गुरुवार, 9 मई 2019

समय की एजेंसी-7

समय अबंधनीय है



जी हाँ! समय अबंधनीय है। इसे बांधा नहीं जा सकता। मूर्धन्य विचारक चाणक्य ने भी लिखा है, ‘जीवन में सबसे कीमती है आपका वर्तमान, जो एक बार चला जाता है तो दुनिया का सारा धन लगा दो, तो भी दुबारा नहीं पा सकते हो।’ समय के इस अबंधनीय स्वरूप के संदर्भ में महाभारत की एक कथा का सन्दर्भ देना उपयोगी रहेगा। 
                एक बार चक्रवर्ती महाराज धर्मराज युधिष्ठर अपने चारों भाइयों सहित अपने दरबार में विराजे थे। संध्याकाल हो चुका था। दरबार से उठने का समय हो चुका था। उसी समय एक गरीब ब्राह्मण सहायतार्थ दरबार में हाजिर हुआ। धर्मराज युधिष्ठर उस दिन का अपना कार्य समाप्त कर चुके थे और अपने आवास के लिए प्रस्थान करने वाले थे। अतः उन्होंने ब्राह्मण को अगले दिन आने का निर्देश दिया। ब्राह्मण अगले दिन की आशा में निश्चिंत होकर वापस चला गया क्योंकि धर्मराज युधिष्ठिर सत्य बोलते थे। यदि उन्होंने कह दिया है कि कल सहायता प्राप्त हो जायेगी तो हो जायेगी। इसमें किसी को कोई सन्देह ही नहीं था।
         यह क्या? धर्मराज जब अपने आवास के लिए निकले तो ढोल-नगाड़ों की आवाज के साथ किसी उत्सव की तरह वाद्ययंत्रों की आवाज उनके कानों में पड़ी। वे आश्चर्यचकित रह गये क्योंकि राज्य में किसी राज्योत्सव की कोई सूचना राज्य के किसी विभाग से उन्हें नहीं मिली थी। उन्होंने जिज्ञासा को शांत करने के लिए तुरंत कारण जानने का प्रयास किया तो सूचना मिली कि युवराज भीम के आदेश से प्रसन्नतासूचक वाद्ययंत्र बजाये जा रहे हैं। धर्मराज ने तुरंत भीम को बुलाया और पूछा तो भीम ने उत्तर दिया कि आज बड़े ही आनंद का विषय है क्योंकि संसार में जो उपलब्धि आज तक कोई व्यक्ति हासिल नहीं कर पाया, वह आपने हासिल कर ली है। आपने समय को जीत लिया है। युधिष्ठर के कुछ समझ नहीं आया। उन्होंने भीम से पूछा, ‘यह किसने कहा कि मैंने समय को जीत लिया है? समय को जीतना तो संभव ही नहीं है।’
            अब भीम की बारी थी। उसने कहा, ‘महाराज! अभी-अभी कुछ समय पूर्व ही आपने दरबार में एक ब्राह्मण को कल आने के लिए कहा है। इसका आशय है कि आप अवश्य ही कल तक उसको सहायता देने के लिए जीवित रहेंगे और यही नहीं वह ब्राह्मण भी आपसे सहायता लेने के लिए कल तक अवश्य जीवित रहेगा। आप कभी असत्य भाषण नहीं करते, अतः आपकी किसी बात पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। आपने कल आने के लिए कहा है तो निःसन्देह आपने समय पर विजय प्राप्त कर ली है, जो संसार में आज तक कोई नहीं कर पाया है। अतः निःसन्देह हम सभी लोगों के लिए प्रसन्नता व उत्सव का विषय है। बताया यह जाता है कि धर्मराज युधिष्ठर को अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने तुरंत दूत भेजकर ब्राह्मण देवता को तुरंत बुलाकर सहायता प्रदान की।
                       यह पौराणिक उदाहरण देने का यहाँ केवल यही आशय है कि समय को बांधना किसी के लिए भी संभव नहीं है। अतः किसी भी काम को कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। काम को कल पर छोड़ने का आशय यह है कि आज के दिन को जीवन के हाथों से जाने दिया गया। कल क्या होगा? इसे कोई नहीं जानता। अतः आज का मतलब आज, आज और अभी जो पल सामने है, उसे जिंदादिली के साथ जीना है। जीवन का एक पल भी बर्बाद नहीं करना है।
            हम सभी मनुष्य जीवन की दुर्लभता की बात करते हैं। हिंदु धर्म में मान्यता है कि 84 लाख योनियों में से गुजरते हुए मनुष्य योनि में जन्म होता है। मनुष्य योनि में जन्म लेकर श्रेष्ठ कार्य करते हुए हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य आध्यात्म पर चर्चा करना नहीं है। मोक्ष के मार्ग को दिखाना नहीं है। हमारा उद्देश्य जीवन की दुर्लभता पर चर्चा करना है। जीवन दुर्लभ है और अनिश्चित है। कोई नहीं जानता कि उसकी मृत्यु कब आ जाय? आज से कल का पता नहीं। 

                    जब हम जानते हैं कि मृत्यु कभी भी आ सकती है, तो उस पर विश्वास क्यों नहीं करते? हम युधिष्ठिर की तरह आज का काम कल पर टालने की कोशिश क्यों करते हैं? जीवन दुर्लभ है और समय ही जीवन है। हमें नहीं मालूमकि हमारे पास कितना समय है। अतः हमें जीवन के प्रत्येक पल का उपयोग पूर्णता व प्रभावशीलता के साथ करना है। समाज उन्हीं की अमरता के नारे लगाता है, जो उपलब्ध समय में समाज के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य कर जाते हैं। समय ही जीवन है तो फिर हम समय की एजेंसी का प्रयोग करने में लापरवाही  करके अपने जीवन को छोटा कर लेते हैं? क्यों हम अपने समय को जीकर जीवन का आनंद नहीं लेते? 


कोई टिप्पणी नहीं: