बुधवार, 15 मई 2019

समय की एजेंसी-10

चयन का सिद्धांत

जब संसाधनों की बात आती है, तब अर्थशास्त्र याद आता है। अर्थशास्त्र के कुछ आधारभूत नियम हैं, जिनमें से एक यह है कि संसाधन सीमित हैं और संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग संभव है। कहने का अर्थ यह है कि कोई भी संसाधन असीमित नहीं है। प्रत्येक संसाधन सीमित है। संसाधनों का प्रयोग करने के लिए अनेक क्षेत्र या विकल्प होते हैं। अतः मनुष्य को संसाधनों का प्रयोग करते समय चयन करना पड़ता है। 
समय भी एक संसाधन है। अतः अर्थशास्त्र के ये नियम समय पर भी लागू होते हैं। हम धन खर्च करके वस्तुओं और व्यक्तियों के समय को खरीद तो सकते हैं किंतु अपने जीवन अर्थात् अपने पास उपलब्ध समय में वृद्धि नहीं कर सकते अर्थात् हम केवल अपने वर्तमान समय का प्रयोग अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर कर सकते हैं। कहने का आशय यह है कि हम यह चयन कर सकते हैं कि हम अपने समय को किस प्रकार प्रयोग करें। हमें किसी गतिविधि के लिए अधिक समय की आवश्यकता है तो किसी अन्य गतिविधि में से समय की बचत करनी होगी। क्योंकि समय की बचत ही समय की प्राप्ति है।
हमें प्रगति पथ पर चलना है तो समयनिष्ठ बनना होगा। समयनिष्ठ का आशय समय के महत्त्व को समझकर समय का पूर्व-योजनानुसार सदुपयोग करना होगा। हमें अपने सभी कार्यो के लिए प्राथमिकताओं के आधार पर समय का आवंटन करना होगा।
मोटे तौर पर हम विचार करें तो हमारे कुछ मौलिक कत्र्तव्य होते हैं, जो स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति हो सकते हैं। हमें गुणवत्तापूर्ण मानव जीवन जीने के लिए अपने समय का सदुपयोग अपने सभी कत्र्तव्यों में संतुलन बनाकर करना होगा। यह संतुलन मानवीय समय को संसाधन स्वीकार कर, उसकी सीमितता को स्वीकार कर, उसके वैकल्पिक प्रयोगों को स्वीकार कर चयन प्रणाली को लागू करके ही स्थापित किया जा सकता है। चयन प्रणाली का आशय अपनी प्राथमिकताओं के निर्धारण से है। उपलब्ध संसाधन का विभिन्न विकल्पों में अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर आवंटन ही चयन करना है। विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का चयन प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। यह चयन करना ही निर्णयन कहलाता है। प्रबंधक व प्रशासक का मुख्य कार्य निर्णय लेना और उसे लागू करवाना ही है।

मानव संसाधन का सदुपयोग

मानव संसाधन के सदुपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सर्वप्रथम हमें यह स्वीकार करना होगा कि मानव का मतलब उसे उपलब्ध समय से है। मानव अपने आप में संसाधन नहीं है, उसको प्राप्त कार्यकारी समय ही संसाधन है। अतः मानव संसाधन के सदुपयोग का अर्थ मानव के पास उपलब्ध समय के सदुपयोग से है।
मानव संसाधन के उचित प्रयोग के लिए हमें समयनिष्ठ होना होगा। हमें समझना होगा। समय ईश्वर प्रदत्त है। समय का पर्यायवाची काल भी है, ईश्वर को महाकाल भी कहा जाता है। कुछ चिंतक समय और ईश्वर को एक ही रूप में देखते हैं। इस प्रकार ईश्वरनिष्ठ और समयनिष्ठ होना एक ही बात है। समयनिष्ठ होना ही वास्तव में ईश्वरनिष्ठ होना है। समय की आराधना ही ईश्वर की आराधना है। नियत समय पर नियत कर्म का अनासक्त भाव से संपादन करना ही समय की आराधना है। इस प्रकार समयनिष्ठ होने का आशय समय की प्रत्येक इकाई का सम्मान करना है। समय को महाकाल भी कहा जाता है। महाकाल को शिव के रूप में पूजा जाता है। इस प्रकार समय ही ईश्वर है। समय की आराधना ईश्वर की आराधना है।

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