रविवार, 2 जून 2019

समय की एजेंसी-15

समय का संचय नहीं, निवेश


        आप समय को बचाकर भविष्य के लिए संरक्षित नहीं कर सकते; हाँ! समय का श्रेष्ठतम उपयोग करते हुए वर्तमान में ही समय का निवेश कर वर्तमान को परिणामोत्पादक बनाते हुए भविष्य को सुरक्षित व मजबूत आधार प्रदान कर सकते हैं। समय का संचय नहीं किया जा सकता, केवल निवेश किया जा सकता है। समय का कुशलता के साथ उपयोग करना ही निवेश है। समय को कोई भी कीमत देकर प्राप्त नहीं किया जा सकता, इसीलिए इसे अमूल्य कहा गया है। अतः हमारी समझदारी इसी में है कि हम समय के किसी भी पल को व्यर्थ नहीं जाने दें और समय के प्रत्येक पल का पूरा पूरा लुफ़्त उठाते हुए उसका पूरा-पूरा उपयोग करें। 
              यदि हम समय के महत्त्व और संकेत को समझने में भूल या देर करते हैं तो जीवन के स्वर्णावसर को खो देंगे। यह जीवन का ध्रुव सत्य है कि जो पल गया, वह गया। हमें अपने जीवन के स्वर्णावसर को कभी भी जाने नहीं देना चाहिए; वरन्् सकारात्मक, लाभकारी, सुविचारित योजना के अनुसार उसका प्रयोग करना चाहिए। समय के प्रयोग करने के अवसर का उपयोग करने वाला प्रबंधक ही सफलता का सच्चा पथिक होता है। समय रूपी दुर्लभ संसाधन को व्यर्थ ही गवाँ देने वाला व्यक्ति ही दुर्भाग्य का रोना रोता रहता है। वही ईश्वर को दोष देता है, तभी तो कहा गया है, ‘दैव दैव आलसी पुकारा।’
                  समय का अपने लक्ष्य और अपनी योजनानुसार प्रयोग करना ही तो समय का निवेश है। स्मरण रखिये निवेश सदैव रिटर्न देता है। निवेश भविष्य में लाभ कमाने के लिए ही किया जाता है। जब हम समय रूपी संसाधन का योजनानुसार सुविचारित रूप से निवेश करते हैं तो उसका रिटर्न केवल हमें ही नहीं, हमारे परिवार, समाज, देश और संपूर्ण सृष्टि को प्राप्त होता है। हमारे इसी निवेश की मात्रा और कुशलता पर हमारी सामाजिक मान्यता निर्भर करती है। समय के कुशलतम निवेश के द्वारा ही व्यक्ति महापुरूष, यहाँ तक कि देवत्व तक पहुँच जाता है। लोग उसे ईश्वर मानकर पूजा करने लगते हैं। यह सब समय के कुशल निवेश के कारण ही संभव होता है।

गिव एण्ड टेक


        मित्रो! संसार लेन-देन से चलता है। आंग्ल भाषा में इसे ‘गिव और टेक’ का सिद्धांत भी कहते हैं। मेरे कहने का आशय यह है कि हम समय को जितना महत्त्व देते हैं, समय भी हमें उतना ही महत्त्वपूर्ण व्यक्ति बना देता है। यदि व्यक्ति समय की अहमियत को नहीं समझता तो समय को भी क्या दरकार कि वह व्यक्ति की अहमियत को समझे या उस व्यक्ति को अहमियत दे। जो समय को बर्बाद करेगा, समय उसके जीवन को ही बर्बाद कर देगा। 
               यह कहावत शत-प्रतिशत सत्य है कि ‘समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता’ यहाँ ध्यान देना होगा कि जब समय हमारी प्रतीक्षा नहीं करता तो गिव एण्ड टेक के सिद्धांत के अनुसार हमें भी समय की प्रतीक्षा नहीं करनी है और बिना प्रतीक्षा किए प्रत्येक पल का उपयोग करना है। प्रतीक्षा में समय बिताकर उस अवसर को अपने हाथ से जाने देना, बुद्धिमत्ता नहीं। हम एक पल का निवेश एक ही कार्य में कर सकते हैं अर्थात् समय हमें एक ही मौका देता है, यदि हम उस मौके को एकबार खो देते हैं तो सदैव के लिए खो देते हैं। उसे पुनः प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि समय चक्र कभी विपरीत नहीं घूमता।

चलते रहो

    समय चक्र एक अप्रतिम व आश्चर्यजनक उपकरण है, समय का न आदि है और न कोई अन्त। यह ईश्वर की तरह सर्वव्यापी है, अगोचर है। यह बहुत ही शक्तिशाली है। समय ही है जिसके साथ जैविक व अजैविक वस्तु और प्राणी जन्मते हैं, बढ़ते हैं, घटते हैं और फिर समय चक्र में मिट जाते हैं। हिंदु धर्म की आस्था के अनुसार इसके देवता महाकाल अर्थात् शिव हैं। शिव संहारकर्ता भी माने जाते हैं अर्थात् जो समय की चिंता नहीं करता, समय उसके जीवन का ही संहार कर देता है। समय असीमित है, इसकी कोई सीमा नहीं है। यह सदैव चलता रहता है। ऐतरेय ब्राह्मण का चरैवेति का मंत्र समय चक्र की गति का सार स्पष्ट करता है।

चरन् वै मधु विन्दति चरनस्वादुमुदुबरम्।

सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरंष्चरैवैति।।

अर्थात् इतस्ततः भ्रमण करते हुए मनुष्य को मधु प्राप्त होता है, उसे उदुम्बर (गूलर) सरीखे सुस्वादु फल मिलते हैं। सूर्य की श्रेष्ठता को तो देखो जो विचरणरत रहते हुए आलस्य नहीं करता। उसी प्रकार तुम भी चलते रहो। 
चरैवेति का यह मंत्र समय चक्र का ही सार है। समय चक्र कभी रूकता नहीं। वास्तव में चलते रहना ही जीवन है, चलते रहने में ही आनन्द है। बिना रुके, बिना थके, बिना आलस्य सदैव चलते रहना यही जीवन की सफलता का सार है और यही समय का सदुपयोग करने और समय प्राप्त करने की एजेंसी है। समय चक्र सदैव चलता रहता है। अतः समय के साथ चलने के लिए हमें भी चलना होगा। सदैव चलते रहना होगा। चलना ही जीवन यात्रा का सार है। चलते रहने से ही समय बन जाता हमारा यार है। चलते रहना ही जीवन है और थम जाना तो मृत्यु है। अतः मित्रांे! मृत्यु को गले मत लगाओ, चरैवेति का मंत्र अपनाकर समय चक्र के साथी बनकर जीवन का आनन्द मनाओ। अपने निर्धारित पथ पर बिना सुख-दुख की परवाह किए आगे बढ़ते रहो। पथ में मिलने वाले साथियों को गले लगाओ किंतु उनके साथ थमना नहीं है। उनकी राह नहीं, अपनी राह पर निरंतर चलते रहना है। यही जीवन है।
समय की कोई सीमा नहीं है, इसकी गति का कोई निर्धारक नहीं है, यह तो अपनी ही गति से चलता रहता है। स्व प्रेरित है। अतः इसको किसी बाहरी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं है। समय चक्र सदैव चलता रहता है। इसको कोई रोक नहीं सकता। इसकी गति को प्रभावित नहीं कर सकता। ये सृष्टि का शासक है, इस पर कोई अन्य शासन नहीं कर सकता। हाँ! इसके साथ चलकर इससे मित्रता कर सकता है। कुछ समय तक इसके आगे चलने का प्रयत्न कर इसका अधिकतम् उपयोग कर सकता है।
जीवन के किसी भी स्तर पर हम समय पर नियंत्रण नहीं कर सकते। हम समय पर चर्चा कर सकते हैं, इस का विश्लेषण करने का असंभव प्रयास कर सकते हैं, किंतु कोई परिणाम नहीं निकलेगा। समय पर चर्चा करने की अपेक्षा समय को साथी बनाकर, इसके साथ सदैव गतिमान रहकर, समय का योजनाबद्ध सदुपयोग करते हुए, हम अपने जीवन अर्थात् समय को उपयोगी बनाकर जीवन का लुफ्त उठा सकते हैं। गति ही जीवन है और गति में ही आनंद है। थम जाना तो जड़ होने की निशानी है। 

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