जीवन प्रबंधन व उत्तरदायित्व
व्यक्ति के जीवन प्रबंधन में उसका स्वयं के अतिरिक्त परिवार व समाज का भी अप्रतिम योगदान होता है। अतः व्यक्ति भी स्वयं अपने, अपने परिवार व समाज के विकास के लिए प्रयत्न करने के प्रति कर्तव्याधीन होता है। वर्तमान समय में देखा जा रहा है कि हमारी व्यवस्था कुछ इस प्रकार का प्रबंधन कर रही है कि व्यक्ति अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक होता जा रहा है, जबकि यथार्थ यह है कि किसी भी प्रकार के अधिकार व्यक्ति के कर्तव्यों की पूर्ति के लिए समाज द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
यहाँ ध्यान दिए जाने की बात यह है कि जब हम अधिकारों की बात करते हैं तो हमारे कतव्य भी उन अधिकारों के अनिवार्य अंग होते हैं। मूल भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था थी किन्तु मूल कर्तव्यों की नहीं। इसका कारण यह है कि अधिकारों में अनिवार्य रूप से कर्तव्य अन्तर्भूत होते हैं। अधिकार दिये ही इसलिए जाते हैं कि व्यक्ति अपने कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने में सक्षम बन सके। व्यक्ति अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए अपने अधिकारों को प्रयोग करने के लिए उत्तरदायी है। वर्तमान समय में कर्तव्य विमुखता की प्रवृत्ति को देखते हुए ही संविधान में संशोधन करके मूल कर्तव्यों को जोड़ना पड़ा। अतः व्यक्ति के जीवन प्रबंधन के दौरान कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों की अवधारणा को अन्तर्भूत करना आवश्यक है।
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