर बैठता है, तो यदाकदा परिवार वालों द्वारा मार दिये जाने की खबरें भी मिल जाती हैं। इसका मतलब यही होता है कि वह व्यक्ति समय का सदुपयोग नहीं कर पा रहा था। जब हम समय का उपयोग नहीं कर पाते, तब हमारा जीवन न केवल हमारे लिए निरर्थक हो जाता है, वरन परिवार और समाज के लिए भी उस व्यक्ति के जीवन का कोई उपयोग नहीं रह जाता। तभी लोग किसी की मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगते हैं। समय का प्रयोग न कर पाने के कारण व्यक्ति स्वयं अपने लिए, परिवार के लिए, देश व समाज के लिए अपने जीवन को निरर्थक बना लेता है।
समय की एजेंसी इसी समस्या का निराकरण सुझाती है। समय की एजेंसी के द्वारा हम उपलब्ध समय का उपयोग करके अपने जीवन को स्वयं अपने लिए, परिवार व समाज के लिए अमूल्य बना सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द का जीवन केवल 39 वर्ष का रहा किंतु उन्होंने अपने समय का उपयोग इस तरह से किया कि सौ साल जीने वाला व्यक्ति भी इतना काम नहीं कर पाता, जितना उन्होंने इतने कम समय में किया। स्वामी जी ने समय की एजेंसी का प्रयोग कुशलता के साथ किया। वास्तव में अपने समय को उपयोगी बनाना ही समय की गुणवत्ता में वृद्धि करना है।
यथार्थ में ईश्वर ने सभी को समय की एजेंसी दे रखी है। जीवन का मतलब कामकाजी और उपयोगी समय से है। एक व्यक्ति 18 घण्टे उपयोगी कामकाज में लगाता है और दूसरा व्यक्ति 24 घण्टे का टाइम पास कर देता है। नि.सन्देह पहले व्यक्ति पर समय की एजेंसी है और वह उसका उपयोग कर रहा है। जिन व्यक्तियों को हम महापुरूषों की सूची में रखते हैं, उन्होंने समय का उपयोग किया और अपने जीवन में समय की एजेंसी का प्रयोग करके अपनी सामान्य आयु से भी अधिक कार्य कर गये। महापुरुष का कोई पद नहीं होता। जो व्यक्ति अपने सीमित समय का उपयोग करके सृष्टि के लिए अधिक व महत्वपूर्ण कार्य कर जाता है, समाज उसे महापुरुषों की सूची में सम्मिलित कर लेता है।
समाज उन्हीं को पूजता है, जो समाज के लिए कुछ कर जाते हैं और समाज के लिए कुछ करने के लिए हमें जीवन जीने की कला सीखनी ही नहीं होती, जीवन में लागू भी करनी होती है। जो व्यक्ति समय का महत्व समझते हैं, उन्हें मनोरंजन में समय बर्बाद करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि कार्य ही उनका रंजन करता है। कार्य करना उनके लिए कोई भार नहीं होता, कार्य उन्हें आनन्द प्रदान करता है। अतः कार्य उन्हें थकान नहीं देता और अधिक कार्य करने की शक्ति देता है। हम भी अपने समय की उपयोगिता बढ़ाकर अपने आप को अपने, अपने परिवार, अपने समाज, अपने देश व विश्व के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध कर सकते हैं। इसके लिए हमें समय की एजेंसी का प्रयोग करना होगा।
इस पुस्तक के माध्यम से मैं अपने पाठकों का ध्यान इस बात की ओर दिलाना चाहता हूँ कि उनके पास समय की कमी नहीं है। जो समय उनको मिला है, उसी का सदुपयोग करके वे अपने उपयोगी जीवन काल में वृद्धि कर सकते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से पाठक अपने समय के महत्व को समझ कर अपने जीवन में वृद्धि कर सकते हैं। जिस समय को वे अनुपयोगी गतिविधियों में व्यतीत करते हैं या बिना किसी कार्य के बर्बाद करते हैं अर्थात् टाइम पास करते हैं, उस समय का सदुपयोग करके वे न केवल स्वयं के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि कर सकते हैं, वरन अपने परिवार व समाज के लिए भी अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
यहाँ पर नवोदय नेतृत्व संस्थान, नोएडा, उत्तर प्रदेश के निदेशक श्री ज्ञानेंद्र जी (सहायक आयुक्त, नवोदय विद्यालय समिति, मुख्यालय, नोएडा) का स्मरण करना चाहूँगा। इस पुस्तक में स्थान-स्थान पर प्रयुक्त विचार समय का प्रबंधन नहीं किया जा सकता। मुझे उन्हीं ने आत्मसात कराया। मैं उनके द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन के लिए उनका आभार व्यक्त करता हूँ।
पाठकों से इस पुस्तक के बारे में विचार व सुझावों का सदैव स्वागत है। पाठकों के सुझाव निःसन्देह रूप से भावी लेखन में मेरी सहायता करेंगे।
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