शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

ध्येय का निर्धारण करना:

1. ध्येय का निर्धारण करना: 

सामान्यतः यह प्रबंधन के अन्तर्गत किसी भी कार्यवाही को प्रारंभ करने से पूर्व का काम है। इसे प्रबंधकों के लिए निर्धारित करने के लिए किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। ध्येय के बारे में हम पूर्व में ही चर्चा कर चुके हैं। यह एक दिशा-निर्देशक आदर्श कहा जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को अपना ध्येय पूर्ण रूप से सोच-विचार कर अपने परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व के हित को ध्यान में रखकर ही अपने ध्येय का निर्धारण करना चाहिए। यह स्थाई प्रकृति का होता है और इसे बार-बार बदलना किसी भी प्रकार से उचित व संभव नहीं होता।
           ध्येय वास्तव में जीवन का उद्देश्य होता है जीवन में किए जाने वाले प्रयासों का नहीें। वास्तव में ध्येय उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करने का ढंग या संकल्प भी कहा जा सकता है। ध्येय उद्देश्यों व लक्ष्यों को दिशा प्रदान करता है। उद्देश्यों व लक्ष्यों को प्राप्त करने का मापन या मूल्यांकन हो सकता है किंतु ध्येय तो जीने का एक तरीका है जो जीवन को गुणवत्तापूर्वक जीने में सहायता करता है। ध्येय की निर्धारण करना व्यक्ति की जागरूकता व सक्षमता का प्रतीक है। सभी व्यक्तियों का ध्येय या मिशन हो तो व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन उच्चता की ओर बढ़ सकता है। यह जीवन जीने का तरीका होता है, उदाहरणार्थ- भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के जीवन के तीनों संकल्प जो उनके समस्त कार्यो की दिशा का निर्धारण करते हैं। इस संकल्पों को वे गुजरात में मुख्यमंत्री काल के दौरान से ही दुहराते व प्रयोग करते आये हैं-

(क) किसी निजी लाभ की इच्छा  न करना,
(ख) बदनीयती से काम न करना, व 
(ग) सार्वजनिक लाभ के लिए कोई कोर कसर न   छोड़ने का संकल्प; इसी पर आधारित उनका नारा रहा है- सर्वप्रथम राष्ट्रहित।

इन संकल्पों को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ध्येय भी कहा जा सकता है। व्यक्तिगत व सार्वजनिक जीवन में किए गये सभी कार्य उनके इस संकल्पों के आधार पर ही संपन्न होते हैं और कार्य करने की इस पद्धति के कारण उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात को विकास की सीढ़ियों पर चढ़ाया। इस प्रकार संकल्पबद्ध होकर कार्य करते रहे और जन सहयोग मिला तो निश्चय ही भारत विकसित राष्ट्रों की सूची में सम्मिलित हो सकेगा। 

कोई टिप्पणी नहीं: