रविवार, 12 मई 2019

समय की एजेंसी-8

समय एक संसाधन


जब हम विकास की बात करते हैं, तब उद्यमिता और उद्यमी की बात चलती है। उद्यमी का सबसे महत्त्वपूर्ण आधार उद्यम होता है, किंतु उद्यम मात्र से विकास की सीढ़िया नहीं चढ़ी जा सकती। उद्यमी को उद्यम लगाने के लिए विभिन्न संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। व्यवसाय व उद्योग के क्षेत्र में विभिन्न संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। उद्यमियों के संदर्भ में बात करें तो उनके लिए पूँजी प्रथम संसाधन होता है। पूँजी, सामग्री, श्रम, तकनीक व प्रबंधन को संसाधनों के रूप में माना जा सकता है। उद्यमी पूँजी के द्वारा ही अन्य संसाधनों को प्राप्त करते हैं। इस तरह के सभी संसाधनों में श्रम और प्रबंधन मानवीय संसाधन हैं जो अन्य अमानवीय संसाधनों का प्रयोग करते हैं। अतः मानवीय संसाधन अधिक महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। संसाधनों की आवश्यकता व्यवसाय व उद्योगों के क्षेत्र में ही नहीं, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पड़ती है। संसाधनों की आवश्यकता केवल उद्यमी को ही नहीं, संसार के प्रत्येक व्यक्ति को पड़ती है। 
     विकिपीडिया के अनुसार, ‘प्रकृति का कोई भी तत्त्व तभी संसाधन बनता है, जब वह मानवीय सेवा करता है। इस सन्दर्भ में 1933 में जिम्मरमैन का कथन था, ‘न तो पर्यावरण उसी रूप में और न ही उसके अंग संसाधन हैं, जब तक वह मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में सक्षम न हो।’ संसाधन को और भी अधिक स्पष्ट करना चाहें तो किसी वस्तु का संसाधन होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसका इस्तेमाल मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता है या नहीं? इस प्रकार हमारे आसपास उपलब्ध हर वस्तु संसाधन कहलाती है जिसका इस्तेमाल हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं, जिसे बनाने या जिसकी उपयोगिता में वृ़िद्ध करने के लिए हमारे पास प्रौद्योगिकी है और जिसका इस्तेमाल सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से मान्य है। कहने का आशय यह है कि वह प्रत्येक वस्तु या पदार्थ संसाधन है जो मानवीय जीवन को सुगम बनाता है, या अन्य संसाधनों पर प्रक्रिया करके उन्हें अधिक उपयोगी बनाकर मानव समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। 

संसाधनों के प्रकार


संसाधनों की गिनती करवाने में विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं। संसाधनों की उपयोगितावादी दृष्टिकोण के अनुसार प्रकृति प्रदत्त व मानव निर्मित सभी वस्तुएं संसाधनों के अन्तर्गत आ जाती हैं। सभी वस्तुएँ किसी न किसी रूप में, किसी न किसी प्रकार से मनुष्य के काम आती ही हैं और उसके जीवन को सुविधाजनक बनाती हैं। व्यापक अर्थ में व्यापक दृष्टिकोण से देखेंगे तो दुनिया में शायद ही ऐसी कोई वस्तु मिले, जो मानव के उपयोग में न आती हो, मानव के जीवन को आरामदायक या सुविधाजनक न बनाती हो। अतः हम सभी संसाधनों के नामों का उल्लेख यहाँ नहीं कर सकते। हमें सभी संसाधनों की चर्चा करने व समझने की यहाँ आवश्यकता भी नहीं है। हमारे लिए संसाधनों के वर्गीकरण की चर्चा करना पर्याप्त है। उत्पत्ति के आधार पर संसाधन सामान्यतः दो वर्गो में रखे जाते हैं-
1. जैविक संसाधन
2. अजैविक संसाधन
जैविक संसाधन वे संसाधन कहे जाते हैं जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है और इनमें जीवन व्याप्त होता है या जीवन रहा होता है। जबकि अजैविक संसाधन वे संसाधन होते हैं जिनमें जीवन नहीं होता अर्थात्् निर्जीव वस्तुएं अजैविक संसाधन के अन्तर्गत आती हैं।
                  संसाधन की परिभाषा की कसौटी पर कसने पर स्पष्ट होता है कि मानव स्वयं में एक संसाधन है। मानव, मानव के इस्तेमाल में आता है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में मानवीय सहयोग की आवश्यकता पड़ती ही है। इसी आवश्यकता के कारण तो समाज में विभिन्न रिश्तों का जन्म हुआ है। मानव की तो उपयोगिता है ही; मानव विभिन्न प्रक्रियाओं के द्वारा अन्य सभी संसाधनों की उपयोगिता में वृद्धि भी करता है। उपयोगिता में वृद्धि करना अपने आपमें उत्पादन कहलाता है। इस प्रकार मानव स्वयं संसाधन होते हुए अन्य संसाधनों को अधिक उत्पादक बनाकर मानव समुदाय के जीवन को सुगम बनाता है। इस प्रकार मानव के संसाधन होने में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं हो सकता। यही नहीं अन्य समस्त संसाधनों का प्रयोग भी मानव ही करता है। अतः मानव को संसाधनों का संसाधन कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

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