व्यवसाय के अन्तर्गत प्रमुख रूप से दो क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है-
1. उद्योग-
उद्योग से आशय उन आर्थिक क्रियाओं से है, जिनके अन्तर्गत संसाधनों को उपयोगी
वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है। सामान्यतः इन क्रियाओं के अन्तर्गत यांत्रिक
उपकरणों और तकनीकी कौशल का प्रयोग किया जाता है। उद्योग के अन्तर्गत वस्तुओं का
उत्पादन, प्रक्रियाकरण, पशुओं का प्रजनन और पालन आदि से जुड़ी क्रियाएं भी सम्मिलित
होती हैं। व्यापक अर्थ में उद्योग का अर्थ समान वस्तुओं अथवा संबन्धित वस्तुओं के
उत्पादन में लगी इकाइयों के समूह से है।
2. वाणिज्य-
वाणिज्य किसी भी देश के विकास की आधारशिला होती है। वाणिज्य में सामान्यतः दो
प्रकार की क्रियाएं सम्मिलित की जाती हैं। पहली वे जो माल की खरीद और बिक्री के
लिए की जाती हैं। उन्हें व्यापार कहते हैं। दूसरे वे विभिन्न प्रकार की सेवाएं जो
व्यापार की सहायक होती हैं। इन्हें सेवाएं अथवा व्यापार की सहायक सेवाएं कहते हैं।
सहायक सेवाएँ किसी भी व्यवसाय, उद्योग और व्यापार के संचालन में सहायता करने वाली
सेवाएँ हैं। बैंकिग, बीमा आदि वित्तीय सेवाएं, परिवहन सेवाएं, संचार सेवाएं जैसी
सेवाएं उद्योग और व्यापार के संचालन को सुलभ बनाती हैं।
वाणिज्य
प्राचीन काल में महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। खेती को अत्यन्त सम्मानित आजीविका
के रूप में देखा जाता था। वाणिज्य मध्यम सम्मान पाता था। नौकरी को हीन भावना से ही
देखा जाता था। वास्तविकता तो यही है कि किसान अपने धंधे का स्वामी होता है।
व्यवसायी भी अपने धंधे का स्वामी होता है। दूसरी ओर नौकरी करने वाले व्यक्ति को
अपने काम के संदर्भ में निर्णय लेने के अधिकार नहीं होते। वास्तविकता यह है कि
निर्णय करने की शक्ति ही सम्मान की पात्र होती है। इसी कारण प्राचीन काल में कहावत
थी-
‘उत्तम
खेती मध्यम वान(वाणिज्य), नीच चाकरी भीख निदान।’
वर्तमान
समय में जनता में नौकरी को प्राथमिकता दी जाने लगी है किंतु इससे वाणिज्य का महत्व
कम नहीं हुआ है। वाणिज्य ही देश की आर्थिक गतिविधियों का आधार और सबसे अधिक रोजगार
उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है।
वाणिज्य
के अन्तर्गत सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध है। अतः कैरियर के बारे में निर्णय करते समय
उपलब्धता के आधार पर यह क्षेत्र महत्वपूर्ण अवसरों के रूप में देखा जा सकता है।
(ख) पेशाः
पेशे के अन्तर्गत व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपनी
विशेषज्ञ सेवाएं प्रदान करता है। इसके लिए विशेष क्षेत्र में प्रशिक्षण और विशेष
योग्यता(निपुणता) की आवश्यकता पड़ती है। यह निपूणता ही व्यक्ति की सफलता का आधार
होती है। किसी पेशे को करने के लिए किसी पेशेवर संस्था की सदस्यता और व्यावहारिक
अनुभव की आवश्यकता होती है। यही नहीं इसमें पेशेवर आचार संहिता के अनुपालन की
आवश्यकता भी पड़ती है। किसी भी पेशे की स्थापना में कम पूँजी लगती है। अतः जोखिम भी
कम होता है। शुल्क के रूप में आय प्राप्त होती है। चिकित्सक और वकील पेशेवर के
उदाहरण हैं।
(ग) रोजगार या नौकरीः
रोजगार या नौकरी के लिए किसी पूँजी की आवश्यकता नहीं
पड़ती। इसके अन्तर्गत कोई जाखिम भी नहीं होता। इसमें किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था
के अधीन काम करना होता है। नियुक्ति पत्र या सेवा समझौते के अन्तर्गत काम मिलता
है। काम स्वीकार करने के बाद सेवा शर्तो के अधीन काम करना होता है। उसके संबन्ध
में निर्णय लेने का अधिकार भी कर्मचारी को नहीं होता। नियोक्ता द्वारा निर्धारित
योग्यता, कौशल या अपेक्षाओं को पूरा करने के बाद ही नियुक्ति पत्र प्राप्त होता
है। कार्य व्यवहार के लिए नियोक्ता द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना आवश्यक
है। किसी भी प्रकार की पूँजी की आवश्यकता नहीं पड़ती। बिना किसी जोखिम के निर्धारित
काम पूरा करने पर नियमित व निर्धारित वेतन प्राप्त होता है। घरेलू नौकर से लेकर
देश के सचिव तक इस श्रेणी में सम्मिलित हो जाते हैं।
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