मितव्ययिता के साथ सदुपयोगः
जिस प्रकार लेखाकार (Accountant) एक-एक पैसे का हिसाब रखता है, ठीक उसी प्रकार हमें समय की छोटी से छोटी इकाई का ख्याल रखना होगा। समय की छोटी से छोटी इकाई का लेखा-जोखा रखना होगा। जिस प्रकार आर्थिक प्रबंधन में मितव्ययिता आवश्यक गुण है, उसी प्रकार समय का उपयोग करते समय भी एक-एक पल को बचाकर उसका उपयोगी कार्यों में मितव्ययिता के साथ सदुपयोग करना ही समय की आराधना है। समय भी एक आर्थिक संसाधन है। समय का प्रयोग करके ही तो हम पैसा कमाते हैं। समय को ही पैसा कहा जाता है। समय का संसाधन होना ही हमें इसके मितव्ययितापूर्ण उपयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
समय का मितव्ययितापूर्ण प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए हमें सही समय पर जागना होगा। सही समय पर अपने नैत्यिक कार्यो अर्थात् उषापान अर्थात् सुबह सुबह उठकर कम से कम दो गिलास जल का सेवन, शौचादि से निवृत्ति, स्नान आदि क्रियाओं के बाद योग, व्यायाम आदि सभी क्रियाओं को नियत समय पर ही करना होगा। अपनी सभी आवश्यक नैत्यिक क्रियाओं के संपादन के पश्चात् नियत समय पर अपने पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों के निर्वहन के लिए तैयार हो जाना समयनिष्ठता के अन्तर्गत ही आता है।
समयनिष्ठ हुए बिना मानव संसाधन का सदुपयोग करना संभव नहीं है। वर्तमान गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में जरा सा आलस आपको पीछे ढकेल देगा और फिर पछताने में समय बर्बाद करने से कुछ हासिल नहीं होगा। अतः समय को जीना ही जीवन को जीना है। हमें जीवन में कुछ अच्छा करना है, कुछ उपलब्धियाँ हासिल करनी हैं तो इसके लिए समय के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता, लगन और कर्मरत रहने की श्रेष्ठ आदत का विकास करना होगा।
समय पृथ्वी पर उपलब्ध अमूल्य संसाधनः
समय पृथ्वी पर उपलब्ध सबसे कीमती संसाधन है। इस संसाधन को कीमती कहना भी शायद उचित नहीं होगा, इसके लिए तो अमूल्य शब्द ही उचित प्रतीत हो रहा है। समय की तुलना अन्य किसी संसाधन से नहीं की जा सकती। मानव के समय का आशय मानव जीवन से है और अनादि काल से मानव जीवन को दुर्लभ कहा जाता रहा है। अन्य समस्त संसाधनों पर किसी न किसी सीमा तक मानव का नियंत्रण हो गया है किंतु मानव जीवन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं हो पाया है। अंत समय पर बड़े से बड़े डाक्टर भी ‘ईश्वर ही कुछ कर सकता है,’ कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। एक बार जीवन चला जाय तो वह वापस नहीं आता। यह अलग बात है कि पुनर्जीवन में विश्वास करने वाले व्यक्ति पुनः जन्म लेने की बात करते हैं किंतु ऐसा होने पर भी नया जीवन होगा; किंतु जो समय बीत गया है, उसे पुनः पाना संभव नहीं होता।
समय चक्र सदैव गतिमान रहता है। हम समय चक्र को रोक नहीं सकते और न ही इसकी गति को धीमी कर सकते हैं। हाँ! हम समय चक्र के साथ-साथ अपनी गतिविधियों का नियोजन करके समय चक्र के साथ-साथ चलकर अपने जीवन को उपयोगी बनाकर संसार में एक छाप छोड़ सकते हैं। समय सदैव अग्रगामी होता है। यह पीछे नहीं चलता। इस संसार में सब कुछ समय पर निर्भर करता है, समय से पहले कुछ नहीं हासिल होता ऐसा माना जाता है। निःसन्देह समय से पहले कुछ हासिल नहीं होता, किंतु समय के साथ चलकर ही कुछ हासिल किया जा सकता है। समय की बर्बादी हमारे जीवन को ही बर्बाद कर देती है। वर्तमान समय के सदुपयोग पर ही हमारे भावी जीवन की नींव रखी जाती है। हम यदि वर्तमान समय को बर्बाद कर रहे हैं, तो वर्तमान को ही बर्बाद नहीं कर रहे भविष्य को भी बर्बाद करने की तैयारी कर रहे हैं।
धन नहीं, समय आनन्द प्रदाता
देखने में आता है कि सामान्य व्यक्ति समय से अधिक धन को महत्त्व देते हैं। वे धन को ही सब कुछ मानते हैं। वे समय के महत्त्व को नहीं समझते। समय के महत्त्व को न समझने के कारण वे धन भी नहीं कमा पाते धन कमा भी लें तो समय व धन दोनों का ही आनन्द नहीं ले पाते। हमें इस बात को समझना होगा कि व्यक्ति धन के लिए नहीं, धन व्यक्ति के लिए होता है। यही बात समय के सन्दर्भ में नहीं है। समय के सन्दर्भ में तो समय ही मानव जीवन है। अतः हम यह भी कह सकते हैं कि समय ही व्यक्ति है।
धन अन्य वस्तुओं को प्राप्त करने का साधन मात्र होता है। सामान्य व्यक्ति को प्रतीत होता है कि धन, समृद्धि और आनन्द प्रदान करता है, किंतु यह सत्य नहीं है। धन का संयम व विवेकपूर्ण उपयोग न किया जाय तो यह कष्ट का कारण भी बन जाता है। कई बार तो धन के कारण अपने पराये हो जाते हैं, यहाँ तक कि निकटस्थ संबन्धी ही प्राणों का हरण कर लेते हैं। वास्तव में धन अपने आप में कुछ भी नहीं है। धन प्राप्त करने का आधार समय है और धन से अन्य भौतिक वस्तुओं को खरीदा जा सकता है किंतु धन से न तो जीवन को खरीदा जा सकता और न ही आनन्द को खरीदा जा सकता है। वास्तविक रूप से समय ही हमें धन, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और आनन्द प्रदान करता है।
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