एक प्रबंधक निर्देशन देते समय निर्देशक की भूमिका में होता है। कई बार प्रबंधक अपनी भूमिका की सीमाओं से परे अपने सहयोगियों के लिए अध्यापक की भूमिका में भी आ जाता है। अध्यापक ज्ञान प्रदान करता है, तो प्रबंधक भी अपने सहयोगियों को आवश्यक ज्ञान प्रदान करता है, निर्देश देता है। निर्देशन प्रबंध प्रक्रिया के अन्तर्गत महत्वपूर्ण घटक है। यही नहीं वह अपने सहयोगियों के विकास के लिए भी कार्य करता है। कर्मचारियों के जीवन-वृत्ति विकास की योजना भी प्रबंधक बनाता है, दूसरी ओर अपने व अपने परिवार के सदस्यों की जीवन-वृत्ति विकास की योजनाएँ लगभग सभी व्यक्तियों को कमोबेश बनानी पड़तीं हैं या बनानी चाहिए। इस प्रकार की योजना बनाने का प्रबंधन तभी संभव है कि व्यक्ति अपने विकास के लिए सतत् प्रयत्नशील रहे, जिस प्रकार की अपेक्षा एक शिक्षक से की जाती है, ‘‘अच्छे शिक्षक अपने ज्ञान को सीमा से परे भी पहुँचाते हैं तथा छात्रों को भौतिक राजनैतिक और आर्थिक सीमाओं से रहित होकर विभिन्न पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होने की सुविधा देते हैं।’’ यही कार्य कुछ हद तक प्रत्येक प्रबंधक ही क्यों प्रत्येक व्यक्ति से अपेक्षित है, तभी वह सफलता की और निरंतर अग्रसर हो सकेगा।
व्यक्ति को स्पष्ट रूप से समझना आवश्यक है कि सफल मानव जीवन जीने के लिए अपने कर्तव्यों को समझना व उन कर्तव्यों के निर्वहन के लिए अपने अधिकारों का सदुपयोग करना अत्यन्त आवश्यक है।
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