जीवन प्रबंधन में समाज की भूमिकाः
व्यक्ति सामाजिक प्राणी है। वह शून्य में नहीं जी सकता। व्यक्ति अपने समाज का एक अभिन्न अंग होता है। वह जिस समाज में रहता है, उस समाज का चिंतन, परंपराएँ, जीवन शैली, स्तर सभी कुछ व्यक्ति के जीवन प्रबंधन को प्रभावित करता है। अधिक पारंपरिक समाज स्वतंत्र विकास को कुछ हद तक अवरोधित कर सकता है तो अधिक वैयक्तिक स्वतंत्रता का हामी समाज नैतिक व सामाजिक मूल्यों की स्थापना में पिछड़ जाता है और सामाजिक संस्थाएँ कमजोर पड़ने लगतीं हैं। अतः जीवन प्रबंधन करते समय वैयक्तिक स्वतंत्रता व सामाजिक नियंत्रणों में संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जीवन का प्रबंधन निःसन्देह महत्वपूर्ण है, यह केवल व्यक्ति के लिए ही नहीं, माता-पिता, स्वयं व्यक्ति, शिक्षा प्रणाली, परिवार व समाज के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। अतः माता-पिता द्वारा जीवन प्रबंधन किए जाने के बाबजूद विद्यालय, परिवार व समाज भी संयुक्त रूप से जीवन प्रबंधन के लिए उत्तरदायी होते हैं। किसी भी स्तर पर जीवन में रहने वाली खामी केवल व्यक्ति को ही प्रभावित नहीं करती, परिवार, समाज व राष्ट्र सभी प्रभावित होते हैं।
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